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कुक्कुट पालन या मुर्गी पालन (poultry farming in hindi) , अंडो का स्फुटन तथा ऊष्मायन (incubation and hatching)

(poultry farming in hindi) कुक्कुट पालन या मुर्गी पालन:

  • अन्डो तथा मांस के उत्पादन हेतु विभिन्न प्रकार के पक्षियों को पालने की क्रिया कुक्कुट पालन या मुर्गी पालन कहलाता है।
  • मुर्गी पालन के अंतर्गत माँस के उत्पादन हेतु पाली जाने वाली मुर्गियों की प्रजातियां Broilers कहलाती है। वही मुर्गियों की ऐसी प्रजातियाँ जिन्हें अंडो के उत्पादन हेतु पाला जाता है layers के नाम से जानी जाती है।
  • मुर्गियों की एक साधारण प्रजाति एक वर्ष में लगभग 60 अन्डे उत्पन्न करती है , वही मुर्गियों की एक उन्नत प्रजाति एक वर्ष में लगभग 240 अंडे उत्पन्न करती है।

मुर्गी प्रजनन हेतु मुर्गे तथा मुर्गियों का चुनाव

मुर्गी पालन के अंतर्गत मुर्गियों की संख्या में वृद्धि हेतु प्रजनन एक प्रमुख कार्य है अत: इस क्रिया के संपन्न होने हेतु पूर्णत:स्वस्थ मुर्गे तथा मुर्गी का चुनाव किया जाता है।

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एक उपयुक्त मुर्गे तथा मुर्गी के चुनाव हेतु निम्न लक्षण वाले पक्षियों का चुनाव किया जाता है –

मुर्गे में पाए जाने वाले प्रमुख लक्षण

  • प्रजनन हेतु चुने जाने वाले मुर्गे का शरीर चमकीला , चौड़ा तथा गठीला होना चाहिए। ऐसे मुर्गे की आँखे चमकदार चोच छोटी तथा मुड़ी हुई होनी चाहिए। कल्लगी चौड़ी , चमकदार , लाल तथा बड़ी हुई होनी चाहिए , ऐसे मुर्गे की त्वचा लचीली , पतली , पीठ चौड़ी , पुच्छ लम्बी तथा ऊपर की ओर मुड़ी होनी चाहिए।
  • ऐसे मुर्गे के शरीर का कोई भी अंग किसी भी प्रकार के दोष से ग्रसित नहीं होना चाहिए।
  • ऐसा मुर्गा दिखने में चंचल होना चाहिए तथा मुर्गियों की रक्षा हेतु हमेशा तैयार होना चाहिए।
  • ऐसे मुर्गे के द्वारा ठीक प्रकार से बॉग लगानी चाहिए।

यदि किसी मुर्गे में उपरोक्त सभी लक्षण उपस्थित हो तो ऐसा मुर्गा प्रजनन हेतु उपयुक्त होता है।

मुर्गियों में पाए जाने वाले प्रमुख लक्षण

प्रजनन हेतु चुनी जाने वाली मुर्गियों में निम्न लक्षण उपस्थित होने चाहिए –

  • ऐसी मुर्गियों का शरीर आकार में बड़ा तथा अच्छा होना चाहिए।
  • ऐसी मुर्गियों के सिर का आकार उपयुक्त तथा आँखे उभरी होनी चाहिए।
  • सामान्यत: चुनी जाने वाली मुर्गियों की उम्र मुर्गे से कम से कम एक साल कम होनी चाहिए।
  • ऐसी मुर्गियां पूर्णत: स्वस्थ , तेज वृद्धि करने वाली , कम समय में परिपक्व होने वाली तथा अधिक संख्या में अंडे उत्पन्न करने वाली होनी चाहिए।

