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Categories: Biology

mouth parts of insects in hindi , कीटों के मुखांग के प्रकार क्या है , चवर्ण एवं लेहनकारी प्रकार या चबाने एवं चाटने के उपयुक्त

जाने mouth parts of insects in hindi , कीटों के मुखांग के प्रकार क्या है , चवर्ण एवं लेहनकारी प्रकार या चबाने एवं चाटने के उपयुक्त (Chewing and lapping type) ?

कीटों के मुखांग

(Mouth Parts of Inscets)

कीट मनुष्य तथा उसके काम आने वाली कीमती वस्तुओं को काट कर या खा कर बहुत हानि पहुँचाते हैं। यह कार्य कीट अपने मुखांगों के द्वारा करते हैं, जो सिर के महत्त्वपूर्ण अंग होते हैं। विभिन्न प्रकार के कीट भिन्न-भिन्न तरीकों से पोषण प्राप्त करते हैं तथा उसी अनुरूप उनके मुखांग विशिष्ट रूप से विकसित व विशेषिकृत होते हैं। यही कारण है कि इन विशिष्ट प्रकार के मुखांगों का अध्ययन महत्वपूर्ण व रुचिकर हो जाता है। कीटों के मुखांगों अध्ययन विशेष रूप से कीटनियंत्रण में भी महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि वे किस प्रकार से पोषण कर फसलों, फलों, अनाजों, वस्त्रों, पुस्तकों आदि को हानि पहुँचाते हैं। इस अध्याय में हम कुछ विशिष्ट प्रकार के विशेषिकृत कीटों के मुखांगों का अध्ययन करेंगे।

भिन्न-भिन्न प्रकार के पोषण के तरीकों के आधार पर कीटों के मुखांगों में विशिष्ट प्रकार के रूपान्तरण देखे गये हैं। अध्ययन की सुविधा हेतु कीटों के मुखांगों को निम्न पाँच विशिष्ठ श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है

  1. कृंतक एवं चर्वणक प्रकार या काटने व चबाने के उपयुक्त या मेन्डिबुलेट प्रकार के मुखांग (Bitting and chewing type or mandibulate type or orthopterous type)
  2. चवर्ण एवं लेहनकारी प्रकार या चबाने एवं चाटने के उपयुक्त (Chewing and lapping type or hymenopterous type)
  3. बेधन एवं चूषण प्रकार या छेदने एवं चूसने के उपयुक्त (Piercing and Sucking type or hemipterous and Dipterous type)
  4. स्पजिग ( सोखने) प्रकार ( Sponging type)
  5. साइफनी प्रकार या विनालीय प्रकार ( Siphoning type of Lepidopterous type)
  6. कृंतक एवं चर्वणक प्रकार या काटने व चबाने के उपयुक्त या मेन्डिबुलेट प्रकार के मुखांक (Bitting and chewing type or mandibulate type or orthopterous type):

भोजन को काट कर चबाने वाले मुखांग अविशिष्ठ व आदिम प्रकार के मुखांग होते हैं जो उद्विकास के क्रम में प्रारम्भिक कीटों में पाये जाते थे। अन्य सभी प्रकार के मुखांग पोषण की विविधता के आधार पर इसी प्रकार के मुखांगों से रूपान्तरित व विशेषिकृत हुए है। इस प्रकार के पोषण में कीट पादप या जन्तु ऊत्तकों या अन्य पदार्थों को मुखांगों द्वारा टुकड़ों में काट कर, चबाकर निगलते हैं। इस प्रकार के मुखांग प्रमुख रूप से आर्थोप्टेरा गण के कीटों में प्रमुख रूप से पाये जाते हैं अत: इन्हें आर्थोप्टेरस प्रकार के मुखांग भी कहा जाता है।

इस प्रकार के मुखांगों के एक समुच्य (set) में निम्न 6 प्रकार के मुखांग पाये जाते हैं

(i) ऊपरी ओष्ठ या लेब्रम (Labrum) : यह मुखांग सरल व आकार एवं आकृति में विविधता होता है। यह मुख के ऊपर स्थित होता है व भोजन को मुख से बाहर नहीं निकलने देता है। यह सिर पर क्लाइपियस से मुख के आगे लटका रहता है।

