प्रोकैरियोटिक तथा यूकैरियोटिक में अंतर क्या है , prokaryotes and eukaryotes difference in hindi

prokaryotes and eukaryotes difference in hindi प्रोकैरियोटिक तथा यूकैरियोटिक में अंतर क्या है ?

प्रोकेरयोट तथा यूकेरयोट में जीन अभिव्यक्ति का नियमन (Regulation of Gene Expression in Prokaryotes and Eukaryotes)

परिचय (Introduction)

जीव में चाहे वह प्रोकरयोट हो अथवा यूकेरयोट प्रोटीन का बनना जीन के निर्देशन पर ही होता है। जीव को हर समय प्रोटीन की जरूरत नहीं होती है अतः हर समय प्रत्येक जीन प्रोटीन का निर्माण नहीं करती है इसका यह अर्थ है कि जीव में आवश्यकता होने पर ही उसके अनुरूप प्रोटीन निर्मित होता है तथा किसी भी एक वक्त पर सभी जीन अभिव्यक्त नहीं होती है। प्रोटीन निर्माण की प्रक्रिया का आवश्यकतानुसार सुचारू रूप से चलाने के लिये यह आवश्यक है जीवों में एक ऐसा तन्त्र (system) होना चाहिये जो जीनों की अभिव्यक्ति का नियमन (regulation of gene expression) कर सके। उदाहरण के लिये पादपों में बीजों के अंकुरण के लिये एल्फा अमाइलेज की आवश्यकता है तो इसकी वृद्धि व पुष्पन के लिये अलग-अलग प्रकार के कई एन्जायमों की आवश्कता होगी।

उच्च पादपों में जैव रासायनिक क्रियाऐं बहुत जटिल (complex) होती है तथा प्रत्येक प्रक्रिया के लिये विशिष्ट (specific) एन्जायम की जरूरत पड़ती है। पुष्पन काल होने पर ही फूल तथा फल लगते हैं एवं इनसे संबंधित जीनों की सक्रियता या अभिव्यक्ति तभी हो सकती है तथा बाकी समय यह जीन अभिव्यक्त नहीं होकर निष्क्रिय रहती है। जीन उत्पाद के संश्लेषण (synthesis) को जिस प्रक्रिया द्वारा नियमित (regulate) किया जा सके वह जीन नियमन (gene regulation) कहलाती है।

प्रेरण एवं दमन (Induction and Repression)

प्रोकेरयोट में ई. कोलाई नामक जीवाणु (Bacteria) में प्रोटीन संश्लेषण का अध्ययन विस्तारपूर्वक किया गया है। B गैलेक्टोसाइडेज नामक एन्जायम के संश्लेषण पर भी काफी अध्ययन हुआ है। B गैलेक्टोसाइडेज लैक्टोज का ग्लूकोज तथा गैलेक्टोज में अपघटन करता है।

लैक्टोज B गैलेक्टोसाडेज → ग्लूकोज + गैलेक्टोज

ई. कोलाई को जब पोष पदार्थ युक्त पेट्री डिशों पर संवर्धित किया जाता है तब जब तक पोष पदार्थ में लैक्टोज उपस्थित रहता है तब तक यह कोशिकायें B गैलेक्टोसाइडेज विकर (enzyme) का उत्पादन करती रहती हैं किन्तु पोष पदार्थ में लैक्टोज के खत्म हो जाने पर इस विकर का उत्पादन भी रूक जाता है। इस पोष पदार्थ में जैसे ही लैक्टोज मिलाया जाता है वैसे ही B गैलेक्टो साइडेज विकर का निर्माण होने लगता है व यह कई बार पहले से दस हजार गुणा अधिक हो जाता है। यह स्थिति प्रेरण (Induction) कहलाती है व यह तन्त्र प्रेरणीय तन्त्र ( inducible system) कहलाता है। इसमें गैलेक्टोसाइडेज प्रेरणीय विकर की भूमिका निभाता है।

