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Categories: Biology

Lactation in hindi , दुग्ध स्रवण क्या है , दुग्ध जनक हार्मोन का स्राव कहां पर होता है , महिलाओं के शरीर में दूध कैसे बनता है

महिलाओं के शरीर में दूध कैसे बनता है , Lactation in hindi , दुग्ध स्रवण क्या है , दुग्ध जनक हार्मोन का स्राव कहां पर होता है ?

प्रसव (Parturition )

गर्भाशय में युग्मनज के रोपण के उपरानत अपरा या प्लैसेन्टा (placenta ) नामक संरचना विकासशील भ्रुण व गर्भाशय की उपकलाओं द्वारा बनती है। इसके द्वारा भ्रूण को श्वसन हेतु ऑक्सीजन, पोषक पदार्थ एवं अन्य आवश्यक तत्वों का सम्भरण किये जाता है व भ्रुण से अनुपयोगी पदार्थ मादा को लौटाए जाते हैं। यह अवस्था गर्भावस्था (pregnacy) कहलाती है।

गर्भावस्था में अपरा उपरोक्त कार्यों के अतिरिक्त हार्मोन स्त्रवण का कार्य करती है। प्लेसेन्टा के उपरोक्त कार्य आरम्भ करने से पूर्व कापर्स ल्युटियम ही हार्मोन्स का स्रवण करता रहता है । मनुष्य में अपरा कोरिओनिक गोनेडोट्रोपिन (chorionic goandotropin) या HCG हार्मोन स्रवित कर के कापर्स ल्युटिमय को बनाये रखता है। अपरा द्वारा एस्ट्रोजन हार्मोन स्रवित किये जाने के कारण स्वयं अपरा सक्रिय बनी रह गर्भावस्थ को बनाये रहती है।

चित्र 9.11 : अन्त: रोपण की प्रक्रिया

गर्भावस्था में कापर्स ल्युटियम 3-4 माह तक एस्ट्रोजन व प्रोजेस्टिरॉन का स्रवण करके गर्भाशय के अस्तर को गर्भ बनाये रखने हेतु सक्रिय रखता है तथा स्तन ग्रन्थि को दुग्ध स्रवण हेतु इनकी कूपिकाओं में वृद्धि कर उपापचयी क्रियाओं को बढ़ाकर तैयार करता है। कापर्स ल्युटियम द्वारा स्रवित दोनों हार्मोन्स की मात्रा सामान्य रज चक्र व अण्डोत्सर्ग के समय की मात्राओं की अपेक्षा इस काल में अधिक रहती है।

चित्र 9.12 : प्रसव क्रिया पर विभिन्न अंतःस्त्रावी हॉर्मोन्स का नियंत्रण

अपरा के जरायु (chorion) भाग द्वारा स्रवित मानव कोरिओनिक गोनेडोट्रोपिन (HCG) कापर्स ल्युटियम के बने रहने व भ्रूण (Foetus) के गर्भाशय आस्तर से जुड़ेरहने हेतु आवश्यक होता है। अपरा द्वारा स्रवित हार्मोन इन्हीबिन (inhibin) हाइपोथैलेमस पर क्रिया कर पीयूष ग्रन्थि से FSH हार्मोन स्रवण को संदमित करता है। अपरा एर्भावस्था के 28-30 पश्चात् एस्ट्रोजन तथा 40-42 दिन • पश्चात् प्रोजिस्टरॉन का स्रवण आरम्भ कर देती है। जन्म के समय तक ये हार्मोन स्रवित होते हैं तथा इनकी मात्रा में वृद्धि हो जाती है। गर्भधारण के 100-120 दिन पश्चात् जब अपरा पूर्णतः स्थापित हो जाती है तो HCG का स्रवण कम हो जाता है। अपरा द्वारा स्रवित हार्मोन्स प्रसव क्रिया अर्थात् शिशु के माता की देह से बाहर निकलने की क्रिया एवं स्तन ग्रन्थियों से दुग्ध स्त्रवण में भी सहायक होते हैं। अपरा के कोरियन से ही मानव कोरिओनिक सोमेटोट्रोपिन (human chorionic somatotropin) HCS के स्रवण के साथ ही आरम्भ है। यह हार्मोन भी स्तनों के विकास एवं उपापचयी क्रियाओं के नियमन का कार्य करता है। HCS ग्लाइकोप्रोटीन प्रकृति का हार्मोन होता है।

