रेसेमिक मिश्रण (racemic mixture) या रेसेमीकरण (racemization) , संरूपण समावयवता (conformational isomerism)

रेसेमिक मिश्रण (racemic mixture) या रेसेमीकरण (racemization in hindi) : यदि दक्षिण ध्रुवक व वाभ ध्रुवण घुर्णक को 50-50% समान मात्रा में मिला दिया जाए तो बाह्य प्रतिहार के कारण प्राप्त पदार्थ ध्रुवण अघुर्णक हो जाता है जिसे सेस रेसेमिक मिश्रण कहते है तथा इस परिघटना को रेसेमीकरण कहते है।
रेसेमिक मिश्रण ध्रुवण अघुर्णक होता है व प्रकाशिक समावयवता नहीं दर्शाता है।
रेसेमिक मिश्रण को (dl ±) से दर्शाया जाता है।

रेसेमिकरण का कारण (reason of racemization)

यदि कोई यौगिक कीरेल से अकिरेल में बदलता है तो रेसेमिकरण होता है।  जब अभिक्रियाओ में प्रतिपन (Inversion) होता है तब भी रेसेमिकरण की क्रिया होती है।
उदाहरण : क्लोरो प्रोपनोइक अम्ल
रेसेमिकरण मिश्रण का वियोजन (resolution of recemic mixture) : रेसेमिक मिश्रण (दक्षिण ध्रुवण ध्रुवणक व वाम ध्रुवण घूर्णक) में उपस्थित यौगिको के भौतिक व रासायनिक गुण समान होने के कारण इन्हे निम्न विशिष्ट विधियों द्वारा पृथक किया जाता है –
1. यांत्रिक वियोजन विधि (mechanical resolution method)
2.  जैव रासायनिक वियोजन विधि (bio chemical resolution method)
3. स्तम्भ वर्णलेखिकी विधि (column chromatographic method)
4. रासायनिक विधि (chemical method)

1. यांत्रिक वियोजन विधि (mechanical resolution method)

यह विधि सर्वप्रथम 1848 में पाश्चर द्वारा दी गयी।  इस विधि में रेशेमिक मिश्रण का क्रिस्टलीकरण करने पर d(+) व l(-) समावयव के क्रिस्टल अलग अलग आकार के प्राप्त होते है जिन्हें हाथ से उठाकर पृथक कर लिया जाता है।
उदाहरण : सोडियम अमोनियम ट्राइटेट के रेशेमिक मिश्रण का क्रिस्टलीकरण कर d(+) व l(-) समावयव को पृथक किया जाता है।
2.  जैव रासायनिक वियोजन विधि (bio chemical resolution method)
यह विधि सर्वप्रथम 1848 में पाश्चर द्वारा दी गयी।  इस विधि में रेशेमिक मिश्रण में बैक्टीरिया या फफूंद को मिलाया जाता है।
यह बैक्टीरिया या फफूंद रेसेमिक मिश्रण में एक समावयव को नष्ट कर देते है व दुसरा समावयव शेष रह जाता है।
उदाहरण : सोडियम अमोनियम टारटरेट के रेसेमिक मिश्रण में पेनिसिलीनियम ग्लोकम बेक्टीरिया को पनपने दिया जाए तो यह d(+) समावयव को नष्ट कर देता है तथा l(-) समावयव शेष रह जाता है।
उदाहरण 2 : एमिनो अम्लो के बने रेसेमिक मिश्रण में AMylase डालने पर यह l समावयव को नष्ट कर देता है व d(+) समावयव शेष रह जाता है।
इस विधि की कमियाँ :
  • इस विधि में बेक्टीरिया का चुनाव करना बहुत मिश्किल होता है।
  • बेक्टीरिया तनु विलयन में कार्य करते है परन्तु रेसेमिक मिश्रण का तनु विलयन बनाना बहुत मिश्किल होता है।
  • इसमें एक समावयव समाप्त हो जाता है जो हमें प्राप्त नहीं होता है।
3. स्तम्भ वर्ण लेखिकी विधि (column chromatographic method)
इस विधि में रेसेमिक मिश्रण को एक अधिशोषक पर अधिशोषित करवाया जाता है।  इसमें d(+) व l(-) समावयव अधिशोषक की सतह पर अलग अलग स्थान पर अधिशोषित होकर कोलम (column) का निर्माण करते है।  इन कॉलम को उपयुक्त विलायक का चयन कर आसानी से पृथक कर लिया जाता है।
उदाहरण : 1939 में हेण्डसस्न व रुल ने d(+) lactose अधिशोषक द्वारा d(+) व l(-) कपूर समावयवो को पृथक किया।
4. रासायनिक विधि (chemical method)
प्रतिबिम्ब समावयवो के बने रेसेमिक मिश्रण के भौतिक व रासायनिक गुण समान होते है इसलिए इन्हें आसानी से पृथक नहीं किया जा सकता है।
इस रेसेमिक मिश्रण को लवण निर्माण द्वारा विवरिम समावयवों में बदला जाता है क्योंकि विवरिम समावयव के भौतिक गुण जैसे – प्रभाजी आसवन , प्रभाजी क्रिस्टलन व वर्णलेखिकी के गुण अलग पाए जाने के कारण इन्हें आसानी से पृथक किया जा सकता है।