कुछ ऐसे पदार्थ, जिनकी उपस्थिति द्वारा एन्जाइम का संश्लेषण रुक जाता है सहदमनकर (co- repressor) कहलाते है। कुछ अमीनो अम्ल ऐसे होते हैं जिनकी आपूर्ति (supply) बाहर से न होने पर कोशिकाएँ इनके संश्लेषण के लिए जिम्मेदार सभी एन्जाइम का संश्लेषण शुरू कर देती है । परन्तु इन्हीं की आपूर्ति (supply) बाहर से की जाती है जो यह संश्लेषण तुरन्त रुक जाता है। उदाहरणस्वरूप यदि हिस्टीडीन नामक अमीनो अम्ल की आपूर्ति बाहर से करने पर इनका निर्माण करने वाले एन्जाइम की उत्पत्ति कम हो जाती है परन्तु अगर यह आपूर्ति रुक जाती है तो इनके संश्लेषण के लिए आवश्यक एन्जाइम पुनः बनने लगते हैं। यहाँ हिस्टीडीन सहदमनकर है क्योंकि इसको मिलाने से इसके संश्लेषण के लिए आवश्यक एन्जाइम की उत्पत्ति कम हो जाती है। प्रक्रिया, जिसमें सश्लेषण रुक जाता है, दमन (repression) कहलाता है।

प्रोकेरियोट में जीन नियमन (Gene Regulation in Prokaryotes)

जैकब (Jacob) तथा मोनॉड (Monad ) ने 1961 में ऑपरॉन मॉडल प्रयुक्त किया। प्रोकेरियोट ई. कोलाई में उन्होंने प्रेरणीय तंत्र (Induced system) पर काम करते हुए एन्जाइम संश्लेषण पर विस्तारवपूर्वक अध्ययन किया। B-गैलेक्टोसाइडेज एन्जाइम के संश्लेषण के प्रेरण व दमन के लिए निम्न मॉडल प्रस्तुत किया।

संरचनात्मक जीन (Structural Genes) – यह जीन, प्रोटीन के लिए कोड करते हैं। यह जीन कोशिकाओं को एन्जाइम उत्पन्न करके देते हैं अथवा रचनात्मक कार्य करते हैं। ई. कोलाई में लगभग 2500 जीन मौजूद रहते हैं जो 800 विभिन्न प्रकार के एन्जाइम उत्पन्न कर सकने की क्षमता रखते हैं। इनमें से कुछ लगातार उत्पन्न होते रहते है, जबकि कुछ एन्जाइम का निर्माण नियंत्रित रहता है। जीवाणु की कोशिका में एक प्रणाली (mechanism) होती है जिससे इसके जीन्स में स्विच खुलता व बन्द होता रहता है। प्रोकेरियोटिक एन्जाइम निम्न तीन प्रकार के होते हैं। एक ऑपरॉन के समस्त रचनात्मक जीन्स एक समूह में रहकर इकट्ठे नियंत्रित (regulate) होते हैं। यह पॉलीसिस्ट्रोनिक अनुलेखन (transcription) के दौरान 5’3′ दिशा में अनुलेखित होकर (poly-cistronic mRNA बनाते हैं।

रेगुलेटर जीन (Regulator Gene)- रचनात्मक जीन्स को नियंत्रित करने के लिए रेगुलेटर जीन की आवश्यकता होती है। यह दमन (repressor) नामक प्रोटीन उत्पन्न करते हैं जिसे ” जीन कहते हैं जो ऑपरेटर जीन के पास स्थित होता है। यह जीन लेकऑपरान में सम-टेट्रामर होता है जिसमें चार पॉलीपेप्टाइड की एकमात्र श्रृंखलाएँ मौजूद रहती हैं। यह जीन ऑपरेटर साइट (operator site) के साथ जुड़ जाता है तब mRNA का संश्लेषण रुक जाता है । परन्तु इसी समय प्रेरित लेक्टोस डालने से दमन अक्रियाशील होकर आपरेटर जीन से हट जाता है तब mRNA पुनः बनने लगता है।

आपरेटर साइट (Operator Site ) – यह साइट वो स्थल है जहाँ पर दमन (repressor) प्रोटीन जुड़ता (bind) है। यह रचनात्मक जीन्स के बायीं तरफ मौजूद रहती है। इस दमन बांइडिंग साइट को “O” साइट कहते हैं। इस साइट पर प्रोटीन्स नहीं बनते हैं।

