सार्वजनिक क्षेत्र की परिभाषा क्या है ? सार्वजनिक क्षेत्र किसे कहते है अर्थ मतलब उदाहरण Public sector in hindi

Public sector in hindi meaning definition examples सार्वजनिक क्षेत्र की परिभाषा क्या है ? सार्वजनिक क्षेत्र किसे कहते है अर्थ मतलब उदाहरण ?

सार्वजनिक क्षेत्र
कोई भी संगठन जो सरकार के स्वामित्व और नियंत्रण में है सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई कहलाता है। यहाँ सार्वजनिक का अभिप्राय सरकार है और न कि आम जनता। अपने सृजन और उन्हें कार्य करने की जो स्वतंत्रता तथा स्वायत्तता दी जाती है उसके आधार पर सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों को ‘‘विभागीय उपक्रमों‘‘ (अथवा विभागों), ‘‘निगमों‘‘, और ‘‘कंपनियों‘‘ में बाँटा जाता है। उदाहरण के लिए जो कुछ सरकार के प्रत्यक्ष स्वामित्व, नियंत्रण और प्रबन्धन में है जैसे रेलवे, डाक और तार, परमाणु ऊर्जा इत्यादि को विभाग कहा जाता है। इसी प्रकार, कोई भी सार्वजनिक उपक्रम जिसका गठन संसद अथवा राज्य विधानमंडलों के विशेष अधिनियम द्वारा किया गया है ‘‘निगम‘‘ कहे जाते हैं। सार्वजनिक निगमों के कुछ उदाहरण भारतीय जीवन बीमा निगम, भारतीय औद्योगिक वित्त निगम, दामोदर घाटी निगम, तेल और प्राकृतिक गैस निगम इत्यादि हैं। अंत में, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम जिनका गठन कंपनी अधिनियम, 1956 के अंतर्गत हुआ है किसी भी अन्य कंपनी की भांति सरकारी कंपनी कहलाते हैं। इस अधिनियम के अनुसार, एक सरकारी कंपनी वह है जिसमें प्रदत्त शेयर पूँजी का कम से कम 51 प्रतिशत केन्द्र सरकार अथवा किसी राज्य सरकार या सरकारों या केन्द्र और राज्य सरकारों के संयुक्त स्वामित्व में है। सरकारी कंपनियों के उदाहरण भारत हैवी इलैक्ट्रिकल्स लिमिटेड, मद्रास रिफाइनरीज लिमिटेड, गुजरात स्टेट फर्टिलाइजर कारपोरेशन लिमिटेड, इत्यादि हैं। ये किसी अन्य निजी कंपनियों की भांति कार्य करती हैं। ‘‘सार्वजनिक उपक्रम‘‘ पद से सामान्यतया गैर-विभागीय उपक्रमों का पता चलता है जिसमें निगम और कंपनी शामिल हैं। स्वामित्व किस सरकार के अधीन है, इसके आधार पर सार्वजनिक क्षेत्र के संगठनों का वर्गीकरण सार्वजनिक क्षेत्र के केन्द्रीय उपक्रमों, सार्वजनिक क्षेत्र के राज्य उपक्रमों और सार्वजनिक क्षेत्र के स्थानीय उपक्रमों (स्थानीय सरकार की स्वामित्व और प्रबन्धन वाले उपक्रम) में की जा सकती है। यहाँ यह ध्यान देना उल्लेखनीय है कि ‘‘सार्वजनिक क्षेत्र‘‘ और सार्वजनिक सीमित कंपनी (पब्लिक लिमिटेड) के बीच अंतर है। जैसा कि उल्लेख किया गया है सार्वजनिक क्षेत्र का स्वामित्व और नियंत्रण अनिवार्य रूप से सरकार के हाथ में होना चाहिए। उदाहरण के लिए सरकारी स्वामित्व वाली सभी कंपनियों को सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई कहा जाता है जबकि आम जनता के स्वामित्व वाली इकाई जिसमें स्वामी अथवा शेयर धारक का दायित्व शेयरों की राशि के बराबर सीमित होता है सार्वजनिक सीमित दायित्व कंपनी कहलाती हैं।

बोध प्रश्न 1
1) सार्वजनिक क्षेत्र की परिभाषा कीजिए?
2) सार्वजनिक निगमों के पाँच (केन्द्र सरकार स्तर के 2 और राज्य सरकार स्तर के 3)
उदाहरण दीजिए?
3) ‘‘सार्वजनिक क्षेत्र‘‘ की कंपनी और ‘‘सार्वजनिक सीमित‘‘ कंपनी के बीच अंतर क्या है?

 सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका
अधिकांश देशों में जिन कार्यकलापों को निजी क्षेत्र द्वारा पसंद नहीं किया जाता है अथवा निष्पादित नहीं किया जाता है, उसे सार्वजनिक क्षेत्र के कार्यनिष्पादन के लिए छोड़ दिया जाता है। दूसरे शब्दों में, सार्वजनिक (और महत्त्वपूर्ण) वस्तुएँ तथा सेवाएँ जैसे जलापूर्ति, सड़कें तथा पुल, स्वास्थ्य और शिक्षा सिर्फ सार्वजनिक क्षेत्र (सरकार) द्वारा उपलब्ध कराई जाती है। इस प्रकार सार्वजनिक क्षेत्र उन वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन करती हैं जो यह सर्वोत्तम ढंग से कर सकती हैं और निजी क्षेत्र उनका उत्पादन करती हैं जिस क्षेत्र में वह सर्वोत्तम कार्यनिष्पादन प्रदर्शित कर सकती है। तथापि, महत्त्वपूर्ण कारणों से कतिपय वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन अनन्य रूप से सार्वजनिक में ही किया जाता है यद्यपि कि निजी क्षेत्र इन वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन की इच्छुक रहती हैं तथा ऐसा कुशलतापूर्वक कर सकती हैं।

भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के ठीक बाद से ही मिश्रित आर्थिक प्रणाली की परिकल्पना की गई थी। इस प्रणाली के अन्तर्गत देश की प्रगति और समृद्धि में सार्वजनिक क्षेत्र और निजी क्षेत्र दोनों के समान रूप से महत्त्वपूर्ण योगदान की आशा की गई थी। ‘‘मिश्रित अर्थव्यवस्था‘‘ की भारतीय अवधारणा में सार्वजनिक क्षेत्र को इसके द्वारा अन्यत्र निभाई गई परम्परागत भूमिका की तुलना में कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका सौंपी गई थी। सार्वजनिक क्षेत्र में भारी निवेश का उद्देश्य न सिर्फ अर्थव्यवस्था की ‘‘उल्लेखनीय उपलब्धियों‘‘ पर नियंत्रण बनाए रखना था अपितु अविकसित देश में निजी क्षेत्र की प्रारम्भिक सीमाओं की कमियों को भी पूरा करना था। ‘‘उल्लेखनीय उपलब्धियों‘‘ में सम्मिलित हैं (प) आधारभूत संरचना उद्योग जैसे सड़क और पुल, रेलवे, नागरिक विमानन, जलापूर्ति, विद्युत, दूरसंचार इत्यादि; और (पप) बुनियादी उद्योग जैसे लौह और इस्पात, तेल और पेट्रोलियम, भारी पूँजीगत वस्तुएँ, रसायन, उर्वरक इत्यादि। यह महसूस किया गया था कि बुनियादी उद्योगों की स्थापना सार्वजनिक क्षेत्र पर छोड़ दी जाए ताकि सीमित संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग किया जा सके। ये उद्योग किसी भी तरह से निजी क्षेत्र को आकृष्ट नहीं करते क्योंकि आधारभूत संरचना क्षेत्र और बुनियादी उद्योगों के लिए अधिक निर्माण पूर्व/उत्पादनपूर्व अवधि और भारी निवेश की आवश्यकता होती है और इससे अत्यन्त ही कम प्रतिलाभ मिलता है। जैसी कि आवश्यकता महसूस की गई थी, कुछ कार्यकलाप सार्वजनिक क्षेत्र के कार्यक्षेत्र में अनन्य रूप से छोड़ दिया गया था और शेष सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्र दोनों के पहल के लिए छोड़ दिए गए थे। एक महत्त्वपूर्ण कदम के रूप में, सार्वजनिक क्षेत्र के लिए अनन्य रूप से आरक्षित उद्योगों की संख्या को उदारीकरण के आरम्भ के पश्चात् 17 से घटाकर 4 कर दिया गया है।

