पूंजीवाद के परिणाम और पूँजीवादी व्यवस्था को बदलने का उपाय results of capitalism in hindi

results of capitalism in hindi पूंजीवाद के परिणाम और पूँजीवादी व्यवस्था को बदलने का उपाय ?

 मार्क्स और वेबर के विचारों की तुलना
हमने पूँजीवाद के बारे में कार्ल मार्क्स और मैक्स वेबर के विचारों का अध्ययन किया। इन दोनों के दृष्टिकोण में आपने अनेक समानताएं और अंतर पाये होंगे। आइए, इन समानताओं और अंतर का अब संक्षेप में विवेचन करें।

 दृष्टिकोण में अंतर
इकाई 18 में आपने इन दोनों चिंतकों की विचार पद्धतियों के अंतर के बारे में पढ़ा। कार्ल मार्क्स अपने विश्लेषण में “समाज‘‘ को इकाई मानता है। इस दृष्टिकोण को हमने “सामाजिक यथार्थवाद‘‘ का नाम दिया है। इसके अनुरूप मार्क्स पूँजीवाद को समाज का एक ऐतिहासिक चरण मानता है।

दूसरी ओर वेबर समाज का अध्ययन उन व्याख्यात्मक अर्थों के संदर्भ में करता है जिनके द्वारा फर्ता या व्यक्ति अपने परिवेश को समझते हैं। वह सामाजिक स्थितियों की व्याख्या कर्ता के दृष्टिकोण के संदर्भ में करता है। व्याख्यात्मक दृष्टिकोण के आधार पर वह सामाजिक यथार्थ को समझने का प्रयास करता है। जैसा कि इस इकाई में बताया गया है वेबर व्यक्तियों की मनोवैज्ञानिक अभिप्रेरणाओं पर ध्यान केंद्रित कर पूँजीवाद का अध्ययन करता है। इसके लिए वह लोगों की विश्वदृष्टि की और उनके कार्यकलाप के साथ जुड़े अर्थ की व्याख्या करता है।

 पूँजीवाद का उदय
मार्क्स पूँजीवाद के उदय को उत्पादन की बदलती हुई प्रणाली के संदर्भ में देखता है। उसके अनुसार, आर्थिक प्रणाली या भौतिक क्षेत्र वह मूलभूत ढांचा अथवा अधोसंरचना (पदतिंेजतनबजनतम) है जिससे संस्कृति, धर्म, राजनीति जैसी उप-प्रणालियों अर्थात् अधिसंरचना (ेनचमत ेजतनबजनतम) का स्वरूप निर्धारित होता है। उसके अनुसार, सामाजिक व्यवस्था का परिवर्तन मूलतः आर्थिक परिवर्तन होता है। इस तरह, पूँजीवाद के उदय को उत्पादन के साधनों में बदलाव के आधार पर समझाया गया है। इस बदलाव का कारण है पिछले ऐतिहासिक चरण अर्थात् सामंतवाद का विरोधाभास।

वेबर का विश्लेषण कहीं अधिक जटिल है जैसा कि आपने पढ़ा वह तर्कसंगत पूँजीवाद के उदय में आर्थिक कारणों की अनदेखी नहीं करता। लेकिन वह व्यक्तियों के दृष्टिकोण, अभिप्रेरणाओं और कार्यों को एवम् उनकी व्याख्या को महत्वपूर्ण मानता है। व्यक्तियों के दृष्टिकोण, नैतिक मूल्यों, विश्वासों और भावनाओं से उनके कार्य निर्देशित होते हैं और इन कार्यों में आर्थिक कार्य भी शामिल हैं। इसलिए तर्कसंगत पूँजीवाद के उदय के कारणों को समझने के लिए वेबर नैतिक मूल्यों की उस प्रणाली पर ध्यान देता है, जिसकी वजह से तर्कसंगत पूँजीवाद पनपा। उसकी पुस्तक द प्रोटेस्टेंट एथिक एंड द स्पिरिट ऑफ कैपिटलिज्म में यही दृष्टिकोण अपनाया गया है।

कुछ लोगों का विचार है कि वेबर के विचार मार्क्स से एकदम विपरीत है। उनका कहना है कि मार्क्स आर्थिक प्रणाली को धर्म से ज्यादा महत्वपूर्ण मानता है जबकि वेबर धर्म को आर्थिक प्रणाली से ज्यादा महत्व देता है। मार्क्स और वेबर के विचारों की तुलना का यह सतही और सपाट तरीका है। यह कहना ज्यादा उचित है कि वेबर ने अपने विश्लेषण में नये आयाम और नये दृष्टिकोण शामिल करके मार्क्स के विचारों को पूर्णता दी ताकि पूँजीवाद जैसी जटिल धारणा के विविध पक्षों का ज्यादा गहराई से अध्ययन हो सके।

मार्क्स तथा वेबर के विचारों की तुलना हेतु सोचिए और करिए 3 को पूरा करें।
सोचिए और करिए 3
मार्क्स आर्थिक प्रणाली को धर्म से ज्यादा प्रमुखता देता है जबकि वेबर धर्म को आर्थिक प्रणाली से ज्यादा महत्वपूर्ण मानता है। क्या आप इस बात से सहमत हैं? साथी विद्यार्थियों से भी विचार-विमर्श करें और अपने विचारों के समर्थन में एक पृष्ठ की टिप्पणी लिखें।