प्रेरित साइट (Promoter Site)- यह साइट, ऑपरेटर साइट के आगे ही जुड़ी रहती है तथा इसके बायीं तरफ उपस्थित रहती है। यह साइट प्रोटीन नहीं बनाती है। ई. कोलाई में कई 100 प्रेरित साइट की अनुक्रम पर अध्ययन किया गया है तथा कई ज्ञात कर ली गयी है। विभिन्न प्रेरित साइट (promoters) जीन में दो छोटी समान अनुक्रम प्राप्त हुई है। प्रिबनोऊ (1975) ने इस जीन में तीन विस्थल रिपोर्ट किये हैं- (i) अभिज्ञान क्रम (regcognition site) (2) बन्धक क्रम (binding sequence) तथा (3) m-आरएनए प्रारम्भन स्थल (mRNA initiation site )

अहेतुक प्रभाव (Constitutive strains)

यह पाया गया है कि उत्परिवर्तन (mutation) द्वारा रेगुलेटर जीन (i) में कुछ परिवर्तन आने से यह सफल दमन के साथ नहीं जुड़ पाता। न जुड़ पाने से यह संश्लेषण को रोकने अथवा नियंत्रित करने में नहीं हो पाता। इस तरह बराबर एन्जाइम का संश्लेषण होता रहता है। ऐसे प्रभेद (strains) जो लगातार एन्जाइम को संश्लेषित करते रहते हैं चाहे आवश्यकता हो अथवा नहीं, उन्हें अहेतुक प्रभव (consititutive _strains) कहते हैं। यह कार्य वह स्वतंत्र रूप से लगातार कर पाते है क्योंकि जीव ‘ दमन के साथ नहीं जुड़ पाता । आपरेटर जीन में भी उत्परिवर्तन हो सकते हैं ।

यह दो प्रकार के होते है-

(1) रेगुलेटर अहेतुक (Regulator constitutive),

(2) ऑपरेटर अहेतुक (Operator constitutive).

प्रमोटर जीन (Promoter Gene)- यह आपरेटर जीन के बाईं तरफ स्थित रहता है यह माना गया है कि आरएनए पॉलीमरेज प्रमोटर साइट के साथ जुड़कर गति करती है । परन्तु दमनकर जब आपरेटर के साथ जुड़ता है तब आरएनए पॉलीमरेज की गति रुक जाती है। यहाँ पर तीन साइट स्थित रहती है।

(1) अपचयी जीन सक्रियक / सीजीए [Catabolic gene activator (Cga)]

(2) प्रारम्भिक बन्धनकारी स्थल / आईबीएस [ Initial binding site (Ibs)]

(3) ऑपरेटर जीन / ओपी [Operator gene (OP)]

प्रमोटर जीव ही अनुलेखन प्रारम्भन की प्रक्रिया का स्थल है जो आपरेटर जीन के बाई तरफ स्थित होता है।

प्रोटीन्स (Proteins)- लेक्टोस ऑपरान के नियमन के दौरान निम्न प्रोटीन्स संलग्न होते हैं जो धनात्मक व ऋणात्मक नियन्त्रण के लिए जिम्मेदार होते हैं।

(1) धनात्मक नियंत्रण (Positive Control)

केटाबोलिक जीन प्रोटीन (Cga Proteins) दमनकर आपरेटर साइट तथा Cga प्रोटीन (Cga) साइट के लिए बन्धनकारी है। प्रमोटर जीन ऑपरेटर जीन्स के बायीं ओर स्थित रहता है। जब दमनकर आरएनए पॉलीमरेज को आगे बढ़ने से ऑपरेटर के द्वारा रोकने में मदद करता है तथा इसकी गति को रोकता है। Cga प्रोटीन धनात्मक नियंत्रण करती है। Cga प्रोटीन तभी आरएनए पॉलीमरेज को जोड़ती है, जबकि साइक्लिक AMP अणु Cga प्रोटीन को क्रियाशील करते हैं ।

इस तरह हम देखते हैं कि लेक ऑपेरान के अनुलेखन के दौरान आरएनए पालीमरेज प्रमोटर स्थल पर आता है तब वहीं से गति करके आगे जाता है परन्तु दमनकर जब ऑपरेटर से जुड़ता है जब साइक्लिक AMP अणु, Cga प्रोटीन्स को क्रियाशील करके सक्रिय कर देता है । यह धनात्मक नियंत्रण कहलाता है।

(2) ऋणात्मक नियंत्रण (Negative Control)

लेक दमन- प्रेरक (inducer) लेक दमनकर को अक्रियाशील बना देता है इसे ऋणात्मक नियंत्रण कहते हैं। आज तक ‘ई. कोलाई’ तथा अन्य जीवाणुओं में डीएनए अनुक्रम तथा अनुलेखन प्रारम्भन स्थल (site) पर कई ऑपरान पर काम हुआ है।

