मुहावरे और अर्थ उनके वाक्य हिंदी में लिस्ट | उदाहरण , मुहावरा किसे कहते है , मुहावरे का अर्थ क्या है ?

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मुहावरे (idioms)

‘मुहावरा‘ शब्द का अर्थ है ‘अभ्यास या बातचीत‘। हिन्दी का यह मुहावरा शब्द अरबी भाषा के ‘मुहावर‘ शब्द का परिवर्तित रूप है। मुहावरा एक ऐसा वाक्यांश है जो सामान्य अर्थ का बोध न कराकर किसी विलक्षण अर्थ का बोध कराता है। .

मुहावरे की विशेषताएँ इस प्रकार हैं

(1) वाक्य के प्रसंग में ही मुहावरे का प्रयोग होता है, अलग नहीं । जैसे- उसने पेट काटकर अपने बेटे को विदेश भेजा है।

(2) मुहावरे को पर्यायवाची शब्दों के रूप में अनूदित नहीं किया जा सकता।

(3) मुहावरे का शब्दार्थ नहीं अपितु उसका भावार्थ ही ग्रहण किया जाता है ।

(4) मुहावरे समाज के विकास तथा भाषा की समृद्धि के द्योतक हैं ।

मुहावरा और कहावत में अन्तर

कुछ लोग मुहावरा और कहावत में अन्तर नहीं मानते हैं। लेकिन उनका ऐसा मानना भ्रम है। वस्तुतः दोनों में अन्तर है । मुहावरे तो शब्दों के लाक्षणिक प्रयोग हैं। कहावत एक पूरे वाक्य के रूप में होती है जिसका आधार कोई कहानी अथवा चिरसत्य अथवा घटना विशेष होता है । किसी विषय को मात्र स्पष्ट करने के लिए कहावतों का प्रयोग होता है तथा साथ ही कहावतों का प्रयोग बिलकुल स्वतन्त्र रूप में होता है । मुहावरों का प्रयोग वाक्यों के अन्तर्गत ही सम्भव है । मुहावरा वाक्य का अंश होता है जो स्वतंत्र रूप से प्रयोग में नहीं लाया जा सकता । कहावत एक स्वतंत्र वाक्य के रूप में होती है जो अपना स्वतन्त्र अर्थ भी रखती है। किसी कथन की पुष्टि के लिए अलग से उदाहरण के तौर पर कहावत का प्रयोग होता है ।

हिन्दी के प्रचलित मुहावरे, अर्थ एवं उनके प्रयोग

(1) अँगूठे चूमना-(चापलूसी करना)-इस समय विद्वान् पुरुष भी मंत्रियों के अंगूठे चूमते

(2) अंगूठा दिखाना-(समय पर धोखा देना)-उसने अपना काम निकाल लिया, परन्तु जब मुझे जरूरत पड़ी तो अँगूठा दिखा दिया ।

(3) अँगूठा नचाना-(चिढ़ाना)-अपने गुरु के सामने अँगूठा नचाना ठीक नहीं।

(4) अँगूठी का नगीना-(जोड़ा मिलना)-सीताजी राम की अँगूठी का नगीना ही थीं।

(5) अँचरा पसारना- (याचना करना)-माताएँ अपने बेटे की रक्षा के लिए भगवती दुर्गा के सामने अँचरा पसारती हैं ।

(6) अँधेरे मुँह-(प्रातःकाल)-वह अँधेरे मुँह ही मेरे घर आ पहुँचा ।

(7) अंक भरना-(स्नेह से लिपटा लेना)-धनिया ने अपने बेटे को देखते ही लिया ।

(8) अंकुश देना-(नियन्त्रण करना)-अपनी जुबान पर अंकुश दिया करो, नहीं तो ठीक नहीं होगा।

(9) अंग में अंग चुराना-(शरमाकर सिकुड़ जाना)-अंग में अंग चुराकर बैठना स्त्रियों का सहज स्वभाव है।

(10) अंगारों पर पैर रखना–(जानबूझकर हानिकारक कार्य करना) अपने माता-पिता तुम अकेली सन्तान होय इसलिए तुम्हें ऐसे अंगारों पर पैर नहीं रखना चाहिए।

(11) अंगारों पर लोटना-(दुख सहना, डाह होना) वह बचपन से ही अंगारों पर लोग रहा है । दूसरे की उन्नति देखकर अंगारों पर लोटना ठीक नहीं।

(12) अंटाचित होना-(हतप्रभ होना) -उस पर मुझे पूर्ण विश्वास था, पर जब उसने बिलकुल कन्नी काट ली तो मैं अंटाचित हो गया।

(13) अंटी मारना-(चाल चलना)- ऐसी अंटी मारो कि कोई जान न पाये।

(14) अंड-बंड कहना-(बुरा-भला कहना)..अंड-बंड कहोगे तो मारकर मुँह तोड दंगा।

(15) अंडा सेना-(बेकार पड़े रहना)-आओ मेरे साथ चलो, घर में अंडा सेना ठीक नहीं।

(16) अन्या बनना-(धोखा देना)–माया सबको अन्धा बनाती है, इसलिए माया के पीछे यदि तुम अन्धे बन गये तो क्या हुआ ।

