परमात्मा क्या है | परम आत्मा की परिभाषा किसे कहते है अर्थ मतलब कौन है Paramatman in hindi

Paramatman in hindi meaning definition परमात्मा क्या है | परम आत्मा की परिभाषा किसे कहते है अर्थ मतलब कौन है ? 

हेगल (Hegel) : हेगल ने मानव इतिहास को तीन युगों में विभाजित किया जो कि ‘‘परम आत्मा‘‘ के विकास से जुड़े हुए हैं। यह परम आत्मा क्या है। यह उस शक्ति का नाम है जो व्यक्तिगत और वस्तुगत तत्वों का एकीकरण है । साधारण शब्दों में यह मनुष्य और सामाजिक राजनीतिक व्यवस्था के बीच तर्कशास्त्रीय एकता है। इतिहास के पहले दौर या युग में यह परम आत्मा, कला का रूप लेती है। दूसरे युग में ष्धर्मष् का, तीसरे व अंतिम युग में ष्सम्पूर्ण ज्ञान का रूप लेती है। दूसरे युग में मनुष्य ईश्वर के बारे में सोचने लगता है। हेगल कहता है कि मनुष्य और ईश्वर का संबंध मनुष्य और मनुष्य के संबंध में प्रतिबिंबित होता है। इससे दो बातें स्पष्ट होती हैं, पहली बात यह है कि मनुष्य जीवन आदर्श या दिव्य क्षेत्र/जगत का भौतिक रूपांतर है, दूसरी ओर धर्म यह दर्शाता है कि मनुष्य किस प्रकार अपने बारे में सोचता है या अपनी कल्पना करता है। यदि हम पहली बात को बढ़ाये तो हम देख सकते हैं कि धर्म वह नींव है जिस पर अनेक सामाजिक व्यवस्थाएँ या आदि संरचना टिकी हुई है। ईसाई धर्म का उदाहरण देते हुए हेगल कहता है कि इसके उदय के कारण ही उदारवादी राष्ट्र पनप सकें। हेगल की विचारधारा में एक कमी है। यह सही है कि वह मनुष्य और ईश्वर के भेद को खत्म अवश्य करता है, पर ऐसा मालूम होता है कि धार्मिक विचारों का उच्च मार्गदर्शक शक्ति के रूप में स्वतंत्र अस्तित्व है। फिर भी यह बात विवादास्पद है।

उद्देश्य
इस इकाई को पढ़ने के बाद, आप,
ऽ धर्म एवं अर्थव्यवस्था के बीच के संबंध को व्यक्त कर सकेंगे,
ऽ पूँजीवाद के विकास में धर्म की भूमिका पर चर्चा कर सकेंगे,
ऽ क्या हिंदू धर्म के कारण भारत में पुँजीवाद पनप न सका? इस प्रश्न पर विचार कर सकेंगे, और
ऽ क्या हिंदू धर्म भारत के विकास को रोक रहा है? इस प्रश्न का उत्तर दे सकेंगे।

प्रस्तावना
जैसा कि आप जानते हैं, यह पाठ्यक्रम समाज एवं धर्म से संबंधित है। इन इकाइयों से आप जान सकेंगे कि किस प्रकार समाजशास्त्री धर्म के उद्गम, कार्य और संगठन का अध्ययन कर धर्म को समझने का प्रयास करते हैं। विभिन्न सामाजिक प्रथाओं के आपसी संबंध समाजशास्त्रियों के लिए आमतौर पर विशेष रुचि रखते हैं। विशेषतः इस खंड 2 में आप धार्मिक अनुष्ठानों और रीति-रिवाजों के विषय में पढ़ने के बाद धर्म एवं आर्थिक और धर्म एवं राजनीति के बारे में अध्ययन करेंगे।

इकाई 10 में धर्म एवं आर्थिक व्यवस्था के मद्देनजर विभिन्न पहलुओं पर चर्चा होगी। अनुभाग 10.3 में इस विषय के सामान्य पहलुओं को समझने के बाद अनुभाग 10.4 में धर्म और एक विशिष्ट प्रकार की आर्थिक प्रणाली अर्थात पूँजीवाद पर व्यापक चर्चा की जायेगी। इस क्षेत्र में कार्ल मार्क्स और मैक्स वेबर के महत्वपूर्ण योगदान रहे हैं।

