स्कंदन की विधियाँ , हार्डी शुल्ज नियम (hardy schulze law in hindi) , रक्षी कोलाइड , इमल्सन या पायस 

उदाहरण 1 : Fe(OH)3 सॉल का निर्माण : FeCl3 के जल अपघटन से  Fe(OH)3 सॉल का निर्माण होता है इसमें Fe(OH)3 सॉल के कणों पर Fe3+ आयनों के अधिशोषण के कारण Fe(OH)3 का  धनात्मक कोलाइड बनेगा।

FeCl3 + 3HOH → Fe(OH)3 + 3HCl

Fe(OH)3 + Fe3+ → Fe(OH)3 Fe3+

उदाहरण 2 : Al(OH)3 सॉल का निर्माण : AlCl3 के जल अपघटन से  Al(OH)3 सॉल का निर्माण होता है इसमें Al(OH)3 सॉल के कणों पर Al3+ आयनों के अधिशोषण के कारण Al(OH)3 का  धनात्मक कोलाइड बनेगा।

AlCl3 + 3HOH → Al(OH)3 + 3HCl

Al(OH)3 + Al3+ → Al(OH)3 Al3+

उदाहरण 3 : As3O3 विलयन में आधिक्य में H2S गैस प्रवाहित करने पर As2S3 सॉल का निर्माण होता है इसमें  As2S3 सॉल के कणों पर S2- आयनों के अधिशोषण के कारण As2S3 का ऋणात्मक सॉल बनेगा।

As2O3 + 3H2S → As2S3 + 3H2O

As2S3 + S2- → As2S3|S2-

कोलाइडी विलयन के स्कंदन की विधियाँ

इनके स्कंदन की निम्न विधियाँ है –

  1. आधिक्य अपोहन से
  2. दो विपरीत आवेशित कोलाइडो को मिलाकर

iii. विद्युत अपघट्यो से

  1. आधिक्य अपोहन से: कोलाइडी विलयन का अधिक मात्रा में अपोहन करने से इसमें से विद्युत अपघट्य पदार्थ पूर्ण रूप से पृथक हो जाता है , इस कारण कोलाइडी कण उदासीन होकर स्कंदित हो जाते है।
  1. दो विपरीत आवेशित कोलाइडो को मिलाकर: यदि धनात्मक व ऋणात्मक सॉल को समान मात्रा में मिला दिया जाए तो यह सॉल एक दुसरे का स्कंदन कर देते है इसे पारस्परिक स्कन्दन कहते है।

उदाहरण :  Fe(OH)3 के धनात्मक  सॉल व As2S3 के ऋणात्मक सॉल को समान मात्रा में मिलाने से इनका पारस्परिक स्कंदन हो जाता है।

iii. विद्युत अपघट्यो से : कोलाइड विलयन में उपस्थित सभी कोलाइडी कणो पर एक समान आवेश होता है , यदि इसमें विद्युत अपघट्य मिला दिया जाए तो इसके विपरीत आवेशित आयनों द्वारा कोलाइडी विलयन का स्कन्दन हो जाता है।

यदि धनात्मक कोलाइडी विलयन हो तो विद्युत अपघट्य के ऋण आयनों द्वारा स्कंदन होगा तथा यदि ऋणात्मक कोलाइडी विलयन हो तो विद्युत अपघट्य के धनायनो द्वारा स्कंदन होगा।

हार्डी शुल्ज नियम (hardy schulze law in hindi)

हार्डी शुल्ज नामक वैज्ञानिक ने विद्युत अपघट्यो द्वारा कोलाइडी विलयन के स्कंदन के सम्बन्ध में एक नियम दिया जो इस प्रकार है –

“इस नियम के अनुसार कोलाइडी विलयन का स्कंदन करने वाले विद्युत अपघट्य के आयन की संयोजकता जितनी अधिक होगी , कोलाइड विलयन का स्कंदन उतना ही अधिक होगा अर्थात विद्युत अपघट्य की स्कंदन क्षमता उतनी ही अधिक होगी। ”