(17) अन्या होना-(विवेकष्ट होना)—लगता है तुम अन्धे हो गये हो, इसीलिए सबके सामने अंड-बंड बक रहे हो ।

(18) अन्ये की लकड़ी-(एकमात्र सहारा)-वह अपने माँ-बाप के लिए अन्धे की लकड़ी

(19) अन्धेर खाता-(अन्याय)-इस कार्यालय में चपरासी भी बिना पैसा लिये बात नहीं सुनता, यह कैसा अन्धेर खाता है ।

(20) अन्धेर नगरी-(जहाँ घोपली का बोलबाला) – अरे भाई यही मिट्टी का तेल पहले एक रुपया लिटर था, बीच में एक रुपया चालीस पैसा लिटर हुआ और आज ढाई रुपया लिटर हो गया, लगता है दुकान नहीं अन्धेर नगरी ही है।.

(21) अकार रूना-(लिपटकर मिलना)-भरत ने राम की वह अँकवार भरी, मानों के दोनों अभिन्न हो।

(22) अक्ल का दुश्मन-(बेवकूफ)-उसने इतना समझाया, फिर भी वह समझता नहीं, क्योंकि वह तो अक्ल का दुश्मन है।

(23) अड़ियल टर-(अटक-अटककर अथवा मुँह जोहकर काम करनेवाला)- वह तो ऐसा अडि$यल टटू नौकर है कि बिना कहे कुछ करता ही नहीं, यों ही बैठा रहता है।

(24) अगर-मगर करना-(टालमटोल या बहाना करना) यदि तुम्हें अगर-मगर ही करना था तो काम करना क्यों स्वीकार किया।

(25) अक्ल पर पत्थर पड़ना-(बुद्धिभ्रष्ट होना)लगता है तुम्हारी अक्ल पर पत्थर पड़ गया है, तभी तुम उस हत्यारे से उलझ रहे हो ।

(26) अक्ल की दुम-(अपने को बुद्धिमान समझने वाला)-साधारण गुणा-भाग तो आता नहीं, लेकिन अक्ल की दुम मोहन साइन्स पढ़ना चाहता है।

(27) अपना उल्लू सीधा करना- (अपना काम निकालना)-मोहन अपना उल्लू सीधा करने के लिए गधे को भी बाप कह सकता है।

(28) अपना किया पाना-(कर्म का फल भोगना)-वह अपना किया पा रहा है ।

(29) अपना-सा मुँह लेकर रह जाना-(शर्मिन्दा होना)-आज वे बढ़-बढ़कर बोल रहे थे, अतः मैंने ऐसी चुभती बात सुनायी कि वे अपना सा मुँह लिये रह गये ।

(30) अपनी खिचड़ी अलग पकाना-(स्वार्थी होना)यदि सभी लोग अपनी खिचड़ी अलग पकाएँ तो देश का उत्थान कैसे होगा।

(31) अपने पाँव आप कुल्हाड़ी मारना-(संकट मोल लेना)-राम से झगड़ा कर श्याम ने अपने पाँव आप कुल्हाड़ी मार ली ।।

(32) अपने मुँह मियाँ मिटू बनना- (अपनी प्रशंसा आप करना)-महान् पुरुष अपने मुँह मियाँ मिठू नहीं बनते।

(33) अब तब करना-(बहाना करना) मैं जब भी उससे किताब माँगने जाता हूँ, वह अब तब करना शुरू कर देता है।

(34) अपने पैरों खड़ा होना-(स्वावलम्बी होना)-आज के नवयुवकों को अपने पैरों खड़ा होना सीखना चाहिए ।

(35) आँच न आने देना- (जरा भी कष्ट या दोष न आने देना)-तुम निश्चिन्त रहो, मैं तुम पर आँच न आने दूंगा।

(36) आस्तीन का साँप- (कपटी मित्र) मोहन आस्तीन का साँप है, इसलिए उससे सावधान रहना चाहिए।

(37) आठ-आठ आँसू सेना-(बुरी तरह पछताना) यदि इस समय तुमने अपनी जिन्दगी नहीं सुधार ली, तो बाद में आठ-आठ आँसू रोना पड़ेगा। ..

(38) आसमान टूट पड़ना-(संकट पड़ना) दो चार लोगों को खिला देने से ऐसा क्या आसमान टूट पड़ा कि पश्चात्ताप कर रहे हो ?

(39) इधर की दुनियाँ उधर होना-(अनहोनी होना)-भले ही इधर की दुनियाँ उधर हो जाय, लेकिन मैं वहाँ जाऊँगा जसर ।

(40) इधर उधर की हाँकना-(व्यर्थ गप्पें मारना)–श्याम का अधिकांश समय इधर उधर. की हाँकने में ही व्यतीत होता है, फिर वह कब काम करता है ?

