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Protoplasm Theory in hindi given by , जीव द्रव्य सिद्धांत क्या है किसने दिया किसे कहते हैं

जाने Protoplasm Theory in hindi given by , जीव द्रव्य सिद्धांत क्या है किसने दिया किसे कहते हैं ?

कोशिका जैविकी : परिचय, इतिहास एवं कोशिका की संरचना (Cell Biology : Introduction, Brief History and Cell Structure)

परिचय (Introduction) :

कोशिका जैविकी कोशिका विज्ञान (Cytology) का आधुनिक व विस्तृत अध्ययन है। कोशिका विज्ञान (Cytology) [ग्रीक Kytos- Vessels or cell पात्र या कोशिका + Logos a discourse अध्ययन करना] का शाब्दिक अर्थ है कोशिका सम्बन्धी विज्ञान। आधुनिक समय में कोशिका जैविकी जीव विज्ञान की एक महत्त्वपूर्ण शाखा है, जिसके अन्तर्गत मुख्यत: कोशिकीय संगठन व संरचना, कोशिकांग तथा कोशिका से सम्बन्धित विभिन्न प्रकार्यों का अध्ययन किया जाता है। इसके अलावा कोशिका के उपापचय, वृद्धि, आनुवंशिकता, विभेदन और विकास आदि क्रियाविधियों का अध्ययन भी किया जाता है।

क्योंकि यह एक विस्तृत अध्ययन है, अत: इसे कई विशिष्ट उपशाखाओं के अन्तर्गत विभाजित कर दिया गया है। मुख्य उपशाखाएँ निम्न हैं :-

कोशिकानुवंशिकी (Cytogenetics) :

इसके अन्तर्गत जीवों में संयुक्त रूप से कोशिका विज्ञान व आनुवंशिकी का अध्ययन किया जाता है । कोशिकाओं ‘में समसूत्री व अर्द्धसूत्री विभाजन के दौरान गुणसूत्रों का व्यवहार तथा जीनों के पुनर्संयोजन के आपसी सम्बन्ध का आणविक आधार, विविधताओं (Variations ), उत्परिवर्तन (Mutations), जातिवृत (Phylogeny), संरचना व जीवों के विकास (Evolution) का अध्ययन किया जाता है ।

कोशिका कार्यिकी (Cell Physiology):

इसके अन्तर्गत कोशिका झिल्ली की प्रकृति, झिल्ली के आर-पार पदार्थों का सक्रिय स्थानान्तरण, वातावरण में आये परिवर्तनों के फलस्वरूप कोशिकांगों की प्रतिक्रिया, कोशिका पोषण, वृद्धि, स्रवण और अन्य प्रकार्यात्मक अभिक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है

कोशिका रसायन (Cytochemistry) :

इस उपशाखा के अध्ययन के अन्तर्गत मुख्य रूप से जीवित पदार्थ का रासायनिक और भौतिक- रासायनिक (physico-chemical) विश्लेषण किया जाता है। आधुनिक समय में रेडियोएक्टिव तकनीक तथा इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी यंत्र के विकास के कारण कोशिका का अधिकाधिक प्रभाजन करने में मदद मिली है जिसके कारण कोशिका के विभिन्न अवयवों की रासायनिक व भौतिक संरचना का विस्तृत अध्ययन सम्भव हो पाया है तथा कोशिका रसायन का महत्त्व और अधिक बढ गया है।

सभी उपरोक्त विवरण से यह स्पष्ट है कि कोशिका जीव विज्ञान का मुख्य उद्देश्य कोशिका परासंरचना (Ultrastructure) व आणविक जीव विज्ञान का विशिष्ट अध्ययन करना है जिसमें कोशिका के संगठन तलों की समस्याओं के समाधानों को ढूँढ़ने का प्रयास किया जाता है, इसमें इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी यंत्र व अन्य महत्त्वपूर्ण तकनीकों के विकास की मुख्य भूमिका होती है।

संक्षिप्त इतिहास (Brief History) :