(ii) जम्भिकाएँ (Maxillae) : ये एक जोड़ी मुखांग होते हैं जो मुख के दोनों ओर पार्श्व में स्थित होते हैं तथा अनुप्रस्थ रूप से भोजन को पकड़ने में सहायक होते हैं। प्रत्येक जम्भिका निम्नलिखित खण्डों से मिलकर बनी होती है-आधारी भाग प्रोटोपोडाइट (protopodite) जो कार्डों व स्टाइप्स (cardo and stipes) नामक दो खण्डों का बना होता है । स्टाइप्स पर नीचे की ओर दो शाखाएँ पायी जाती है जिनमें से आन्तरिक शाखा अन्त: पादांश या एण्डोपाडाइट (endopodite) व बाहरी शाखा बाह्य पादांश या एक्सोपोडाइट (exopodite) कहलाती है। एण्डोपोडाइट दो पालियों (lobes) से मिल कर बना होता है

आन्तरिक लेसिनिया (lacinia) व बाहरी गेलिया (galea ) जिस पर स्वाद कलिकाएँ पायी जाती है। एक्सोपोडाइट सामान्यतया पांच खण्डों का बना होता है। जिन्हें जम्भिका स्पर्शक या मेक्सिलरी पेल्प (maxillary palp) कहते हैं। ये स्पर्शाग होते हैं।

(iii) चिबुक या मेन्डिबल (Mandible) : ये भी एक जोड़ी मुखांग होते हैं। ये मुख गुहा : स्थित होते हैं। प्रत्येक मेन्डिबल अशाखित, कठोर काइटिनी, तिकोने आकार की संरचना होती है। प्रत्येक मेन्डिबल के भीतरी किनारे पर दांत समान प्रवर्ध पाये जाते हैं। ये भोजन को काटने व चबाने में सहायक होते हैं।

(iv) लेबियम या अधर ओष्ठ (Labium or Lower lip) : यह मुखांग एकल संरचना होती है जो द्वितीय जोड़ी जम्भिकाओं (maxillae) के संयुग्मन से बनती हैं तथा मुख गुहा का फर्श (floor) बनाती है। इसका पृष्ठ भाग दो खण्डों का बना होता है जिन्हें मेन्टम (mentum) व सबमेन्टम (submentum) कहते हैं। मेन्टम के पार्श्व में नीचे की ओर एक जोड़ी लेबियल पेल्प (labial palp) पाये जाते हैं। लेबियल पेल्प के मध्य दो पेराग्लोसा (paraglossae) व दो ग्लोसा (glossae)’ ) पाये जाते हैं जिनकी तुलना प्रथम जम्भिका के गेलिया व लेसिनिया से की जा सकती है।

(v) अद्योग्रसनी या हाइपोफेरिन्क्स (Hypopharynx): लेबियम के पृष्ठतल पर लेब्रम से ढकी, प्रथम जोड़ी जम्भिकाओं के मध्य एक नलिकाकार संरचना पायी जाती है जिसे अधोग्रसनी या हाइपोफेरिन्क्स कहते है । यह मुख गुहा में स्थित होती है तथा जिव्हा की तरह कार्य करती है । इसकी अधर सतह पर लार वाहिका खुलती है।

(vi) एपिफेरिन्क्स (Epipharynx) : यह एक झिल्लीनुमा संरचना होती है जो हाइपोफेरिन्क्स के ऊपर व लेबियम की भीतरी सतह पर उपस्थित होती है। इस पर स्वाद कलिकाएँ पायी जाती है।

इस प्रकार के मुखांग सामान्य रूप से रजतमीन ( Silver fish or lapisma) टिड्डे, कॉकरोच, दीमकों इयरविगों, बुक लाइस, बर्डलाइस, लेपिडोप्टेरा गण के केटरपिलर लार्वाओं, आदि में पाये जाते हैं।

  1. चवर्ण एवं लेहनकारी प्रकार या चबाने एवं चाटने के उपयुक्त (Chewing and lapping type) :

