चट्टानें (rocks in hindi) , चट्टान किसे कहते हैं , परिभाषा क्या है , अर्थ , चट्टानों का वर्गीकरण प्रकार

चट्टान किसे कहते हैं , परिभाषा क्या है , अर्थ , चट्टानों का वर्गीकरण प्रकार , चट्टानें (rocks in hindi) :-

चट्टानें (rocks) : चट्टानों का निर्माण खनिजो से होता है और खनिजो का निर्माण तत्वों से होता है।

पृथ्वी की क्रस्ट पर आठ प्रमुख तत्व पाए जाते है इन तत्वों का क्रस्ट पर पाए जाने की मात्रा के आधार पर घटते क्रम में निम्न प्रकार लिखा जा सकता है – ऊपर से नीचे तत्वों का घटता क्रम प्रदर्शित है –

  1. ऑक्सीजन
  2. सिलिका
  3. एल्युमिनियम
  4. फेरस
  5. कैल्सियम
  6. सोडियम
  7. पोटेशियम
  8. मैग्नीशियम

सम्पूर्ण पृथ्वी में 8 प्रमुख तत्व निम्नलिखित है , यहाँ तत्वों को उनके घटते हुए क्रम में लिखा जा रहा है अर्थात ऊपर से निचे जाने पर तत्वों की पाए जाने की मात्रा कम होती जा रही है –

  1. फेरस
  2. ऑक्सीजन
  3. सिलिका
  4. मैग्नीशियम
  5. निकल
  6. सल्फर
  7. कैल्सियम
  8. एल्युमिनियम

चट्टानों के निर्माण में निम्न छ: खनिजो का योगदान रहता है –

  1. फेल्सपर
  2. क्वार्टज़
  3. एल्फीबोल
  4. पाइरोक्सिन
  5. ओलिविन
  6. अभ्रक

इन खनिजो में से फेल्सपर और क्वार्टज़ सामान्यतया सभी चट्टानों में पाए जाते है।

निर्माण के आधार पर चट्टाने 3 प्रकार की होती है –

1. आग्नेय चट्टानें (igneous rocks)

2. अवसादी चट्टानें (sedimentary rocks)

3. कायांतरित या रूपांतरित चट्टानें (metamorphic rocks)

1. आग्नेय चट्टानें (igneous rocks)

इन चट्टानों का नाम लेटिन भाषा के शब्द “इग्निस” के आधार पर रखा गया है जिसका अर्थ ‘आग’ होता है।

इन चट्टानों का निर्माण गर्म मैग्मा या लावा से होता है।

ये चट्टानें प्राथमिक चट्टानें है।

इन चट्टानों में क्रिस्टल या रवे पाए जाते है।

ये चट्टानें कठोर होती है और सामान्यतया आसानी से अपरदित नहीं होती है।

इन चट्टानों में धात्विक खनिज पाए जाते है।

इन चट्टानों में ‘जीवाश्म’ , रंध्र और परते नहीं पायी जाती है।

आग्नेय चट्टानों के प्रकार (types of igneous rocks)

आग्नेय चट्टानों को निम्न दो आधारों पर बांटा जा सकता है –

1. निर्माण की स्थिति के आधार पर

2. रासायनिक संरचना के आधार पर

1. निर्माण की स्थिति के आधार पर : इस आधार पर आग्नेय चट्टानें दो प्रकार की होती है जो निम्न है –

(i) अंतर्वेधी

(ii) बहुर्वेधी

आगे अंतर्वेधि चट्टानों को दो भागो में विभक्त किया जा सकता है –

(a) पातालीय चट्टानें

(b) अधिवितलीय

2. रासायनिक संरचना के आधार पर : इस आधार पर आग्नेय चट्टाने दो प्रकार की होती है –

(i) अम्लीय चट्टानें

(ii) क्षारीय चट्टानें

1. निर्माण की स्थिति के आधार पर प्रकार –

(i) अंतर्वेधी (intrusive rocks) : इन चट्टानों का निर्माण पृथ्वी के आंतरिक भाग में मैग्मा के जमने से होता है। पृथ्वी के आंतरिक भाग में मैग्मा धीमी गति से जमता है यही कारण है कि अंतर्वेधी चट्टानों में बड़े बड़े क्रिस्टल का निर्माण होता है।

ये चट्टानें दो प्रमुख प्रकार की होती है जो निम्न प्रकार है –

(a) पातालीय चट्टानें (plutonic rocks) : इन चट्टानों का निर्माण अत्यधिक गहराई में होता है।

पातालीय चट्टानों के उदाहरण : ग्रेनाईट , पेरिडोटाइट , गेब्रो

(b) अधिवितलीय (hypabyssal rock) : इन चट्टानों का निर्माण ऊपर उठते हुए मैग्मा द्वारा कम गहराई में होता है।

