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Categories: Biology

larvae of crustaceans in hindi , क्रस्टेशिया के लार्वा अवस्था क्या है , प्रकार , लार्वाओं का महत्त्व का वर्णन कीजिये

जाने larvae of crustaceans in hindi , क्रस्टेशिया के लार्वा अवस्था क्या है , प्रकार , लार्वाओं का महत्त्व का वर्णन कीजिये  ?

क्रस्टेशिया के लाव (Larvae of Crustaceans)

प्रजनन जीवों की नैसर्गिक प्रकृति है। एककोशिकीय जीवों के लिए अपने जैसी सन्तति को जन्म देना विशेष कठिन नहीं होता है क्योंकि इनमें सिर्फ एक ही कोशिका पाई जाती है। इसके विपरी बहुकोशिकीय जन्तुओं (मेटाजोआ) में अनेक कोशिकाएँ पाई जाती है जिनमें संरचनात्मक एवं कार्यात्मक विभेदन (श्रम-विभाजन) पाया जाता है। इन कारणों से एक बहुकोशिकीय जीव को अपने जैसी सन्तति उत्पन्न करने में एक कोशिकीय जीवों की तुलना में अधिक समय लगता है। इस समयावधि में जन्तु निषेचित अण्ड या युग्मक (zygote) अवस्था से वयस्क अवस्था तक का मार्ग भ्रूण (embryo) अथवा भूण व डिम्भ (larava) के रूप में बदल कर पूर्ण करता है।

निषेचित अण्ड यानि युग्मनज (zygote) से प्रारम्भ होकर स्फुटन (hatching) तक की अवस्था भ्रूण (embryo) कहलाती है। स्फुटन के उपरान्त इसे कोशित या प्यूपा ( pupa) अथवा वयस्कता तक की अवस्था को डिम्भ ( larva) कहा जाता है। लार्वा या डिम्भ लगभग सभी मेटाजोअन समूहों में पाए जाते हैं। किन्हीं जन्तुओं में तो सिर्फ भ्रूण अवस्था ही मिलती है तो कुछ मेटाजोअनों में भ्रूण तथा लार्वा दोनों पाए जाते हैं। यह देखा जाता है कि जिन जन्तुओं में लार्वा पाए जाते हैं वे अपने लार्वा विहीन वर्गक साथियों की तुलना में पुरातन होते हैं। जिन जन्तुओं में लार्वा नहीं मिलते हैं उनमें वयस्क तक की विकास यात्रा भ्रूण के रूप में तय की जाती है तथा इनमें या तो निषेचित अण्ड खाद्य सामग्री से परिपूर्ण होता है ( उदाहरण – सरीसृप व पक्षी अथवा इनमें जरायुजता (viviparity) या अण्ड-जरायुजता (ovoviviparity) पाई जाती है (उदाहरण : स्तनी जन्तु) । कुछ लार्वा विहीन जन्तुओं में स्फुटन के फलस्वरूप वयस्क से मिलती-जुलती अवस्था प्रकट होती है जिसे अर्भक या निम्फ (nymph) कहते हैं, जो वृद्धि कर वयस्क में परिवर्तित हो जाती है।

इस तरह हम देखते हैं कि लार्वा सामान्यतया उन जन्तुओं में बनता है जिनके अण्डों में संचित भोजन (yolk) की मात्रा कम होती है। लार्वा या लार्वायुक्त जन्तुओं की निम्न विशेषताएँ होती है