इस प्रकार के मुखांग गण हाइमेनोप्टेरा के सदस्यों जैसे मधुमक्खियों, बम्बिल मक्खियों, ततैयों आदि में पाये जाते हैं। इस प्रकार के मुखांग फूलों से मकरन्द या फूलों का मधु, पराग, संग्रह करने तथा मोम निर्माण के लिए उपयुक्त व रूपान्तरित होते हैं। ये मुखांग भोजन को चबाने व लेहन के उपयुक्त होते हैं। इस प्रकार के मुखांग निम्न संरचनाओं से मिल कर बने होते हैं

(i) ऊपरी ओष्ठ या लेब्रम (Labrum) : यह एक प्लेट समान संरचना होती है जो क्लाइपियस (clypeus) के नीचे स्थित होती है। लेब्रम के भीतर की ओर पेशीय ऐपिफेरिन्क्स लम्बी जिव्हा के रूप में स्थित होती है।

(ii) चिबुक या मेन्डिबल (Mandibles) : ये एक जोड़ी मुखांग होते है जो लेब्रम के दोनों ओर स्थित होते हैं। ये चिकने व चम्मचाकार होते हैं। श्रमिक मधुमक्खियाँ इनका उपयोग छत्ते के निर्माण में करती है।

(iii) जम्भिका या मेक्सिला (Maxillae) : ये एक जोड़ी समेकित व सुविकसित मुखांग होते हैं। दोनों जम्भिकाएँ कार्डों में समेकित होती है। इनमें लेसिनिया अनुपस्थित होता है। जम्भिका स्पर्शक (maxillary palp) अल्पविकसित होते हैं परन्तु गेलिया (galea) लम्बी व ब्लेड (blade) समान होती है।

(iv) अधर ओष्ठ या लेबियम (Labium) : यह सुविकसित तथा गतिशील होता है। यह निम्न भागों से मिल कर बना होता है- पूर्व पादांश (protopodite ) यह त्रिकोणी पोस्टमेन्टम (post mentum) या सबमेन्टम (sub mentum) तथा पेशीय प्रिमेन्टम (Prementum) या मेन्टम (mentum) का बना होता है। लेबियल पेल्प लम्बे होते हैं। अन्तः पादांश (endopodite ) इसमें पेराग्लोसी (paraglossae) अल्प विकसित होते हैं जबकि ग्लोसी (glossae) लम्बी होती है। दोनों ग्लोसी परस्पर संयुक्त होकर जिव्हा या लिंगुला (lingula) का निर्माण करती है । लिगुंला लम्बी, रोमिल व पुन: खींचने योग्य (retractile) होती है। लिंगुला के अन्तिम सिरे पर चम्मच के आकार की संरचना पायी जाती है जिसे ओष्ठक या व्यंजनक (lebellum) या शहद चम्मच ( honey spoon) कहते हैं। हाइपोफेरिन्क्स अनुपस्थित होती है।

भोजन ग्रहण करते समय ज़म्भिका (maxillae) के गेलिया, लेबियल पेल्प (labial palps) मिलकर एक नलिका समान अस्थाई भोजन वाहिका का निर्माण करते हैं जिसे पुष्प के भीतर गहराई तक घुसाया जा सकता है। इस नलिका के अन्तिम सिरे पर जिव्हा या ग्लोसी स्थित होती है जो पराग को एकत्रित करती है तथा पुष्प रस या पुष्प मधु को ऊपर की ओर खींच लेती है। इस क्रिया में ग्रसनी की पम्पिंग क्रिया सहायक होती है। लेब्रम व चिबुक या मेन्डिबल भोजन को चबाने में सहायक होते हैं।

  1. बेधन एवं चूषण प्रकार या छेदने व चूसने के उपयुक्त

(Piercing and sucking type) :