अधिवितलीय चट्टानों के उदाहरण : डोलेराइट

(ii) बहुर्वेधी (extrusive igneous rocks) : इन चट्टानों का निर्माण पृथ्वी की सतह पर लावा द्वारा होता है , ये चट्टाने ज्वालामुखी क्रियाओ द्वारा बनती है अत: इन्हें ज्वालामुखी चट्टानें कहते है।

पृथ्वी की सतह पर लावा तीव्र गति से ठंडा होता है अत: इन चट्टानों में पूर्ण रूप से क्रिस्टलो का निर्माण नहीं होता या छोटे रवे/क्रिस्टल बनते है।

बहुर्वेधी आग्नेय चट्टानों के उदाहरण : बसाल्ट , एंडेसाइट , रायोलाइट

रासायनिक संरचना के आधार पर चट्टानों के प्रकार

(i) अम्लीय चट्टानें : इन चट्टानों में सिलिका की मात्रा अधिक होती है यह लगभग 65-85%

इन चट्टानों में मुख्यतः फेल्सपर और क्वार्टज़ पाया जाता है अत: इन्हें फेल्सिक , चट्टाने कहते है।

ये चट्टाने वजन और रंग में हल्की होती है।

इनका घनत्व भी कम होता है , ये चट्टानें कठोर होती है तथा ये आसानी से अपरदित नहीं होती है।

उदाहरण : ग्रेनाइट , रायोलाइट

(ii) क्षारीय चट्टानें : इन चट्टानों में सिलिका की मात्रा कम होती है अर्थात लगभग 45 से 55%

इन चट्टानों में मैग्नीशियम तथा फेरस पाया जाता है अत: इन्हें ‘मैफिक’ कहते है।

इन चट्टानों का वजन तथा घनत्व अधिक होता है और रंग गहरा होता है।

ये चट्टानों आसानी से अपरदित हो जाती है।

उदाहरण : बसाल्ट , गेब्रो

आग्नेय चट्टानों के उपयोग (uses of igneous rocks) :

  • ग्रेनाईट का उपयोग भवन निर्माण सामग्री , सजावट तथा फर्नीचर आदि में किया जाता है।
  • बसाल्ट का उपयोग सडक निर्माण में किया जाता है तथा बसाल्ट के अपक्षय (टूटने पिसने) से काली मृदा का निर्माण होता है।
  • इसका उपयोग सौन्दर्य प्रसाधनो में किया जाता है।
  • आग्नेय चट्टानों से धात्विक खनिज तथा बहुमूल्य पत्थर पाए जाते है।

2. अवसादी चट्टानें (sedimentary rocks)

अवसादी चट्टानों का नाम लैटिन भाषा के ‘सेडीमेंटम’ से लिया गया है जिसका अर्थ ‘व्यवस्थित होना’ होता है।

अवसादी चट्टानों का निर्माण शिलीभवन (lithification) की क्रिया द्वारा होता है।  इस क्रिया के अंतर्गत पहले से उपस्थित चट्टानों का अपक्षय होता है तथा इनके विखण्डित खंड अपरदनकारी गतिविधियों द्वारा किसी अन्य स्थान पर ले जाए जाते है , जहाँ से खंड निक्षेपित होने के बाद सघन होकर चट्टान का निर्माण करते है।

अवसादी चट्टानों की विशेषताओं :

  • इन चट्टानों में परते पायी जाती है।
  • इन चट्टानों में रन्ध्र भी होता है अत: ये चट्टानें आसानी से अपरदित हो जाती है।
  • इन चट्टानों में जीवाश्म ईंधन पाया जाता है।
  • ये चट्टाने क्रस्ट के 75% भाग में पायी जाती है परन्तु ये क्रस्ट के निर्माण में केवल 5% का योगदान करती है।

अवसादी चट्टानों के प्रकार (types of sedimentary rocks) :

 अवसादी चट्टानों को निम्न दो आधारों पर बांटा जा सकता है –

1. निर्माण की पद्धति के आधार पर

2. निर्माण के साधन के आधार पर

1. निर्माण की पद्धति के आधार पर : इस आधार पर अवसादी चट्टानों को तीन भागो में बांटा गया है –

(i) यांत्रिक रूप से निर्मित

(ii) जैविक रूप से निर्मित

(iii) रासायनिक रूप से निर्मित

2. निर्माण के साधन के आधार पर : इस आधार पर अवसादी चट्टानों को तीन भागो में वर्गीकृत किया गया है –