संरूपण समावयवता (conformational isomerism)

कार्बनिक यौगिक में कार्बन-कार्बन एक बंध के सापेक्ष घूर्णन के कारण त्रिविम में बनने वाले विभिन्न समावयव को संरूपण समावयव तथा इस परिघटना को संरूपण समावयवता कहते है।
इस समावयवता को घूर्णन समावयवता (rotational isomerism) के नाम से भी जाना जाता है।
इस समावयवता को रोटामर (rotamer) समावयवता भी कहते है।
इस समावयवता में बनने वाले समावयवो को सान्तरित व ग्रसित के नाम से भी जाना जाता है।
इस समावयवता को निम्न भागो में बांटा गया है –
1. साहार्स प्रक्षेपण सूत्र (sawhorse projection formula)
2. न्यूमैन प्रक्षेपण सूत्र (newman projection formula)
प्रश्न 1 : एथेन के  साहार्स व न्यूमैन प्रक्षेपण सूत्र दीजिये।
उत्तर :
एथेन का  साहार्स प्रक्षेपण सूत्र –
एथेन का न्यूमैन प्रक्षेपण सूत्र –
प्रश्न 2 : द्वितल कोण (Di hedral angle) किसे कहते है ?
उत्तर : एथेन के साहार्स व न्यूमैन प्रक्षेपण सूत्रों में दोनों कार्बन तलो के मध्य पाए जाने वाले कोण को द्वि-तल कोण कहते है।  इसे Ф से दर्शाते है।
प्रश्न 3 : साइक्लो हेक्सेन के साहार्स व न्यूमैन प्रक्षेपण सूत्र दीजिये।
या
cyclo हेक्सेन के नाव व कुर्सी संरूपण दीजिये तथा बताइये इसमें कौनसा अधिक स्थायी है ? व क्यों ?
उत्तर : साइक्लो हेक्सेन में सरूपण समावयवता सर्वप्रथम मोहर द्वारा सन 1918 में खोजी गयी।
साइकलो हेक्सेन के दो सरूपण समावयव नाव व कुर्सी होते है।
इसके नाव संरूपण में C1 व C4 कार्बन के हाइड्रोजन पास होने के कारण इनके मध्य द्विध्रुव – द्विध्रुव प्रतिकर्षण बल पाया जाता है , इस कारण यह अस्थायी होता है।
इसके कुर्सी सरूपण में C1 व C4 कार्बन हाइड्रोजन अधिकतम दूरी पर पाए जाने के कारण यह स्थायी होता है।
साइक्लो हेक्सेन का सामान्य सूत्र C6H12 या  होता है।
साइक्लो हेक्सेन में कुल 12 हाइड्रोजन होते है।
इनमे से 6 हाइड्रोजन अक्षीय होते है।
इसमें अन्य 6 हाइड्रोजन विषुवत या भू-मध्यीय होते है।
इसमें H-C-H के मध्य बंध कोण 109.28 डिग्री होता है।
इसके कुर्सी व नाव सरूपण में ऊर्जा का अंतराल 7.1 KgJ प्रति मोल होता है अर्थात यह एक दूसरे से आसानी से अन्तपरिवर्तित होते रहते है।
uses of stereo chemistry :
  • उपयोगी यौगिको को cis/trans , E/Z या R/S पद्धति द्वारा पहचानना
  • यौगिको की संरचना ज्ञात करते है।