संसदात्मक शासन प्रणाली की विशेषताएं | संसदात्मक शासन प्रणाली क्या है के गुण दोषों का वर्णन कीजिए

संसदात्मक शासन प्रणाली क्या है के गुण दोषों का वर्णन कीजिए संसदात्मक शासन प्रणाली की विशेषताएं parliamentary government system in india in hindi ?

प्रस्तावना
संसदीय प्रणाली शब्द-पद दो मुख्य अर्थों में प्रयोग किया जाता है। एक विस्तृत अर्थ में, यह उन सभी राजनीतिक व्यवस्थाओं को इंगित करती है जहाँ वित्त-प्रबंध समेत विधि-निर्माण हेतु उत्तरदायित्व संभाले हुए जनता के निर्वाचित प्रतिनिधियों की एक सभा विद्यमान होती है। ‘संसद‘ शब्द अंग्रेजी के ‘पार्लिअमॅन्ट‘ शब्द का अनुवाद है जो फ्रैंच शब्द ‘पार्लि‘ से निकला है जिसका अर्थ है बात करना अथवा संधि-वार्ता करना। यह शब्द सम्मेलनों का वर्णन करने में भी प्रयुक्त होता था, जैसे 1245 में फ्रांस सम्राट् तथा पोप के बीच होने वाले विचार-विमर्श। धीरे-धीरे यह शब्द उन व्यक्तियों के निकाय के लिए प्रासंगिक हो गया जो सरकारी नीतियों एवं वित्त-साधनों पर चर्चा करने व उन्हें स्वीकृति प्रदान करने हेतु एकत्रित होते हैं। सरकार के अन्य दो अंगों की अपेक्षा जनता व जनमत के अधिक करीब रहने वाली संसद जनता की परम इच्छा का प्रतिनिधित्व करने का दम भरती है। अधिक सर्वमान्य रूप से, शब्द-पद संसदीय प्रणाली अथवा ‘संसदीय सरकार‘ एक ऐसी व्यवस्था को इंगित करती है जो अध्यक्षीय प्रणाली वाली सरकार से भिन्न होती है। अध्यक्षीय प्रणाली वाली सरकार से भिन्न, जो शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत पर आधारित होती है, संसदीय प्रणाली में सरकार के कार्यकारी तथा विधायी अंगों का संयोग होता है। एक संसदीय सरकार के अभिलक्षणों की जाँच-परख करने से पहले चलिए देखते हैं कि ब्रिटेन में संसदीय प्रणाली कैसे विकसित हुई।

 क्रम-विकास
ब्रिटिश संसद की जड़ें तेरहवीं शताब्दी में तलाशी जा सकती हैं जब ग्रेट ब्रिटेन के किंग जॉन ने कर उगाही की आवश्यकता और उनके तरीकों पर उसे सलाह देने के लिए कुछ विचारशील नाइंटों व अन्य भद्रजनों की सभा बुलाई। ये सभाएँ सार्वजनिक महत्त्व के विशिष्ट विषयों पर सम्राट को सलाह देने के लिए भी प्रयोग की जाती थीं। इन सभाओं को पार्लियामेण्ट (पार्लिमेण्ट) कहा जाता था। एडवर्ड प्रथम के शासन के दौरान, एक प्रतिरूप संसद बुलाई गई। इसको प्रतिरूप इसलिए कहा गया क्योंकि यह ब्रिटिश समाज के एक प्रतिनिधित्व समूह को प्रतिरूप प्रदान करती थी। पोप तथा स्पेन के राजाओं के विरुद्ध अपने संघर्ष में, ट्यूडर वंश ने अपनी कार्रवाइयों को वैध ठहराने के लिए पार्लियामेण्ट की स्वीकृति माँगी। इस प्रक्रिया के दौरान, नियमों, करों, धार्मिक व विदेश-नीतियों के लिए पार्लियामेण्ट की स्वीकृति लेने की प्रथा को व्यापक स्वीकृति मिली। स्टुअर्ट शासन के दौरान, धार्मिक व विदेश नीतियों पर राजाओं तथा पार्लियामेण्ट के बीच एक संघर्ष छिड़ा जिसने एक गृह-युद्ध की ओर प्रवृत्त किया जो राजद्रोह के लिए किंग चार्ल्स (1649) को प्राणदण्ड तथा रक्तहीन क्रांति (1688) में किंग जेम्स द्वितीय के अपदस्थ होने में परिणत हुआ। राजाओं को मानना पड़ा कि पार्लियामेण्ट की सहमति के बगैर कोई कानून पास नहीं किया जा सकता है न ही कर लगाया जा सकता है, और यह भी कि राजा का ताज पार्लियामेण्ट की वजह से ही है।