नोट : प्रजनन हेतु स्वस्थ मुर्गियों के चुनाव से स्वस्थ चूजे उत्पन्न होते है।

पक्षियों में संगम की विधियाँ

कुक्कुट पालन के अंतर्गत संगम हेतु निम्न विधियों का उपयोग किया जा सकता है –

(1) Pen mating: इस प्रकार के संगम के अन्तर्गत एक मुर्गियों के दबड़े एक मुर्गे को छोड़ा जाता है। सामान्यत: इस विधि के अन्तर्गत दस मुर्गियों के साथ एक मुर्गे को छोड़ा जाता है।

(2) stud mating: इस प्रकार की संगम विधि के अंतर्गत मुर्गे तथा मुर्गियों को अलग अलग दबड़े में रखा जाता है तथा आवश्यकता के अनुसार एक मुर्गे का एक मुर्गी के साथ संगम करवाया जाता है।

(3) flock mating: इस प्रकार की संगम विधि को सामूहिक संगम विधि के नाम से जाना जाता है।

इस विधि के अंतर्गत एक साथ एक मुर्गियों के दबड़े में अधिक संख्या में मुर्गे छोड़े जाते है।

नोट : इस प्रकार की संगम विधि अपनाने के कारण असुविधाओं का सामना करना पड सकता है क्योंकि एक दबड़े में एक से अधिक मुर्गे छोड़े जाने पर मुर्गो की लड़ाई हो जाती है तथा किसी बलिष्ट मुर्गे के द्वारा अन्य मुर्गो को संगम की क्रिया संपन्न नहीं करने दी जाती है।

(4) Alter mating male mating: इस प्रकार की संगम की विधि के अन्तर्गत एक मुर्गी के दबड़े में संगम हेतु दो मुर्गो का उपयोग किया जाता है तथा दबड़े में एक मुर्गे को एक दिन तथा दुसरे मुर्गे को दुसरे दिन संगम हेतु छोड़ा जाता है।

नोट : कुक्कुट पालन के अंतर्गत रिकॉर्ड रखने हेतु केवल stud mating एक उपयुक्त विधि है तथा बाकि सभी विधियाँ रिकॉर्ड रखने हेतु अनउपयुक्त विधियाँ है।

कुक्कूट पालन के अंतर्गत अपनाई जाने वाली प्रजनन विधियाँ

कुक्कुट पालन के अन्तर्गत निम्न प्रमुख प्रजनन विधियाँ अपनाई जा सकती है –

(A) अन्त: प्रजनन: इसे Inbreeding के नाम से भी जाना जाता है।

इस प्रकार के प्रजनन के अंतर्गत एक ही जाति के समीप के रिश्तेदारों के मध्य संगम करवाया जाता है जैसे – भाई बहन , पिता-पुत्री तथा माता-पुत्र। परन्तु व्यवसायिक दृष्टि से यह विधि उपयुक्त नहीं है क्योंकि लगातार ऐसी विधि के अपनाए जाने पर उत्पन्न होने वाली नयी संतति कमजोर उत्पन्न होती है तथा प्रजनन क्षमता में कमी आती है इसे अंत: प्रजनन अवशादन के नाम से जाना जाता है।

(B) Line Breeding: प्रजनन की इस प्रकार की विधि के अन्तर्गत सामान्यत: एक मक्खी का संगम किसी दूर रिश्तेदार प्रजाति के साथ करवाया जाता है तथा इस प्रकार की प्रजनन की विधि की सहायता से एक पक्षी के किसी विशिष्ट गुण को कई पीढियों तक स्थिर रखा जा सकता है।

(C) Out crossing: इसे बाह्य संकरण या बाह्य विनिमय के नाम से भी जाना जाता है। इस प्रकार की प्रजनन विधि के अंतर्गत एक ही जाति के परन्तु विभिन्न प्रभेदो के पक्षियों के मध्य संगम करवाया जाता है जैसे सफ़ेद – lighorm का एक विभेद अधिक संख्या में अंडे परन्तु आकार में छोटे ,अंडे उत्पन्न करता है। वही इस जाति का दूसरा विभेद आकार में बड़े तथा संख्या में कम अंडे उत्पन्न करता है। यदि उपरोक्त विधि के द्वारा दोनों का संगम करवाया जाए तो उत्पन्न होने वाली संतति के द्वारा अधिक संख्या में तथा आकार में बडे अंडे उत्पन्न होंगे।

