इसे बनाने के लिए एक पानी की लम्बा जार लिया जाता है और इसमें धातु की एक लम्बी तट्यूब डुबोयी जाती है , इस डूबी हुई ट्यूब को लम्बवत किसी भी स्थिति में स्थापित किया जा सकता है , वायु स्तम्भ की लम्बाई का मान ट्यूब की स्थिति को बदलकर की जा सकती है अर्थात ट्यूब को पानी में डूबे भाग के आधार पर वायु स्तम्भ की लम्बाई को कम या अधिक किया जाता है।
यहाँ पानी का पृष्ठ बंद सिरे की तरह कार्य करता है जिससे यह एक बंद ऑर्गन पाइप की तरह कार्य करता है , जब इसके मुंह के पास स्वरित्र लाया जाता है तो स्वरित्र से अनुदैर्ध्य ऊपर से निचे की तरफ वायु स्तम्भ में गति करती है और या अनुदैर्ध्य तरंगे पानी की पृष्ठ अर्थात बंद पृष्ठ से परावर्तित होकर वापस खुले सिरे की ओर गति करने लग जाती है , जिससे अप्रगामी तरंगे उत्पन्न हो जाती है और खुले भाग पर प्रस्पंद उत्पन्न होते है तथा बन्द भाग पर अर्थात पानी के पृष्ठ पर निस्पन्द उत्पन्न हो जाते है।
जब वायु स्तम्भ की लम्बाई ध्वनि तरंग की आवृत्ति के एक चौथाई भाग के समानुपाती होता है तब स्वरित्र की आवृत्ति और उत्पन्न ध्वनि की आवृत्ति का मान समान होता है इसे अनुनाद की स्थिति कहते है।
जब पहला अनुनाद उत्पन्न होता है उस स्थिति में वायु स्तम्भ की लम्बाई
जब दूसरा अनुनाद उत्पन्न होता है तब वायु स्तम्भ की लम्बाई
दोनों समीकरणों को हल करने से आवृत्ति का मान ज्ञात किया जा सकता है –
कमरे के ताप पर ध्वनि की चाल ज्ञात करने के लिए निम्न सूत्र काम में लिया जाता है
V = nλ
यहाँ λ का मान रखने पर
V = 2n(l2 – l1)