  1. एक लार्वा सामान्यतया मुक्तजीवी (free-living) होता है। कुछ लार्वा परजीवी (parasite ) भी होते हैं।
  2. लार्वा स्फोटनोत्तर व वयस्क पूर्व अवस्था है।
  3. लार्वावस्था कुछ घण्टों से लेकर वर्षों तक की हो सकती है।
  4. जिन जन्तुओं के जीवनचक्र में लार्वा पाए जाते हैं उनका परिवर्तन अप्रत्यक्ष परिवर्धन (indirect development) कहलाता है जबकि लार्वा विहीन जन्तुओं में प्रत्यक्ष परिवर्धन (direct development) पाया जाता है।
  5. लार्वा युक्त जन्तुओं में कायान्तरण (metamorphosis) पाया जाता है जिसके परिणामस्वरूप लार्वा, जो सामान्यतया वयस्क से प्रकृति में विभिन्नताएँ रखता है, वयस्क अवस्था में परिवर्तित हो जाता है।
  6. युग्मक को वयस्क के निर्माण के सम्बन्ध में जो जीनीय निर्देश प्राप्त हुए हैं उनकी अभिव्यक्ति में कुछ समय लगता है। इस निर्देश की पूर्ण अभिव्यक्ति या कार्यान्वयन हो जाने पर ही वयस्क बनता है। भ्रूण व लार्वा वे अवस्थाएँ है जिनमें यह कार्य पूर्ण किया जाता है।
  7. कुछ जन्तुओं के लार्वा परिवर्धन की कड़ी का कार्य करने के अतिरिक्त पोषण या गमन का कार्य भी करते हैं। यदि वयस्क के आस-पास ही उसकी सन्ततियाँ पनप जाएँ तो परस्पर स्पर्धा उत्पन्न होगी जिससे जाति को हानि पहुँचेगी अतः अनेक जन्तुओं के लार्वा प्रकीर्णन ( dispersal) की क्षमता रखते हैं। इसके लिए इनमें गमन अंग (जैसे पुच्छ, कशाभ, पाद आदि) पाए जाते हैं। ऐस लार्वा विशेष रूप से स्थानबद्ध (sessile) जन्तुओं में पाए जाते हैं।

कुछ जन्तुओं के लार्वा में पूर्ण विकसित आहार नाल पाई जाती है तथा यह मुख्य रूप से पोषण का कार्य करते हैं। इनमें गमन अंग भी पाए जा सकते हैं परन्तु ये प्रकीर्णन की दृष्टि से अधिक महत्वपूर्ण नहीं होते हैं। कीटों (insects) के लार्वा या केटरपिलर इसी प्रकार के लार्वा है । जन्तुओं में लार्वा अशन (feeding) व गमन या प्रकीर्णन दोनों कार्य करते हैं।

  1. मनुष्य के लिए लार्वा अवस्थाएँ जातिवृत्तीय संबन्धत्व (phylognetic relationships) जानने में मदद करती है। कुछ वयस्क जन्तु आपस में समान नहीं होते हैं परन्तु जब उनके परिवर्धन पर निगाह डाली जाती है तो पता चलता है कि उनकी लार्वा अवस्थाएँ आपस में काफी मिलती है।
  2. ऊपर वर्णित तथ्य (बिन्दु 8) के आधर पर कई शोधकर्ताओं ने यह परिकल्पना की कि उद्विकास के दौरान लार्वा अवस्थाओं ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। उदाहणार्थ कुछ जातियों के लार्वा अन्य जातियों के वयस्कों से अधिक समानताएँ रखते हैं। इस आधार पर यह कल्पना की जा सकती है कि कुछ लार्वाओं ने जनन की क्षमता प्राप्त कर दूसरी जातियों को जन्म दिया। इस परिकल्पना को इस तथ्य से बल मिलता है कि कुछ जातियों के लार्वा वयस्क अवस्था में बदले बिना ही जनन कर सकते हैं। यह परिघटना शावकजनन (paedogenesis) कहलाती है। यह ठीक से कहना कठिन है कि उद्विकास में इस शावकजनन का कितना योगदान है।
  3. लार्वा अवस्थाएँ (तथा वयस्क के अलावा अन्य अवस्थाएँ) वयस्क की तुलना में अधिक कोमल होती है अतः इन पर वातावरण का भी अधिक प्रभाव पड़ता है। इस तरह प्राकृतिक चयन (natural selection) का प्रभाव भी इन पर अधिक पड़ता है। इस कारण से लार्वा अवस्थाएँ उद्वैकासिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं।

लार्वा की इन विशेषताओं को भली-भांति समझने के लिए इस अध्याय में क्रस्टेशिया समूह के लार्वाओं का वर्णन किया जा रहा है।

क्रस्टेशिया वर्ग के लार्वा

ऊपर स्पष्ट किया जा चुका है कि जब भ्रूणीय अवस्थाएँ लम्बे समय तक परिवर्धित होती है। तो लार्वा अवस्थाएँ छोटी होती हैं तथा उत्पन्न लार्वा या जन्तु वयस्क से अधिक समानता रखता है। जब भ्रूण शीघ्र ही लार्वा के रूप में स्फुटित हो जाता है तब लार्वा अवस्थाएँ लम्बी होती है तथा ठीक वयस्क के समान नहीं होती है। उत्पन्न लार्वा या तो कायान्तरण (metamorphosis) द्वारा वयस्क में परिवर्तित होता है या फिर धीरे-धीरे परिवर्तित होकर वयस्क रूप प्राप्त करता है। क्रस्टेशियन जन्तुओं में भी इस तरह का क्रमबद्ध परिवर्धन होता है। परिवर्धन के दौरान लार्वा में क्रमश: एक के बाद एक खण्ड उत्पन्न होते हैं तथा इन पर संधित उपांग भी विकसित होते हैं। इस तरह परिवर्धित होने वाले लार्वाओं को अलग-अलग पहचाना जा सकता है। इन्हें क्रमश: नॉप्लियस, मेटानॉप्लियस, प्रोटोजोइया, जोइया व माइसिस नाम दिए गए है।