अठारहवीं सदी के प्रारम्भ में किंग जोर्ज प्रथम के शासन के दौरान, मंत्रिमण्डल की व्यवस्था साकार होने लगी। जर्मन मूल के होने के कारण किंग जोर्ज अंग्रेजी नहीं बोल पाते थे और ब्रिटिश राजनीति में उनकी दिलचस्पी नहीं थी। उसकी प्रवृत्ति शासन के वास्तविक कार्यों को अपने मुख्यमंत्रियों अथवा प्रशासकों पर डाल देने की थी जो राजा को सलाह देने के लिए नियमित रूप से मिलने लगे। ये मंत्री पार्लियामेण्ट के सदस्यों से चुने जाते थे ताकि वे उस निकाय को चला सकें और करों के लिए आवश्यक नियम अथवा प्रस्ताव पास करा सकें। उन्होंने स्वयं को एक परिषद् में एकजुट किया जिसे आज कैबिनेट अथवा मंत्रिपरिषद् के रूप में जाना जाता है यानी एक प्रकार का संघ सदृश कार्यकारी समूह । पार्लियामेण्ट के सदस्यों को कैबिनेट द्वारा निर्देश व सलाह देने का कार्य किया जाता था, और शीघ्र ही पार्लियामेण्ट तथा कैबिनेट मिलकर ब्रिटेन की सरकार बन गए। किंग जोर्ज द्वितीय भी चुंकि जर्मन मूल के थे, ने भी उस प्रथा को जारी रखा। जब किंग जोर्ज तृतीय, एक जन्मजात ब्रिटिश तथा अंग्रेजी भाषी ने सिंहासन सम्भाला, यह संसदीय प्रणाली भली भाँति स्थापित हो गई।

कैबिनेट के भीतर, कैबिनेट सभाओं की अध्यक्षता करने तथा उसके निर्णयों को स्वयं तक पहुँचाने के लिए राजा एक व्यक्ति विशेष पर भरोसा करने लगा जिसे प्राइम मिनिस्टर अर्थात् प्रधानमंत्री कहा जाता था। सर रॉबर्ट वालपोल (1721-42) प्रधानमंत्री के पद को सुशोभित करने वाले प्रथम व्यक्ति थे। इस पद की पूर्व-प्रतिष्ठा पिट द एल्डर, पिट द यंग, डिजरायली तथा ग्लैडस्टोन जैसे प्रधानमंत्रियों की योग्यताओं द्वारा सुदृढ़ की गई। एक ओर 1832 के सुधारों के बाद राजनीतिक बलों के पुनर्गठजोड़ के उपरांत लिबरल (उदारवादी) तथा कन्जर्वेटिव (रूढ़िवादी) पार्टियों के उदय से और दूसरी ओर मताधिकार के प्रसार से प्रधानमंत्री की स्थिति मजबूत हो गई। प्रधानमंत्री देश का नेता तथा सरकार का मुखिया बन गया।

