platinum and palladium oxidation state in hindi , पैलेडियम तथा प्लैटिनम ऑक्सीकरण अवस्था

पैलेडियम तथा प्लैटिनम ऑक्सीकरण अवस्था  platinum and palladium oxidation state in hindi

(iii) निकल, पैलेडियम तथा प्लेटीनम्- ऑक्सीकरण अवस्था परिसर में कमी की तथा दोनों भारी तत्वों में असमानताओं की बढ़ती प्रवृत्तियाँ इन तत्वों के लिए भी जारी रहती है। इस स्तम्भ के लिए सर्वोच्च ऑक्सीकरण अवस्था +6 है लेकिन यह केवल PtFg में ज्ञात है। निकल व पैलेडियम + 4 ऑक्सीकरण अवस्था तक ही पहुँच पाते हैं। दूसरी ओर, Pd तथा Pt ऐसी कोई ऋणात्मक ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित नहीं करते। निःसंदेह सभी तत्वों के लिए + 2 अवस्था सबसे अधिक सामान्य तथा स्थायी ऑक्सीकरण अवस्था है। Pt के लिए, इसके अतिरिक्त +4 अवस्था अन्य सामान्य ऑक्सीकरण अवस्था है।

IB वर्ग- तीनों श्रृंखलाओं के अन्त में आने वाले तत्व Cu, Ag तथा Au इस वर्ग का निर्माण करते हैं। यहाँ d कक्षक पूर्ण हो जाने के कारण अत्यधिक स्थाई हो जाते हैं। इसके परिणामस्वरूप, यौगिक निर्माण में इन कक्षकों की भागीदारी बहुत कम सीमा तक हो पाती है जिससे ऑक्सीकरण अवस्था का एक बहुत छोटा परिसर (range) इन तत्वों के लिए देखने को मिलता है। Cu तथा Ag के लिए + 3 से अधिक ऑक्सीकरण अवस्था में कोई यौगिक ज्ञात नहीं हैं तथा Au के कुछ फ्लुओरों यौगिकों में ऐसी उच्च ऑक्सीकरण अवस्थाएँ प्रदर्शित होती है। इन तत्वों के लिए शून्य ऑक्सीकरण अवस्था वाले यौगिक नहीं बनाये जा सकते हैं। विशेष रूप से जलीय विलयन में सामान्यतः पाई जाने वाली ऑक्सीकरण अवस्थाएँ ये हैं : Cu के लिए +2, Ag के लिए + 1 तथा Au के लिए +3 यह इनकी आयनन ऊर्जा से भी मेल खाता है। Ag के प्रथम आयनन ऊर्जा का मान सबसे कम होता है, प्रथम दो आयनन ऊर्जाओं का योग Cu के लिए सबसे कम तथा प्रथम तीन आयनन ऊर्जाओं का योग Au के लिए न्यूनतम पाया जाता है। यहाँ यह अनुभव किया जा सकता है कि लैन्थेनाइड संकुचन का प्रभाव संक्रमण श्रृंखलाओं में यहाँ तक पहुँचते-पहुँचते समाप्त हो जाता है जिसके कारण इस वर्ग के तत्वों में समानता तथा असमानता की प्रवृत्ति लगभग अन्य सामान्य वर्गों जैसी ही पाई जाती है।

  1. चुम्बकीय आचरण (Magnetic behaviour):- संक्रमण धातुओं की रसायन समझने के लिए चुम्बकीय आंकडे बहुत उपयोगी पाये गये है। संक्रमण धातुओं के अधिकांश यौगिक अनुचुम्बकीय (paramagnetic) हैं तथा इनमें से प्रत्येक का एक निश्चित चुम्बकीय आघूर्ण होता है। अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों कारण ही अनुचुम्बकत्व उत्पन्न होता है। चुम्बकीय आघूर्ण प्रयोगों द्वारा निकाला जा सकता है तथा चुम्बकीय आघूर्ण से गणना करके अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या प्राप्त कर ली जाती है। संक्रमण धातु यौगिक में अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या की जानकारी मिलने पर उसकी संरचना, स्टीरियोरसायन, स्पेक्ट्रॉ आदि विशेषताओं की आसानी से व्याख्या की जा सकती है। प्रथम संक्रमण श्रृंखला के धातु आयनों में अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या की गणना निम्न सम्बन्ध द्वारा की जा सकती

जहाँ 11 चुम्बकीय आघूर्ण है, जिसे बोर मैग्नेटॉन (BM) इकाई में मापा जाता है, g को g-गुणक (g- factor) कहते हैं, सभी इलेक्ट्रॉनों की चक्रण क्वाण्टम संख्याओं का योग S है। भारी धातुओं के आयनों के यौगिकों के लिए अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की गणना अधिक जटिल है, क्योंकि भारी संक्रमण तत्वों में अत्यधिक चक्रण–कक्ष युग्मन (Spin- orbit coupling) पाया जाता है जबकि हल्की संक्रमण धातुओं में मात्र चक्रण आधार पर ऊपर दिये गये सम्बन्ध द्वारा चुम्बकीय आघूर्ण की गणना की जा सकती है।

