अफीम (Opium poppy) :
वानस्पतिक नाम : papaver somniferum
कुल : Papavaraceae
उपयोगी भाग : अपरिपक्व फल से प्राप्त क्षीर / लेटेक्स
अफिम को अमल तथा अहिफेन के नाम से भी जाना जाता है।
अफीम से प्राप्त बीज औषतदाना या खसखस के नाम से जाना जाता है।
उत्पत्ति तथा उत्पादक देश
- अफीम एशिया माइनर का मूल निवासी है।
- वर्तमान समय में इसकी खेती कई देशो में की जाती है जैसे – ऑस्ट्रेलिया , चेक गणराज्य , वर्मा , हंगरी , भारत , पाकिस्तान , ईरान तथा तुर्की।
- भारत में इसे प्रमुखत: मध्यप्रदेश , उत्तर प्रदेश , बिहार तथा राजस्थान में उगाया जाता है।
- राजस्थान में इसे मुख्यतः दक्षिण – पूर्वी जिलो में उगाया जाता है जैसे – चित्तोडगढ , बाँसवाड़ा , डूंगरपुर , झालावाड आदि।
- भारत में इसकी खेती शीत ऋतू में की जाती है तथा पादप से अफीम का संग्रहण फरवरी से अप्रेल में किया जाता है।
- अफ़ीम की खेती पर भारत सरकार का नियंत्रण है।
अफीम पादप की बाह्य आकारिकी
- अफीम का पादप एक वर्षीय , 1 से 3 फीट लम्बा , सीधा , अशाखित पादप होता है।
- इस पादप की पत्तियां सामान्यतया बड़ी आवृन्ती तथा एकांतर पायी जाती है।
- इस पादप का पुष्पक्रम सामान्यत: एकल अन्तस्त असिमाक्षी प्रकार का पाया जाता है।
- इस पादप के पुष्प आकर्षक सफ़ेद या बैंगनी रंग के होते है परन्तु पुष्पों के दल जल्दी ही झड़ जाते है।
- इस पादप में कैप्सूल प्रकार का फल होता है जिसमे अत्यधिक बीज पाए जाते है , सामान्यतया आकार में बड़े , गोल , तथा कपाटो में स्फुटित होने वाला पाया जाता है।
बीज (Seeds)
इस पादप के बीज असंख्य किडनी के आकार के छोटे तथा सामान्यत: सफ़ेद होते है , इनमे तेल के अंश पाए जाते है तथा यह खाने योग्य होते है। [खसखस के रूप में]
अफीम का संग्रहण
अफीम का संग्रहण अपरिपक्व फल में चीरा लगा कर किया जाता है। इनका संग्रहण क्षीर या लेकेक्स के रूप में किया जाता है।
इसे प्रमुखत: फरवरी से अप्रेल के मध्य संग्रहित किया जाता है।
संग्रहित क्षीर सूख कर अफीम का निर्माण करता है।
लगभग 01 हजार अफीम के पादपो से 35 से 50 ग्राम अफीम संग्रहित की जा सकती है।
पादपों से प्राप्त क्षीर या लेटेक्स सूखने के पश्चात् अर्द्ध ठोस , काले रंग या हल्के भूरे रंग के अफीम में परिवर्तित हो जाता है।
अफीम का रासायनिक संघटन
- अफीम में सामान्यत: 25 प्रकार के एल्केलाइड पाए जाते है इसके अतिरिक्त अफीम से गोंद , रेजिन तथा मेकोनिक अम्ल भी पाया जाता है।
- इसमें पाए जाने वाले प्रमुख एल्केलाइड – मोरफिन , कोडिन , थिबेन , पेपेव रिन तथा नारकोटिन व ओपियानिन पाए जाते है।
अफीम का आर्थिक महत्व
- अफीम मुख्यतः बेदनाहर , सामक तथा स्वापक व सम्मोहक की तरह कार्य करता है।
- अफीम में पाए जाने वाले एल्केलाइड मनुष्य के प्रमस्तिष्क , मेरुतंत्रिका तंत्र को प्रभावित करते है।
- अफीम का दुरूपयोग भी किया जाता है जिसे सामान्यत: हेरोइन के रूप में उपयोग किया जाता है इसे रासायनिक रूप से – Diacityl morphine के रूप में उपयोग किया जाता है।
- औषधि के रूप में मॉर्फिन को दर्द निवारक के रूप में उपयोग किया जाता है तथा यह औषधी शारीरिक दर्द तथा एंठन के उपचार में अत्यधिक लाभदायक होती है।
- दस्त तथा अतिसार में यह औषधि अत्यंत लाभकारी होती है इसी कारण से इसे अमल के नाम से भी जाना जाता है।
- यह औषधि नींद लाने वाली होती है अत: इसे स्वापक के नाम से भी जानी जाती है।