मोनालिसा की पेंटिंग किसने बनाई थी , मोनालिसा की पेंटिंग इतनी फेमस क्यों है , कौन थी monalisa painting was created by in hindi

monalisa painting was created by in hindi मोनालिसा की पेंटिंग किसने बनाई थी , मोनालिसा की पेंटिंग इतनी फेमस क्यों है , कौन थी ?

मोनालीसा : विश्व प्रसिद्ध इस चित्र को पुनर्जागरणकालीन चित्रकार लियोनार्डो दे विन्ची ने बनाया था। इस चित्र का अन्य नाम ला गियोकोन्डा (La Gioconda) है जिसका अर्थ है ‘गियोकोन्डा की पत्नी‘। यह विन्ची का मित्र जिसकी पत्नी लीसा गिरर्दिनी थी इसी का चित्र मोनालीसा है। यह चित्र मोनालीसा की रहस्यमयी मुस्कान के लिए प्रसिद्ध है। मूल चित्र 3’x2’4″ आकार का था। यह पेन्टिग वर्तमान में पेरिस में एक म्यूजियम लूव्व में रखी है। इस म्यूजियम को लूव्व के महल में स्थापित नेपोलियान द्वारा किया गया। इसे इटली से नेपोलियन फ्रांस ले गया था।

प्रश्न: राफेल का एक चित्रकार के रूप में योगदान बताइए।
उत्तर: राफेल इटली का एक महान चित्रकार था। इसकी प्रमुख कृतियाँ सिस्टाइन मेडोना, मेडोना स्कूल ऑफ एथेन्स है। सिस्टाइन मेडोना चित्र जीसस की माता मेरी का है। इस चित्र में माँ का प्रेम, वात्सल्य एवं मातृत्व दर्शाने का प्रयास किया है। स्कल ऑफ एथेन्स नामक चित्र में राफेल ने प्राचीन ग्रीक दार्शनिक अरस्तु, प्लेटों आदि को शास्त्रार्थ विचार करते हए दिखाया गया है। केवल 37 वर्ष की उम्र में अपने जन्मदिन के दिन मृत्यु हुई। इसने पोप को एक पत्र लिखकर यह अनुरोध किया कि प्राचीन रोमन सांस्कृतिक धरोहर को बचाने के प्रयास किये जाने चाहिये।