इस प्रकार के मुखांग तरल भोजन को चूसने वाले कीटों में पाये जाते हैं। ये कीट तरल भोजन की अपने अन्दर खींचने तथा लार (saliva) को इन्जेक्ट करने हेतु विविध प्रकार से रूपान्तरित होकर एक नली का निर्माण करते हैं। इस प्रकार के मुखांग स्तनधारी जन्तुओं का रक्त चूसने या पादपों का रस चूसने वाले कीटों में पाये जाते हैं। रक्त चूषक कीटों जैसे मच्छरों, खटमलों, किसिंग बगों (kissing bugs) तथा पादपों का रस पीने वाले शाकाहारी कीटों जैसे एफिड्स (Aphids), स्केल इन्सेक्ट (Scale insect) तथा थ्रिप्स (Thrips) आदि में इस प्रकार के मुखांग पाये जाते हैं। इस प्रकार के मुखांगों को दो उपश्रेणियों में विभेदित किया जासकता है

(i) डिप्टेरस प्रकार (Dipterous type) (ii) हेमिप्टेरस प्रकार (Hemipterous type)

(I) डिप्टेरस प्रकार (Dipterous type ) : इस प्रकार के मुखांग गण डिप्टेरा के कीटों (जैसे मच्छरों) में पाये जाते हैं। इस प्रकार के मुखांगों की निम्न विशेषताएँ पायी जाती है

(a) लेब्रम (Labrum) : यह एक लम्बी, मांसल, पृष्ठ मध्य में खांच युक्त नलिका के रूप में पायी जाती है। लेब्रम एक संकरी लम्बी के समान संरचना होती है यह एफिफेरिन्क्स के साथ संयुग्मित रहती है जो झुण्ड में मध्य पृष्ठीय खाँच का निर्माण करती है।

(b) चिबुक (Mandibles) : ये लम्बे सुई के समान होते हैं व इनके अन्तिम सिरे ब्लेड (blade) के समान होते हैं।

(c) जम्भिका (Maxillae) : ये भी लम्बी व सुई के समान होती है। इनके अन्तिम सिरे आरी (saw) के समान होते हैं। जम्भिका स्पर्शक (maxillary palp) पाँच खण्डीय रोम युक्त व संवेदी होते हैं।

  1. स्पोंजिग प्रकार (Sponging types) :

इस प्रकार के मुखांग द्रवीभूत भोजन को चूसने या सोखने के लिए रूपान्तरित होते हैं। इस प्रकार केमुखांक घरेलू मक्खी (house fly ) तथा कुछ अन्य मक्खियों में पाये जाते हैं। इनमें भोजन को काटकर चबाने वाले मुखांगों का अभाव होता है।

इस प्रकार के मुखांगों में निम्न विशेषताएँ पायी जाती है

(a) लेबरम (Labrum) : यह एपिफेरिन्क्स के साथ युग्मित होकर खाद्य नाल की छत बनाती है।

(b) मेन्डिबल्स (Mandibles) का पूर्ण अभाव होता है ।

(c) जम्भिकाएँ (Mexillae) : अखण्डित छोटे होते तथा केवल जम्भिका स्पर्शकों द्वारा निरूपित होते हैं।

(d) लेबियम (Labium) : लेबियम अत्यधिक रूपान्तरित होकर शुण्ड का निर्माण करता है जिसे तीन भागों में विभक्त किया जा सकता है

(i) समीपस्थ शंकु समान भाग जो सिर से जुड़ा रहता है, शुण्ड का निर्माण करता है। जिस पर जम्भका स्पर्शक जुड़े रहते हैं (ii) मध्यवर्ती भाग हॉस्टेलम (haustellum) कहलाता है जिसके मध्य पृष्ठ तल में भोजन मार्ग का कार्य करने वाली खांच और नीचे की ओर हृदयाकार थीका (theca) नामक प्लेट पायी जाती है।

(iii) शुण्ड का निचला भाग दूरस्थ ओष्ठक (labellum ) या मुख बिम्ब (oral disc) कहलाता है। इसमें अण्डाकार तश्तरी समान दो पालियाँ पायी जाती है।