 पूँजीवाद के परिणाम और पूँजीवादी व्यवस्था को बदलने का उपाय
कार्ल मार्क्स के अनुसार पूँजीवादी व्यवस्था श्रमिकों के शोषण, अमानवीय और समाज के अलगाव की प्रतीक है। यह असमानता पर आधारित है और इसका बिखर कर नष्ट हो जाना तय है। इस व्यवस्था का पतन इसके अपने ही अंतर्विरोधों से होगा। सर्वहारा वर्ग क्रांति करेगा और मानवीय इतिहास का नया चरण यानी साम्यवाद का उदय होगा। वेबर भी मानता है कि तर्कसंगत पूँजीवाद मूलतः मानवीय समाज में अलगाव, पैदा करता है। तर्कसंगत पूँजीवाद और नौकरशाही तर्कसंगत राज्य-प्रणाली साथ-साथ चलते हैं। इससे मानवीय जीवन एक ढर्रे पर आ जाता है, लोग समाज और विश्व से विरक्त हो जाते हैं। लेकिन भविष्य के प्रति वेबर का दृष्टिकोण निराशावादी है (देखिए चित्र 21.1: भविष्य के बारे में वेबर की कल्पना)। मार्क्स के विपरीत वह मानता है कि क्रांति होने की या व्यवस्था के नष्ट हो जाने की कोई संभावना नहीं है। उसके अनुसार पूँजीवाद की मूलभूत धारणा तर्कसंगति आज की दुनिया की तमाम मानवीय गतिविधियों के लिए बहुत जरूरी है। विज्ञान और तकनीकी की प्रगति, प्रकृति की शक्तियाँ तथा विश्व पर नियंत्रण करने की । मानवीय इच्छा ऐसी प्रक्रियाएं हैं, जिन्हें पीछे नहीं लौटाया जा सकता। इसलिए क्रांतियों और विद्रोहों से समाज की प्रगति की दिशा में मूलभूत परिवर्तन नहीं लाया जा सकता।

मार्क्स पूँजीवाद की तर्कहीनता और विरोधों पर अधिक ध्यान देता है। उसके अनुसार तर्कहीनता और विरोधों के कारण परिवर्तन आता है। वेबर तर्कसंगति को अधिक महत्व देता है। यही तर्कसंगति लोगों को “लोहे के पिंजरे‘‘ में कैद कर देती है।

इस तरह, पूँजीवाद के बारे में मार्क्स और वेबर के दृष्टिकोणों में अंतर है। मार्क्स समाज के ऐतिहासिक चरणों के आधार पर पूँजीवाद का अध्ययन करता है। पूँजीवाद पिछले चरण के अंतर्विरोधों का परिणाम है और इसके साथ ही उत्पादन की नयी प्रणाली जन्म लेती है।

वेबर भी आर्थिक कारकों पर जोर देता है। लेकिन पूँजीवाद की उसकी व्याख्या ज्यादा जटिल है। अपनी समाजशास्त्रीय पद्धति अर्थात् अंतर्दृष्टि के अनुरूप वह व्यक्तिपरक अर्थो, मूल्यों और मान्यताओं पर जोर देता है। दोनों ही विचारक मानते हैं कि मानवीय समाज के लिए पूँजीवाद का प्रभाव हानिप्रद है परंतु भविष्य के प्रति दोनों के दृष्टिकोण में बहुत अंतर है। मार्क्स क्रांति तथा परिवर्तन का संदेश देता है पर वेबर ऐसी कोई उम्मीद नहीं रखता है। मार्क्स के अनुसार, पूँजीवाद का आधार तर्कहीनता है। वेबर के राय में, पूँजीवाद तर्कसंगति का ही परिणाम है। यही दोनों के विचारों में अंतर का मुख्य मुद्दा है। अब इकाई के अंत में बोध प्रश्न 4 को पूरा करें।

बोध प्रश्न 4
प) निम्नलिखित वाक्यों के खाली स्थानों में उचित शब्द लिखिए।
क) मार्क्स ……………………… को अपने विश्लेषण की इकाई मानता है इस दृष्टिकोण को ………………….. कहते हैं।
ख) वेबर सामाजिक स्थिति को. …………………. के आधार पर समझाने का प्रयास करता है।
ग) वेबर के अनुसार पूँजीवाद के मूल में तर्कसंगति निहित है, पर मार्क्स की राय में इसका आधार ………………. तथा ………………… है।
घ) मार्क्स की राय में आर्थिक प्रणाली वह आधार अथवा ……………… है, जिससे …………………. का स्वरूप निर्धारित होता है।
पप) मार्क्स और वेबर ने पूँजीवाद के उदय के जो कारण बताए, उनकी तुलना करें। उत्तर छः पंक्तियों में दीजिए।

बोध प्रश्न 4 उत्तर
प) क) समाज, सामाजिक यथार्थवाद
ख) व्यक्तिपरक अर्थ
ग) तर्कहीनता, अंतर्विरोध
घ) अधोसंरचना, अधिसंरचना
पप) कार्ल मार्क्स पूँजीवाद के उदय की व्याख्या उत्पादन की बदलती प्रणाली के संदर्भ में करता है। पिछली प्रणाली, अर्थात् सामंतवाद के अंतर्विरोधों से नयी आर्थिक प्रणाली, अर्थात् पूँजीवाद का उदय होता है। इस प्रकार मार्क्स की व्याख्या मूलतः आर्थिक आधार पर थी। वेबर ने आर्थिक कारकों की अनदेखी तो नहीं की, पर साथ ही उसने राजनैतिक और धार्मिक कारकों की भी चर्चा की। उसकी राय में पूँजीवाद के विकास को समझने के लिए मनोवैज्ञानिक अभिप्रेरणाओं तथा व्यक्तिगत दृष्टिकोण को भी जानना जरूरी है। इस तरह वेबर का विश्लेषण बहु-स्तरीय तथा ज्यादा जटिल है।