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Categories: Biology

ribosomes in hindi , राइबोसोम की संरचना एवं के दो कार्य बताइए राइबोसोम्स किसे कहते है प्रकार

पढ़िए ribosomes in hindi , राइबोसोम की संरचना एवं के दो कार्य बताइए राइबोसोम्स किसे कहते है प्रकार ?

राइबोसोम्स (Ribosomes)

राइबोसोम्स छोटे, सघन, राइबोन्यूक्लिओप्रोटीन (RNA + Proteins) से बने हुए कण होते हैं। ये कोशिका में अन्त: प्रद्रव्यी जालिका तथा केन्द्रक झिल्ली की बाहरी सतह पर संलग्न अथवा कोशिका द्रव्य में माइटोकॉन्ड्रीया तथा हरित लवकों के आघात्री (matrix) में स्वतन्त्र रूप से बिखरे हुए पाये जा सकते हैं।

सर्वप्रथम पैलेडे (Palade, 1953) ने इन कणों को इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वारा जन्तु कोशिका में, रोबिन्सन तथा ब्राउन ने (Robinson and Brown, 1953) पादप कोशिकाओं में देखा। टीसीयर्स तथा जे.डी. वाटसन (Tissiers & J. D. Watson, 1958) ने इन कोशिकांगों को जीवाणु (E. coli ) कोशिका से विलगित किया तथा यह बताया कि राइबोसोम्स में RNA तथा प्रोटीन समान मात्रा में पाये जाते हैं। इन कोशिकांगों में प्रोटीन का संश्लेषण होता है।

उपस्थिति तथा वितरण (Occurrence and distribution)

राइबोसोम्स, प्रोकैरिओटिक व यूकैरिओटिक दोनों प्रकार के कोशिकीय संगठनों में उपस्थित होते हैं। प्रोकैरिओटिक कोशिकाओं के कोशिका द्रव्य में ये स्वतंत्र रूप से पाये जाते हैं । किन्तु यूकैरिओटिक कोशिकाओं में अधिकतर झिल्लियों पर संलग्न रहते हैं । लेकिन कुछ पादप कोशिकाओं (विभाजी कोशिकाओं) व जन्तु कोशिकाओं ( यकृत तथा भ्रूण की तंत्रिका कोशिकाओं) में राइबोसोम्स स्वतन्त्र अवस्था में कोशिकाद्रव्य में बिखरे रहते हैं । माइटोकॉन्ड्रिया तथा हरितलवकों में पाये जाने वाले राइबोसोम्स इनके आघात्री (matrix ) में बिखरे रहते हैं ।

संख्या, आकार एवम् परिमाप (Number, Size and Shape)

किसी भी कोशिका में राइबोसोम्स की संख्या व सान्द्रण का सीधा सम्बन्ध उसमें उपस्थित RNA की मात्रा, कोशिका की क्षारग्राही प्रकृति तथा उपलब्ध होने वाले पोषण से रहता है। इनकी पर्याप्त मात्रा में राइबोसोम्स की संख्या घट जाती हैं ।

राइबोसोम्स मुख्य रूप से दो परिमापों में पाये जाते हैं – (1) प्रोकैरिओटिक कोशिकाओं जैसे- जीवाणु व नीले हरे शैवालों में पाये जाने वाले राइबोसोम्स छोटे होते हैं। इनका अवसादन गुणांक – S (sedimentation coefficient -s) 70 होता है तथा आणविक भार 2.7×106 डाल्टनस् होता है। ये 70s प्रकार के कहलाते हैं। (2) यूकैरिओटिक कोशिकाओं में पाये जाने वाले राइबोसोम्स बड़े होते । इनका अवसादन गुणांक – 80 होता है । अत: ये 80s प्रकार के होते हैं। इनका आणविक भार लगभग 4×10° डाल्टन्स होता है ।

अतः इस प्रकार आकार एवम् परिमाप तथा अवसादन गुणांक के आधार पर राइबोसोम्स अग्र प्रकार के होते है (चित्र 2.34 ) ।

  • 70s राइबोसोम्स – इनका अवसादन गुणांक 70s होता है। ये जीवाणु कोशिकाओं तथा यूकैरिओटिक कोशिकाओं के माइटोकॉन्ड्रीया व हरितलवकों में पाये जाते हैं। इनका आणविक भार7×106 डाल्टन्स होता हैं ।