ऑपरॉन के प्रमुख जीनों की अभिव्यक्ति का नियमन प्रोटीन संश्लेषण को रोकता है। – 10, – 25 तथा – 60 न्युक्लिाओटाइड युक्त आपॅरॉन प्रमुख होता है। इसमें किसी भी प्रकार का विलोपन (deletion) अथवा परिवर्तन मिलने पर प्रोटीन संश्लेषण भी प्रभावित होता है। 10 पर प्रमुख अनुक्रम को प्रिननो बाक्स ने एक महत्त्पूर्ण स्थल माना था। – 60 क्षेत्र में Cga प्रोटीन का सक्रिय स्थल माना गया।

संश्लेषण के दौरान अन्तिम उत्पाद (product ) के उपयोग में नहीं आने पर यह अधिक मात्रा में एकत्रित हो जाता है। अतः अधिकता से इस पदार्थ का संश्लेषण रूक जाता हैं अतः किसी उत्पाद की अधिकता होने से उसके संश्लेषण का रूकना पुनर्भरण निरोध (Feed back Inhibition) कहलाता है । अनुलेखन समापन स्थल (Transcription Terminator Site)

अनुलेखन का DNA में विशिष्ट अनुक्रम द्वारा सम्भव होता है। ज्यादातर प्रोकेरियोट के mRNA अनुक्रम SUUUUUUA3′ द्वारा समाप्त (terminate) होते हैं। इस कार्य को सम्पदित करने के लिये रो ‘rho’ प्रोटीन अनुलेखन टमिर्नल (terminal) सिग्लन पर उपस्थित रहता है।

प्रेरक ऑपरॉन तंत्र में स्वतंत्र दमनकर ऑपरेटर के साथ संलग्न होकर डीएनए के अनुलेखन को बन्द कर देता है। इस प्रकार ऑपरेटर डीएनए का विशिष्ट अनुक्रम होता है जो दमनकर के साथ जुड़ जाता है। जब प्रेरक मौजूद रहता है तब यह दमनकर के साथ जुड़ जाता है और दमनकर को हटा देता है। इस तरह से दमनकर प्रेरक काम्पलेक्स (complex) ऑपरेटर के साथ नहीं बंध सकता तथा इस तरह प्रेरक ऑपरान के रचनात्मक जीन के अनुलेख को प्रेरित करता है। यही रचनात्मक जीन एन्जाइम बनने के लिए जिम्मेदार होते हैं। दमनकारी आपॅरान तंत्र की अवस्था में स्वतंत्र दमनकर ऑपरेटर के साथ नहीं जुड़ता है परन्तु सहदमन जटिल (co-repressor complex) ऑपरेटर के साथ जुड़कर रचनात्मक जीन के अनुलेखन का स्विच बंद कर देता है। इस तरह सहदमन की उपस्थिति दमनकारी ऑपरॉन के रचनात्मक जीन का अनुलेखन का स्विच बंद तथा इसकी उपस्थिति में पुनः खोल देती है।

सक्रिय दमनकर = असक्रिय दमनकर + सहदमनकर

(active repressor = inactive repressor + co-repressor)

असक्रिय दमनकर = सक्रिय दमनकर + प्रेरक

(inactive repressor = active repressor + inducer )

जैकब व मोनाड ने जो ई. कोलाई को लेकर ऑपरान मॉडल प्रस्तुत किया था वह जीवाणुओं के विभिन्न उत्परिवर्तक ( mutants) तथा मीरोजाइगोट (merozygotes) पर आधारित था। मीरोजाइगोट में धाद्विगुणित (half diploid) बेक्टीरिया होता है जो Hfr strain लेकर तैयार किए गए। इनमें प्रभावी व अप्रभावी तथा उत्परिवर्तक (dominant recessive mutant) जीन को ज्ञात करने की सुविधा रहती है। आज का लेक ऑपरॉन में निम्नलिखित स्थान होते हैं-

(1) प्रमोटर

(2) एक आपरेटर

(3) तीन रचनात्मक जीन निम्नलिखित एन्जाइम संश्लेषित करते हैं।

(i) x एन्जाइम B- गेलेक्टोसाइडेज

(ii)y एन्जाइम परमिएज

(iii) a एन्जाइम ट्रांस एसीटाइलेज

गेलेक्टोसाइडेज लेक्टोस को ग्लूकोज एवं गेलेक्टोज तथा लेक्टो परमिएज लेक्टोज को जीवाणु में पंप करता है। ट्रांसएसीटाइलेज का कार्य अज्ञात है ।