कोशिका विज्ञान के इतिहास का अध्ययन करने से स्पष्ट होता है कि इस विज्ञान को विकसित करने में सूक्ष्मदर्शी यंत्र के आविष्कार व उत्तरोत्तर विकास ने मुख्य भूमिका निभायी। पूर्व में डच वैज्ञानिक जाकारिस जैनसन व हैन्स जैनसन (Zacharis Jansson and Hans Jensson) ने सन् 1590 में 10X में और 30X आवर्धन क्षमता वाले संयुक्त सूक्ष्मदर्शी (compound microscope) का आविष्कार किया, जिसका उपयोग उन्होंने सूक्ष्मजीवों के अध्ययन के लिए किया। सन् 1661 एम. मेलपीगी Malpighi) ने पादप व जन्तु ऊतकों के पतले हिस्सों का अध्ययन कर बताया कि ये संरचनात्मक इकाइयों के बने होते हैं। इसके बाद एक डच बजाज (Draper) एन्टोनी वॉन ल्यूवनहॉक (1670) में 270X आवर्द्धन क्षमता वाले सूक्ष्मदर्शी से वर्षा के पानी में प्रोटोजोआ, रोटीफर, जीवाणु आदि कुछ सूक्ष्य एककोशिकीय जीव देखे जिन्हें एनिमलक्यूल्स (Animalcules) नाम दिया। इन्होंने कई अन्य संरचनाएँ जैसे रक्त कणिकाओं में केन्द्रक व पादप कोशिकाओं में हरितलवक तथा कई प्राणियों की शुक्राण (Sperm) कोशिकाओं का भी अध्ययन किया। इस प्रकार यह सम्भव हो पाया कि पादपों व जन्तुओं का शरीर कोशिकाओं से बना होता है ।

कोशिकीय अवधारणा को अधिक बल रॉबर्ट हुक (Robert Hooke, 1665) की खोज से मिला। उन्होंने बताया कि समांग (Homogeneous) दिखने वाला शरीर अनगिनत कोशिकाओं से मिलकर बना होता है। यह निष्कर्ष उन्होंने कॉर्क की पतली काट के अध्ययन से मधुमक्खी के छत्ते के समान कोष्ठ देखकर निकाला। हालाँकि बाद में ज्ञात हुआ कि वे कोष्ठ मात्र पादप कोशिका भित्ति थे । वे कोष्ठ हो कोशिका (Cell) कहलाये । किन्तु बाद में उन्होंने पत्तियों की जीवित कोशिकाओं में द्रव पदार्थ की उपस्थिति भी देखी। सन् 1674 ए.वी. ल्यूवेन हॉक ने सरल सूक्ष्मदर्शी द्वारा पौधों की कोशिकाओं में हरे रंग के पिण्ड देखे, जिन्हें हरित लवक या क्लोरोप्लास्ट (Chloroplast) कहा जाता है। अतः सन 1970 तक यह पूर्णरूपेण ज्ञात हो चुका था कि पौधे की कोशिका में कुछ द्रव पदार्थ व हरे रंग के पिण्ड होते हैं, वे कोशिका भित्ति द्वारा घिरे रहते हैं । इसके पश्चात् कोशिका विज्ञान के क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण खोज हुई, सन् 1833 में रॉबर्ट ब्राउन (Robert Brown) ने ट्रेडेस्केन्शिया (Tradescantia) पौधे की कोशिका में एक सघन पिण्ड देखा जिसे उन्होंने केन्द्रक नाम दिया। वॉन मोल (Von Mohl, 1835) व पुरकिन्जे (Purkinje, 1837 ) ने कोशिका में उपस्थित द्रव्य को जीवद्रव्य (Protoplasm) कहा। इस समय तक यह ज्ञात हो चुका था कि प्रत्येक कोशिका में कला ( membrane) से घिरा हुआ द्रव्य भरा रहता है, जिसके केन्द्र में एक जीवन बिन्दु केन्द्रक निलम्बित रहता है ।