चित्र 9.13 : प्रसव वेदना की क्रिया विधि

गर्भकाल (gestation period) विभिन्न स्तनियों में भिन्न होता है। मनुष्य में लगभग 9 माह का समय भ्रूणीय विकास हेतु लिया जाता है। अपरा द्वारा एवं अण्डाशय के द्वार गर्भकाल के अन्तिम दौर में रिलेक्सिन (relaxin) हार्मोन का स्रवण होता है, अतः गर्भाशय के ग्रीवा (uterine cervix) भाग की पेशियाँ संकुचित होती है जिससे यह भाग फैलकर चौड़ा होता है। श्रेणी मेखला पर स्थित सिम्फइसिस या जोड़ फैल कर ढीला हो जाता है। हार्मोन्स द्वारा प्रसव क्रिया का नियंत्रण निम्न प्रकार से होता है :

(i) पीयूष ग्रन्थि के न्यूरोहाइपोफाइसिस से स्रवित ऑक्सिटोसिन हार्मोन गर्भाशय की पेशियों में तालबद्ध आवर्ती (rhythmical) या प्रबल संकुचन क्रिया आरम्भ करता है। इस प्रकार मादा में प्रव वेदना (labour pain) आरम्भ होती है। गर्भाशय ग्रीवा भाग के प्रसार हेतु ऑक्सिटोसिन एवं प्लेसेन्टा द्वारा स्रवित रिलेक्सिन दोनों संयुक्त रूप से क्रिया करते हैं।

(ii) प्रसव क्रिया से कुछ पूर्व तक एस्ट्रोजन व प्रोजेस्टिरॉन दोनों की आवश्यकता विभिन्न क्रियाओं हेतु होती है, किन्तु प्रसव हेतु प्रोजेस्टिरॉन की मात्रा का कम होना आवश्यक होता है। अतः एस्ट्रोजन की मात्रा बढ़ाकर प्रोजस्टिरॉन की मात्रा कम रि दिया जाता है ताकि प्रसव क्रिया हो सके, अन्यथा प्रोजेस्टिरॉन का प्रभाव गर्भाशय पेशियों पर संकुचन प्रभाव को संदमित कर देता है।

(iii) भ्रूण प्रसव के अन्तिम दौर में गर्भाशय में निष्पीडित अवस्था में रहता है। इस दौरान इस क्रिया के अनुक्रिया स्वरूप एड्रिनल मेड्यूला से एपिनेफ्रिन (epinephrine) एवं नार एपिनोफिन (non-epinephrine) हार्मोन्स का स्रवण होकर इस अवस्था में भ्रूण को सुरक्षित बाहर आने हेत संघर्ष को शक्ति प्रदान करते हैं। जन्म से पूर्व शिशु के फुफ्फस निष्क्रिय होते हैं जबकि माता की देह से (आते ही श्वांस का लिया जाना आवश्यक होता है। एड्रिनल मैड्यूला द्वारा स्रावित उपरोक्त दोनों हार्मोन्स की फुफ्फुस को इस क्रिया के लिए तैयार करते हैं।

चित्र 9.14 : प्रसव की प्रक्रिया दर्शाता चित्र

उपरोक्त सभी होर्मोन्स द्वारा संयुक्त प्रभाव से भ्रूण का सिर भाग गर्भाशय ग्रीवा की ओर पेशियों के संकुचन द्वारा धकेला जाता है एवं विस्फारित (dilated) गर्भाशय मुख से होकर योनि के मुख तक आ जाता है। रिलैक्सिन के प्रभाव से श्रोणि स्रायु (pelvic ligaments) के शिथिल होने से एवं उदर पेशियों के संकुचन से गर्भ या भ्रूण (foetus) का सिर पहले बाहर निकलता है। इसके बाद भ्रूण का देह भाग बाहर आता है। भ्रूण अपरा से नाभि रज्जु (umbilical cord) द्वारा जुड़ा रहता है। यह रज्जु बाँध कर काट दिया जाता है।