(41) ईट का जवाब पत्थर से देना-(किसी की दुष्टता का करारा जवाब देना)-दुष्टों की ईंट का जवाब पत्थर से देना चाहिए ।

(42) ईद का चाँद होना- (बहुत दिनों पर दीखना)-आजकल राम ईद का चाँद हो गया है।

(43) उलटी गंगा बहाना–(प्रतिकूल कार्य करना)-पुरुष का साड़ी पहनकर रहना उलटी गंगा बहाना है।

(44) उन्नीस-बीस होना-(एक का दूसरे से कुछ अच्छा होना)-दोनों लड़कियाँ बस उन्नीस-बीस हैं।

(45) एक आँख से देखना-(बराबर मानना)-ईश्वर राजा और रंक सबको एक आँख से देखता है।

(46) एक का तीन बनाना-(नाजायज नफा लूटना)-सामान का कन्ट्रोल होने पर व्यापारी एक का तीन बनाते हैं।

(47) एक लाठी से सबको हाँकना-(उचित-अनुचित का विचार किये बिना व्यवहार करना)-एक लाठी से सबको हाँकना उचित नहीं है।

(48) करवटें बदलना-(बेचैन रहना)-प्रियतम के वियोग में वह रात भर करवटें बदलती रही।

(49) किस मर्ज की दवा-(किस काम के) तुम चपरासी होकर ऑफिस का काम नहीं करते हो, आखिर तुम किस मर्ज की दवा हो । दृ

(50) कलेजे पर सॉप लोटना-(डाह करना)-दूसरे की उन्नति देखकर तुम्हारे कलेजे पर साँप क्यों लोटता है ?

(51) कुत्ते की मौत मरना-(बुरी तरह मरना)कृवह कुत्ते की मौत मरा ।

(52) कलेजा ठंडा होना-(संतोष होना-अपने दुश्मन को मस्ते देखकर उसका कलेजा ठंडा हुआ ।

(53) किताब का कीड़ा होना-(पढ़ने के सिवा कुछ न करना)-स्कूल में पढ़ने का मतलब केवल किताब का कीड़ा होना नहीं है, बल्कि खेलना-कूदना भी है।

(54) कागजी घोड़े दौड़ाना-(केवल लिखा पढ़ी करना, पर कुछ काम की बात न होना) आजकल सरकारी कार्यालयों में केवल कागजी घोड़े दौड़ते हैं ।

(55) कलम तोड़ना–(बढ़िया लिखना)-क्या खूब लिखा है ! तुमने तो कलम तोड़ दी ।

(56) किस खेत की मूली-(अधिकारहीन)-सभी मेरे आदेश का पालन करते हैं, तुम किस खेत की मूली हो ?

(57) कौड़ी को न पूछना-(निकम्मा समझना)-कोई उसे कौड़ी को भी नहीं पूछता।

(58) खरी खोटी सुनाना–(भला-बुरा कहना)- मैंने उसे कितनी बार खरी-खोटी सुनायी, लेकिन वह बेकहा मेरी बात नहीं मानता ।

(59) खेत आना-(वीरगति पाना-कुरुक्षेत्र के महासमर में असंख्य महाबली योद्धा खेत आये ।

(60) खून पसीना एक करना-(कठिन परिश्रम)- मैंने खून पसीना एक कर इतना धन अर्जित किया है।

(61) खटाई में पड़ना- (झमेले में पड़ना)-वहाँ जाने का निर्णय हो चुका था, परन्तु जाने के समय गाड़ी के खराब हो जाने से सारा काम खटाई में पड़ गया ।

(62) खाक छानना-(भटकना)-पढ़-लिखकर भी नौकरी के लिए वह खाक छानता रहा।

(63) गाल बजाना-(डींग हाँकना)-जो काम करना है वह करो, गाल बजाने से कोई काम नहीं होता है।

(64) गिन-गिनकर पैर रखना-(हिंद से ज्यादा सावधानी बरतना)-विपत्ति आने पर गिनगिनकर पैर रखना चाहिए ।

(65) गिरगिट की तरह रंग बदलना-(एक रंग-ढंग पर न रहना)-श्याम का क्या ठिकाना। वह तो गिरगिट की तरह रंग बदलता है।

(66) गूलर का फूल होना- (लापता होना)-आप तो गूलर के फूल हो गये थे कि दिखाई ही नहीं देते थे।

(67) गड़े मुर्दे उखाड़ना-(दबी हुई बात फिर से उभारना)-अरे भाई, जो हुआ सो हुआ, अब गड़े मुरदे उखाड़ने से क्या लाभ ?

(68) गाँठ का पूरा-(मालदार)-धूर्त नौकर गाँठ का पूरा मालिक पाकर प्रसन्न रहता है।

(69) गुदड़ी में लाल-गरीब के घर में गुणवान् का पैदा होना-अपने परिवार में डा० राजेन्द्र प्रसाद सचमुच ही गुदड़ी के लाल थे।

(70) घड़ों पानी पड़ जाना-(अत्यन्त लज्जित होना)-वह परीक्षा में नकल करके प्रथम श्रेणी प्राप्त करता था, लेकिन इस बार जब नकल करते समय पकड़ा गया तो बच्चू पर घड़ों पानी पड़ गया । .

(71) घर का न घाट का-(कहीं का नहीं)-वह न तो पढ़ना-लिखना जानता है और न उसे कोई काम ही करने आता है, ऐसा घर का न घाट का आदमी रखकर क्या होगा ।

(72) घोड़े बेचकर सोना-बिफ्रिक होना-जब घर का सब काम हो गया, तो अब क्या। घोड़े बेचकर सोओ।

(73) घर बसाना-(विवाह करना) नौकरी लग गयी, तो अब घर भी बसा लो।

(74) घर में गंगा-(बिना परिश्रम की प्राप्ति-वह न तो पढ़ने में तेज है और न उसने कोई दौड़-धूप ही की, फिर भी उसने ऐसी नौकरी पायी कि घर में गंगा ही कहो।

(75) थास छीलना-(व्यर्थ काम करना)-तुम तो रात-दिन पढ़ते थे, फिर भी फेल हो गये, क्या घास छीलते थे ?