सार्वजनिक क्षेत्र का मुख्य उद्देश्य तीव्र आर्थिक विकास, तीव्र औद्योगिकरण और आर्थिक विकास के लिए आधारभूत संरचना का विकास करना है। सार्वजनिक क्षेत्र के अन्य स्वीकृत उद्देश्य हैं, आय और सम्पत्ति के पुनर्वितरण को बढ़ावा देना, संतुलित क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा देना, रोजगार के अवसरों का सृजन करना और आयात प्रतिस्थापन्न को बढ़ावा देना तथा बहुमूल्य विदेशी मुद्रा की बचत करना। 1956 के औद्योगिक नीति संकल्प के बाद सदैव सार्वजनिक क्षेत्र हमारी अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता रहा है। विभिन्न योजना अवधियों के दौरान सार्वजनिक क्षेत्र की प्रभुत्वशाली भूमिका बनाई गई थी जिसमें हालाँकि 1991 के आर्थिक उदारीकरण के बाद भारी कमी आई है।

 भारत में सार्वजनिक क्षेत्र का विकास और उपलब्धियाँ
स्वतंत्रता प्राप्ति के समय, सार्वजनिक क्षेत्र के अंदर कार्यकलापों का विस्तार सीमित था। कार्यकलापों के सभी क्षेत्रों में निजी क्षेत्र का प्रभुत्व था। तथापि, स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् सार्वजनिक क्षेत्र के कार्यकलापों का विस्तार हुआ और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम विनिर्माण और सेवा उद्योगों के व्यापक क्षेत्रों में कार्य करने लगे। उसके बाद से निवेश, आकार और इसके अंतर्गत इकाइयों की संख्या के मामले में सार्वजनिक क्षेत्र का महत्त्वपूर्ण विकास हुआ है। 31 मार्च 1998 की स्थिति के अनुसार, अकेले केन्द्रीय सार्वजनिक क्षेत्र में 240 इकाइयाँ थीं और इन इकाइयों में 2,04,054 करोड़ रु. का कुल निवेश था जो सकल निवेश का लगभग 30 प्रतिशत के बराबर बैठता है। यह 1 अप्रैल 1951 की स्थिति के अनुसार मात्र 5 इकाइयों जिनमें मात्र 29 करोड़ रु. का निवेश था की तुलना में भारी वृद्धि है। 31 मार्च, 2000 की स्थिति के अनुसार सार्वजनिक क्षेत्र केन्द्रीय उपक्रमों की संख्या 240 (निर्माणाधीन 8, वस्तुओं के विनिर्माणध्उत्पादन में संलग्न 157 और सेवा प्रदान करने वाली 75) हैं। सार्वजनिक क्षेत्र के केन्द्रीय उपक्रमों के अतिरिक्त लगभग 2,00,000 करोड़ रु. राज्य स्तरीय सार्वजनिक उपक्रमों में निवेश किया गया है जिनकी संख्या लगभग 1100 इकाइयाँ हैं।

विभागीय और स्थानीय स्तर की सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों में लगभग 1,00,000 करोड़ रु. निवेश किए गए हैं। सार्वजनिक क्षेत्र लगभग 45 प्रतिशत पूँजी निर्माण में योगदान करती है। राष्ट्रीय लेखा सांख्यिकी, 1998 के अनुसार सकल घरेलू उत्पाद में सार्वजनिक क्षेत्र का हिस्सा लगभग 25 प्रतिशत है। यह सकल घरेलू बचत (जी डी एस) में करीब 7 प्रतिशत का योगदान करती है। नियोजन अवधि के आरम्भिक अवधि के दौरान सार्वजनिक क्षेत्र ने पूँजी निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई किंतु नियोजन के दो दशकों के बाद सकल घरेलू पूँजी निर्माण में सार्वजनिक क्षेत्र का हिस्सा घटना शुरू हुआ। किसी भी अर्द्धविकसित देश के मामले की भांति भारत को भी उपनिवेशकालीन अविकसित विरासत प्राप्त हुई थी। चूँकि निजी क्षेत्र के पास पर्याप्त संसाधन नहीं थे और आधारभूत संरचना परियोजनाओं जिसमें भारी निवेश की आवश्यकता थी में निवेश करने में उनकी अभिरुचि नहीं थी, सार्वजनिक क्षेत्र ने आर्थिक विकास के लिए बुनियादी आधारभूत संरचना के निर्माण में अत्यधिक योगदान किया।