चित्र 2.34 : प्रोकेरियोट व यूकेरियोट राइबोसोम की उपइकाइयाँ

(2) 80s राइबोसोम्स-इनका अवसादन गुणांक 80s होता है। आकार में बड़े तथा समस्त यूकैरिओटिक कोशिकाओं में पाये जाते हैं । आणविक भार 4×10° डाल्टन्स होता हैं।

(3) 77s तथा 60s राइबोसोम्स – 77s प्रकार के राइबोसोम्स कवक कोशिकाओं के माइटोकॉन्ड्रिया में तथा 60s राइबोसोम्स जन्तु कोशिकाओं के माइटोकॉन्ड्रिया में पाये जाते हैं। सभी प्रकार के राइबोसोम्स आकार में गोलाकार होते हैं।

राइबोसोम्स की संरचना (Structure of Ribosomes)

संरचना में राइबोसोम्स छोटे, गोलाकार कण होते हैं जिनका व्यास 150 से 250 A तक हो सकता है। ये दो उपइकाइयों के एकीकृत होने के उपरान्त बनने वाली संरचनाएँ हैं। एक उपइकाई (sub-unit) बड़ी गुंबदाकार (domeshaped ) तथा एक छोटी उपइकाई टोपी की तरह बड़ी इकाई पर जुड़ी रहती हैं। दोनों प्रकार (70s तथा 80s) के राइबोसोम्स में दो-दो उपइकाइयाँ पायी जाती हैं।

सारणी : प्रोकैरियोटिक एवम् यूकैरियोटिक राइबोसोम्स में अन्तर

70s प्रकार के राइबोसोम्स क्रमश: 50s तथा 30s उपइकाइयों द्वारा निर्मित होते हैं। इनकी 50g बड़ी उपइकाई का परिमाप 140-160A तक हो सकता है तथा अणुभार 1.8×10° डाल्टन होता है । छोग 30s उपकाई का अणुभार 0.9×10° डाल्टन होता है। इसी प्रकार 80s प्रकार के राइबोसोम्स भी ≥ उपइकाइयों 60s तथा 40s से बने होते हैं। 60s बड़ी उपइकाई का परिमाप 160-180A तक हो सकत है तथा अणुभार 1.610° डाल्टन होता है। छोटी उपइकाई 40s का अणुभार 1.5×1.8×106 डाल्टन हो है ।

राइबोसोम्स की सूक्ष्म संरचना (Ultra structure of Ribosomes)

इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वारा यह ज्ञात हो चुका है कि राइबोसोम्स दो गोलाकार उपइकाईयाँ के संयोजन से बनी एक पूर्ण इकाई होती है। जिसका व्यास लगभग 200Å होता है।

नेनिंगा (Nannimga !ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वारा 70s प्रकार के राइबोसोम्स का अध्ययन किया तथा पाया कि 50s उपइकाई आकृति में पंचतयी होती हैं। इसका परिमाप 160-180A होता है। इसके केन्द्र में 40-60Å परिमाप का अवतल क्षेत्र पाया जाता है ! जिस पर छोटी उपइकाई आकर संयोजित होती है। इसके अतिरिक्त फ्लोरेन्डो ( Florendo, 1968 ) ने 50s उपइकाई में एक छिद्र जैसा पारदर्शी क्षेत्र बताया। यह क्षेत्र राइबोन्यूक्लिऐज एन्जाइम को अन्दर आने से रोकता है। इस प्रकार का छिद्र 80s राइबोसोम्स की 60s इकाई में भी देखा गया है। छोटी उपइकाइयों ( 30s तथा 40s) का कोई नियमित आकार नहीं होता है। ये प्रायः दो भागों में विभक्त रहती हैं। दोनों भाग 30-60A मोटे धागे से जुड़े रहते हैं। संदेशवाहक RNA (mRNA) राइबोसोम्स की दोनों उपइकाइयों के मध्य खाली स्थान में स्थित रहता है। जिससे लगभग 25 न्यूक्लिओटाइड लम्बा m RNA खण्ड राइबोन्यूक्लिऐज एन्जाइम की अभिक्रिय से सुरक्षित रहता है विखण्डित नहीं हो पाता। राइबोसोम्स की बड़ी उपइकाई में एक खाँच अथवा सुरंग होती है। जिसमें नवनिर्मित प्रोटीन शृंखला वृद्धि करती है (चित्र 2.36 ) ।

