हीरालाल शास्त्री पर डाक टिकट कब जारी किया गया | पंडित हीरालाल शास्त्री स्मारक टिकट pandit hiralal shastri post ticket

pandit hiralal shastri post ticket in hindi हीरालाल शास्त्री पर डाक टिकट कब जारी किया गया | पंडित हीरालाल शास्त्री स्मारक टिकट ?
उत्तर : पंडित हीरालाल शास्त्री को सम्मान देने के लिए भारतीय डाक एवं तार विभाग ने नवम्बर 1976 में उनके नाम पर एक डाक टिकट जारी किये गया | हमारे समाज आदि में शास्त्री जी के योगदान को इसके द्वारा दर्शाया गया है कि उनका योगदान अभूतपूर्व और सम्मानजनक है |
प्रश्न : पंडित हीरालाल शास्त्री के बारे में जानकारी दीजिये ?
उत्तर : महिला शिक्षा के क्षेत्र में अविसमरणीय योगदान करने वाले हीरालाल शास्त्री जी का जन्म जोबनेर (जयपुर) में हुआ। राज्य में जनजागृति के पुरोधा और राज्य के पहले मुख्यमंत्री होने के साथ साथ वे स्वतंत्रता सेनानी तथा शिक्षाविद भी रहे। अपनी आत्मकथा ‘प्रत्यक्ष जीवन शास्त्र’ तथा लोकप्रिय गीत “प्रलय प्रतीक्षा नमों नमों” लिखकर एक लेखक और गीतकार के रूप में भी प्रसिद्धि पाई। पंडित जी ने 1935 ईस्वीं में “जीवन शिक्षा कुटीर” के नाम से वनस्थली में शिक्षण संस्थान बनाया जो वनस्थली विद्यापीठ के रूप में तब से ही कार्यरत है तथा भारत में महिला शिक्षा का मुख्य केंद्र है। शास्त्री जी महिला शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए याद किये जाते है।

प्रश्न : राजस्थान के स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं का योगदान बताइए। 

उत्तर : राजस्थान में राजनितिक चेतना तथा नागरिक अधिकारों के लिए अनवरत चले आंदोलनों में महिलाओं की भूमिका भी शलाघनीय रही। 1930 से 1947 तक अनेक महिलाएं जेल गयी। इनका नेतृत्व करने वाली साधारण गृहणियाँ ही थी , जिनकी गिनती अपने कार्यों और उपलब्धियों से असाधारण श्रेणी में की जाती है। इनमें अजमेर की प्रकाशवती सिन्हा , अंजना देवी (पत्नी रामनारायण चौधरी) , नारायण देवी (पत्नी माणिक्यलाल वर्मा) , रतन शास्त्री (पत्नी हीरालाल शास्त्री) आदि प्रमुख थी। बिजौलिया आन्दोलन के दौरान अनेक स्त्रियों ने भी भाग लिया जिनमें श्रीमती विजया , श्रीमती अंजना , श्रीमती विमलादेवी , श्रीमती दुर्गा , श्रीमती भागीरथी , श्रीमती तुलसी , श्रीमती रमादेवी जोशी तथा श्रीमती शकुन्तला गर्ग ने भाग लेते हुए सत्याग्रह किया और बड़े साहस के साथ पुलिस दमन चक्र का सामना किया। अनेक किसान महिला सत्याग्रहियों को गिरफ्तार किया गया तथा उन्हें विभिन्न अवधि के कारावास का दंड दिया गया।
1930 ईस्वीं के नमक सत्याग्रह से महिलाओं में राजनितिक चेतना का आरम्भ हुआ। जब राजस्थान में राजनितिक चेतना तथा नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष का बिगुल बजा तो महिलायें भी इसमें कूद पड़ी और पुरुषों के साथ वे भी सत्याग्रहों में खुलकर भाग लेने लगी।
1942 ईस्वीं की अगस्त क्रांति में छात्राओं ने अद्भुत शौर्य का प्रदर्शन किया। रमा देवी पांडे , सुमित्रा देवी खेतानी , इंदिरा देवी शास्त्री , विद्या देवी , गौतमी देवी भार्गव , मनोरमा पण्डित , मनोरमा टंडन , प्रियंवदा चतुर्वेदी तथा विजया बाई आदि ने अगस्त क्रांति में खुल कर भाग लिया। कोटा शहर में तो रामपुरा पुलिस कोतवाली पर अधिकार करने वालों में छात्राएँ भी शामिल थी। राजस्थान में 1942 के आन्दोलन में जोधपुर राज्य का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इस आन्दोलन में लगभग 400 व्यक्ति जेल में गए। महिलाओं में श्रीमती गोरजा देवी जोशी , श्रीमती सावित्री देवी भाटी , श्रीमती सिरेकंवल व्यास , श्रीमती राजकौर व्यास आदि ने अपनी गिरफ्तारियाँ दी। उदयपुर में महिलाएँ भी पीछे नहीं रही। माणिक्यलाल वर्मा की पत्नी नारायणदेवी वर्मा अपने 6 माह के पुत्र की गोद में लिए जेल में गयी। प्यारचंद विश्नोई की धर्मपत्नी भगवती देवी भी जेल गयी। रास्तापाल (डूंगरपुर) की भील बाला काली बाई 19 जून 1947 को रास्तापाल सत्याग्रह के दौरान शहीद हुई।
प्रश्न : ” शेर ए भरतपुर ” गोकुल जी वर्मा कौन थे ?
उत्तर : भरतपुर रियासत के स्वतंत्रता संघर्ष काल में “भीष्म पितामह” के रूप में जाने वाले श्री वर्मा ने अपने प्रारंभिक जीवन में सरकारी ठेकेदारी शुरू की परन्तु अपने स्वतंत्र तथा अक्खड़ स्वभाव के कारण वे शीघ्र ही राजनीति के मैदान में कूद पड़े। जनता के अभाव अभियोगों से अवगत कराने के लिए वे एक बार तत्कालीन नरेश कृष्णसिंह के महकमा खास में बिना किसी पूर्व सूचना के संतरियों की निगाह बचा कर पहुँच गए तथा निर्भीकता से अपनी बात कहकर ही लौटे। उन्होंने रियासती अत्याचारों तथा अन्याय के विरुद्ध डटकर मुकाबला किया। अनेक बार जेल गए। 1939 ईस्वीं में उत्तरदायी शासन की मांग को लेकर संचालकों में से एक थे तथा उन्ही के निवास पर कार्यकर्ताओं की गुप्त बैठकें होती थी। भरतपुर की जनता इन्हें “शेर ए भरतपुर” कहकर संबोधित करती थी।