सार्वजनिक क्षेत्र की गैर-वित्तीय आधारभूत संरचना क्षेत्र में प्रभुत्वशाली उपस्थिति हैं तथा भारी उद्योग में भी यदि उतनी नहीं तो थोड़ी ही कम प्रभुत्वशाली उपस्थिति है। निजी क्षेत्र का उद्देश्य निरपवाद रूप से आर्थिक है: अधिकतम लाभ अर्जित करना अथवा अधिकतम राजस्व अर्जित करना/बिक्री करना, जबकि अधिकांश मामलों में सार्वजनिक क्षेत्र का उद्देश्य सामाजिक आर्थिक है। इस प्रकार सार्वजनिक क्षेत्र की उपलब्धियों का मूल्यांकन सिर्फ लाभ की दृष्टि से नहीं किया जा सकता है। यद्यपि कि सार्वजनिक क्षेत्र को निजी क्षेत्र के सामने खड़ा करना अनुचित होगा, कार्य निष्पादन रिकार्डों से पता चलता है कि उन्होंने बड़ी संख्या में रोजगार का सृजन किया किंतु इसके साथ ही श्रम बल की अधिकता भी हो गई।

 कमियाँ और सीमाएँ
सार्वजनिक क्षेत्र द्वारा किए गए सराहनीय कार्यों के बावजूद भी इसमें कुछ बड़ी कमियाँ दिखाई पड़ी हैं। औद्योगिक और तकनीकी क्षमता के नए क्षेत्रों में प्रवेश करने पर भी अधिकांश इकाइयों में श्रम बल की अधिकता, प्रौद्योगिकीय उन्नयन की कमी तथा अनुसंधान और विकास की कमी की समस्या व्याप्त रही है। संभवतया इन समीकरणों से सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में उत्पादकता तथा निवेश पर प्रतिलाभ कम से कम निजी क्षेत्र की तुलना में काफी कम रहा है। सार्वजनिक क्षेत्र के लगभग 40 प्रतिशत उपक्रम निरंतर घाटे पर चल रहे हैं। ये उपक्रम मानव संसाधन विकास, प्रशिक्षण, कुशल श्रमिक, कर्मकार, अभिप्रेरणा, प्रबन्धकीय पहल और प्रोत्साहन अथवा उत्पादकता सम्बद्ध मजदूरी की दृष्टि से बहुत आगे नहीं बढ़ पाए हैं। मूल्य संवर्द्धन की दृष्टि से सार्वजनिक क्षेत्र का योगदान निजी क्षेत्र के आधे से भी कम है। यद्यपि सार्वजनिक क्षेत्र ने विस्तृत तथा विविधिकृत औद्योगिक आधार के सृजन में सहायता की है अनेक क्षेत्रों में इसका कार्यनिष्पादन नगण्य रहा है।

सार्वजनिक क्षेत्र को अपने उद्देश्यों की प्रकृति के कारण कतिपय सीमाओं का सामना करना पड़ता है। सामाजिक-आर्थिक उद्देश्य सार्वजनिक क्षेत्र की मुख्य विशेषता रही है और कुछ मामलों में उद्देश्य भ्रामक भी हो सकते हैं। सार्वजनिक क्षेत्र की मूल्य निर्धारण नीति सदा ही लाभोन्मुखी नहीं होती है। अधिकांश मामलों में यह हानि-लाभ रहित आधार के सिद्धान्त पर कार्य करती है। इसके कारण पूरी व्यवस्था में दक्षता के लिए प्रोत्साहन की कमी होती है और इस प्रकार प्रतिस्पर्धी भावना नहीं रह जाती है। कभी-कभी अपार क्षमता का सृजन कर लिया जाता है किंतु मांग की कमी अथवा संभवतया उपयोग की कमी के कारण इसका पूरा-पूरा प्रयोग नहीं हो पाता है। सार्वजनिक क्षेत्र में प्रायः परियोजना अनुमानित से अधिक समय और लागत लगने की समस्या से ग्रस्त होता है। सार्वजनिक क्षेत्र में एक मुख्य समस्या श्रम संबंधी समस्या है। ट्रेड यूनियन अपने संघर्षवादी कार्यकलापों के लिए विशेष रूप से जाने जाते हैं। कुछ ही वर्षों पहले तक, ऐसी कोई नीति नहीं थी जिसके अन्तर्गत अधिशेष श्रम बल में कटौती की जा सके। संगठन की अपनी प्रकृति के कारण सार्वजनिक क्षेत्र में स्वायत्तता तथा कार्य करने की स्वतंत्रता की कमी होती है। मंत्रालयी आदेशों के रूप में अड़चनें आती हैं। बाधक नौकरशाही नियंत्रण भी सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों के सुगम और सतत कार्यकरण में अड़चन उपस्थित करती है।

बोध प्रश्न 2
1) भारत में सार्वजनिक क्षेत्र की मुख्य भूमिका क्या रही है?
2) सार्वजनिक क्षेत्र की क्या कमियाँ हैं?