(76) चल बसना-(मरना)-वह भरी जवानी में ही चल बसी।

(77) चार दिन की चाँदनी-(थोड़े दिन का सुख)-संसार का भौतिक सुख चार दिन की चाँदनी ही है।

(78) चींटी के पर जमना-्-(विनाश के लक्षण प्रकट होना)- इसे चींटी के पर जमना ही कहेंगे कि शिशुपाल श्रीकृष्ण को गालियाँ देता रहा ।

(79) चूँ न करना-(सिह जाना)–उसकी इतनी पिटाई हुई, फिर भी उसने जूं तक न की।

(80) चंडूस्खाने की गए-(बेतुकी बातें करना)-तुम लोगों की बातचीत चंडूखाने की गप के सिवा कुछ भी नहीं है।

(81) चाँदी का जूता-(घूस) आजकल तो सरकारी कार्यालयों में चाँदी के जूते के बिना काम नहीं चलता।

(82) चाँद पर थूकना-(सम्माननीय व्यक्ति का अनादर करना)-महात्मा गाँधी की निन्दा करना चाँद पर थूकना है।

(83) चादर बाहर पैर पसारना-(आय से अधिक खर्च करना)-जितना कमाते हो, उतना ही खर्च करो, चादर से बाहर पैर पसारना ठीक नहीं।

(84) चिराग तले अंधेरा-(अच्छाई में बुराई)-वे तो स्वयं बहुत बड़े विद्वान् हैं, किन्तु उनका लड़का चिराग तले अँधेरा ही है।

(85) बेहरे पर हवाइयाँ उड़ाना-(घबराना)-अचानक भेड़िया को देखते ही उसके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगीं।

(86) छप्पर फाड़कर देना-(बिना परिश्रम के सम्पन्न करना) जब ईश्वर की कृपा होती है तो वह छप्पर फाड़कर देता है।

(87) छक्के छूटना-(बुरी तरह पराजित होना)-कुरुक्षेत्र के युद्ध में भीष्म पितामह के सामने पाण्डवों की सेना के छक्के छूटने लगते थे।

(88) जलती आग में घी डालना-(झगड़ा बढ़ाना या क्रोध बढ़ाना) रावण के आगे राम की प्रशंसा कर अंगद ने जलती आग में घी डाल दिया ।

(89) जलभुनकर खाक हो जाना-(क्रोध से पागल हो जाना)-अरे भाई, तुम तो एक छोटी सी बात पर जल-भुनकर खाक हुए जा रहे हो।

(90) जीती मक्खी लिगलना-(जान बूझकर अशोभन काम करना)-उस सज्जन पुरुष के खिलाफ मैं गवाही दूँ ? मुझसे यह जीती मक्खी नहीं निगली जायगी ।

(91) जूते चाटना-(चापलूसी करना)-अपनी उन्नति के लिए उसे ऑफिसरों के जूते तक चाटने पड़े।

(92) जमीन पर पैर न पड़ना-(अधिक घमंड करना) एक साधारण आदमी जब किसी ऊँचे पद पर पहुँच जाता है तो जमीन पर उसके पैर नहीं पड़ते ।

(93) टका-सा मुँह लेकर रहना-(शर्मिन्दा होना)-जब उसकी कलई खुल गयी तो वह टका-सा मुँह लेकर रह गया ।

(94) टट्टी की ओट में शिकार खेलना-(छिपे तौर पर किसी के विरुद्ध कुछ करना)-लड़ना हो तो सामने आकर लड़ो, टट्टी की ओट में क्या शिकार खेलते हो?

(95) टाँग अड़ाना-(अड़चन डालना)-तुम हमारे काम में टाँग मत अड़ाओ।

(96) टोपी उछालना-(निरादर करना)-अपने स्वार्थ के लिए दूसरे की टोपी नहीं उछालनी चाहिए।

(97) देर करना-(मारकर गिरा देना)-युद्ध भूमि में उसने शत्रु की सेना को ढेर कर दिया।

(98) तूती बोलना-(प्रभाव जमाना)-आजकल तो गाँवभर में उसी की तूती बोल रही है ।

(99) तोते की तरह आँखें फेरना-(बिमुरब्बत होना)-अपना काम हो जाने वह तोते की तरह आँखें फेर लेता है।

(100) तिल का ताड़ करना-(बात को तूल देना) मैंने उसे केवल एक चाँटा मारा था, लेकिन राम ने यह तिल का ताड़ कर दिया कि मैंने उसे खूब मारा है।

(101) वो कौड़ी का आदमी-(अविश्वसनीय आदमी)-वह तो एकदम दो कौड़ी का आदमी है, उसकी बात क्या करते हो ?