(i) जल द्वारा निर्मित

(ii) वायु द्वारा निर्मित

(iii) हिमनद द्वारा निर्मित

1. निर्माण की पद्धति के आधार पर प्रकार –

(i) यांत्रिक रूप से निर्मित : जब अवसाद यांत्रिक गतिविधियों द्वारा किसी अन्य स्थान पर जाकर निक्षेपित होते है तो उससे यांत्रिक रूप से निर्मित चट्टानों का निर्माण होता है।  इस प्रकार की चट्टानों में कोई रासायनिक परिवर्तन नहीं होता है।

उदाहरण : शेल , बलुआ पत्थर , पिंड शिला , ब्रेशिया

(ii) जैविक रूप से निर्मित चट्टानें : इन चट्टानों में जैव पदार्थो की मात्रा अधिक पायी जाती है।  जैव पदार्थो के आधार पर ये चट्टानें दो प्रकार की होती है।

  • कार्बन युक्त चट्टानें : इन चट्टानों में पेड़ पौधों के अवशेष अधिक पाए जाते है अत: इन चट्टानों में कार्बन की मात्रा अधिक होती है। उदाहरण : कोयला
  • चूना युक्त चट्टानें : इन चट्टानों में जीव-जन्तुओ के अवशेष अधिक पाए जाते है और यही कारण होता है कि इन चट्टानों में कैल्सियम कार्बोनेट की मात्रा अधिक पायी जाती है।  उदाहरण : चूना पत्थर तथा डोलोमाईट

(iii) रासायनिक रूप से निर्मित चट्टानें : इन चट्टानों का निर्माण तब होता है जब पहले से स्थित चट्टानों के ऊपर से जल गुजरता है और अपने साथ जल में घुलनशील तत्वों को ले जाता है तथा किसी जल राशि के तल में इन तत्वों के जमने से अवसादी चट्टान का निर्माण होता है , रासायनिक रूप से निर्मित चट्टानें कई बार जल के वाष्पीकृत होने के बाद सतह पर नजर आती है अत: इन्हें वाष्पीकृत चट्टानें भी कहते है।

उदाहरण : चर्ट , हेलाइट , चूना पत्थर , डोलोमाईट , जिप्सम

निर्माण के साधन के आधार पर प्रकार :

(i) जल द्वारा निर्मित चट्टानें : वे अवसादी चट्टानें जिनका निर्माण जल की अपरदन तथा निक्षेपण गतिविधियों द्वारा होता है उन्हें जल द्वारा निर्मित चट्टानें कहलाते है।

ये चट्टानें तीन प्रकार की होती है –

नदीकृत , झील कृत , समुद्र कृत

(ii) वायु द्वारा निर्मित चट्टानें : वायु की अपरदन तथा निक्षेपण गतिविधियों द्वारा बनने वाली अवसादी चट्टानों को वायु द्वारा निर्मित चट्टानें कहते है। उदाहरण : लोयस

(iii) हिमनद द्वारा निर्मित चट्टानें : हिमनद की अपरदन तथा निक्षेपण गतिविधियों से बनने वाली चट्टानों की हिमनद द्वारा निर्मित चट्टान कहा जाता है।

उदाहरण : हिमोढ़ आदि।

अवसादी चट्टानों के उपयोग (uses of sedimentary rocks)

  • अवसादी चट्टानों में विभिन्न प्रकार के खनिज पाए जाते है।
  • अवसादी चट्टानों में जीवाश्म इंधन पाए जाते है उदाहरण के लिए जैसे पेट्रोलियम , प्राकृतिक गैस , कोयला आदि।
  • हेलाइट का उपयोग रासायनिक उद्योग में किया जाता है।
  • जिप्सम का उपयोग सीमेंट तथा उर्वरको में किया जाता है।
  • चूना पत्थर का उपयोग सीमेंट , भवन निर्माण , चाल्क तथा लौह इस्पात उद्योग में किया जाता है।

3. कायांतरित या रूपांतरित चट्टानें (metamorphic rocks)

जब पहले से स्थित चट्टानों के स्वरूप में परिवर्तन होता है तो कायांतरित चट्टानों का निर्माण होता है।  कायांतरित चट्टानों का निर्माण तापमान तथा दाब के कारण होता है।

कायान्तरण के दौरान चट्टानों में पाए जाने वाले खनिज पुनः संगठित या पुनः क्रिस्टलीकृत होते है।

कायांतरण की प्रक्रिया विभिन्न प्रकार की होती है –

कायांतरण चट्टानें तीन प्रकार की होती है –

(i) गतिशील चट्टानें

(ii) ऊष्मीय चट्टानें

(iii) जलीय चट्टाने

(i) गतिशील कायांतरण चट्टानें : इस प्रकार के कायान्तरण में चट्टानों में स्थित खनिज पुनः संगठित होते है।  यह कायांतरण मुख्यतः दाब के कारण होता है।  इस प्रकार के कायांतरण में कोई रासायनिक परिवर्तन नहीं होता है।