राइबोसोम्स उपइकाइयों का संयोजन तथा विनियोजन

(Association and Dissociation of Ribosomal subunits)

राइबोसोम्स की दोनों उपइकाइयों के संरचनात्मक संयोजन हेतु मैगनिशियम आयन (Mg) बहुत कम सान्द्रण (0.001M) की आवश्यकता होती है। Mg” आयन की अनुपस्थिति में राइबोसोम्स की उपइकाइयों स्वतन्त्र (विनियोजित) पड़ी रहती हैं। इसके अतिरिक्त यदि Mgth आयन का सान्द्र 0.001M से घट जाता है, तब भी दोनों उपइकाइयाँ मुक्त हो जाती हैं। लेकिन यदि Mg T ++ आयन सान्द्रण दस गुना बढ़ा दिया जाता है तो दोनों राइबोसोम्स संयुक्त होकर डाइमर (dimer) बनाते हैं।

जिसका आणविक भार एक राइबोसोम्स की तुलना में दुगुना होता है। प्रोटीन संश्लेषण के दौरान एक mRNA अणु से कई राइबोसोम्स आकर जुड़ जाते हैं तथा पॉलीराइबोसोम्स (Polyribosomes) कहलाते हैं ( चित्र 2.35 ) ।

चित्र 2.35 : राइबोसोम एकल, डाइमर तथा पाली राइबोसोम

राइबोसोम्स का रासायनिक संघटन (Chemical composition)—

राइबोसोम्स मुख्य रूप से rRNA तथा प्रोटीन्स की समान मात्राओं से मिलकर बनते हैं । इनके अलावा बहुत कम मात्रा में लिपिड्स व धातु आयन Mg, Ca व Mn भी पाये जाते हैं ।

राइबोसोम्स के मुख्य रासायनिक घटक निम्नानुसार होते हैं –

(1 ) राइबोसोमी RNA (Ribosomal RNA ) – कोशिका में पाये जाने वाले RNA की कुल मात्रा का 80% से भी अधिक भाग 1 – RNA के रूप में राइबोसोम्स में पाया जाता है। प्राय: 70s राइबोसोम्स में RNA की मात्रा 65% तथा 80s राइबोसोम्स में 45% RNA पाया जाता है। राइबोसोमी RNA लगभग 7000À लम्बा तथा अत्यधिक कुण्डलित सूत्र (high folded filament ) के रूप में पाया जाता हैं। इससे प्रोटीन अणु जुड़े रहते हैं । r – RNA का लगभग 60% भाग DNA अणु के समान सर्पिल विन्यास (helical configuration) प्रदर्शित करता है, किन्तु इसका क्षारीय संघटन DNA के क्षारीय संघटन से अलग होता है । इसमें मिथाइल समूह की संख्या निश्चित होती है । इस RNA के एक हिस्से में अन्तराण्विक हाइड्रोजन बंध पाये जाते हैं।

चित्र 2.36 : 70s व 80s प्रकार के राइबोसोम की संरचना

राइबोसोमी RNA तीन रूपों में पाया जाता है-

(i) यूकैरिओटिक कोशिकाओं में RNA बड़े व 28s 18s तथा 5s अवसादन गुणांक वाले होते हैं। राइबोसोम्स की बड़ी उपइकाई में 28s तथा 5s RNA तथा छोटी उपइकाई में 185 RNA पाये जाते हैं । इनके अलावा केन्द्रिक में 28s तथा 18s RNA के साथ-साथ एक और RNA (5.8s ) ट्रॉसक्राइव होता है। किन्तु 5s RNA का संश्लेषण केन्द्रिक के बाहर होता है।

(ii) प्रौकेरिओट्स में भी तीन प्रकार के RNA अणु पाये जाते हैं। जिनमें से 23s व 5s RNA राइबोसोम्स की बड़ी उपइकाई में एवम् 16s RNA छोटी उपइकाई में पाया जाता है। (iii) मैमेलियन माइटोकॉन्ड्रिया में पाये जाने वाले राइबोसोम्स (55s) में दो प्रकार के RNA पाये जाते हैं, 21s तथा 12s RNAs इनमें से 21s RNA बड़ी उपइकाई ( 355 ) में तथा 12s RNA में छोटी उपइकाई (25s) में पाये जाते हैं ।