(102) दिन दूना रात चैगुना-(खूब उन्नति)-परिश्रम के कारण ही उस गाँव का विकास दिन दूना रात चैगुना हुआ।

(103) दो टूक बात कहना-(स्पष्ट कह देना)-उसने मुझसे दो टूक बात कह दी।

(104) दो दिन का मेहमान-(जिल्द मरने वाला)-अब उस आदमी से क्या झगड़ते हो, वह तो केवल दो दिन का मेहमान है।

(105) दिल में फफोले पड़ना-(बहुत दुख)-पत्नी बीमार है, बरसात में घर भी गिर गया, दिल में इतने फफोले पड़े हैं कि क्या कहूँ ?

(106) दूध के दाँत न टूटना-(अनुभवहीन)-उससे काम नहीं संभलेगा उसके तो दूध के दाँत भी नहीं टूटे हैं।

(107) दो नावों पर पैर रखना-(दो विरोधी पक्षों से मेल रखना)-दो नावों पर पैर रखकर आगे बढ़ना अच्छा नहीं होता।

(108) दाई से पेट छिपाना-(रहस्य जानने वालों से बात छिपाना) मैं सारी बातें जानता हूँ, तुम दाई से पेट छिपा रहे हो ?

(109) धता बताना-(बहाने कर टालना)-वह तो धता बताकर घर चला गया, अब मेरा काम कैसे होगा?

(110) धज्जियाँ उड़ाना-(किसी के दोषों को चुन-चुनकर गिनाना)-मैंने उन लोगों की ऐसी धज्जियाँ उड़ायी कि वे भाग खड़े हुए।

(111) धोती ढीली होना-(उर जाना)-डाकुओं को देखते ही मकान मालिक की धोती ढीली होने लगी।

(112) नौ-दो ग्यारह होना-(पत होना)-पुलिस को देखते ही चोर नौ-दो ग्यारह हो गये।

(113) निबानवे का फेर-(धन जोड़ने की बुरी लालच)-वह निन्नानवे के फेर में एक समय ही भोजन करता है।

(114) न इधर का, न उधर का–(कहीं का नहीं)-वह न तो पढ़ा और न पिता की दस्तकारी ही सीखी, न इधर का रहा, न उधर का ।

(115) नानी याद आना—–होश ठिकाने आना–आज इतना परिश्रम करना पड़ा कि नानी याद आ गयी।

(116) नाम उठ जाना-(चिन मिट जाना)–उनका तो दुनिया से नाम ही उठ गया ।

(117) पेट फूलना-(रहस्य को छिपा न सकना)–उससे सभी बातें मत कहो, क्योंकि उसका पेट फूलता है।

(118) पेट में चूहे कूदना-(जोर की भूख)-पेट में चूहे कूद रहे थे क्या कि आते ही खाने बैठ गये ?

(119) पट्टी पढ़ाना-(बुरी राय देना)-तुमने उसे ऐसी पट्टी पढ़ायी कि वह काम ही नहीं करता।

(120) पत्थर की लकीर-(पक्का)- महात्मा गाँधी ने जो कह दिया वह पत्थर की लकीर है।

(121) पहाड़ टूट पड़ना-(भारी विपत्ति आना)-पिता की मृत्यु के बाद उस पर तो दुखों का पहाड़ टूट पड़ा।

(122) पुल बाँधना-(बहुत बढ़ा-चढ़ाकर कहना)-तुमने तो मंत्री की प्रशंसा के पुल बाँध दिये।

(123) पाँचों उँगलियों घी में -(पूरे लाभ में) कन्ट्रोल के समय में व्यापारियों की पाँचों उँगलियाँ घी में रहती हैं।

(124) पौ बारह होना-( खूब लाभ होना) आजकल तो आपके कामधन्धे में पौ बारह है।

(125) पगड़ी रखना-(इज्जत रखना)-भरे बाजार में उसने मेरी पगड़ी रख ली।

(126) फूल झड़ना-(मीठी बातें बोलना)–श्यामा ऐसा बोलती है, मानों फूल झड़ते हैं।

(127) बरस पड़ना-क्रिोध में आना गलती तो मेरी थी, लेकिन पिता जी छोटे भाई पर बरस पड़े।

(128) बराबर करना-(चैपट करना)-इस मूर्ख लड़के ने सारा परिश्रम बराबर कर दिया ।

(129) बाँसों उछलना-(बहुत खुशी)-प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होने का समाचार पाकर श्याम बाँसों उछल पड़ा।

(130) बछिया का ताऊ-(विज्रमूखी)-वह परीक्षा तो दे रहा है, लेकिन बछिया के ताऊ को कुछ भी मालूम नहीं है।

(131) बाजार गर्म होना-बोलबाला, काम में तेजी-आजकल जातिवाद का बाजार इतना गर्म है कि प्रत्येक पार्टी उसी के आधार पर अपने उम्मीदवार खड़ा करती है।

(132) बाछे बिला-(अत्यन्त प्रसन्न होना)- इस बार वह प्रथम श्रेणी में पास हुआ है, उसकी बाँछे खिली हुई हैं।

(133) भीगी बिल्ली बनना-(डर से दबना)- झगड़े का नाम सुनते ही वह भीगी बिल्ली बन जाता है।

(134) भाड़ झोकना-(व्यर्थ समय बिताना)-बनारस रहकर अब तक तुम भाड़ झोंकते रहे ?