वैस्टमिन्सटर गवर्नमेण्ट के नाम से भी विख्यात (चूँकि पार्लियामेण्ट वैस्टमिन्सटर, लन्दन में स्थित है), ब्रिटिश संसदीय प्रणाली के कुछ अनूठे अभिलक्षण हैं। प्रथम, ऐसा कोई एक भी दस्तावेज नहीं है जिसका संदर्भ संविधान के रूप में लिया जा सके। व्यवस्थाएँ व प्रथाएँ औपचारिक समझौतों के माध्यम से विकसित हुई हैं। दूसरे, किसी लिखित संविधान के अभाव में इसमें कोई भी विशेष संशोधन प्रक्रिया नहीं है। ब्रिटिश संसद में काफी लचीलापन है। अक्सर संसदीय सर्वोच्चता के रूप् में व्याख्यायित, ब्रिटिश संसद के पास किसी कानून को बनाने अथवा किसी बने हुए कानून को संशोधित करने का, न्यायपालिका द्वारा मान्य, अपरिमित अधिकार है। किसी भी अन्य निकाय अथवा न्यायालय को इसके विधान को नाजायज ठहराने अथवा रद्द करने का अधिकार नहीं है। यद्यपि, ब्रिटिश प्रणाली के अनुसार प्रतिरूपित विधायिकाओं को मिलाकर, विश्व की कुछ ही विधायिकाएँ सभी संवैधानिक मर्यादाओं के इस अर्थ में स्वतंत्र हैं। वैस्टमिन्सटर गवर्नमेण्ट की तर्ज पर प्रतिरूपित संसदीय लोकतंत्रों के क्या अभिलक्षण हैं? एक संसदीय लोकतंत्र होने का क्या अर्थ है?

 सरकार की संसदीय प्रणाली के अभिलक्षण
एक संसदीय लोकतंत्र अथवा संसदीय प्रणाली होने से क्या अभिप्राय है? इस प्रणाली वाली सरकार के क्या मुख्य अभिलक्षण हैं? संसदीय लोकतंत्र एक स्वतंत्र निकाय में कार्यकारी तथा विधायी शक्तियों के संयोग द्वारा अभिलक्षित है। यह कार्यकारिणी, कैबिनेट मंत्रिगण, संसद-सदस्यों के रूप में बैठते हैं और कार्यकारी तथा विधायी शक्ति विलयीकरण में एक दोहरी भूमिका निभाते हैं। वे जो विधान को कैबिनेट सदस्यों के रूप में उपयुक्त बताते हैं, इसी विधान को शासी विधायिका के सदस्यों के रूप में भी बहुमत से स्वीकार करते हैं। आदर्शःपतः, कैबिनेट तथा संसद में बहुमत दल अथवा दल-गठजोड़ के शेष सदस्य ही सरकार हैं। सरकार के पास, एक अर्थ में, एक स्वचल बहुमत होता है और अधिकतर निर्णय इन्हीं समूहों के बीच से ही किए जाते हैं। चूंकि कार्यकारिणी संसद में बहुमत समर्थन के आधार पर चुनी जाती है न कि सीधे चुनी जाती है, सरकार केवल संसद के प्रति जवाबदेह होती है।

दूसरे, सरकार की कार्यकारी शाखा राज्य के एक प्रायः औपचारिक मुखिया (राजा) और सरकार के मुखिया (प्रधानमंत्री) के बीच बँटी है जो अधिकांश कार्यकारी शक्तियों का प्रयोग करता है और संसद के प्रति उत्तरदायी होता है। राज्य-प्रमुख का काम शासन करना नहीं बल्कि यह देखना है कि कोई सरकार अवश्य हो। जब कोई संकट खड़ा होता है, किसी गठबन्धन सरकार के गिर जाने से अथवा किसी राष्ट्रीय आपास्थिति से, राज्य-प्रमुख की जिम्मेदारी है कि सरकार बनाने का किसी व्यक्त्ति को चुने और शासी कारोबार आगे बढ़ाए। प्रधानमंत्री सरकार-प्रमुख होता है, जिसका कार्य है नीति बनाना और अपने मातहतों के माध्यम से कानून सुझाना। प्रधानमंत्री कैबिनेट का नेतृत्व करता है और इसी कारण सरकार का भी। राज्य-प्रमुख ‘बागडोर सम्भालता है परन्तु शासन नहीं करता‘।

संसदीय लोकतंत्र का अर्थ है – कॅलीजियल यानी संघ-सदृश्य कार्यकारिणी। यद्यपि प्रधानमंत्री मुख्य कार्यकारी होता है, वह कोई असाधारण कार्यकारी नहीं होता। संघ-सदश्य कार्यकारिणी मंत्रियों (कैबिनेट) का.एक समूह होता है जिनको एक गुट्ट के रूप में निर्णय लेने चाहिए और विधान के उपयुक्त बताए जाने अथवा नीतियाँ प्रस्तावित किए जाने से पूर्व आम सहमति बनानी चाहिए। मंत्रिगण अपनी कार्रवाइयों के लिए संसद के प्रति वैयक्तिक तथा सामूहिक, दोनों रूप से उत्तरदायी होते हैं।