जैसे : 1.  यदि ऋणात्मक कोलाइडी विलयन है तो विद्युत अपघट्य के धनायनो द्वारा स्कंदन होगा , अत: निम्न विद्युत अपघट्यों की स्कन्दन क्षमता का क्रम इस प्रकार होगा –

विद्युत अपघट्य : NaCl  BaCl2  AlCl3  SnCl4

स्कंदन करने वाले विद्युत अपघट्य के आयन : Na+ < Ba2+ < Al3+ < Sn4+

  1. यदि धनात्मक कोलाइडी विलयन है तो विद्युत अपघट्य के ऋण आयनों द्वारा स्कंदन होगा।

अत: निम्न विद्युत अपघट्यो की स्कंदन क्षमता का क्रम इस प्रकार है –

विद्युत अपघट्य : NaCl ,  Na2SO4 , Na3PO4 , K4[Fe(CN)6]

स्कंदन करने वाले विद्युत अपघट्य के आयन : Cl < SO42- < PO43- < [Fe(CN)6]4-

समाक्षेपण आयन : विद्युत अपघट्य का वह आयन जो कोलाइडी विलयन के स्कंदन में सक्रीय रूप से भाग लेता है , समाक्षेपण आयन कहलाता है।

स्कंदन मान : विद्युत अपघट्य की मिली मोल में वह न्यूनतम मात्रा जो एक लीटर कोलाइडी विलयन को स्कंदित करने के लिए आवश्यक हो , स्कंदन मान कहलाती है।

स्कंदन मान ∝ 1/ स्कंदन क्षमता

स्कंदन क्षमता की इकाई : मिली मोल / लीटर

जिस विद्युत अपघट्य स्कन्दन मान कम है तो उसकी स्कंदन क्षमता अधिक होगी।

स्कंदन क्षमता = विद्युत अपघट्य की कुल मात्रा x मोलरता x 1000/कुल आयतन

कोलाइडो का रक्षण

द्रव स्नेही कोलाइडो की तुलना में द्रव विरोधी कोलाइड आसानी से स्कंदित हो जाते है अत: द्रव विरोधी कोलाइडो को स्कंदित होने से बचाने के लिए इसमें थोडा सा द्रव स्नेही कोलाइड मिला देते है , यह द्रव स्नेही कोलाइड , द्रव विरोधी कोलाइडी कणों पर रक्षक परत का निर्माण करके कोलाइडी विलयन को स्थायित्व प्रदान करते है , इसे ही कोलाइडो का रक्षण कहते है।

रक्षी कोलाइड : द्रव विरोधी कोलाइडो को स्कंदित होने से बचाने के लिए इसमें मिलाया गया द्रव स्नेही कोलाइड ही रक्षी कोलाइड कहलाता है।

उदाहरण 1 : सूजी के हलवे में मिलाया जाने वाला गोंद रक्षी कोलाइड का कार्य करता है।

उदाहरण 2 : भारतीय स्याही काजल से बनाई जाती है , स्याही बनाते समय काजल में बबूल का गोंद मिलाते है , यह बबूल का गोंद रक्षी कोलाइड का कार्य करता है।

यह स्याही को स्कंदित होने से बचाता है तथा इसके कारण चिपचिपाहट की प्रकृति समाप्त हो जाती है।

इमल्सन या पायस

ऐसा कोलाइड जिसमे परिक्षिप्त प्रावस्था व परिक्षेपण माध्यम दोनों ही द्रव हो इमल्सन या पायस कहलाता है।

इमल्सन बनने की प्रक्रिया इमल्शीकरण या पायसीकरण कहलाती है।

इमल्सन के प्रकार : यह दो प्रकार के होते है –

  1. जल तेल इमल्सन / तेल में जल / तैलीय पायस : इस प्रकार के इमल्सन में जल (परिक्षिप्त प्रावस्था) की छोटी छोटी बुँदे तेल (परिक्षेपण माध्यम) में वितरित होती है।  इसे water oil टाइप (w/o type) भी कहते है।