इस समय तक की हुई खोजों व परिकल्पनाओं के आधार पर दो जर्मन वैज्ञानिकों मैथियास श्लीडेन (Mathias Schleiden, 1838 ) ने पौधों और थियोडोर श्वान (Theodor Schwann, 1839) ने जन्तुओं के अध्ययन के बाद एक सिद्धान्त प्रतिपादित किया जिसे कोशिका सिद्धान्त (Cell theory). कहते हैं। इस सिद्धान्त’ के अनुसार प्रत्येक जीव का शरीर एक या अनेक कोशिकाओं का बना होता है। कोशिकाएँ ही शरीर की रचनात्मक (Structural) व क्रियात्मक (Functional) इकाइयाँ हैं। इस सिद्धान्त को अधिक बल रूडोल्फ विरचॉव (Rudolf Virchow. 1855) के द्वारा दिये गये निष्कर्ष से मिला। उनके अनुसार समस्त कोशिकाएँ पूर्व उपस्थित कोशिकाओं से बनती हैं (Latin Phrase – Omnis Cellula e Cellula”)। इस प्रकार के कई अध्ययन आधुनिक कोशिका सिद्धान्त के आधार बने । संक्षेप में आधुनिक कोशिका सिद्धान्त के मुख्य अंश निम्न हैं-

(1) प्रत्येक जीव का शरीर एक या अनेक कोशिकाओं से बना होता है, अत: कोशिका ही सजीवों की संरचनात्मक इकाई है

(2) जीवों में होने वाली विभिन्न जैविक क्रियाएँ कोशिका के अन्दर ही सम्पन्न होती हैं, कोशिकाएँ ही सजीवों की कार्यात्मक इकाइयाँ ( Physiological units) हैं।

(3) नयी कोशिकाओं का उद्भव (Origin) पूर्ववर्ती जीवित कोशिकाओं (Pre existing living cells) के विभाजन के फलस्वरूप होता है। नयी कोशिकाओं का बनना सूक्ष्मजीवों में जनन का साधन है व बहुकोशिकीय जीवों में जनन तथा शारीरिक संरचना को बनाये रखने में मदद करता है ।

(4) समस्त जीव अपना जीवन एक कोशिका से प्रारम्भ करते हैं, जिसके केन्द्रक में आनुवंशिक पदार्थ उपस्थित होता है जो कि पीढ़ी-दर-पीढ़ी गमन करता है । अत: कोशिकाएँ ही आनुवंशिक इकाइयाँ (Hereditary units) हैं ।

कोशिका सिद्धान्त के अपवाद (Exceptions to Cell theory) :

सामान्यतः अधिकतर जीव कोशिका सिद्धान्त की अवधारणाओं के परिप्रेक्ष्य में खरे उतरते हैं, जैसे-प्रोकैरियोट्स जीवाणु (Bacteria), अकोशिकीय प्रोटोजोआ (Acellular Protozoa) मोनेरा, प्रोटिस्टा, फाइकोमाइसिट्सि (Phycomycetes) तथा नीले-हरे शैवाल (Blue-green algae) तथा समस्त यूकैरियोट्स जिनमें झिल्ली आबद्ध कोशिकांग व केन्द्रक पाये जाते हैं, जिनमें झिल्ली आबद्ध विभिन्न कोशिकांग व विशिष्ट केन्द्रक अनुपस्थित होते हैं । किन्तु विषाणु (Viruses) प्रकृति में क्रिस्टलीय (निर्जीव) रूप में पाये जाते हैं। इनमें कोशिकीय संरचना नहीं होती है।

इनमें न्यूक्लिक अम्ल (DNA or RNA) से बनी केन्द्रीय कोर प्रोटीन आवरण से घिरी रहती है। ये परपोषी कोशिका में ही सजीवों की भाँति जैविक क्रियाएँ सम्पन्न कर पाते हैं, ये भी कोशिका सिद्धान्त के अपवाद हैं।

कोशिका सिद्धान्त की उपयोगिता (Utility of Cell theory) :