संसदीय लोकतंत्र का अर्थ दलगत उत्तरदायित्वाधारित एक लोकतंत्र भी है। जैसा कि हमने देखा, बहुमत दल अथवा संसद में बहुमत-उच्च दलों का एक गठजोड़ सरकार बनाता है। एक संसदीय प्रणाली में राजनीति दल एक स्पष्टतः परिभाषित घोषणा-पत्र रखते हैं और विस्तृत विषय-वैविध्य के सम्बन्ध में पार्टी की स्थिति क्या है, बताई गई होती है। पार्टी घोषणा-पत्र का यथासंभव सामञ्जस्य के साथ अनुपालन किया जाता है। यदि कैबिनेट विधान का कोई ऐसा अंश सुझाती है जो पार्टी घोषणा-पत्र में दिए गए किसी वचन का पालन करता है, बहुमत दल घोषणा-पत्र के सभी सदस्यों को उस विधि विशेष हेतु मतदान करना होगा। ऐसा न करना पार्टी के रोष को आमंत्रण देना और तदोपरांत उस पार्टी का टिकट लेकर अगले चुनाव में नामांकित किए जाने से वंचित किया जाना होगा। एक संसदीय प्रणाली में सरकार, इसीलिए अधिकांश विषयों पर एक सुदृढ़ बहुमत और अपनी अभिलाषा को सामान्यतः अभिभावी रखती है। अल्पमत दल इन विषयों, कानूनों व प्रस्तावों पर बहस कर सकते हैं। और सुझाए गए संशोधनों के माध्यम से वे छुट-पुट परिवर्तन कराने में सफल भी हो सकते हैं। बहरहाल, अल्पमत बहुमत द्वारा लाए गए किसी विधेयक को तब तक निष्फल बिल्कुल भी नहीं कर सकता जब तक पार्टी उत्तरदायित्व का नियम लागू रहता है।

बोध प्रश्न 1
नोट: क) अपने उत्तर के लिए नीचे दिए गए रिक्त स्थान का प्रयोग करें।
ख) अपने उत्तरों की जाँच इकाई के अन्त में दिए गए आदर्श उत्तरों से करें।
1) संसदीय प्रणाली वाली सरकार का एकमात्र सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अभिलक्षण क्या है?
2) ‘संघ-सदृश्य कार्यकारिणी‘ शब्द-पद का क्या अर्थ है? .

बोध प्रश्न 1 उत्तर
1) संसदीय प्रणाली में सरकार का कार्यकारी तथा विधायी अंगों का विलय होता है जबकि अध्यक्षीय प्रणाली वाली सरकार सरकार के तीन अंगों के बीच शक्ति-विभाजन के सिद्धान्त पर आधारित होती है।
2) इसका कार्य है कि कार्यपालिका एकाधिक है। प्रधानमंत्री कैबिनेट प्रमुख हो सकता है, परन्तु लिए गए निर्णयों को कैबिनेट का सामूहिक समर्थन प्राप्त होना चाहिए क्योंकि मंत्रीगण विधायिका के प्रति सिर्फ व्यक्तिगत रूप में नहीं बल्कि सामूहिक रूप से उत्तरदायी होते हैं ।