भारत के संदर्भ में कार्ल मार्क्स और वेबर के विचार विशेष महत्व के हैं। अनुभाग 10.5 में इसी बात पर चर्चा होगी। इस इकाई को पढ़ने के बाद, भारत के आर्थिक विकास (या अल्पविकास) और हिन्दू धर्म के बीच यदि कोई संबंध है तो, आप उस विषय पर अपने विचार व्यक्त कर सकेंगे।

कुछ उपयोगी पुस्तकें
गिडन्स एॅथोनी (1985) ‘‘कैपिटलिज्म एण्ड मॉडर्न सोशल थियोरी” केम्ब्रिजय केम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस
मार्क्स के. और इंगलस्स एफ (1976) “ऑन रिलिजन मास्को‘‘: प्रोग्रेस
राबर्टसन, रोलंड (1987) ‘‘ईकनामिक्स एण्ड रिलिजन‘‘ इन ईलियाड, एम (संपादक)
इनसायक्लोपीडिया ऑफ रिलिजन, न्यूयार्क: मैकमिलन, खंड 6, पृष्ठ 1 से।
सिंगर, मिल्टन एट. आल. (संपादक) (1975) ‘‘ट्रेडिशनल इंडिया: स्ट्रक्चर एण्ड चेंज‘‘

साराश
इकाई 10 का मुख्य उद्देश्य था धर्म एवं आर्थिक व्यवस्था के बीच के संबंध को समझाना। अनुभाग 10.2 में हमने दिखाया कि किस प्रकार धार्मिक मान्यताएँ और मूल्य रोजमर्रा की हमारी बोल-चाल को प्रभावित करते हैं। आर्थिक क्षेत्र, अर्थात उत्पादन, वितरण और उपभोग, में धर्म की मूलभूत भूमिका के विषय में आपने अनुभाग 10.3 में अध्ययन किया। अनुभाग 10.4 में हमने एक विशिष्ट प्रकार की आर्थिक व्यवस्था, अर्थात पूँजीवाद को चुनकर धर्म और पूँजीवाद के संबंध पर चर्चा की। इस चर्चा में मार्क्स और वेबर ने हमारी सहायता की। अनुभाग 10.4.1 में हमने पढ़ा कि कार्ल मार्क्स ने धर्म को सामाजिक शोषण छुपाने वाले यंत्र के रूप में देखा । वह मानता था कि धर्म काल्पनिक मात्र है, और सामाजिक शोषण के अंत के साथ-साथ धर्म भी समाप्त होगा। अनुभाग 10.4.2 में मैक्स वेबर के प्रसिद्ध अध्ययन के बारे में आपने पढ़ा जिसमें उसने प्रोटेस्टैंट विचारधारा और पूँजीवादी मनोवृत्ति के संबंध को देखा।

आपने देखा कि किस प्रकार कैल्विन के नये विचारों ने पूँजीवादी मनोवृत्ति को प्रोत्साहित किया। प्रोटेस्टेंटवाद के इस अध्ययन द्वारा वेबर समझा कि विचार और विकास किस प्रकार एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। अनुभाग 10.5 में हमने हिंदू धर्म और आर्थिक व्यवस्था के संबंध के विषय में पढ़ा। इस भाग में हमने वेबर के उस कथन पर विशेष ध्यान दिया कि हिंदू विचारधारा पूँजीवाद के उदय और विकास को बढ़ावा देने में असमर्थ हैं इस कथन का मूल्यांकन कर भारत की 40 साल की विकास यात्रा की समीक्षा की गई। अंततः हम इस नतीजे पर पहुँचे कि मार्क्स और वेबर ने भारत और खासतौर पर हिंदू धर्म को पूरी तरह से समझा नहीं, क्योंकि उनके पास इसकी पर्याप्त जानकारी नहीं थी।