(135) भाड़े का टहू-(पैसे का गुलाम)-ये भाड़े के टटू हमारे साथ लड़ सकते हैं ?

(136) मरने की फुरसत न मिलना-(बहुत व्यस्त रहना)-आजकल इतना काम बढ़ गया है कि मरने की भी फुरसत नहीं मिलती।

(137) मिट्टी पलीद करना-(दुर्गति करना) सभी लोगों के बीच उसने मेरी मिट्टी पलीद कर दी।

(138) मैदान मारना- (बाजी जीतना)-दौड़ प्रतियोगिता में राम ने मैदान मार लिया ।

(139) मक्खियाँ माग्ना-(बेकार बैठे रहना)- तुम तो पढ़े-लिखे होकर भी घर पर मक्खियाँ मार रहे हो।

(140) मिट्टी के मोल- (बहुत सस्ता)-उसका सारा घर-द्वार मिट्टी के मोल बिक गया ।

(141) मुट्ठी गरम करना-(पूस देना)-बड़े बाबू की मुट्ठी गरम करिए तब काम होगा।

(142) रोंगटे खड़े होना-(भियभीत होना, चकित होना)-चोर की पिटाई देखकर हमारे तो रोंगटे खड़े हो गये।

(143) रंग बदलना-(परिवर्तन होना)- अब तो इस संस्था का रंग ही बदल गया।

(144) रंग उतरना-(फीका होना)-फाँसी की सजा सुनते ही मोहन के चेहरे का रंग उतर गया ।

(145) रास्ता नापना-(जाना)-तुम्हें पैसा दे दिया न, अब रास्ता नापो।

(146) लकीर का फकीर होना-(पुरानी प्रथा पर चलना) वह अभी भी चमड़े का जूता नहीं पहनता, लकीर का फकीर बना हुआ है !

(147) लेने के देने पड़ना-(लाभ के बदले हानि)-सोच समझकर काम करना कहीं लेने के बदले देने न पड़ जाय।

(148) लुटिया डुबोना-(काम बिगाड़ना)-उसने तो मेरी लुटिया ही डुबो दी।

(149) लोहा बजाना-(युद्ध करना)-दोनों ओर की सेनाओं ने लोहा बजाना बन्द कर दिया।

(150) लोहा मानना- (श्रेष्ठ समझना)-आज भी लोग राजपूत वीरों का लोहा मानते हैं ।

(151) श्रीगणेश करना-(शुभारंभ करना) वृक्ष लगाने का श्रीगणेश उन्होंने ही किया है।

(152) सर्द हो जाना-(डर जाना, मरना)-डाकुओं के आने की सूचना सुनते ही वह सर्द हो गया।

(153) साँप- (छछूदर की हालत-दुविधा) माँ अलग नाराज हैं और बीबी अलग नाराज है, मैं किसे मनाऊँ और किसे नहीं ? मेरी तो साँप छडूंदर की हालत हो गयी है। .

(154) सितारा चमकना अथवा बुलंद होना-(भाग्योदय)-अरे भाई, इनका तो सितारा बुलंद है, जिस काम में हाथ लगाते हैं उसी में सफल हो जाते हैं ।

(155) समझ (अक्ल) पर पत्थर पड़ना-(बुद्धिष्ट होना)-रावण की समझ पर पत्थर पड़ा था कि विभीषण जैसे भाई को भी उसने लात मारी।।

(156) सवा सोलह आने सही-(पूरे तौर पर ठीक)-हनुमान जी राम जी के प्रत्येक काम में सवा सोलह आने सही उतरते थे।

(157) हाथ मलना-(पिछताना)-समय के बीत जाने पर हाथ मलना ठीक नहीं।

(158) हाथ के तोते उड़ना-(स्तब्ध होना)-डाकुओं को देखते ही सभी के हाथ के तोते उड़ गये।

(159) हाथ-पैर मारना-(काफी प्रयत्न करना)- उन्होंने नौकरी के लिए खूब हाथ-पैर मारा, फिर भी उन्हें सफलता नहीं मिली ।

(160) हथियार डाल देना-(हार मान लेना)-अंत में उसने हथियार डाल दिया ।

मुँह पर मुहावरे

(1) मुँह की खाना-(बुरी तरह हारना) अंत में उसे मुँह की खानी पड़ी।

(2) मुँह पकड़ना-(बोलने से रोकना)-आजकल कोई किसी का मुँह नहीं पकड़ता ।

(3) मुँह छिपाना-(लिज्जित होना)-तुम कबतक मुँझसे मुँह छिपाते रहोगे।

(4) मुँह धोना- (आशा न करना)-गड्ढे में मुँह धो लो, वह वस्तु तो मिलने से रही ।

(5) मुँह में खून लगना-(बुरी बाट पड़ना)-घूस लेते-लेते तुम्हारे मुँह में खून लग गया है।

(6) मुँह दिखाना-(प्रत्यक्ष होना)- तुमने ऐसा क्या किया है कि मुँह दिखाने में शर्म लगती है।

(7) मुँह बन्द करना-(निरुत्तर कर देना)- तुम घूस देकर मेरा मुँह बन्द करना चाहते हो ?