(D) crossing / विनिमय: इस प्रकार की प्रजनन विधि के अन्तर्गत दो भिन्न भिन्न जातियों का संकरण करवाया जाता है तथा उत्पन्न होने वाली संतति हाइब्रिड या hybrid Vigaer (संकर ओज) के नाम से जानी जाती है।

(E) Craging: इस प्रकार की प्रजनन विधि के अंतर्गत शुद्ध जाति के नर पक्षियों का अन्य जाति की मादा पक्षियों के साथ संगम करवाया जाता है। इस प्रकार की विधि को बार बार संपन्न करवाये जाने पर शुद्ध संतति प्राप्त होती है।

नोट : व्यवसायिक स्तर पर मुर्गी पालन के अन्तर्गत संकर या संकर ओज को पाला जाता है।

अंडो का स्फुटन तथा ऊष्मायन (incubation and hatching)

प्रजनन तथा संगम की विधि के फलस्वरूप एक मुर्गी के द्वारा अंडे दिए जाते है तथा उत्पन्न होने वाले अन्डो से चूजो का निर्माण ऊष्मायन की अवधि के पश्चात् होता है तथा कुक्कुट पालन के अंतर्गत पाले जाने वाले विभिन्न पक्षियों की उष्मायन अवधि भिन्न भिन्न होती है। कुछ प्रमुख पक्षियों की ऊष्मायन अवधि निम्न होती है –

मुर्गियों में 21 दिन , तर्की तथा बतख में 28 दिन व जापानी बटेर में 17-18 दिन होती है।

ऊष्मायन की अवधि के दौरान विभिन्न प्रक्रियाएं पायी जाती है जिनमे कुछ प्रमुख निम्न है –

(A) श्वसन , उत्सर्जन , पोषण तथा रक्षण।

नोट : अंडे में विकसित होने वाले भ्रूण के बाहर पायी जाने वाली भ्रूण बाह्य झिल्लियां उपरोक्त कार्यो को सम्भव बनाती है।

पाई जाने वाली बाह्य भ्रूण झिल्लियाँ उल्ब , जरायु तथा अपरा कोशिका के नाम से जानी जाती है।

पाई जाने वाली इन बाह्य भ्रूण झिल्लियो के द्वारा किसी प्रकार के अंग का निर्माण नहीं किया जाता है।

मुर्गी पालन के अंतर्गत भ्रूण के विकास की महत्वपूर्ण भूमिका

एक मुर्गी के द्वारा अंडा देने से पूर्व निषेचन की घटना संपन्न होती है।

अंडा देने तथा ऊष्मायन के बीच किसी प्रकार की गति संपन्न नहीं होती है।

मुर्गी के द्वारा निषेचित अंडे को बाह्य वातावरण में स्थापित करने के पश्चात् ऊष्मायन की क्रिया संपन्न की जाती है तथा इस क्रिया के दौरान निम्न प्रकार का विकास देखा जाता है –

घंटे या दिन (समय)वृद्धि
16 घंटेचूजे के भ्रूण के विकास के प्रथम चिन्ह दिखाई देते है।
20 घन्टेकशेरुक दण्ड का विकास प्रारंभ।
22 घंटेसिरे की रचना प्रारंभ
24 घंटेआँख की रचना प्रारम्भ
42 घंटेह्रदय के धड़कन की शुरुआत
62 घन्टेटांगो की रचना की शुरुआत
64 घंटेपंखो की रचना की शुरुआत
5 वाँ दिनजनन अंगो के निर्माण की शुरुआत तथा लिंग विभेद की शुरुआत
6 वां दिनचोच रचना की शुरुआत
17 वाँ दिननिर्मित होने वाली चोच वायुकोशिका की ओर मुड जाती है।
19 वां दिनपीतक पोष देह गुहा में प्रवेश करना प्रारंभ
20 वाँ दिनपीतक पोष देह गुहा में पूर्ण प्रविष्ट कर जाता है।
21 वाँ दिनअन्डो से चूजे बाहर निकलते है।