शिशु के जन्म के 15-30 मिनट के उपरान्त गर्भाशय पेशियों में पुनः संकुचन क्रिया आरम्भ हो है। इसके प्रभाव से अपरा एवं गर्भाशय से चिपकी अन्य भ्रूण झिल्लियाँ माता की देह से बाहर निकाल दी जाती है। ये क्रिया अपरा कला निष्कासन (after birth activities) कहलाती है। मनुष्य एवं अन्य प्राइमेट्स में निष्कासित अपा कलाओं के साथ गर्भाशय भित्ति का ऊपरी भाग भी होता है जो खिंचकर अलग होने के कारण इस पर रक्त स्रावी घाव हो जाता है एवं रक्त का स्राव भी होता है। ऑक्सिटोसिन द्वारा उत्पन्न गर्भाशय में संकुचनी क्रियाएँ गर्भाशय को पुनः बिना गर्भ वाले आमाप को प्राप्त करने हेतु प्रेरित करती है। इन क्रियाओं के कारण गर्भाशय की रक्त वाहिनियों का भी संकीर्णन हो जाता है और गर्भाशय से बने घाव एवं रक्त के स्राव को धीरे-धीरे समाप्त कर सामान्य अवस्था में लाया जाता है।

अपरा द्वारा स्रावित हार्मोन्स, एस्ट्रोजन तथा प्रोजेस्टिरॉन की मात्रा में यकायक कमी हो जाने माता व शिशु दोनों पर गहरा प्रभाव पड़ता है। माता की स्तन ग्रन्थियाँ परवर्ती प्रभाव हेतु अनुक्रियाशील हो जाती है तथा शिशु द्वारा उत्तेजित किये जाने पर दुग्ध का स्रवण आरम्भ कर देती है।

दुग्ध स्रवण (Lactation)

प्रसव के उपरान्त माता की दुग्ध ग्रन्थियों से दुग्ध स्रवण की क्रिया होने पर अर्थात दुग्ध निष्कासन को दुग्ध स्रवण कहते हैं। यह भी अन्य जनन क्रियाओं की भाँति होने वाली लम्बी अवधि की हार्मोन आधारित जटिल क्रिया है ।

स्तन` या दुग्ध ग्रन्थियाँ परिवर्तित स्वेद ग्रन्थियाँ (sweat glands) है जो अध्यावरण के भीतर को वृद्धि करने के कारण बनती है। प्रत्येक ग्रन्थि में 16-25 पिण्ड होते हैं जिनसे शाखित नलिका तन्त्र बनकर कुछ नलिकाएँ स्तनाम को बढ़ती है एवं इस पर खुलती है। प्रत्येक पिण्ड से निकली नलिका प्रत्येक लेक्टेसधर नलिका (lactiferous duct) द्वारा एरिओला (areola) लाल वर्णकित क्षेत्र पर पृथक् से खुलती है। यह क्षेत्र स्तनाग्र के चारों ओर कुछ दूरी तक फैला रहता है। प्रत्येक लेक्टेसधर नलिका स्तन् ग्रन्थि के पिण्ड में अत्यन्त महीन शाखाओं में विभक्त होकर कलिकाओं (buds) या कूपिकाओं (alveoli) में खुलती है। स्तन ग्रन्थियों के विकास के समय, परिपक्वन के समय यह नलिका तन्त्र अत्यन्त विकसित हो जाता है। गर्भकाल के दौरान एवं प्रसव के उपरान्त कूपिकाओं की संख्या में वृद्धि तथा नलिकाओं के शाखीकरण में अत्यधिक विकास होता है।

