कुशाल सिंह चंपावत कौन था | ठाकुर कुशाल सिंह ने अंतिम समय कहां बिताया kushal singh champawat in hindi

kushal singh champawat in hindi कुशाल सिंह चंपावत कौन था | ठाकुर कुशाल सिंह ने अंतिम समय कहां बिताया , आउवा के ठाकुर कुशाल सिंह ने 1857 में क्रांतिकारियों का नेतृत्व कहां किया ?

प्रश्न : डूंगजी – जवारजी ?

उत्तर : डूंगजी और जवारजी धावडिया शेखावाटी (सीकर) के राजपूत थे। जब डूंगजी को आगरा में (1846 ईस्वीं) उनके 300 साथियों सहित बंदी बनाया तो जवारजी ने करमा मीणा और लोटिया जाट की सहायता से उन्हें मुक्त कराया। ये धन्नासेठों का धन लूटकर गरीबों में और छावनियों और अंग्रेजी क्षेत्रों का धन लूटकर क्रान्तिकारियों में बांटकर स्वतंत्रता के विद्रोह को आगे बढाने में सफल रहे। तत्कालीन कवियों ने इनकी प्रशंसा में वीर रस के गीतों की रचना कर जनसाधारण को तथा अधिक प्रेरित किया। वर्तमान में शेखावाटी में इनके नाम का एक बड़ा वार्षिक मेला लगता है।
प्रश्न : डूँगजी – जवारजी का सहयोग बताइए ?
उत्तर : 1857 की क्रांति के समय धावडिया डूंगजी – जवारजी ने नसीराबाद छावनी और अंग्रेजी क्षेत्रों में डाका डाल कर लूट के धन को क्रान्तिकारियों में बाँटकर स्वतंत्रता संग्राम में सहयोग दिया। शेखावाटी में इनकी वीरता के गीत गाये जाते है।
प्रश्न : नसीराबाद की क्रांति ?
उत्तर : राजस्थान में नसीराबाद प्रमुख ब्रिटिश सैनिक छावनी थी। ए.जी.जी. के प्रति अविश्वास , बंगाल इन्फेंट्री को नसीराबाद भेजना और चर्बी वाले कारतूसों के समाचार फैलने पर राजस्थान में सर्वप्रथम 28 मई 1857 को नसीराबाद छावनी के सैनिकों ने विद्रोह का बिगुल बजा दिया। सैनिकों ने तोपखाने पर अधिकार कर छावनी और अंग्रेजों के घरों को लूटा और आग लगा दी। क्रान्तिकारियों ने दिल्ली की तरफ कूच किया। जागीरदारों और जनता की सहानुभूति क्रांतिकारियों के साथ थी। यह राजस्थान में क्रान्ति का प्रेरणास्रोत बन गया। इसके बाद सम्पूर्ण राजस्थान में क्रांति की लहर फ़ैल गयी।
प्रश्न : कुशालसिंह चंपावत ?
उत्तर : सुगाली माता का परमभक्त तथा आउवा का ठाकुर कुशालसिंह चांपावत 1857 की क्रांति का सर्वप्रमुख वीर नायक था। कुशालसिंह ने एरिनपुरा छावनी के विद्रोही सैनिकों का नेतृत्व किया और अन्य सामन्तों और जनता ने भी अपनी सहानुभूति आउवा की विद्रोही जनता और ठाकुर के साथ रखी। क्रान्तिकारी सेना ने 18 सितम्बर 1857 को चेलावास युद्ध में ए.जी.जी. लारेन्स को हराया और पोलिटिकल एजेंट मैक मोसन का सिर काटकर आउवा के किले के द्वार पर लटकाया। बाद में कर्नल होम्स ने विद्रोहियों को नियंत्रित किया और कुशालसिंह चांपावत को गिरफ्तार किया। नवम्बर 1860 में टेलर कमीशन की संस्तुति के आधार पर इन्हें रिहा किया गया। ये क्रांति के प्रेरणास्रोत रहे। इनके लिए एक गीत प्रचलित रहा – “ढोल बाजे , थाली बाजे , भेलो बांकियो , एजेंट ने मारने दरवाजा न्हांकियों। “
प्रश्न : कुशालसिंह चम्पावत क्यों प्रसिद्ध है ?
उत्तर : सुगाली देवी का भक्त आउवा का ठाकुर कुशाल सिंह चम्पावत 1857 की क्रांति का वीर नायक था , जिसने चेलावास यूद्ध में पॉलिटिकल एजेंट मैक मोसन का सर काटकर आउवा किले के दरवाजे पर लटका दिया था।
प्रश्न : राजस्थान में राष्ट्रीय चेतना के विकास के लिए उत्तरदायी कारकों की विवेचना कीजिए। 
या 
राजस्थान में राजनितिक (राष्ट्रीय चेतना) और जनजागृति के उदय के कारणों की विवेचना कीजिये। 
उत्तर : राजस्थान में भी ब्रिटिश आधिपत्य के बाद ही राष्ट्रीय चेतना (राष्ट्रवाद) तथा जनजागृति का विकास हुआ। परन्तु यह उनके प्रयासों का फल नहीं था जबकि यह तो विभिन्न घटनाओं , परिस्थितियों और विभिन्न कारणों के सामूहिक योगदान का फल था जिन्हें निम्नलिखित बिन्दुओं का तहत स्पष्ट किया जा सकता है –
1. 1857 के संग्राम की पृष्ठभूमि : यह सिमित जन आक्रोश का पहला विस्फोट था जिसने भावी लोक चेतना की एक ऐसी पृष्ठभूमि तैयार कर दी जिसने आगे चलकर राष्ट्रीय चेतना तथा जन जागृति को प्रेरणा दी।