उदाहरण : मक्खन ,कोल्ड क्रीम , cord , लीवर आयल आदि।

  1. तेल जल इमल्सन / जल में तेल / जलीय पायस : इस प्रकार के इमल्सन में तेल (परिक्षिप्त प्रावस्था) की छोटी छोटी बुँदे जल (परिक्षेपण माध्यम) में वितरित होती है।

इसे oil water type (o/w type) भी कहते है।

उदाहरण : दूध , वेनिशिंग क्रीम आदि।

इमल्सन या पायस की पहचान

इसकी पहचान की निम्न विधियाँ है –

  1. सूचक विधि
  2. तनुता विधि

iii. चालकता विधि

  1. सूचक विधि: इस विधि में पायस में एक ऐसा सूचक (रंजक) मिलाते है जो तेल में घुलनशील हो लेकिन जल में नहीं।

जैसे : सूडान , फ्युशिन आदि।

यदि पायस में रंजक मिलाने से विलयन गहरा रंगीन हो जाए तो वह तेलिय पायस होगा लेकिन यदि विलयन गहरा रंगीन नहीं हो तो वह जलीय पायस होगा।

क्योंकि रंजक तेलिय पायस के मुख्य भाग तेल (परिक्षेपण माध्यम) में घुलकर इसे गहरा रंग प्रदान कर देता है जबकि यह रंजक जलीय पायस के मुख्य भाग जल (परिक्षेपण माध्यम) में घुलनशील नहीं होता इसलिए जलीय पायस गहरा रंगीन नही होता।

  1. तनुता विधि: इस विधि में कांच एक स्लाइड पर पायस की दो बुँदे लेकर इसमें एक बूंद जल , मिश्रित करते है , इसे सूक्ष्मदर्शी से देखने पर यदि समांगी विलयन बनता है तो वह जलीय पायस होगा , लेकिन यदि विषमांगी विलयन बनता है तो वह तेलिय पायस होगा।

iii. चालकता विधि : इस विधि में पायस की चालकता का मापन करते है , यदि पायस की चालकता अधिक है तो वह जलीय पायस होगा लेकिन यदि पायस की चालकता कम है तो वह तेलीय पायस होगा।

श्यानता के आधार पर भी पायस की पहचान कर सकते है , यदि पायस की श्यानता अधिक है तो वह तेलिय पायस होगा तथा यदि श्यानता कम हो तो वह जलीय पायस होगा।

इमल्सन / पायस के गुण

  • इमल्सन या पायस के कणों का आकार सॉल के कणों से बढा होता है।
  • इमल्सन या पायस टिंडल प्रभाव या ब्राउनी गति दर्शाते है।
  • तेलीय पायस की श्यानता अधिक होती है।
  • जलीय पायस की चालकता अधिक होती है।
  • इमल्सन या पायस को गर्म करके अपकेन्द्रण द्वारा , विद्युत अपघट्यो द्वारा या पायसीकृमक को नष्ट करके स्कंदित किया जा सकता है।

पायस के उपयोग :

  • कपडे धोने में
  • धातुकर्म की झाग प्लवन विधि में
  • आहार के रूप में जैसे – दूधऔषधियों जैसे क्रीम , महरम के रूप में
  • मानव की पाचन क्रिया में

प्रश्न : पायसीकर्मक क्या है ? ये पायस को स्थायित्व प्रदान करते है , कैसे ?

उत्तर : इमल्सन या पायस में दोनों घटक द्रव रूप में होते है अत: इमल्सन को स्थायित्व प्रदान करने के लिए मिलाया जाने वाला तीसरा घटक पायसीकर्मक कहलाता है।

यह पायसीकर्मक पायस के दोनों घटकों के मध्य अंतरापृष्ठीय फिल्म का निर्माण करके पायस को स्थायित्व प्रदान करता है।