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Categories: Biology

lysosomes in hindi , लाइसोसोम की संरचना एवं के 3 कार्य लिखिए की खोज किसने की थी लाइसोसोम्स किसे कहते है

जानिये lysosomes in hindi , लाइसोसोम की संरचना एवं के 3 कार्य लिखिए की खोज किसने की थी लाइसोसोम्स किसे कहते है ?

लाइसोसोम्स (Lysosomes)

लाइसोसोम (Lysosome) ग्रीक भाषा का शब्द है (Gr; Lyso-digestive, soma-body) इन कोशिकांगों की खोज सर्वप्रथम डी. डुवे (de Duve) ने सन् 1955 में चूहे की यकृत कोशिकाओं में की। लाइसोसोम्स अधिकतर जन्तु कोशिकाओं व कुछ पादप कोशिकाओं के कोशिका द्रव्य में पायी जाने वाली छोटी, झिल्ली आबद्धं, पुटिकानुमा संरचनाएँ होती हैं, जिनमें जल अपघटनी एन्जाइम्स (hydrolytic enzymes) पाये जाते हैं। इनका मुख्य कार्य वृहद् जैविक अणुओं का अन्तराकोशिकीय पाचन करना हैं इसलिए इन कोशिकांगों को आत्मघाती थैली ( suicide bags) भी कहा जाता है।

लाइसोसोम्स अन्त:प्रद्रव्यी जालिकाएँ, गाल्जी उपकरण अथवा दोनों से मिलकर उत्पन्न होने वाली संरचनाएँ हैं । जन्तु कोशिकाओं में लाइसोसोम्स अधिकतर स्रवण कोशिकाओं, जैसे-यकृत, अग्नाशय, वृक्क तथा तिल्ली आदि की कोशिकाओं में अधिक संख्या में पाये जाते हैं। पादपों में ये अधिकतर विभाजी कोशिकाओं में पाये जाते हैं। इसके अलावा पादपों में विभिन्न प्रकार के संचयी कण ( storage granules), जैसे-स्फीरोसोम्स (spherosomes ), एल्यूरोन कण ( Aleurons grains) तथा रिक्तिकाएँ (Vacuoles) जिसमें विभिन्न प्रकार के पाचक एन्जाइम्स पाये जाते हैं, कार्यिकी में लाइसोसोम्स के समान ही संरचनाएँ होती हैं ।

आकृति एवम् आकार (Shape and Size)

सामान्यतः लाइसोसोम्स गोलाकार काय होते हैं । किन्तु पादप मूलों (Roots) की विभाज्योतकी कोशिकाओं में अनियमित आकृति के लाइसोसोम्स पाये जाते हैं । औसतन इनका व्यास 0.4 से 0.8 होता हैं, किन्तु ममेलिया (mammalia) वर्ग के जन्तुओं की वृक्क कोशिकाओं में इनका व्यास इससे भी अधिक होता है। ये लाइपोप्रोटीन द्वारा निर्मित इकाई कला से घिरी हुई सघन काय होती हैं। इनमें भरे हुए सघन पदार्थ में विभिन्न ऊतक पाचक एन्जाइम्स (tissue dissolving enzymes) एसिड फोस्फेटेज (acid phosphatase) तथा अन्य जल अपघटनी एन्जाइम्स (hydrolytic enzymes) पाये जाते हैं I

संरचना (Structure)

संरचना में लाइसोसोम्स दो भागों से मिलकर बने होते हैं-

(1) सीमाकारी झिल्ली (Limiting membrane ) — लाइसोसोम्स एकल इकाई कला (single unit membrane) के द्वारा आबद्ध रहते हैं । रासायनिक संरचना में यह कला प्लाज्मा कला के समान लाइपोप्रोटीन द्वारा निर्मित त्रिस्तरीय परत होती है।

(2) आन्तरिक सघन संहति ( Inner dense mass) – इकाई कला द्वारा घिरी हुई यह संहति अधिक ठोस अथवा सघन होती है । कुछ लाइसोसोम्स में बाह्य क्षेत्र (outer zone) बहुत अधिक सघन तथा केन्द्रीय भाग (central region) कम सघन होता है। इस केन्द्रीय कणिकामय पदार्थ युक्त भाग में गुहिकाएँ अथवा रिक्तिकाएँ (cavities or vacuoles) पायी जाती हैं ( चित्र 2.39 A&B)।

लाइसोसोम्स कोशिकीय पाचन क्रिया की विभिन्न अवस्थाओं में बहुरूपता (polymorphism) प्रदर्शित करते हैं । विभिन्न बहुरूपों में पाये जाने वाले पदार्थ भी भिन्न हो सकते हैं ।