नोट : कुक्कुट पालन के अंतर्गत ऊष्मायन की क्रिया हेतु अन्डो के आकार रंग रूप तथा अंडो पर पाए जाने वाले आवरण के संगठन के आधार पर अन्डो का चयन किया जाना चाहिए।

इसके अतिरिक्त दोष परिक्षण के द्वारा पूर्णत: स्वस्थ अंडो को ऊष्मायन की क्रिया के लिए उपयोग किया जाना चाहिए।

किसी असामान्य युक्त अंडो का ऊष्मायन के लिए चयन स्फुटन की क्रिया पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।

सामान्यत: ऊष्मायन की क्रिया प्राकृतिक तथा कृत्रिम दोनों प्रकार से संपन्न की जा सकती है , कृत्रिम रूप से ऊष्मायन की क्रिया Incubator या ऊष्मायक यन्त्र में संपन्न की जाती है तथा उष्मायन की कृत्रिम प्रक्रिया के दौरान 18 दिन तक अंडो को ऊष्मायक यन्त्र में रखा जाता है।

तत्पश्चात 3 दिन तक स्फुटक यन्त्र में hatcher में रखा जाता है।

प्रश्न : कृत्रिम रूप से ऊष्मायन की क्रिया संपन्न किये जाने पर होने वाले लाभों का वर्णन कीजिये।

उत्तर : उपरोक्त क्रिया में होने वाले लाभ निम्न प्रकार से है –

  • इस विधि की सहायता से एक समय में एक साथ अधिक संख्या में चूजे निकाले जा सकते है।
  • मुर्गियों के द्वारा दिए जाने वाले अन्डो का स्फुटन आवश्यकता के अनुसार करवाया जा सकता है।
  • इस क्रिया की सहायता से चूजो को होने वाले संक्रामक रोगों से बचाया जा सकता है।
  • इस तकनीक के उपयोग किये जाने पर अन्डो से चूजे निकलने का प्रतिशत प्राकृतिक ऊष्मायन की तुलना में अधिक होता है।
  • इस विधि के उपयोग से अंडो के देखभाल तथा खर्च में कमी आती है।

अंडे सेना तथा चूजा पालन

मुर्गी के द्वारा अन्डे दिए जाने के पश्चात् अंडे सेने की क्रिया Brooding के नाम से जानी जाती है तथा अंडो से चूजे निकलने के पश्चात् उन्हें पालने की क्रिया Rearing या चुजा पालन कहलाती है।

मुर्गी के द्वारा दिए जाने वाले अंडो को दो प्रकार से सेहा जा सकता है –

  1. प्राकृतिक Brooding: इस प्रकार के अंडे सेहने की क्रिया में मुर्गी स्वयं Brooder का कार्य करती है तथा एक मुर्गी के द्वारा एक समय में लगभग 8 से 10 अंडे सहे जाते है तथा मुर्गी के द्वारा अपने शरीर की गर्मी की सहायता से अंडो से चूजे उत्पन्न किये जाते है।
  2. कृत्रिम ब्रूडिंग: बिना मुर्गी की सहायता के कृत्रिम रूप से अन्डो को सेहने की क्रिया तथा उनके पालन पोषण की क्रिया सामूहिक रूप से कृत्रिम Brooding कहलाती है।

