पूर्ण स्वराज से आप क्या समझते हैं ? पूर्ण स्वराज किसे कहते है ? गांधीजी के विचार बताइयें purna swaraj in hindi

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स्वराज या सहयोगी प्रजातंत्र
केन्द्रीकृत प्रतिनिधिक सरकार के बदले जनता के स्वराज का अर्थ होगा, एक ऐसी प्रणाली जो विकेन्द्रित सहयोगी प्रजातंत्र होगी। गाँधी का कहना था कि सच्चा प्रजातंत्र केन्द्र में बैठे बीस आदमियों से नहीं चलाया जा सकता है। इसके लिए जरूरी है कि प्रत्येक गाँव में बिल्कुल निचले तबके की हिस्सेदारी हो। वस्तुतः गाँधी जी ने स्वराजवादी समाजवादी व्यवस्था का संबंध ग्रामीण गणतंत्र के ‘‘समुद्री वृत‘‘ से जोड़ा था। वे लिखते हैं, ‘‘असंख्य गाँवों से निर्मित ऐसी संरचना में उत्तरोत्तर विकास समान वृत होंगे,जो आरोही क्रम में व्यवस्थित नहीं होंगे। जीवन पिरामिड की तरह नहीं होगा जिसकी चोरी को उसका तल टिकाए रखता है बल्कि यह समुद्री वृत की तरह होगा जिसका केन्द्र व्यक्ति होगा, लेकिन जो गाँव के लिए मर मिटने के लिए तैयार रहेगा। फिर गाँव-गाँव के ष्वतश् के लिए अस्तित्वहीन होना स्वीकार कर लेगा। इस प्रकार यह क्रम तब तक चलता रहेगा जब तक कि यह पूरी एक इकाई का रूप न ले ले। इकाई में सभी व्यक्ति समान होंगे और समान रूप से इस समुद्री वृत्त के वैभव का हकदार होंगे’’।

 स्वराज और स्वतंत्रता
गाँधी जी ने स्वराज की व्याख्या ‘‘सम्पूर्ण जनता की भलाई और ‘‘सम्पूर्ण देशवासियों की स्वतंत्रता’’ के संदर्भ में भी की थी। व्यावहारिकता की दृष्टि से इसका अर्थ था, हिन्दू और मुसलमान के बीच सच्चा सम्बन्ध, जनता के लिए रोटी और अस्पृश्यता का पूर्ण रूप से बहिष्कार। सन् 1931 में उन्होंने कहा था कि हिन्द स्वराज सम्पूर्ण जनता का शासन है, न्याय का शासन है।

पूर्ण स्वराज
गाँधी जी के अनुसार ‘स्वराज‘ के अन्तर्गत जनता पूँजी की बुराइयों से बची रहेगी और श्रम के उत्पादन का न्याय पूर्ण बँटवारा किया जाएगा। उनका कहना था कि स्वराज तब तक पूर्ण स्वराज का दर्जा हासिल नहीं कर पायेगा, जब तक कि गरीब से गरीब आदमी भी जीवन की उन आवश्यकताओं एवं सुख-सुविधाओं को हासिल करने के योग्य न बन जाये, जिसका उपभोग राजकुमार एवं धनी लोग अब तक करते रहे हैं। उन्होंने पूर्ण स्वराज की व्याख्या की थी कि ‘यह एक ऐसा स्वराज है जो राजकुमार के लिए उतना ही है जितना कि किसान के लिए, यह धनी जमींदार के लिए उतना ही है, जितना कि गरीब हलवाहक के लिए, यह जितना हिन्दू के लिए है। उतना ही मुसलमान के लिए भी।’’

गाँधी के पूर्ण स्वराज का आदर्श था ‘‘राम-राज’’, ‘‘खुदाई राज‘‘ या ‘‘पृथ्वी पर भगवान का राज‘‘। उन्होंने इसकी व्याख्या यूं की है, ‘‘यह एक ऐसा सम्पूर्ण प्रजातंत्र है, जिसमें सम्पत्ति, रंग, जाति, धर्म, लिंग के आधार पर किसी भी तरह की असमानता का कोई भी स्थान नहीं होगा। इसमें भूमि और राज्य जनता की सम्पत्ति होगी, न्याय सस्ता एवं मानवीय होगा तथा सबों को पूजा करने की, व्याख्यान देने की एवं प्रेस की स्वतंत्रता होगी और यह सब व्यक्ति के स्व-निर्धारित नैतिक दबाव के तहत होगी।’’

पूर्ण स्वराज: आर्थिक आयाम
गाँधी के अनुसार पूर्ण स्वराज या राम-राज्य का नैतिक या राजनैतिक आयामों के अलावा एक आर्थिक आयाम भी है, जिसका अर्थ है, ब्रिटिश पूँजीपतियों एवं पूँजी तथा उनके भारतीय सहयोग से पूर्ण स्वतंत्रता। दूसरे शब्दों में, गरीब से गरीब आदमी भी किसी अमीर की तुलना में बराबरी महसूस करे। यह तभी संभव है जब पूँजीपति अपने पूँजी को गरीबों के साथ हिस्सेदारी करे।

बोध प्रश्न 4
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1) ’पूर्ण स्वराज’ से आप क्या समझते हैं?