चित्र 2.39 : लाइसोसोम संरचना

लाइसोसोम के प्रकार (Types of lysosome) (polymorphism)

‘विभिन्न कार्यों को सम्पन्न करने हेतु प्राथमिक लाइसोसोम (Primary lysosome) विभिन्न प्रकार के पदार्थों जिनका की कोशिका द्वारा पाचन होना होता है, से जुड़कर बहुरूपी संरचनाएँ बनाते हैं। ये मुख्य रूप से निम्न चार प्रकार की होती है (चित्र 2.40 ) ।

(a) प्राथमिक लाइसोसोम्स (Primary lysosomes ) – ये छोटी थैलीनुमा, गाल्जी उपकरण से मुकुलन (budding) द्वारा नवनिर्मित संरचनाएँ होती हैं, जिन्हें संचयी कण (storage granules) भी कहा जाता है। इनके निर्माण में सर्वप्रथम इनमें पाये जाने वाले एन्जाइम्स का संश्लेषण कणिकामय अन्तः प्रद्रव्यी जालिका से जुड़े हुए राइबोसोम्स में होता है । वहाँ से ये एन्जाइम्स गाल्जी क्षेत्र में प्रविष्ट होते हैं जहाँ पर एसिड फास्फेटेज अभिक्रिया होती हैं।

(b) द्वितीयक लाइसोसोम्स (Secondary lysosomes ) — इन्हें पाचक रसधानी ( digestive vacuoles) अथवा हैटरोफैगोसोम्स (heterophagosomes ) भी कहते हैं। ये कोशिका में होने वाली सक्रिय क्रियाओं, जैसे- कोशिकाशन (phagocytosis) तथा कोशिकापायन (pinocytosis) द्वारा आने वाले बाह्य कोशिकी पदार्थों (extracellular substances ) जो कि प्लाज्मा झिल्ली द्वारा घिरे रहते हैं, तथा जिन्हें फैगोसोम्स (Phagosomes ) व पिनोसोम्स (Pinosomes ) कहते हैं, उनके प्राथमिक लाइसोसोम्स के साथ संलग्न (fusion) होने के उपरान्त बनने वाली संरचनाएँ हैं । इन्हें द्वितीयक लाइसोसोम्स (secondary lysosomes ) कहा जाता है। इन झिल्ली आबद्धकार्यों में उपस्थित बाहरी पदार्थों का पाचन प्राथमिक लाइसोसोम में पाये जाने वाले जल अपघटनी एन्जाइमों द्वारा होता है तथा वे सरल पदार्थों में बदल दिये जाते हैं। वहाँ से ये झिल्ली द्वारा बाहर आकर कोशिका द्रव्य में समावेशित हो जाते हैं तथा विभिन्न प्रकार की उपापचयी क्रियाओं में उपयोग में ले लिए जाते हैं ।

चित्र 2.40 : विभिन्न प्रकार के लाइसोसोम तथा कार्य – (a) प्राथमिक लाइसोसोम (b) द्वितीयक लाइसोसोम (c) अपशिष्ट लाइसोसोम (d) स्वभक्षी रसधानी

(c) अपशिष्ट काय (Residual bodies) — द्वितीयक लाइसोसोम्स में कुछ एन्जाइम्स की कमी के कारण पूरे पदार्थ का पाचन नहीं हो पाता है तथा कुछ अपचित पदार्थ बचा रह जाता है। ऐसे लाइसोसोम्स अपशिष्ट काय ( Residual bodies) कहलाते हैं। अमीबा जैसे जन्तुओं में ये काय कोशिका से बाहर विसर्जित (exocytosis) कर दिये जाते हैं किन्तु कुछ कोशिकाओं में ये अपशिष्ट काय लम्बे समय तक कोशिका में ही उपस्थित रहते हैं तथा काल प्रभाजन (ageing) का कारण बनते हैं। मनुष्या में ये अपशिष्ट काय विभिन्न रोगों, जैसे-बुखार, हैपेटाइटिस, हाइपरटेंशन तथा अन्य हृदय रोगों को उत्पन्न करते हैं ।

(d) स्वभक्षी रसधानी (Autophagic vacuoles ) — इन्हें साइटोलाइसोसोम्स (cytolysosomes) ऑटोफैगोसोम्स (autophagosomes) भी कहते हैं । ये वे लाइसोसोम्स हैं। जिनके द्वारा विशिष्ट परिस्थिति में कोशिका अपने पुराने अथवा क्षतिग्रस्त अवयवों का पाचन करती है। जैसे माइटोकॉन्ड्रिया तथा अन्त: प्रद्रव्यी जालिका के टुकड़ों का पाचन। यह क्रिया स्वभक्षण (Autophagy) कहलाती है। जिसमें कोशिका स्वयं अपने घटकों को नष्ट करती है।