कोशिका सिद्धान्त की अवधारणाओं ने जीव विज्ञान की अन्य शाखाओं को प्रभावित किया, जिसके परिणामस्वरूप जीव विज्ञान में कई उपयोगी परिवर्तन हुए। कोशिका सिद्धान्त से यह ज्ञात हुआ कि सभी प्रकार की कोशिकाओं की संरचना व रासायनिक संगठन में समानता होती है। सभी सजीवों में होने वाली उपापचयी क्रियाएँ, कोशिका एवं अन्तर्वस्तुओं की आपसी क्रियाओं के फलस्वरूप होती हैं। रूडोल्फ विरचॉव (Rudolf Virchow) ने कोशिका सिद्धान्त के आधार पर यह स्पष्ट किया कि जीवन के प्रारम्भ होने से लेकर पीढ़ी दर पीढ़ी कोशिकाएँ विभाजित होती रहती हैं, जिनमें आनुवंशिक पदार्थ अपरिवर्तित (समसूत्री विभाजन के फलस्वरूप ) तथा परिवर्तित (अर्धसूत्री विभाजन द्वारा ) होकर संतति कोशिकाओं में गमन करता है तथा जैव विकास का आधार बनता है। इसी प्रकार कोलीकर (Kolliker) ने इस सिद्धान्त का उपयोग श्रोणिकी पर किया तथा स्पष्ट किया कि शुक्राणु व अण्डाणु कोशिकाओं के संलयन से युग्मनज (Zygote) का निर्माण होता है। युग्मनज कोशिका विभाजन द्वारा भ्रूण में परिवर्तित होता है। इसके अलावा कोशिका सिद्धान्त का उपयोग रोग विज्ञान (Pathology), जैव प्रोद्यौगिकी (Biotechnology) आदि में किया गया ।

जीव द्रव्य सिद्धान्त (Protoplasm Theory) :

श्लीडेन (M.J. Schleiden ) ने इस पदार्थ को कोशिका रस ( Juice) या अवपंक (Slime) बताया । एफ. सजीव कोशिकाओं के अध्ययन के बाद वैज्ञानिकों का ध्यान कोशिका में उपस्थित द्रव पदार्थ पर गया। सर्वप्रथम एन्टोनी वॉन ल्यूवनहॉक (Antony Von Leeuwenhoek) द्वारा विभिन्न प्रकार की में भी सार्कोड समान द्रव्य पदार्थ की उपस्थिति ह्यगो वॉन मोहल (Hugo Von Mohl, 1846) ने बतायी। डुजार्डिन (F. Dujardin) ने इस कोशिकीय रस को ‘सार्कोड’ (Sarcode) नाम दिया। पादप कोशिकाओं जे.ई. पुर्किन्जे (1840) ने इस द्रव्य पदार्थ को ‘प्रोटोप्लाज्म’ (Protoplasm) नाम दिया। सन् 1865 में हक्सले (Huxley) ने जीवद्रव्य को जीवन का भौतिक आधार बताया।

ओ. हर्टविग (O. Hertwig) ने सन् 1892 में ‘जीवद्रव्य सिद्धान्त’ प्रतिपादित किया, जिसके से अधिक केन्द्रक निलम्बित रहते हैं। कोशिका में होने वाली समस्त उपापचयी क्रियाएँ जीवद्रव्य द्वारा अनुसार प्रत्येक कोशिका में स्थित जीवद्रव्य कोशिका झिल्ली द्वारा परिबद्ध रहता है। इसमें एक या एक सम्पादित होती हैं। सजीवों में होने वाली समस्त जैविक क्रियाएँ, जैसे-गति, पोषण, श्वसन, उत्सर्जन, वृद्धि, उपापचय, उत्तेजनशीलता, प्रजनन एवं वंशागति का मुख्य आधार जीवद्रव्य ही है।

उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि 16वीं सदी काल से लेकर 19वीं सदी काल में अनेकानेक आधारभूत खोजें हुईं तथा कोशिका विज्ञान का निरन्तर विकास हुआ। 20वीं सदी काल से अभी तक अनेकों वैज्ञानिकों ने कोशिका जैविकी के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण खोजों का समावेश कर इस विज्ञान को आधुनिक रूप दिया है जिसे निम्न सारणी 1.1 द्वारा महत्त्वपूर्ण खोज व उससे सम्बन्धित वैज्ञानिकों के नाम सहित प्रदर्शित किया गया है ।