भारी संक्रमण तत्वों की एक प्रमुख विशिष्टता यह है कि निम्न चक्रण यौगिक (4>T7) बनाते हैं, जबकि प्रथम संक्रमण श्रृंखला के तत्व निम्न चक्रण तथा उच्च चक्रण (high spin) दोनों प्रकार के यौगिक बनाते हैं। निम्न चक्रण यौगिक वे होते हैं जिनमें अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या न्यूनतम हो। इसके विपरीत उच्च चक्रण यौगिकों में अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या अधिकतम होती है। संक्रमण धातु आयन में पाँचों d-कक्षक समान ऊर्जा के होते हैं, लेकिन जब ये यौगिक बनाते हैं तो इनका विभाजन हो जाता है जैसा कि चित्र 2.2 में दिखाया गया है। कम ऊर्जा के कक्षक तथा अधिक ऊर्जा के कक्षकों के मध्य ऊर्जा अन्तर को विभाजन ऊर्जा ( Splitting energy) कहते हैं तथा इसे 4 द्वारा प्रदर्शित करते हैं। एक कक्षक में विपरीत चक्रण के दो इलेक्ट्रॉनों को रखने हेतु जो ऊर्जा व्यय करनी पड़ती है उसे युग्मन ऊर्जा (Pairing energy) कहते हैं जिसे द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। उच्च चक्रण यौगिकों के लिए 4 का मान से कम होता है ( 47 ) जबकि निम्न चक्रण के लिए 4 का मान अपेक्षाकृत अधिक होता है (A>7)| भारी तत्वों के यौगिकों में चक्रण के युग्मन की अधिक प्रवृत्ति के दो मुख्य कारण हैं। प्रथम तो

यह कि भारी तत्वों के लिए इलेक्ट्रॉन युग्मन ऊर्जा (7) का मान हल्के तत्वों की तुलना में कम होता है इसका कारण यह है कि 3dकक्षकों की तुलना में 4d तथा 5d कक्षकों का आकार अधिक बड़ा होता है। बड़े क्षेत्र में दो इलेक्ट्रॉनों के रहने से उनके मध्य दुर्बल पारस्परिक क्रिया होती है जिसके कारण युग्मन ऊर्जा का मान भी अपेक्षाकृत कम होता है। दूसरा कारण यह है कि धातु से बंधित सभी लिंगडों के किसी एक क्षेत्र (Field) द्वारा 3d कक्षकों का विभाजन ऊर्जा का मान न्यूनतम (4 का मान सबसे कम ) तथा 5d कक्षकों का अधिकतम विभाजन ऊर्जा का मान (4 का सर्वाधिक मान) होता है। इसके परिणामस्वरूप प्रबल फील्ड वाले लिगन्ड सभी d कक्षकों (3d, 4d तथा 5(d) का इतना अधिक विभाजन कर देते हैं कि 4 का मान से अधिक होता है जिससे निम्न चक्रण संकुलों का निर्माण होता है। दूसरी ओर दुर्बल फील्ड लिगन्डों द्वारा 3d कक्षकों का विभाजन कम होता है

यह पाया जाता है कि जिन धातु आयनों में अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या समान है उनके निम्न चक्रण वाले संकुलों के चुम्बकीय आघूर्ण भिन्न-भिन्न हो सकते हैं। उदाहरण के लिए Cr (II). Mn(III) तथा Os(IV) जब निम्न चक्रण संकुल बनाते हैं तो उनमें दो अयुग्मित इलेक्ट्रॉन होते हैं ((12g विन्यास) तथापि Cr(II) तथा Mn (III) संकुलों के चुम्बकीय आघूर्ण लगभग 3.6BM होते हैं जबकि Os (IV) * संकुलों के चुम्बकीय आघूर्ण का मान 1-2 BM के निकट होता है। इन सभी तन्त्रों में दो अयुग्मित इलेक्ट्रॉन हैं। सैद्धान्तिक रूप से दो अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों (S = 1 ) के लिए चुम्बकीय आघूर्ण का अपेक्षित मान पूर्व में दिये गये सूत्र द्वारा निकाला जा सकता है सूत्र मg = 2 तथा S = 1 रखने पर = 2.83 प्राप्त होता है जिससे Cr(II) Mn(III) के चुम्बकीय आघूर्ण मान उच्च है जबकि Os (IV) का चुम्बकीय आघूर्ण इससे कम हैं। प्रथम श्रृंखला के उपर्युक्त धातु आयनों के संकुलों के लिए अपेक्षा से अधिक चुम्बकीय आघूर्ण का पाया जाना अवमनित (Unquenched) कक्षीय कोणीय संवेग के योगदान के कारण है। Q (IV) तथा इसी प्रकार अन्य भारी धातु आयनों के लिए अपेक्षा से कम मान की व्याख्या इतनी आसानी से नहीं की जा सकती क्योंकि इनके लिए चक्रण-कक्षीय युग्मन स्थिरांक (spin- orbit coupling constant). Â का मान उच्च होता है। तुलनार्थ, Cr (II) तथा Mn (III) के लिए 2 का मान काफी कम होता है। यह बिल्कुल स्पष्ट होना चाहिए कि उच्च चक्रण-कक्षीय युग्मन स्थिरांक वाले द्वितीय तथा कक्षीय तापक्रम पर जो चुम्बकीय आघूर्ण पाये जाते हैं, उनकी तृतीय संक्रमण श्रृंखला के धनायनों व्याख्या यौगिकों में उपस्थित अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की सहायता से तभी की जा सकती है जब चुम्बकीय आघूर्ण के माप एक लम्बे तापक्रम परिसर पर लिये जायें। निकल वर्ग तत्वों के लिए भी उपर्युक्त प्रकार का परिवर्तन देखने को मिलता है । Ni (II) के चतुष्फलकीय, वर्गाकार समतलीय, वर्गाकार पिरॅमिड त्रिभुजीय द्विपिरेमिड तथा अष्टफलकीय उपसहसंयोजन यौगिक ज्ञात हैं। तथापि, इस वर्ग के भारी तत्वों का युग्म Pd (II) तथा Pt (II), जो संकुल बनाता है वे लगभग सभी निम्न चक्रण तथा वर्गाकार समतलीय हैं।