रासायनिक प्रकृति (Chemical nature)

लाइसोसोम्स में मुख्य रूप से जल अपघटनी (hydrolytic) एन्जाइम पाये जाते हैं। बहुत-सी पादप जड़ कोशिकाओं, कवक, यकृत, वृक्क तथा अन्त: स्रावी ग्रन्थी कोशिकाओं में पाये जाने वाले लाइसोसोम्स में एसिड फास्फेटेज (acid phosphatase) पाये जाते हैं । किन्तु लाइसोसोम्स में, माइटोकॉन्ड्रीया में पाये जाने वाले आक्सीडेटिव एन्जाइम्स (oxidative enzymes) का पूर्ण अभाव होता है। लाइसोसोम्स में लगभग 36 जल अपघटनी एन्जाइम्स पाये जाते हैं जिनमें से निम्नलिखित मुख्य हैं-

(1) फास्फेटेजेज (Phosphatases) – उदाहरण – एसिड फास्फेटेज, फोस्फोप्रोटीन फास्फेटेज । (2) न्यूक्लिऐजेज (Nucleases ) — उदाहरण – एसिड राइबोन्यूक्लिऐज, एसिड डी-आक्सी राइबोन्यूक्लिऐज ।

(3) प्रोटीऐजेज (Proteases ) — उदाहरण – कैथोप्सिन, कोलाजिनेज ।

(4) ग्लाइकोसाइडेजेज (Glycosidases)—– उदाहरण – a- ग्लेक्टोसाइडेज, B-मेनोसाइडेज, a- मेनोसाइडेज।

(5) सल्फेटेजेज (sulphatases ) — उदाहरण – एराइल सल्फेटेज ।

(6) लाइपेज (lipase)

कई बार द्वितीयक लाइसोसोम्स यूरीकेस कण (Uricase Particle) के रूप में पाये जाते हैं, जिनमें यूरीकेस, केटेजेल तथा डी. अमीनो आक्सीडेज एन्जाइम पाये जाते हैं।

लाइसोसोम्स की उत्पत्ति (Origin of lysosomes )

विभिन्न प्रकर के ऊतकों में इनकी उपस्थिति एवम् इनके कार्यों के अनुसार लाइसोसोम्स की उत्पत्ति अलग-अलग हो सकती है-

(a) बाह्य कोशिकीय उद्भव (Extracellular origin) – बाह्य कोशिकीय उद्भव के अनुसार प्राथमिक लाइसोसोम्स की उत्पत्ति निम्नानुसार होती है । सर्वप्रथम कोशिकाभिति के अर्न्तवलन से बनने वाले फैगोसोम्स तथा पिनोसोम्स कोशिका द्वारा अवशोषित कर लिए जाते हैं । ये कोशिका द्रव्यी कण कहलाते हैं। इन्हें प्रारम्भिक लाइसोसोम्स भी कहते हैं, क्योंकि इनमें एन्जाइम्स नहीं पाये जाते हैं । किन्तु जब ये गाल्जीकाय के सम्पर्क में आते हैं तो इनमें एन्जाइम प्रवेश कर जाते हैं तथा ये प्राथमिक लाइसोसोम्स कहलाते हैं ।

(b) गाल्जीसम्मिश्र से उत्पत्ति (Origin from golgi- complex) – यह प्रमाणित किया जा चुका है कि लाइसोसोम्स की उत्पत्ति गाल्जी उपकरण द्वारा स्रवण की क्रिया के दौरान गाल्जी झिल्ली द्वारा होती है ।

(c) अन्त: प्रद्रव्यी जालिका से उत्पत्ति (Origin from ER ) – नोविकॉफ (Novikoff, 1965) के अनुसार लाइसोसोम्स की उत्पत्ति सीधे ही कणिकामय अन्त: प्रद्रव्यी जालिका के फूले हुए हिस्सों के अलग होने से होती है, जिनमें प्रोटीन कण पाये जाते हैं।

कार्य (Functions)

जन्तु एवं पादप कोशिकाओं में लाइसोसोम्स अग्रलिखित महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं-