जीन नियमन प्रोटीन (Regulatory Gene Protein)

लेक रेगूलेटरी जीन दमनकारी प्रोटीन बनाते है। यह जीन 360 अमीनो अम्ल की पॉलीपेप्टाइड चेन बनाते है। ऐसी चार पॉलीपेप्टाइड श्रृंखलाएँ कुण्डलित या मुड़कर (fold) लेक ऑपरान प्रोटीन का निर्माण करती है। अतः यह टेट्रामर प्रोटीन होता है जिस पर 2 भिन्न-भिन्न बन्धनकारी स्थल मौजूद रहते हैं। इसका एक सिरा प्रेरक अणु की पहचान करता है तथा दूसरा स्थल डीएनए पर मौजूद लेक ऑपरान अनुक्रम (Lac operon sequences on the DNA) की पहचान करता है।

जैकब व मोनाड की मीरोजाइगोट का अध्ययन (Study of merozygote by Jacob and Monad)

जेकब व मोनाड ने मीरोजाइगोट के अध्ययन के पश्चात् निम्न निष्कर्ष निकाले- Z प्रभावी है dominant Z- उत्परिवर्तित जीन पर (over mutant gene) 1- प्रभावी है dominant Y- उत्परिवर्तित जीन पर (over mutant gene) at प्रभावी है dominant a उत्परिवर्तित जीन पर (over mutant gene) 1 प्रभावी है dominant i- उत्परिवर्तित जीन पर (over mutant gene) O dominant OC

जीन ì सक्रिय दमन प्रोटीन बनाती है। असक्रिय दमन प्रोटीन बनाती है ।

सारणी-1 : प्रोकेरियोटिक व यूकेरियोटिक जीन नियमन का तुलनात्मक विवरण (Comparative Description of Prokaryotic and Eukaryotic gene expression)

क्र.स. प्रोकेरियोटिक (Prokaryotic) यूकेरियोटिक (Eukaryotic)
1.

 

 

 

 

 

 

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8.

प्रोकेरियोटिक जीवों में जीन नियमन नियामक (promoter ), एक वर्धक (promoter) तथा एक प्रचालक (operater) जीन के समन्वयन (coordination) द्वारा सम्पन्न होता है।

 

m- आरएनए से पहले पूर्व आरएनए नहीं बनता ।

 

एक्सॉन् व इन्ट्रॉन नहीं पाये जाते ।

 

पूर्व एमआरएनए नहीं बनता ।

 

स्पलाइसिंग प्रक्रिया अनुपस्थित

 

एन्जाइम आरएनए पॉलिमरेज द्वारा सम्पन्न होता है।

 

पॉली बहुसमपारी/सिस्ट्रोनिक  (Polycistronic)

 

 

 

 

 

 

एक m-आरएनए एक या एक से अधिक प्रोटीन कोडित करते हैं ।

 

यूकेरियोटिक जीन नियमन में संवेदक (sensor), समाकलक ( integrator), ग्राही (receptor) एवं उत्पादक (producer) जीनों द्वारा सम्पन्न होता है।

m-आरएनए से पहले पूर्व m-आरएनएए (pre-mRNA निर्मित होता है।

इसमें पुनरावर्ती अनुक्रम के कारण पूर्व एमआरएन में एक्सान (सक्रिय जीन) व इन्ट्रॉन (नॉन कोडित जीन) उपस्थित रहते हैं।

पूर्व एमआरएनए (pre-mRNA) निर्मित होता है जिसमें इन्ट्रॉन स्प्लाइसिंग (Splicing) द्वारा हटाये जाते हैं।

स्पलाइसिंग प्रक्रिया द्वारा लम्बा पूर्व m-आरएनए इन्ट्रॉन से अलग होकर छोटा m-आरएनए जिसमें लगातार एक्सॉन उपस्थित रहते हैं, निर्मित होता है

इसका संपूर्ण भाग प्रोटीन को कोडित कर सकता है। एन्जाइम आरएनए पॉलीमरेज II द्वारा संभव होता है।

एकसमपारी मोनोंसिस्ट्रोनिक (monocistronic)

एक m-आरएनए मात्र एक ही प्रोटीन को कोडित करते हैं।