`स्तन ग्रन्थियों के विकास या परिवर्धन की क्रिया मेमौजेनेसिस (mamogenesis) कहलाती है। यह क्रिया एडिनोहाइपोफाइसिस से स्रवित STH एवं अण्डाशय से स्रवित एस्ट्रोजन तथा प्रोजेस्टिरॉन के नियंत्रण में होती है। अतः कूपिकाओं व नलिका तन्त्र के विकसित होने एवं स्तन ग्रन्थि से वसाओं के संग्रह होने में ये हार्मोन्स सहायक होते हैं। प्लेसेन्टा द्वारा भी एस्ट्रोजन व प्रोजेस्टिरॉन का स्रवण होने से निरन्तर सम्भरण के कारण कूपिकाओं की संख्या व नलिकाओ के शाखित होने की क्रिया के साथ ही कूपिकाओं की कोशिकाओं में स्रवण क्रिया आरम्भ होती है। यही क्रिया पीयूष ग्रन्थि के एडिनोहाइपोफाइसिस भाग स्रवितLTH तथा TSH हार्मोन्स के द्वारा भी होती है। केवल जनन हार्मोन्स बिना पीयूष ग्रन्थि के द्वारा स्रवित हार्मोन्स के स्तन ग्रन्थियों पर उपरोक्त प्रभाव उत्पन्न करने में असमर्थ होते हैं। यह स्पष्ट ही है कि पीयूष ग्रन्थि के ये हार्मोन्स हाइपोथैलेमस से स्रवित मोचक कारकों के फलस्वरूप ही उत्पन्न होते हैं। अधिवृक्क ग्रन्थि के वल्कुट भाग से स्रवित कार्टिकॉइडस भी इसी प्रकार का प्रभाव स्तन ग्रन्थि पर रखते हैं।

उपरोक्त सभी ग्रन्थियों के प्रभाव से तैयार दुग्ध ग्रन्थि भी दुग्ध का निष्कासन करने में असमर्थ होती है। दुग्ध का निष्कासन ( ejection of milk) एक जटिल क्रिया है जो तन्त्रिका तंत्र एवं हार्मोन क्रियाओं के संयुक्त क्रियाओं के फलस्वरूप होती है।

चित्र 9.15 : स्तनग्रन्थियों की वृद्धि एवं स्रवण पर अन्तःस्रावी नियंत्रण प्रसव के उपरानत माता के 30-36 घण्टे के भीतर दुग्ध का सवण आरम्भ होता है। प्रसव के तुरन्त उपरानत एस्ट्रोजन व प्रोजेस्टिरॉन जो अण्डाशय व अपरा से स्रावित होते तथा ऑक्सिटोसिन जो पीयूष ग्रन्थि से स्रावित होता है, का स्त्रवण बन्द कर दिया जाता है। पीयूष ग्रन्थि से लेक्टोजेनिक या प्रोलैक्टिन (lactogenic or prolactin) LTH हार्मोन का स्त्रवण होने पर दुग्ध का निष्कासन होता है। सामान्यत: दुग्ध स्त्रवण प्रोलैक्टिन एवं एड्रिनल ग्रन्थि के द्वारा स्त्रावित स्टिरॉइड हार्मोन्स के नियंत्रण में होता है। वृद्धि हार्मोन, थयरोक्सिन, इन्सुलिन, पेराथोरमोन तथा ऑक्सिटोसिन का भी दुग्ध स्त्रवण पर प्रभाव होता है। यह स्पष्टतः ज्ञात हो चुका है कि इस क्रिया में प्रोलेक्टिन के अतिरिक्त अनेक सहायक हार्मोन या कारक संकर्मों या योगवाहित (synergic) के रूप में सक्रिय भूमिका निभाते हैं।
शिशु के द्वारा स्तनाग्र को स्पर्श करने के साथ ही उद्दीपन होता है, अत: आवेग प्रसारित होकर हाइपोथैलेमस को प्रेषित होते हैं। हाइपोथैलेमस से LTH-RH कारक या मोचक हार्मोन स्रवित होकर एडिनोहाइपोफाइसिस से LTH को मुक्त कराकर स्तन ग्रन्थि से दुग्ध का स्रवण करता है। इसी प्रकार ऑक्सिटोसिन भी स्रवित होकर दुग्ध से स्रवण एवं निष्कासन में सहायक होता है। यह प्रतिवर्ती क्रिया (reflex action) माता को भी शिशु के दुग्धपान करते समय पर्याप्त आनन्द की अनुभूति देती है।

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