(8) मुँह उतरना-(उदास होना)- परीक्षा में फेल होने पर उनका मुँह उतर गया।

(9) मुँह ताकना-(सहायता के लिए आशा करना)-किसी काम के लिए दूसरे का मुँह ताकना अच्छा नहीं।

दाँत पर मुहावरे

(1) दाँत से दाँत बजना-(बहुत जाड़ा पड़ना)-ऐसी ठंढ पड़ रही है कि दाँत से दाँत बज रहे हैं।

(2) दाँत काटी रोटी-(गहरी दोस्ती)-राम से उनकी दाँत काटी रोटी है।

(3) दाँत गिनना- (उम्र का पता लगाना)-ऐसी क्या जल्दी पड़ी है कि उनके दाँत गिनने लगे।

(4) दाँत दिखाना-(बीस काढ़ना)- यदि मेरे आने में देर हो जाय तो दाँत मत दिखाना ।

(5) दाँत गड़ाना-(किसी वस्तु को पाने के लिए गहरी चाह करना)-वह आदमी कई दिनों से मेरी घड़ी पर दाँत गड़ाये था ।

(6) दाँत तले उंगली दबाना-(चिकित होना)-जापान की उन्नति देखकर लोग दाँतों तले उँगली दबाते हैं।

कान पर मुहावरे

(1) कान देना-(ध्यान देना)-बड़ों की बातों पर कान देना चाहिए ।

(2) कान में तेल डालना-(कुछ न सुनना)- मैंने उन्हें कई पत्र दिये, पर एक का भी उत्तर न आया । लगता है, कान में तेल डाले बैठे हैं ।

(3) कान पर जूं न रेंगना-(ध्यान न देना मैंने प्राचार्य महोदय को कई स्मरण)-पत्र दिये, लेकिन उनके कान पर नँ भी नहीं रेंगती।

(4) कान पकना-(ऊब जाना)-उस दुष्ट की बातें सुनते-सुनते मेरे कान पक गये ।

(5) कान में पड़ना-(सुनने में आना) मेरे कान में यह बात पड़ी है कि छात्र हड़ताल करने वाले हैं।

(6) कान खोलना-(सावधान करना) राम ने मेरा कान खोल दिया अब मैं किसी के चक्कर में नहीं आऊँगा।

(7) कान खड़ा होना-(होशियार होना) बदमाशों के रंगढंग देखकर मेरे कान खड़े हो गये।

(8) कान फूंकना-(बहका देना, दीक्षा देना)-लगता है, किसी ने तुम्हारा कान फूंक दिया है, तभी तुम मेरी बात नहीं सुनते। .

(9) कान खाना-(तंग करना)-देखो जी, तुम मेरा कान मत खाओ।

(10) कान पकड़ना-(कोई काम फिर न करने की प्रतिज्ञा करना)- अब तो वह चोरी न करने के लिए कान पकड़ता है।

(11) कान भरना-(पीठ-पीछे शिकायत करना)-तुम बार-बार मेरे खिलाफ प्राचार्य महोदय के कान भरते हो।

(12) कान काटना-(पढ़कर काम करना)-वह तो अपने उस्ताद के भी कान काटने लगा।

नाक पर मुहावरे

(1) नाकों चने चबाना-(तंग करना)-मराठों ने मुगलों को नाकों चने चबवा दिये।

(2) नाक पर मक्खी न बैठने देना-(निर्दोष बचे रहना)- प्राचार्य महोदय ने कभी नाक पर मक्खी बैठने ही न दी ।

(3) नाक कट जाना-(प्रतिष्ठा नष्ट होना)-तुम्हारे कारण मेरी नाक कट गयी ।

(4) नाक काटना-(बदनाम करना)-सभी लोगों के बीच उसने मेरी नाक काट ली।

(5) नाक-भौं चढ़ाना-(क्रोध अथवा घृणा करना)-तुम उसे देखकर नाक-भौं क्यों चढ़ाने लगते हो।

(6) नाक पर गुस्सा-तुरंत क्रोध हो जाना)-तुम्हारी नाक पर हमेशा गुस्सा ही रहता है।

(7) नाक रगड़ना-(दीनतापूर्वक प्रार्थना)—उसने बहुत नाक रगड़ी, फिर भी मालिक ने उसे कारखाने से निकाल दिया।

(8) नाक का दाल होना-(अधिक प्यारा होना)-पुत्र अपने पिता की नाक का बाल होता है।

(9) नाक में दम करना-(परेशान करना) उस लड़के ने मेरी नाक में दम कर रखा है।

आँख पर मुहावरे

(1) आँखें चुराना-(नजर बचाना अर्थात् अपने को छिपाना)-मुझे देखकर तुम कबतक आँखें चुराते रहोगे।

(2) आँखों में खून उतरना -(अधिक क्रोध करना)-लड़के की बदमाशी देखकर उनकी आँखों में खून उतर आया ।

(3) आँखें मूंदना-(मर जाना)-आज सुबह उसने आँखें मूंद ली ।

(4) आँखें पथरा जाना-(मर जाना)-देखते ही देखते आज सुबह उसकी आँखें पथरा गयीं।

(5) आँखों में गड़ना-(किसी चीज को पाने की बलवती इच्छा)-वह लड़की मेरी आँखों में गड़ गयी है।

(6) आखें फेर लेना-(उदासीन हो जाना)-अपना काम हो जाने पर उसने मेरी ओर से आँखें फेर ली हैं।

