कोलाइडो के गुण (properties of colloids in hindi) , जीटा विभव , ब्राउनी गति , अवसादन , सतही क्षेत्रफल

(properties of colloids in hindi) कोलाइडो के गुण : इसके गुण निम्न है –
1. विषमांगी प्रकृति
2. अस्थिरता
3. सतही क्षेत्रफल
4. रंग
5. अवसादन
6. ब्राउनी गति
7. टिंडल प्रभाव
8. कोलाइडी कणों पर आवेश
9. विद्युत कण संचलन प्रभाव
10. स्कंदन
1. विषमांगी प्रकृति : परिक्षिप्त प्रावस्था के कणो का आकार बड़ा होने के कारण कोलाइडी विलयन विषमांगी प्रकृति के होते है।
2. अस्थिरता (unstability) : द्रव स्नेही कोलाइडो की तुलना में द्रव विरोधी कोलाइडो का स्थायित्व कम होता है क्योंकि द्रव विरोधी कोलाइडो में कणों का आकार बड़ा होने के कारण गुरुत्व के प्रभाव से इनका निलम्बन हो जाता है।
3. सतही क्षेत्रफल (surface area) : कोलाइडी निलम्बन में परिक्षिप्त प्रावस्था के कणो का सतही क्षेत्रफल अधिक होने के कारण यह उत्तम अधिशोषक एवं उत्प्रेरक का कार्य करते है।
4. रंग (Colour) : कोलाइडी विलयन का रंग परिक्षिप्त प्रावस्था के कणों द्वारा प्रकिर्णित प्रकाश की तरंग दैर्ध्य के कारण भिन्न भिन्न होता है।  यह प्रकिर्णित प्रकाश की तरंग दैर्ध्य कोलाइडी कणों के आकार व प्रकृति पर निर्भर करती है।
जैसे : Ag सॉल (सिलवर सॉल) में कणों का आकार 6 x 10-5 mm होने पर सॉल का रंग पीला नारंगी होता है लेकिन कणों का आकार 9 x 10-5 mm होने पर  सॉल का रंग लाल नारंगी होता है।
5. अवसादन (Sedimentation) : यदि कोलाइडी विलयन को अपकेंद्र मशीन में रखकर तेजी से घुमाया जाए तो इसमें उपस्थित कोलाइडी कण निसादित हो जाते है , (नीचे बैठ जाते है )
यह प्रक्रिया अवसादन कहलाती है।
इस विधि द्वारा वृहद् अणुओं का मोलर द्रव्यमान ज्ञात किया जाता है।
6. ब्राउनी गति (brownian movement) : राबर्ट ब्राउन ने बताया कि यदि कोलाइडी विलयन का अध्ययन अति सूक्ष्मदर्शी से किया जाए तो इस विलयन में परिक्षिप्त प्रावस्था के कण निरंतर टेढ़ी मेढ़ी गति करते हुए दिखाई देते है , इस गति को ही ब्राउनी गति कहते है।

 

  • ब्राउनी गति कोलाइडी कणों के आपस में टकराने से उत्पन्न होती है।
  • ब्राउनी गति के कारण कोलाइडी विलयन का स्थायित्व बना रहता है।
  • कोलाइडी कणों का आकार बड़ा होने पर ब्राउनी गति कम होती है।
  • विलयन की श्यानता अधिक होने पर ब्राउनी गति कम होती है।
  • ताप बढाने पर ब्राउनी गति बढती है।
7. टिण्डल प्रभाव (tyndall effect) : टिण्डल नामक वैज्ञानिक ने बताया कि यदि प्रकाश स्रोत से प्राप्त प्रकाश पुंज को अँधेरे में रखे कोलाइडी विलयन में से गुजारा जाए तो कोलाइडी कण प्रकाश का प्रकीर्णन करते है इससे कोलाइडी कण प्रकाश के पथ में चमकते हुए दिखाई देते है , यह घटना टिंडल प्रभाव कहलाती है।
इस घटना में चमकीली शंकु बनता है इसे टिंडल शंकु कहते है।  परिक्षिप्त प्रावस्था व परिक्षेपण माध्यम के कणों के आकार में अंतर अधिक होने पर टिंडल शंकु स्पष्ट बनता है।
टिण्डल प्रभाव की दो आवश्यक शर्ते :-
  • परिक्षिप्त प्रावस्था व परिक्षेपण माध्यम के कणों के अपवर्तनांक में अन्तर अधिक होना चाहिए।
  • परिक्षिप्त प्रावस्था के कणों का आकार प्रयुक्त प्रकाश की तरंग दैर्ध्य के आधार पर बहुत कम नही होना चाहिए।
टिण्डल प्रभाव के उदाहरण :-
i. जब सूर्य का प्रकाश अँधेरे कमरे में उपस्थित छिद्र से प्रवेश करता है तो कमरे में उपस्थित धुल के कण प्रकीर्णन के कारण प्रकाश के पथ में चमकते हुए दिखाई देते है , यह टिण्डल प्रभाव है।
ii. सिनेमा हॉल में फिल्म प्रोजेक्शन के समय जब प्रोजेक्टर के द्वारा पर्दे पर प्रकाश डाला जाता है तो हॉल में उपस्थित धुल के कण प्रकाश के पथ में चमकते हुए दिखाई देते है , यह टिण्डल प्रभाव है।
8. कोलाइडी कणों पर आवेश : कोलाइडी विलयन में उपस्थित सभी कोलाइडी कणो पर एक समान आवेश होता है। 
यदि सभी कोलाइडी कणों पर धनावेश हो तो वह धनात्मक कोलाइडी विलयन होगा तथा यदि सभी कोलाइडी कणों पर ऋण आवेश हो तो वह ऋणात्मक कोलाइडी विलयन होगा।
इन कोलाइडी कणों के समान आवेशो में प्रतिकर्षण के कारण ही कोलाइडी विलयन का स्थायित्व बना रहता है।
धनात्मक व ऋणात्मक कोलाइडी विलयन के उदाहरण :-