 सारांश
सरकार के मंत्रिमण्डलीय स्वरूप अथवा प्रधानमंत्रीय स्वरूप में भी जाने जाने वाली संसदीय प्रणाली ने ऐतिहासिक रूप से सार्वजनिक अधिकारों के लिए राजाओं के विरुद्ध संघर्ष का नेतृत्व किया। हमने देखा कि यद्यपि संसदीय सरकार का उद्भव ब्रिटेन में हुआ, यह अनेक देशों द्वारा अपनायी गई है – समुचित परिवर्तनों के साथ विकासशील तथा विकसित, दोनों देशों में । भारत में संसदीय प्रणाली के कुछ आधारभूत लक्षण निम्न प्रकार हैं:
ऽ संसद में दल प्रतिनिधित्व अथवा गठबंधन शक्ति पर आधारित संसदीय चुनावों के परिणामस्वरूप बनी एक सरकार,
ऽ इस प्रणाली का आधारभूत लक्षण है राजनीतिक बहुवाद जो एक विषमजातीय राज्य-व्यवस्था के हितों व आकांक्षाओं को प्रकट करती नानारूप विचारधाराओं तथा लक्ष्यों वाले प्रतिस्पर्धी राजनीतिक दलों की विद्यमानता को स्वीकृति देता है,
ऽ मंत्रिगण अथवा वास्तविक कार्यकारिणी (सरकार) के सदस्य के संसद उन दलों से लिए जाते हैं जो संसद में बहुमत रखते हैं अथवा गठबंधन के घटक होते हैं,
ऽ सरकार संसद के प्रति जिम्मेदार और जवाबदेह होती है, इस अर्थ में कि यह संसद के विश्वास पर टिकी होती है और उस विश्वास के अभाव में हटाई जा सकती है,
ऽ सरकार संसद भंग करने की सिफारिश कर सकती है और उस स्थिति में एक आम चुनाव करवा सकती है जब कोई भी दल सरकार बनाने की स्थिति में न हो, यानी कि चुनावीय शर्ते सामान्यतः एक अधिकतम सीमा की भीतर सुनम्य होती हैंय संसदीय कार्यपालिका सामूहिक होती है और शक्ति प्रसार की प्रकृति संघ स्वरूप होती है,
ऽ सरकार-प्रमुख और राज्य-प्रमुख के पद अलग-अलग होते हैं जहाँ राष्ट्रपति संविधानसम्मत नाममात्र का अध्यक्ष और प्रधानमंत्री, मंत्रिपरिषद् का अग्रणी, वास्तविक कार्यकारी होता है।

 कुछ उपयोगी पुस्तकें
ए.आर. देसाई, स्टेट एण्ड सॉसाइटी इन् इण्डिया: एस्सेज इन् डिसेण्ट, पॉपुलर प्रकाशन, बम्बई, 1975।
एन्थनी जे. पैरल (ज्प.), गाँधी – हिन्द स्वराज एण्ड अदर राइटिंग्स, कैम्ब्रिज टैक्ट्स मॉडर्न पॉलिटिक्स, नई दिल्ली, कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस, 1997।
एण्ड्रयू हेवुड की कॉन्सैपट्स इन पॉलिटिक्स, मैकमिलन प्रैस लिमिटेड, ग्रेट ब्रिटेन, 2000।
जय प्रकाश नारायण, ‘ए प्ली फॉर रिकंसट्रक्शन ऑव इण्डियन पॉलिटी‘, विमल प्रसाद (सं.) कृत ए रिवल्यूशनरीश्ज क्वैस्ट: सिलेक्टिड राइटिंग्स ऑव जे.पी. नारायण में, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, दिल्ली 1980।
पॉल ब्रास, दि पॉलिटिक्स ऑव इण्डिया सिन्स इण्डिपेण्डेन्स, कैम्ब्रिज य युनिवर्सिटी प्रैस, प्रथम संशोधित भारतीय संस्थान, 1922।

एक संसदीय लोकतंत्र होने का अर्थ
इकाई की रूपरेखा
उद्देश्य
प्रस्तावना
क्रम-विकास
सरकार की संसदीय प्रणाली के अभिलक्षण
भारत में संसदीय प्रणाली
सारांश
कुछ उपयोगी पुस्तकें
बोध प्रश्नों के उत्तर

 उद्देश्य
संसदीय प्रणाली – संस्थाएँ और प्रक्रियाएँ – ब्रिटेन में विकसित हुई और अनेक देशों द्वारा परिष्कृत कर अपनायी गई है। यह इकाई भारत के विशेष संदर्भ के साथ एक संसदीय प्रणाली के अभिलक्षणों की जाँच करती है। इस इकाई को पढ़ने के बाद, आप इस योग्य होंगे कि
ऽ एक संसदीय लोकतंत्र का अर्थ स्पष्ट कर सकें,
ऽ सरकार की संसदीय प्रणाली के विकास का सूत्रबद्ध वर्णन कर सकें,
ऽ सरकार की संसदीय प्रणाली के अभिलक्षणों को पहचान सकें, और
ऽ भारत में विद्यमान संसदीय प्रणाली का मूल्यांकन कर सकें।