प्रश्न : प्राकृतिक ब्रूडिंग की तुलना में कृत्रिम ब्रूडिंग अधिक लाभदायक होती है , स्पष्ट कीजिये।

उत्तर : कृत्रिम ब्रूडिंग अपनाने से कुक्कुट पालन के अंतर्गत होने वाले लाभ निम्न प्रकार से है –

  • पालन पोषण का कार्य वर्ष के किसी भी माह में सम्पन्न किया जा सकता है।
  • उपरोक्त विधि के द्वारा अधिक संख्या में चूजे पाले जा सकते है।
  • इस विधि में सफाई तथा रोग आदि का पूरा ध्यान रखा जाता है।
  • इस विधि में तापमान नियंत्रित किया जा सकता है।
  • इस विधि के अंतर्गत चूजो को संतुलित आहार दिया जा सकता है।

Brooding House

ऐसा स्थान जहाँ पर चूजो का पालन पोषण किया जाता है ब्रूडिंग ग्रह (ब्रूडिंग हाउस) के नाम से जाने जाते है।

ऐसे स्थानों का निर्माण अंडो से चूजे निकलने से पहले किया जाता है।

एक brooder (ब्रूडर) हाउस को तैयार करने से पूर्व निम्न बिन्दुओ को ध्यान में रखना आवश्यक है –

  • ऐसे स्थान पर वायु का आवागमन सही प्रकार से होना चाहिए।
  • ऐसे स्थान का तापमान नियंत्रित रहना चाहिए।
  • ऐसे स्थान को लू अथवा शीत लहर के सीधी प्रवाह से बचाया जाना चाहिए।
  • ऐसा स्थान बाहरी जन्तुओ से सुरक्षित होना चाहिए।
  • यदि ब्रूडिंग हाउस बड़े क्षेत्रफल में निर्मित किया जाए तो ऐसे क्षेत्रफल को छोटे छोटे भागो में विभाजित करके विभिन्न आयु के चूजों को उनमे पाला जा सकता है।

निर्मित किये जाने वाले ब्रूडर हाउस सामान्यत: निम्न प्रकार के होते है –

  1. Floor Brooder: इस प्रकार का ब्रूडर हाउस बाँस की एक टोकरीनुमा संरचना से निर्मित किया जाता है जिसे सामान्यतया छबड़ी के नाम से जाना जाता है।

इसे दोनों ओर से गोबर तथा चिकनी मिटटी के मिश्रण से लेपा जाता है , वर्तमान समय में ऐसे ब्रूडर हाउस , टिन या एल्युमिनियम की सहायता से भी निर्मित किये जा रहे है।

  1. Battery brooder: इस प्रकार के ब्रूडर हाउस का निर्माण एक सिमित क्षेत्रफल में अधिक चूजो को पालने हेतु किया जाता है।

इस प्रकार के ब्रूडर गृह में एक साथ अधिक संख्या में चूजे पाले जा सकते है तथा इस स्थान पर चूजों को लगभग चार सप्ताह तक रखा जाता है परन्तु यह विधि महंगी होने के कारण अत्यधिक प्रचलित नहीं है।

इस प्रकार के brooder हाउस में चूजों के लिए एक ठण्डा स्थान उपलब्ध करवाया जाता है जिसका उपयोग चूजो के द्वारा आवश्यकता पड़ने पर किया जाता है।

इसे Litter brooder हाउस के नाम से भी जाना जाता है।

  1. Cage brooder house: इस प्रकार के ब्रूडर हाउस बहुमंजिला होते है तथा सर्वाधिक ऊपर मंजिल पर सबसे कम आयु के चूजे रखे जाते है।

ऐसे गृह में भोजन तथा जल की व्यवस्था पृथक स्थान पर की जाती है जिसके कारण रहने वाले स्थान पर चूजो के द्वारा बीट उत्सर्जित नहीं की जाती जिससे चुजो को संक्रमित रोगों से बचाने में सहायता मिलती है।

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