2. सामाजिक और धार्मिक सुधारकों का योगदान : आर्य समाज के पर्वतक स्वामी दयानंद सरस्वती ने राजस्थान में स्थान स्थान पर घूमकर अपने विचारों से स्वधर्म , स्वदेश , स्वभाषा , स्वराज्य पर जोर दिया। जिससे सामाजिक धार्मिक सुधारों के साथ ही राष्ट्रीय नव चेतना और जनजागृति का संचार हुआ। इसी प्रकार स्वामी विवेकानन्द , साधु निश्चलदास सन्यासी , आत्माराम , गुरु गोविन्द आदि के सदप्रयासों से राजस्थान में राष्ट्रीय राजनितिक चेतना का संचार हुआ।
3. पाश्चात्य शिक्षा का प्रभाव : ब्रिटिश आधिपत्य के बाद यहाँ अंग्रेजी शिक्षा का प्रारम्भ हुआ। आधुनिक शिक्षा के प्रभाव से महत्वपूर्ण राजनितिक मामलों पर विचार विमर्श होने लगा। शासकों में पारस्परिक एकता की भावना बढ़ी। स्वतंत्रता , समानता , उदारता , बन्धुत्व , देश प्रेम आदि पाश्चात्य विचारों से जनता प्रभावित होकर अपने देश की मुक्ति और अधिकारों के प्रति सजग होने लगी।
4. समाचार पत्रों और साहित्य की भूमिका : ब्रिटिश और रियासती सरकारों की दमनकारी नीति के बावजूद राजस्थान केसरी , लोकवाणी , सज्जन कीर्ति सुधाकर जैसे अनेक समाचार पत्रों का विकास हुआ , जिन्होंने जनमानस में वैचारिक क्रांति उत्पन्न की। सूर्यमल्ल मिश्रण से लेकर केसरी सिंह बारहठ और आगे के अनेक कवियों ने अपने साहित्य के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इन्होने अपने लेखों के माध्यम से निरंकुश शासन के दोष और उसकी मुक्ति देश प्रेम जनकल्याण और प्रजातांत्रिक संस्थाओं के निर्माण की आवश्यकता का प्रचार कर राष्ट्रीय विचारधारा और जनजागृति उत्पन्न की।
5. यातायात और संचार के साधनों की भूमिका : अंग्रेजों ने रेल , सड़क , डाक आदि का विकास साम्राज्यवादी हितों के लिए किया परन्तु इनके माध्यम से सभी व्यक्ति और राज्यों का सम्बन्ध आपस में बढ़ा और भारत के विभिन्न क्षेत्रों से सम्पर्क और एकता होने लगी। जनसामान्य के विचारों का आदान-प्रदान हुआ जिससे राजस्थान के लोगों में राष्ट्रीय चेतना का विकास हुआ।
6. जनता की शोचनीय आर्थिक दशा : जनता अपनी दुर्बल आर्थिक दशा का कारण निरंकुश और अत्याचारी राजशाही और उसकी भोग विलास की प्रवृति और अंग्रेजी शासन को मानने लगी। इसका उन्मूलन सामूहिक रूप से ही हो सकता है यह विचार पनपने लगा।
7. प्रथम विश्व युद्ध का प्रभाव : प्रथम विश्व युद्ध में राजस्थान के सैनिक विदेशों में भेजे गए। वहां से वे स्वतंत्रता समानता , प्रजातंत्र , देश प्रेम आदि विचार अपने साथ लाये जिनसे यहाँ की जनता को अवगत करवाकर राजनितिक जागृति उत्पन्न की। अनेक अवसरों पर इन सैनिकों ने राजशाही के आदेशों की अवहेलना कर जनता पर गोली नहीं चलाई अर्थात राष्ट्रीय चेतना का संचार अब सेना में भी फैला चुका था।
8. शासकों में अंग्रेज विरोधी भावना का पनपना : मेवाड़ अलवर , भरतपुर आदि के ब्रिटिश विरोधी शासकों को जब ब्रिटिश सरकार ने हटाकर उनके पुत्रों को शासक बनाया तो इन घटनाओं ने जनता को उद्वेलित पर अंग्रेज विरोधी बनाया। इन घटनाओं से राजनितिक चेतना को बढ़ावा मिला। जब वायसराय की काउंसिल का सदस्य बी. नरसिंह शर्मा महाराणा फ़तेहसिंह से उदयपुर में मिला तो महाराणा ने शर्मा से कहा देश को इन दुष्टों से मुक्ति दिलाओं।
9. क्रान्तिकारियों का योगदान : 20 वीं सदी के प्रारंभ में देश में सशस्त्र क्रान्ति के द्वारा अंग्रेजी राज के उन्मूलन की योजना में राजस्थान के अनेक क्रान्तिकारी शहीद हुआ। इन्होने राजस्थान के सोये हुए पौरुष को जगाकर राष्ट्रवाद की भावना की लहर पैदा की। दूसरी तरफ आदिवासी क्षेत्रों में कृषक और जनजातीय आंदोलनों ने राजनितिक चेतना जागृत करने की दिशा में असाधारण भूमिका का निर्वाह किया।
10. विभिन्न राजनितिक संगठनों का निर्माण : 19 वीं सदी के अंतिम दशकों और 20 वीं सदी के प्रथमार्द्ध में सम्प सभा (1883 ईस्वीं) सेवा समिति (1915) , राजस्थान सेवा संघ , अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद् (1927) राजपूताना मध्य भारत सभा आदि ने राजस्थान की जनता के सुप्त विचारों को मूर्त रूप दिया तथा राजनितिक चेतना का संचार कर दिया जिसकी पूर्णाहुति प्रजामण्डल आंदोलनों में हुई।