यह आवश्यक नहीं कि प्रत्येक क्रस्टेशियाई जन्तु में उपरोक्त वर्णित सभी अवस्थाएँ पाई ही जाएँ । उदाहरणार्थ आर्टीमिया (Artemia) का भ्रूण स्फुटित होकर नाप्लियस अवस्था में परिवर्तित हो जाता है जबकि ब्रैन्किपस (Branchipus) का भ्रूण सीधे मेटानॉप्लियस अवस्था में स्फोटित होता है। दूसरी ओर मैन्टिस व श्रिम्प में नॉप्लियस व मेटा नॉप्लियस अवस्थाएँ भ्रूण में ही गुजर जाती है तथा स्फुटन के परिणामस्वरूप प्रोटोजोइया लारवा उत्पन्न होता है। केकड़ों में सीधे जूइया अवस्था (लार्वा) पाई जाती है जबकि लोबस्टर में भ्रूण अवस्था इतनी लम्बी होती है कि लार्वा सीधे ही माइसिस के रूप में स्फुटित होता है। सभी क्रस्टेशियन लार्वा उपरोक्त पांच लार्वाओं में से किसी से मिलते हैं कुछ क्रस्टेशियाई जन्तुओं के लार्वा रूप-रंग में इनसे विभिन्न दिखाई देते हैं। इन्हें साइप्रिस (Cypris), कॅन्ट्रोगेन (Kentrogen), मेगालोपा (Megalopa) फाइलोसोमा (Phyllosoma), एलिमा (Alima) आदि नाम दिए गए हैं।

  1. नॉप्लियस लार्वा (Nauplius Larva) : क्रेस्टेशिया वर्ग का यह प्रथम लार्वा माना जाता है। नॉप्लियस लार्वा में सिर्फ तीन जोड़ी उपांग ही पाए जाते हैं। इनमें से प्रथम जोड़ी उपांग एकशाखी (uniramous) होते हैं। ये वयस्की प्रश्रृंगिका ( antennule) बनाते हैं। दूसरे व तीसरे जोड़ी उपांग द्विशाखित (biramous) होते हैं। ये दोनों जोड़ी क्रमश: श्रृंगिका ( antenna) व मेन्डिबल (mandible) कहलाते हैं तथा इन पर सीटी (setae) पाई जाती है। तीनों जोड़ी उपांग गमन (तैरने में मदद करते हैं। नॉप्लियस के अग्र भाग पर एक मध्य नेत्र (median eye) पाया जाता है।

नॉप्लियस लार्वा साइक्लोप्स (cyclops) जैसे कॉपीपोड (copepod) जन्तुओं में पाया जाता है। नॉप्लियस निर्मोचन (moulting) द्वारा अन्य लार्वावस्थाओं में परिवर्तित होकर अन्ततः वयस्क में बदल जाता है।

  1. मेटानॉप्लियस लार्वा (Metanauplius Larva)

मेटानॉप्लियस एक अस्पष्ट अवस्था है। यह आवश्यक नहीं कि समस्त क्रस्टीशियाई जन्तुओं के परिवर्धन में पहली अवस्था नॉप्लियस व दूसरी अवस्था मेटानॉप्लियस ही आए। कुछ जन्तुओं में। से सीधे ही मेटानॉप्लियस लार्वा ही उत्पन्न होता है।

मेटानॉप्लियस लार्वा भी नॉप्लियस के समान ही होता है। इसमें नॉप्लियस के तीन जोड़ी उपांगों के अतिरिक्त वक्ष में तीन या चार जोड़ी अन्य उपांग भी पाए जाते हैं ये क्रमशः लघुजम्भिका (maxillula), जम्भिका (maxilla), तथा जम्भ पदक (maxillepede) कहलाते हैं। वक्ष के खण्ड भी स्पष्ट दिखाई देते हैं तथा पश्चतम भाग फांकदार होता है। ब्रेन्किपस (Branchipus) में भ्रूण से सीधे ही मेटानॉप्लियस लार्वा उत्पन्न होता है। इनके अतिरिक्त कुछ डेकापोड जन्तुओं में भी मेटानॉप्लियस ही प्रथम लार्वा होता है।