28srRNA का आणविक भार 1.6×10′ डाल्टन व 18srRNA का आणविक भार 0.6×106 डाल्टन होता है। 5s RNA केवल 120 न्यूक्लिओटाइड्स से मिलकर बना बहुत छोटा अणु होता है। इसी प्रकार 23srRNA, 3200 न्यूक्लिओटाइड्स व 16srRNA 1600 न्यूक्लिओटाइड्स से बने होते हैं।

(2) राइबोसोमी प्रोटीन (Ribosomal proteins) –— राइबोसोम्स में पाये जाने वाले प्रोटीन बहुत जटिल होते हैं। इन्हें कोर प्रोटीन्स (core-proteins) कहा गया है। प्रोकैरिओटिक राइबोसोम्स से लगभग 55 प्रोटीन्स विलगित किये जा चुके हैं। जिनमें से करीब 21 प्रोटीन्स बड़ी 50s उपइकाई में मिलते हैं। ये सभी कोर प्रोटीन्स कहलाते हैं । केवल एक प्रोटीन जो कि दोनों इकाइयों में समान पाया जाता है, को छोड़कर शेष सभी प्रोटीन्स एक-दूसरे से भिन्न होते हैं। प्रोकैरिओटिक राइबोसोम्स की अपेक्षा यूकैरिओटिक राइबोसोम्स में प्रोटीन अधिक मात्रा में उपस्थित होते हैं। जैसे-ई. कोलाई कोशिका में केवल 37% राइबोसोमी प्रोटीन्स होते हैं। जबकि मटर की नवांकुर कोशिकाओं में 60% राइबोसोमी प्रोटीन्स पाये जाते हैं (Is to et al. 1958) ।

राइबोसोमी प्रोटीन्स का आणविक भार 7000 से 32,000 डाल्टन होता हैं तथा क्षारीय अमीनों 1, अम्ल अधिक मात्रा में होते हैं । इन्हें राइबोसोम्स से विनियोजित (dissociate) किया जा सकता है, इसलिए ये ‘विभक्त प्रोटीन्स’ (split proteins-SP) कहलाते हैं। दो प्रकार के विभक्त प्रोटीन्स पाये जाते हैं, Sp 50 तथा SP 30 । यदि इन्हें और अधिक प्रभाजित किये जाये तो ये अम्लीय (acidic) व क्षारीय (basic) प्रोटीन्स में विभक्त हो जाते हैं। यदि राइबोसोम्स विनियोजन से प्राप्त निष्क्रिय कोर प्रोटीन्स RNA प्रोटीन्स हो तथा उसमें विभक्त प्रोटीन्स को मिला दिया जाये तथा तापक्रम 37°C रखा जाये तो सक्रिय राइबोसोम्स का पुनर्निर्माण किया जा सकता है (चित्र 2.37 ) ।