(7) आँखों का काँटा होना-(शत्रु होना)कृआजकल राम मेरी आँखों का काँटा हो रहा है।

(8) आँख बचाना-(छिपना)-वह रोज आँख बचाकर निकल जा रहा है।

(9) आँखें फाड़कर देखना-(चिकित होकर देखना)-उधर कौन सी दुर्घटना हो गयी है कि तुम आँखें फाड़कर देख रहे हो।

(10) आँखें बिछाना-(प्रेम से स्वागत करना)-उनके आने पर मैंने अपनी आँखें बिछा दीं।

(11) आँख लगाना-(अनिष्ट सोचना)-बालक को आँख लगाना बुरी बात है ।

(12) आँखों में धूल झोंकना-(धोखा देना) -कल दह श्याम की आँखों में धूल झोंककर भाग गया ।

(13) आँखों का उजाला-(अत्यन्त प्रिय)-वह अपनी माँ की आँखों का उजाला है ।

(14) आँख मारना-(इशारा करना)-वह आँख मारकर उस लड़की को बुला रहा था ।

(15) आँखें जाना-(आँखों का नष्ट होना)-उनकी आँखें जाती रही ।

(16) आँखें उठाना-(दिखने की हिम्मत करना)-वह लड़कियों की ओर आँखें उठाकर नहीं देखता ।

(17) आँखें खुलना-(सावधान होना)-सन् 1977 ई० के लोकसभा चुनाव से काँग्रेस की आँखें खुल गयीं।

(18) आँखें चार होना-(आमने-सामने होना)-आज उन दोनों की आँखें चार हो गयीं।

बात पर मुहावरे

(1) बात चलाना-(चर्चा चलाना)-यदि आचार्य जी मिलें तो मेरी नियुक्ति की बात जरूर चलाइएगा।

(2) बात की बात में-(अतिशीघ्र)-बात की बात में वह मारकर भाग गया ।

(3) बात का धनी-वायदे का पक्का)-वह बात का धनी है, इसलिए जरूर तुम्हारा काम करेगा।

(4) बात बनाना-(बहाना करना)-तुम्हें खूब बात बनाने आती है।

(5) बात पर न जाना-(विश्वास न करना)-तुम्हारी बदमाशी के कारण ही मैं तुम्हारी बात पर नहीं जाता।

(6) बात बढ़ाना-(बहस छिड़ जाना)-अरे भाई, बात बढ़ाने से कोई फायदा नहीं है।

(7) बात तक न पूछना-(निरादर करना)-मैं राम के घर गया, पर उसने बात तक न पूछी।

सिर पर मुहावरे

(1) सिर चढ़ाना-(शोख करना)–जब आपने छात्रों को सिर चढ़ाया है तो भोगिए ।

(2) सिर फिर जाना-(पागल हो जाना) प्रचुर संपत्ति पाकर श्याम का सिर फिर गया है।

(3) सिर मारना या स्वपाना-(बहुत प्रयत्न करना)-उसने बहुत सिर मारा, लेकिन उसे नौकरी नहीं ही मिली।

(4) सिर से पैर तक-(आदि से अंत तक)-सिर से पैर तक तुम्हारा सारा काम दोषपूर्ण है।

(5) सिर खुजलाना-(बहाना करना)-अरे भाई, सिर खुजलाने से काम नहीं चलेगा।

(6) सिर गंजा कर देना-(खूब पीटना)–चोर भाग गया, नहीं तो उसका सिर गंजा कर दिया गया होता।

(7) सिर पर भूत सवार होना-(धुन सवार होना)-मालूम होता है कि तुम्हारे सिर पर भूत सवार हो गया है।

(8) सिर उठाना-(विरोध में खड़ा होना)-तुम्हारी इतनी हिम्मत कि मेरे सामने सिर उठाओ।

(9) सिर भारी होना-(शामत सवार होना अथवा सिर में दर्द होना)-तुम्हारा सिर भारी हो रहा है जो मेरी बात करते हो? आपका सिर भारी हो रहा है ?

(10) सिर पर सवार होना-(पीछे पड़ना)-तुम क्यों मेरे सिर पर सवार हुए जा रहे हो ?

(11) सिर पर आ जाना-(बहुत निकट होना)-अब तो परीक्षा सिर पर आ गयी है।

(12) सिर मढ़ना-(जबर्दस्ती जिम्मेदार बनाना)-तुम अपना दोष क्यों मेरे सिर पर मढ़ रहे हो ?

गर्दन पर मुहावरे

(1) गर्दन पर छुरी फेरना-(अत्याचार करना)-तुम क्यों उसकी गर्दन पर छुरी फेर रहे हो ?

(2) गर्दन पर सवार होना-(पीछा न छोड़ना)-वह अपने काम के लिए हमेशा मेरी गर्दन पर सवार रहता है।

(3) गर्दन उठाना-(प्रतिवाद करना)- राजाओं के विरोध में गर्दन उठाना आसान नहीं था।

(4) गर्दन काटना-(हानि पहुँचाना, जान से मारना)-उसकी शिकायत मत करो, नहीं तो उसकी गर्दन कट जायगी । मैं तुम्हारी गर्दन काट डालूँगा ।