  1. प्रोटोजोइया लार्वा (Protozoa Larva )

एक प्रोटोजोइया में सात जोड़ी उपांग पाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त इसमें सुविकसित पृष्ठवर्म या केरापेस (carapace) पाया जाता है। एक जोड़ी नेत्रों की उपस्थिति तथा अखण्डित उदर प्रोटोजोइया की अन्य विशेषताएँ है। सात जोड़ी उपांग क्रमशः प्रश्रृंगिका, श्रृंगिका, मेन्डिबल, लघुजम्भिका, जम्भिका व दो जोड़ी जम्भपदक कहलाते हैं। पीनियस मे नॉप्लियस सीधे प्रोटोजोइया लाव में बदल जाता है। क्रेस्टेशिया के केरिडिया (caridea) व स्टेनोपोडीडिआ समूहों में प्रोटोजोइया ही प्रथम लार्वा अवस्था होती है।

उदर के छः खण्डों पर पांच जोड़ी प्लवपाद (pleopod) व छठा उपांग पश्चातपाद या यूरोपोड (uropod) पाया जाता है। माइसिस लार्वा में गमन वक्षीय उपांगों की सहायता से होने लग जाता है। इससे पूर्व तक की अवस्थाओं में गमन श्रृंगिकाओं द्वारा होता था। माइसिस लार्वा निर्मोचन के उपरान्त वयस्क में बदल जाता है।

  1. साइप्रस लार्वा (Cypris larva)

सिरीपीडीया (Cirripedia) के सदस्यों को खण्डावर या बार्नेकल (barnacles) के सामान्य नाम से जाना जाता है। यह क्रास्टेशिया का एक मात्र स्थानबद्ध (sessile ) समूह है। इस समूह के जीवों में अण्डे के स्फुटन के परिणामस्वरूप तिकोने नॉप्लियस लार्वा का जन्म होता है। छः निर्मोचनों के बाद नॉप्लियस लार्वा साइप्रिस अवस्था में बदल जाता है। यह एक ओस्ट्रेकोड क्रस्टेशियन (ostracod), साइप्रिस, के समान होत है अत: इसे साइप्रिस लार्वा नाम दिया गया है।

साइप्रिस लार्वा पोषण नहीं करता है। इसका सम्पूर्ण शरीर दो भागों में पृष्ठवर्म (carapace) ढका होता है। इसमें एक जोड़ी नेत्र तथ छ: जोड़ी वक्षीय उपांग पाए जाते हैं। यह खण्डावरों की स्थिरीकरण अवस्था है जिसमें लार्वा अपनी प्रथम शृंगिका में मौजूद सीमेन्ट ग्रन्थियों की सहायता से किसी आधर से चिपक जाते हैं । कायान्तरण के द्वारा लार्वा वयस्क खण्डावर में बदल जाता है। लीपस (Lepas) व बेलेनस (Balanus) इसी प्रकार के खण्डावर है जिनमें साइप्रिस लार्वा पाया जाता है। सेकुलाइना (Sacculina) भी एक प्रकार का सिरीपीड जन्तु है इसका लार्वा केन्ट्रोगन (Kentrogon) लार्वा कहलाता है।

  1. मेगालोपा लार्वा (Megalopa Larva)

डेकोपोडा (Decapoda) क्रस्टेशिया के ब्रेकियूरा (Brachyura) समूह में सभी सच्चे केकड़े (true crabs) रखे जाते हैं। इस वर्ग में अण्डे के स्फुटन से सीधे ही जोइया लार्वा उत्पन्न होता है। जोइया लार्वा माइसिस जैसा लार्वा न बनाकर एक अन्य रूप में परिवर्तित हो जाता है जिसे मेगालोपा लार्वा नाम दिया जाता है।

मेगालोपा में एक वयस्क केकड़े की तरह ही विशाल सिरोवक्ष पाया जाता है तथा इस पर 13 जोड़ी उपांग भी मिलते हैं। मेगालोपा का उदर एक झींगे की तरह पीछे की ओर निकला हुआ होता है तथा यह छः खण्डों का बना होता है। इन खण्डों पर प्लवपाद (pleopod) पाए जाते हैं। मेगालोपा निर्मोचन के उपरान्त केकड़े में बदल जाता है।

  1. फाइलोसोमा लार्वा (Phyllosoma Larva)