(3) राइबोसोमी एन्जाइम प्रोटीन (Ribosomal enzymatic proteins) — राइबोसोम्स में पाये जाने वाले बहुत से प्रोटीन्स एन्जाइम के रूप में प्रोटीन संश्लेषण की क्रिया को उत्प्रेरित करते हैं । उदाहरण- प्रारम्भिक प्रोटीन्स F, F2 तथा F, प्रोटीन संश्लेषण की क्रिया को आरम्भ करते हैं। इसी प्रकार ट्रांसफर प्रोटीन्स, जैसे- G – कारक व Ts- कारक । इनका मुख्य कार्य राइबोसोम को mRNA पर तथा tRNA के एक स्थल से दूसरे स्थल पर स्थानान्तरित करना है । दूसरे एन्जाइम पेप्टिडाइल ट्राँसफरेज (Peptidyl transferase) पेप्टाइड श्रृंखलाओं को अमीनोएसाइल tRNA तक स्थानान्तरित करने का कार्य करते हैं। इनके अलावा कुछ और एन्जाइम टर्मिनेशन – कारक R व R, प्रोटीन संश्लेषण को समाप्त करने व पूर्ण पालीपेप्टाइड श्रृंखला को मुक्त करने का कार्य करते हैं। ओकाओ तथा उनके सहयोगियों (Ochoa and co-workers, 1960) ने प्रोटीन संश्लेषण में काम आने वाले उपरोक्त कारकों को विलगित किया। उन्होंने पाया कि प्रारम्भिक कारक – IF, IF, तथा IF, राइबोसोम्स की 30s इकाई से जुड़े रहते हैं। इनमें से 1F, कारक क्षारीय प्रोटीन होता हैं । इसका आणविक भार 9200 डाल्टन होता है। यह F- met-t RNA के बन्धन में भाग लेता है। IF, कारक प्रोटीन का आणविक भार 8000 डाल्टन होता है। इसमें – SH समूह पाया जाता है जो कि GTP से बन्धित होने में सहायता करता है। तीसरा कारक 1F, को GTP की आवश्यकता नहीं होती है। यह mRNA को 30s उपइकाई से जोड़ने में सहायक है। इसका आणविक भार 30,000 डाल्टन होता है। जीवाणु ई. कोलाई में IF, कारक 70s राइबोसोम के विनियोजन कारक की तरह भी कार्य करता है। इसके अलावा इस जीवाणु में एक और कारक ‘बाधक कारक’ (Interference factor) खोजा गया (Ochoa et al. 1972 ) यह कारक IF, कारक से बन्धित होकर mRNA के ट्रॉसलेशन का नियमन करता है ।

इन कारकों के अतिरिक्त राइबोसोम्स में पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला को लम्बा करने हेतु इलोन्गेशन कारक (elongation factors) EFG तथा EFT पाये जाते हैं।

राइबोसोम्स का जीवांत जनन (Biogenesis of Ribosomes)

यूकैरिओट्स में राइबोसोम्स का जीवांत जनन एक जटिल प्रक्रिया है। यह केन्द्रिक में होता है । कोशिका विभाजन के अन्त में नयी केन्द्रिक का निर्माण न्यूक्लिओलर ऑरगेनाइजर गुणसूत्र के द्वितीयक संकीर्ण में होता है। इन न्यूक्लिओलर ऑरगेनाइजर्स में राइबोसोम में पाये जाने वाले RNAs (18s, 28s तथा 58s) के निर्माण के लिए जीन्स पायी जाती हैं। ये जीन्स सक्रियता से ट्राँसक्राइव होकर नयी RNA शृंखलाएँ बनाती हैं। जो DNA की अक्ष से लम्बवत् बिखरी रहती हैं। न्यूक्लिओलर rRNA जीन्स के ट्राँसक्रिप्शन के लिए RNA पॉलीमरेज | सहायक होता है। 5s RNA निर्माण के लिए जीन्स केन्द्रिक में नहीं पाये जाते हैं। ये DNA अणु पर स्पेसर – DNA द्वारा अलग रहते हैं । 5s RNA के ट्रांसक्रिप्शन में, RNA पॉलीमरेज-III भाग लेता है। फिर यह RNA केन्द्रिक में स्थानान्तरित हो जाता है केन्द्रिक में यह अपरिपक्व राइबोसोमी उपइकाइयों से समायोजित हो जाता है। बाद में ये सभी घटक ( 18s, 5.8s, 28s तथा RNAs तथा 10 राइबोसोमी प्रोटीन्स) केन्द्रिक में इकट्ठे हो जाते हैं तथा राइबोसोम्स बनाते हैं । केन्द्रिक से इनका स्थानान्तरण कोशिकाद्रव्य में हो जाता है। अधिकतर राइबोसोमी प्रोटीन्स का संश्लेषण कोशिकाद्रव्य में ही होता है। किन्तु कुछ का संश्लेषण केन्द्रिक में ही होता है।

कार्य (Function)

राइबोसोम्स कोशिका में वे स्थल होते हैं जहाँ पर प्रोटीन संश्लेषण जैसी महत्त्वपूर्ण क्रिया सम्पन्न होती है। अत: इन्हें प्रोटीन का कारखाना (Protein factories of the cells) कहा जाता है । इनका मुख्य कार्य विभिन्न अमीनों अम्लों को एक निश्चित क्रम में विन्यासित करके विशिष्ट पॉलीपेप्टाइड श्रृंखला (प्रोटीन) का निर्माण करना है ।

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