(ii) ऊष्मीय चट्टानें : इस प्रकार के कायांतरण के दौरान चट्टानों में स्थित खनिज पुनः क्रिस्टलीकृत होते है।  इस कायान्तरण की प्रक्रिया के दौरान रासायनिक परिवर्तन होता है।

यह कायांतरण मुख्यतः तापमान के कारण होता है।

उष्मीय कायांतरण दो प्रकार का होता है –

(a) सम्पर्क कायांतरण : इस कायान्तरण के दौरान चट्टानों के स्वरूप में परिवर्तन , गर्म लावा या मैग्मा के सम्पर्क में आने से होता है।

(b) प्रादेशिक कायांतरण : जब चट्टानों में कायांतरण किसी विशेष प्रदेश में स्थित होने के कारण होता है तो उसे प्रादेशिक कायान्तरण कहते है।

इस प्रकार का कायांतरण प्लेट किनारों पर स्थिति चट्टानों में होता है।

(iii) जलीय चट्टाने : जल में होने वाले कायांतरण को जलीय कायांतरण कहते है।  यह कायांतरण दो प्रकार का होता है।

(a) जलीय उष्मीय कायान्तरण : जब जल का तापमान बढ़ने के कारण जल में स्थित चट्टानों के स्वरूप में परिवर्तन होता है तो उसे जलीय ऊष्मीय कायांतरण कहते है।

(b) जलीय रासायनिक कायान्तरण : जल राशि में रासायनिक तत्वों की मात्रा अधिक होने के कारण होने वाले कायान्तरण को जलीय रासायनिक कायान्तरण कहते है।

कायांतरित चट्टानों के प्रकार –

1. पत्रित (foliated)

2. अपत्रित (non foliated)

1. पत्रित चट्टानें (foliated) : जब कायांतरण के दौरान चट्टानों में स्थित खनिज रेखांकित रूप से व्यवस्थित हो जाते है तो उससे पत्रित चट्टानों का निर्माण होता है पत्रण के दौरान कई बार चट्टानों के खनिज समूह पृथक हो जाते है जिससे बैंडेड चट्टानों का निर्माण होता है।

बैंडेड चट्टानें में गहरी तथा हल्की पत्तियां पायी जाती है।

उदाहरण : नीस , सिस्ट , फ़ाइलाईट , स्लेट

2. अपत्रित चट्टानें (non foliated) : जब कायान्तरण के दौरान चट्टानों में स्थित खनिज रेखांकित रूप से व्यवस्थित नही होते तो अपत्रित चट्टानों का निर्माण होता है।

उदाहरण : संगमरमर (मार्बल)

आग्नेय-कायांतरित चट्टानें :

उदाहरण : ग्रेनाईट – नीस

बसाल्ट – एम्फीबोलाइट

अवसादी-कायांतरित चट्टानें :

उदाहरण : चूना-पत्थर – संगमरमर

बालू पत्थर – क्वार्टजाइट

कोयला – ग्रेफाईट – हीरा

कायांतरित-कायांतरित चट्टानें :

उदाहरण : स्लेट – फाइलाइट

फाइलाइट – सिस्ट

सिस्ट – नीस

कायांतरित चट्टानों के उपयोग

  • इन चट्टानों में खनिज तथा बहुमूल्य पत्थर भी पाए जाते है।
  • स्लेट का उपयोग छत निर्माण सामग्री में किया जाता है।
  • ग्रेफाइट का उपयोग पेन्सिल में और परमाणु संयंत्रो में मंदक के रूप में किया जाता है।
  • हीरे का उपयोग काँच काटने के उद्योग और आभूषनो में किया जाता है।
  • संगमरमर (मार्बल) का उपयोग भवन निर्माण सामग्री , सजावट की सामग्री , फर्नीचर आदि में किया जाता है।

शैल चक्र (rock cycle)

चट्टानों निरंतर अपने स्वरूप में परिवर्तन करती है अत: शैल चक्र का निर्माण होता है।

आग्नेय चट्टानें शिलीभवन की क्रिया द्वारा अवसादी चट्टानें में तथा कायांतरण प्रक्रिया द्वारा कायांतरित चट्टानें में परिवर्तित होती है।

उदाहरण : ग्रेनाईट -नीस

अवसादी चट्टानें पिघलने के बाद आग्नेय चट्टानों में तथा कायान्तरण की प्रक्रिया द्वारा कायांतरित चट्टानों में परिवर्तित होती है।

उदाहरण : चूना पत्थर – संगमरमर

कायांतरित चट्टानें पिघलने के बाद आग्नेय चट्टानों में तथा शिलीभवन की क्रिया द्वारा अवसादी चट्टानों में परिवर्तित होती है।

कायांतरित चट्टानों का भी कायांतरण होता है।

उदाहरण : स्लेट-फाइलाइट