इन पालियों को ओष्ठक (labellae) कहते हैं। इसके अन्दर के भाग में असंख्य अपूर्ण बेलनाकार नलियाँ होती है जिन्हें कूट श्वास नलियाँ (pseudotracheae) कहते हैं। ये सब नलियों केन्द्र में संग्रहित होकर मुख छिद्र बनाती है जो भोजन खाँच में खुलता है। ओष्ठक अपनी संकुचनशील क्रिया द्वारा भोजन को चाटने का कार्य करती है। पहले भोजन को कूट श्वास नलिकाओं में एकत्रित किया जाता है जहाँ से यह लेबियम, अधिग्रसनी (epipharynx) एवं अधोग्रसनी (hypopharynx) द्वारा निर्मित भोजन नलिका में पहुँच जाता है, जो हॉस्टेलम की मध्य पृष्ठ खांच में स्थित होती है।

(c) अधोग्रसनी (Hypopharynx) : यह लेब्रम व अधिग्रसनी (epipharynx) के साथ संयुक्त होकर भोजन नलिका का निर्माण करती है जो हौस्टेलम की मध्य पृष्ठ खांच में स्थित होती है। अधिग्रसनी (cpipharynx) यह लेब्रम के साथ संयुक्त होती है।

  1. साइफनी प्रकार (Syphoning type) :

इस प्रकार के मुखांग गण लेपिडोप्टेरा के सदस्य कीटों जैसे तितलियों व शलभों में पाये जान हैं। ये मुखांग फलों व फूलों के रस या मकरन्द को चूसने के लिए उपयुक्त होते हैं।

इस प्रकार के मुखांगों की निम्न विशेषताएँ पायी जाती

इनमें मुख्य शुण्ड का निर्माण लेबियम से न होकर जम्भिकाओं से होता है। इनके मुखांगों में चिबुक व लेबियम अत्यन्त समानीत होते हैं।

(a) लेब्रम (Labrum) : एक तिकोने आकार की प्लेट नुमा संरचना का निर्माण करता है। जिस पर लेबियल पेल्प (labial palp) पाये जाते हैं।

(b) जम्भिका (Maxillae) में केवल गेलिया (galea ) व जम्भिका स्पर्शक सुविकसित होते हैं। गेलिया अत्यधिक लम्बे होते हैं तथा प्रत्येक गेलिया नलिका का एक अर्द्धांश बनाती हैं। दोनों गेलिया के अर्द्धांश मिल कर पूर्ण नलिका का निर्माण करते हैं। यह नलिका साइफन की तरह कार्य करती है जिससे तरल भोजन मुख तक पहुँचता है । जम्भिका स्पर्शक काफी छोटे होते हैं। सामान्य अवस्था में यह नलिका घड़ी की स्प्रिंग की तरह कुण्डलित रहती है व सिर के नीचे की ओर स्थित रहती है। भोजन करते समय यह सर्पिलाकार नलिका या शुण्डं अकुण्डलित होकर लम्बी हो जाती है।

अधोग्रसनी (hypopharynx) तथा अधिग्रसनी (epipharynx) अनुपस्थित होती है।

प्रश्न (Questions)

लघुत्तरात्मक प्रश्न

  1. कीटों में कितने प्रकार के मुखांग पाये जाते हैं ?
  2. प्रारूपी मुखांगों के नाम लिखिये ।
  3. घरेलू मक्खियों, मच्छरों व तितलियायें में किस प्रकार के मुखांक पाये जाते हैं?
  4. कॉकरोच, मधुमक्खियों में किस प्रकार के मुखांग पाये जाते हैं।

दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न

  1. मेन्डीबुलेट या कृन्तक व चवर्ण प्रकार के मुखांगों का सचित्र वर्णन करते हुए उदाहरण दीजिए।
  2. चर्वण व लेहनकारी मुखांगों का सचित्र वर्णन कीजिए व यह भी बताइये कि ये किन कीटों में पाये जाते हैं।
  3. बेधन एवं चूषण प्रकार के मुखांगों का उदाहरण सहित सचित्र वर्णन कीजिए।
  4. स्पोंजिंग प्रकार के मुखांग किन कीटों में पाये जाते हैं इनका चित्र सहित वर्णन कीजिए ।
  5. साइफनी प्रकार के मुखांगों का सचित्र वर्णन करते हुए उपयुक्त उदाहरण दीजिए ।
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