 

धनात्मक कोलाइडी
विलयन
ऋणात्मक कोलाइडी
विलयन
1.
क्षारीय रंजक जैसे – मेथिलिन ब्ल्यू
अम्लीय रंजक जैसे-
इथ्रोसिन , कांगोरेड
2.
धातु हाइड्रोक्साइड सॉल जैसे Fe(OH)2 , Al(OH)2
धातु सल्फाइड सॉल
जैसे
As2S3 , CdS , Sb2S3
3.
जलयोजित धातु ऑक्साइड सॉल- Fe2O3.xH2O
, Al2O3.xH2O
धातुओ के सॉल जैसे-
Au सॉल , Ag सॉल आदि
4.
TiO2 सॉल
स्टार्च , जिलेटिन
, सिलिसिक अम्ल , मिट्टी आदि
5.
हीमोग्लोबिन (रक्त)

 

9. विद्युत कण संचलन प्रभाव : विद्युत क्षेत्र की उपस्थिति में कोलाइडी विलयन में उपस्थित सभी कोलाइडी कण किसी एक इलेक्ट्रोड की ओर गमन करने लगते है , यह घटना , विद्युत कण संचलन प्रभाव कहलाती है।
इस प्रभाव द्वारा कोलाइडी कणों पर आवेश की पुष्टि होती है।

इस प्रयोग में एक U आकार की नली में कोलाइडी विलयन लेकर इसके दोनों सिरों पर विपरीत आवेशित इलेक्ट्रोड लगा देते है , विद्युत धारा प्रवाहित करने पर कोलाइड विलयन में उपस्थित सभी कोलाइडी कण किसी एक इलेक्ट्रोड पर एकत्रित हो जाते है।
यदि सभी कोलाइडी कण एनोड (+) पर एकत्रित होते है तो वह ऋणात्मक कोलाइडी विलयन होगा तथा यदि सभी कोलाइडी कण कैथोड (-) पर एकत्रित हो तो वह धनात्मक कोलाइडी विलयन होगा।
कोलाइडी कणों का एनोड (+) की ओर गमन ऋण कण संचलन एवं कैथोड (-) की ओर गमन धन कण संचलन कहलाता है।

10. स्कंदन या उर्णन : कोलाइडी विलयन में उपस्थित परिक्षिप्त प्रावस्था के कणों का तली में बैठना या अवक्षेपण होना ही कोलाइडी विलयन का स्कन्दन कहलाता है।

कोलाइडी कणों पर आवेश की उत्पत्ति के कारण

आवेश उत्पत्ति के निम्न तीन कारण है –
i. घर्षण विधुतीकरण
ii. पृष्ठीय अणुओं का विघटन
iii. आयनों का वर्णात्मक अधिशोषण
i. घर्षण विधुतीकरण : कोलाइडी विलयन में जब परिक्षिप्त प्रावस्था के कण परिक्षेपण माध्यम के कणों से टकराते है तो घर्षण के कारण कोलाइड कणों पर आवेश उत्पन्न होता है।
ii. पृष्ठीय अणुओं का विघटन : साबुन जल में निम्न प्रकार से आयनित होते है –
C17H35COONa ⇌ C17H35COO+ Na+
इसके आयनन से प्राप्त Na+ आयन तो विलयन में चले जाते है तथा स्टियरेट आयन हाइड्रोकार्बन भाग द्वारा जुड़कर कोलाइडी आकार के कण बना लेते है , इनमे ऋण आवेशित भाग बाहर की ओर रहता है , इस प्रकार ऋण आवेशित कोलाइड प्राप्त होते है।
iii. आयनों का वर्णात्मक अधिशोषण : कोलाइडी विलयन बनते समय कोलाइड कण विलयन में से आयनों का अधिशोषण करके दो विद्युत स्तरों का निर्माण करते है –
  • प्रथम विद्युत स्तर का निर्माण : कोलाइडी कण आधिक्य में उपस्थित विलयन में से अपने समान आयनों का अधिशोषण करके प्रथम विद्युत स्तर का निर्माण करते है।
  • द्वितीय वैधुत स्तर का निर्माण : आधिक्य में उपस्थित विलयन में से शेष बचे विपरीत आवेशित आयन कोलाइडी कणों पर द्वितीय विद्युत स्तर का निर्माण करते है।
इनमे से प्रथम विद्युत / वैधुत स्तर स्थायी होता है जबकि द्वितीय विद्युत स्तर अस्थायी होता है।  इसके आयन विलयन के साथ साम्य अवस्था में रहते है अत: प्रथम विद्युत स्तर का आवेश कोलाइडी कण का आवेश होता है।
उदाहरण : AgI के कोलाइड विलयन का निर्माण –
AgNO3 + KI = AgI + KNO3
जीटा विभव : कोलाइडी कणों पर उपस्थित दोनों परतो के मध्य आवेश पृथक्करण के कारण उत्पन्न विभव विद्युत गतिक विभव या जीटा विभव कहलाता है।