स्काइलेरिडिआ (Scyllaridea ) परिवार के महाचिंगट (lobsters), जैसे पेलिनूरस (Palinurus), जेसस (Jasus), आदि में एक अन्य अवस्था का जन्म अण्डे के स्फुटन से होता है। इसे एक प्रकार का जोइया माना जा सकता है इसे फाइलोसोमा लार्वा कहा जाता है। स्पाइनी लोबस्टर (Spiny lobster) व स्पेनिश लोब्स्टर के इस लार्वा को ग्लास-क्रेब भी कहते हैं। यह लार्वा निर्मोचन के उपरान्त अन्य मध्यस्थ अवस्थाओं से गुजरने के उपरान्त वयस्क में बदल जाता है।

इनके अतिरिक्त कुछ अन्य लार्वा अवस्थाएँ, जैसे ग्लॉकोथो (Glaucothoe) (हर्मिट-क्रेब में). एलिमा (Alima) (स्किवला में), मेस्टिगोपस (mastigopus) आदि भी क्रस्टेशिया समूह में पाई जाती है।

क्रस्टेशिया लार्वाओं का महत्त्व

हेकल (Haeckel) नामक शोधकर्ता ने वर्षों पूर्व मिलती-जुलती लार्वा अवस्थाओं के आधार पर यह अनुमान लगाया कि क्रस्टेशिया के पूर्वज नॉप्लियस लार्वा जैसे सरल जीव थे। इनके विकास के परिणास्वरूप ही आज के जटिल क्रस्टेशियाई जीवों का जन्म हुआ। हेकल ने अनेक तर्कों के आधार पर बायोजेनेटिक लॉ (Biogenetic Law) या पुनरावर्तन का सिद्धान्त (Theory of recapitulation) प्रतिपादित किया। इसके अनुसार जीव के परिवर्धन का क्रम (ontogeny) उसके उद्विकास (phylogeny) को दोहराता है। इस तरह एक वयस्क जीव के विभिन्न लार्वा उस जीव के पूर्वजों के समान है।

कल के इस सिद्धान्त पर अब विश्वास नहीं किया जाता है। हाँ इतना अवश्य कहा जा सकता है कि लार्वा अवस्थाओं का अध्ययन कर हम विभिन्न जातियों के पारस्परिक सम्बन्ध व निकटता का अध्ययन कर सकते हैं क्योंकि सम्बन्धित जातियों के लार्वा भी एक जैसे होते हैं। इसके अतिरिक्त लार्वा के अन्य महत्त्व इस अध्याय के प्रारम्भ मे वर्णित किए गए है।

प्रश्न (Questions)

  1. लार्वा किसे कहते हैं ? लार्वा व भ्रूण का अन्तर स्पष्ट कीजिए । लार्वाओं की विशेषता एवं उपयोगिता पर एक लघु निबन्ध लिखिए।
  2. क्रस्टेशिया वर्ग के लार्वाओं का सचित्र वर्णन कीजिए ।
  3. नॉप्लियस लार्वा में कितने जोड़ी उपांग पाए जाते हैं ? नॉप्लियस का सुस्पष्ट चित्र बनाइये और नामांकित कीजिए। नॉप्लियस व मेटानॉप्लियस में क्या अन्तर है ? दोनों का वर्णन देकर स्पष्ट कीजिए ।
  4. प्रोटोजोइया व जोइया लार्वाओं में शिरोवक्ष व उदर पर कितने जोड़ी उपांग पाए जाते हैं ? दोनों लार्वाओं का सचित्र वर्णन कीजिए ।
  5. ऐसे एक क्रस्टेशियन जन्तु का नाम लिखिये जिसमें भ्रूण से सीधे ही मायसिस लार्वा उत्पन्न होता हो । मायसिस व क्रस्टेशिया के शेष लावाओं में क्या अन्तर है ? मायसिस का सचित्र वर्णन कर स्पष्ट कीजिए ।
  6. सीरीपीडिया के जन्तुओं के दो लार्वाओं के नाम लिखिए तथा किसी एक का सचित्र वर्णन कीजिए ।
  7. मेगालोपा व फाइलोसोमा लार्वा किन-किन क्रस्टेशियन जन्तुओं के जीवन चक्र में पाए जाते हैं ? इनका सचित्र वर्णन कीजिए ।
  8. पुनरावर्तन का सिद्धान्त (Theory of Recapotulation) या बायोजेनेटिक लॉ क्या है ? कुछ पंक्तियों में स्पष्ट कीजिए
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