(1) अन्तःकोशिकीय कणों का पाचन (Digestion of intracellular particles ) – कोशिका को मिलने वाले पोषण की अनुपस्थिति ( starvation) में कोशिका में उपस्थित लाइसोसोम्स स्वयं कोशिका का पाचन कर देते हैं । इनमें उपस्थित एन्जाइम कोशिका में संचित प्रोटीन्स, लिपिड्स तथा काब्रोहाइड्रेट्स का पाचन कर देते हैं। जिससे starvation के समय कोशिका में होने वाली आवश्यक जैविक क्रियाओं हेतु ऊर्जा उपलब्ध हो सके तथा कोशिका अपने आपको विपरीत परिस्थिति में जीवित रख सके ।

इसके अलावा कई बार लाइसोसोम्स कोशिका के अन्य कोशिकांगो, जैसे- माइटोकॉन्ड्रिया तथा अन्त: प्रद्रव्यी जालिका के तत्वों का पाचन कर देते हैं तथा कोशिका को ऊर्जा उपलब्ध करवाते हैं। कोशिका में होने वाली यह क्रिया स्वभक्षण (Autophagy) कहलाती है। यह कोशिका के विभिन्न अंगों के पुनर्निर्माण में सहायक होती है ।

(2) बाह्य कोशिकीय कणों का पाचन (Digestion of Extracellular Particles ) – लाइसोसोम्स का एक महत्त्वपूर्ण कार्य यह भी है कि कोशिका द्वारा ग्रहण किये गये बाहरी ठोस एवम् तरल पदार्थो का पाचन करना । कोशिका endocytosis की क्रिया द्वारा ठोस पदार्थों को फैगोसोम्स (Phagosomes तथा तरल पदार्थों को पिनोसोम्स (Pinosomes) के रूप में ग्रहण करती है । यद्यपि प्राथमिक लाइसोसोम्स में विभिन्न पदार्थों के पाचन के लिए जटिल उपस्थित होता है । किन्तु इन कार्यों में एन्जाइम निष्क्रिय पड़े रहते हैं । ये केवल एक विशिष्ट अम्लीय pH पर ही सक्रिय होते हैं। लेकिन जब बाहरी पदार्थ युक्त रिक्तिकाएँ (Phagosomes or pinosomes) प्राथमिक लाइसोसोम्स से संलग्न (fuse) हो जाती हैं लाइसोसोम्स में उपस्थित एन्जाइम सक्रिय हो जाते हैं तथा उनमें उपस्थित ठोस अथवा तरल पदार्थ का पाचन कर देते हैं। संचित भोजन कोशिका के हायलोप्लाज्म में विसरित हो जाता है, किन्तु अपचित अवशेष अवशिष्ट काय के रूप में कोशिका से Exocytosis की क्रिया द्वारा बाहर निष्कासित कर दिया जाता है।

(3) मृत कोशिकाओं को हटाने में सहायक (Removal of dead cells) — लाइसोसोम्स कोशिकाओं को हटाने में सहायक होते हैं। जैसे कि रक्त में उपस्थित श्वेत रक्त कणिकाएँ जब भी किसी मृत जीवाणु को ग्रहण कर लेती हैं तो उसमें उपस्थित लाइसोसोम्स की झिल्ली टूट जाती है तथा निकलने वाले एन्जाइम्स पूर्ण कोशिका का पाचन कर डालते हैं ।

(4) निषेचन में सहायक (Help in fertilization ) — निषेचन की क्रिया के समय स्पर्म के अण्ड कवच में प्रवेश करने के लिए लाइसोसोम्स में पाये जाने वाले एन्जाइम्स (प्रोटीएज, एसिड फास्फेटेज तथा हायल यूरोनिडेज) सहायता करते हैं।

(5) कोशिका विभाजन (cell division ) — कोशिका विभाजन के लिए लाइसोसोम्स का विखण्डन आवश्यक है। ऐसा प्रमाणित किया जा चुका है कि इनके विखण्डन को रोकने वाले पदार्थ, जैसे- क्लोरोक्विनोन (Chloroquinone) तथा कोर्टीसोन (cortisone) समसूत्री विभाजन में बाधक होते हैं।

(6) गुणसूत्र विच्छेद (chromosome break)—कोशिका विभाजन के दौरान DNA सूत्रों के खण्डन हेतु आवश्यक एन्जाइम डी-ऑक्सी राइबोन्यूक्लिऐज लाइसोसोम्स में ही पाया जाता है। अतः लाइसोसोम्स गुणसूत्र विच्छेद व उनके पुनर्व्यवस्थापन में मदद करते हैं ।

(7) बीजों के अंकुरण में मदद (Help in seed germination)—बीजों के अंकुरण के समय बीजों में संचित भोजन को नवांकुर को उपलब्ध कराने का कार्य लाइसोसोम्स में उपस्थित एन्जाइम्स का ही है।

Sbistudy

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