प्रश्न: मध्यकालीन यूरोप की सामाजिक संरचना की विवेचना कीजिए। इसके पतन के कारण क्या थे ? क्या इसका पतन पुनर्जागरण की व्याख्या करता है ?
उत्तर: रोमन साम्राज्य के विभाजन के पश्चात् यूरोप छोटे-छोटे राज्यों में विभक्त हो गया। यूरोप में एक नई व्यवस्था प्रारम्भ हुई जिसे सामंतवाद (Fudelism) कहते हैं। यह व्यवस्था 5वीं से 14वीं शताब्दी तक बनी रही। इस काल को मध्य युग कहा जाता है। विश्व इतिहास में इसे अंधकार का युग (क्ंता ।हमे) कहा जाता है। मध्यकालीन यूरोपीय सामाजिक व्यवस्था पिरामिडनुमा थी, जिसके शीर्ष पर पोप, शासक व धर्माचार्य, मध्यम स्तर पर सामन्त वर्ग तथा निम्नवर्ग कृषक वर्ग का था।
(1) पोप (Pope): पोप (Pope) शब्द च्ंचं से बना है जिसका अर्थ है सामाजिक- धार्मिक व्यवस्था का संरक्षक। यह चर्च का मुखिया था। चर्च का समाज पर अत्यधिक प्रभाव था। चर्च ने शिक्षा पर ध्यान दिया किन्तु इसका उद्देश्य केवल ईसाई धर्म का प्रचार करना था। चर्च की मान्यताओं का विरोध करना दण्डनीय अपराध था। दण्ड था मृत्युदंड। चर्च के अनुसार-यह जीवन अल्प है महत्वहीन है। अतः अगले जन्म को सुधारने का प्रयास करना चाहिये इसके लिए चर्च की शरण में आना चाहिये। चर्च को मनुष्य की आत्मा व शरीर का संरक्षक मान लिया गया। पोप के अधीन एडवोकेट्स जो युद्ध के दौरान पोप द्वारा नियुक्त अधिकारी होता था क्लर्जी कहलाते थे। इनके बाद बिशप और पादरी आते थे। यह समाज का उच्च वर्ग था।
(2) योद्धा वर्ग (Noble)ः यह मध्यकालीन यूरोपीय समाज का मध्य स्तर का वर्ग था, जो समाज की रीढ़ था इसके दो वर्ग थे।
(i) सामंत (Fudal): सामंतीय व्यवस्था मध्यकालीन यूरोपीय समाज की रीढ़ की हड्डी थी। सामतंवाद के लक्षण थे- 1. जागीर- साधारण भूमि, 2. संरक्षण- भूमिदाता व भूमि पाने वाले के मध्य निकट संबंध तथा 3. सम्प्रभुता- अपने क्षेत्र में पूर्ण या आंशिक स्वामित्व। सामन्तों ने शिक्षा पर ध्यान नहीं दिया। शिक्षण संस्थाएं स्थापित नहीं की। अतः बौद्धिक विकास अवरूद्ध हुआ।
(ii) भूपति या मेनर व्यवस्था (Lords) or Manor System) : मेनर मध्यकालीन यूरोप एक प्रकार की जागीर जो आर्थिक ईकाई के रूप में थी। मेनर शब्द का अर्थ-ग्राम का कृषि फार्म था। प्रत्येक मेनर में एक ग्राम होता था। उसके मध्य में लॉर्ड का निवास व उसके निकट लुहारखाना, अश्वालय, अन्नागार होता था। बगीचे, तंदूर, शराब निकालने का कारखाना, मेनेरियल कोर्ट, पुरोहित का आवास और एक चर्च होता था।
बेगाार लेना, टेक्स लेना, कृषक की मृत्यु पर टैक्स लेना, चक्की पर आटा पिसवाने तथा शराब निकलवाने पर टैक्स लेना, अधीनस्थों की शत्रुओं से रक्षा करना, नोबल्स को रक्षा सेवा उपलब्ध करवाना आदि लॉर्डस के अधिकार थे। किसान के पास धन अभाव होने के कारण वह सामंत से पैसा लेता तथा उपज से चुकाता था। इसके साथ ही साथ भू-राजस्व भी चुकाता। नहीं चुका पाने पर अगले वर्ष चुकाने की प्रतीक्षा करता। अतः किसानों को स्वतंत्रता नहीं थी।
(3) देहात के निवासी/ कृषक (Peasant): मध्यकालीन यूरोपीय समाज में कृषकों की चार श्रेणियां थी।
(i) विलीन (Villeins): विलीन को पक्के आवास में रहने का अधिकार प्राप्त था। ये अपने खेतों पर फसल उगा सकते थे तथा अपने पुत्रों को पादरी बनने के लिए भेज सकते थे।
(ii) सर्फस (Serfs): सर्फस एक प्रकार के कृषि दास थे। ये कच्चे आवास में रहते थे। ये भूमि को छोड़कर नहीं जा . सकते थे। इन्हें टैक्स देना पडता था तथा उत्पादन का कुछ हिस्सा जीवन यापन के लिए मिलता था।
(iii) केटलर्स (Catlerst): इनके आवास खेत के पास ही होता था तथा लॉडर्स की सेवा करना इनका कर्तव्य होता था। जीविकोपार्जन के लिए उपरोक्त दोनों की भी सेवा करनी पडती थी।
(iv) दास (Slave): समाज में इनकी दयनीय दशा थी। उरोक्त तीनी वर्गों की सेवा करना ही इनका मुख्य कार्य था। इनसे बेगार करवायी जाती थी। ये दिन-रात सिर्फ खेतों में कार्य करते रहते थे।
(4) श्रेणी व्यवस्था (Gild Systme): जब समाज में एक समूह विशेष एक ही व्यवसाय को विकसित करता है तो श्रेणियाँ स्थापित होती हैं। योग्यता के आधार पर व्यवसाय चुनने का अधिकार नहीं था।
कैरोलिंगियन पुनर्जागरण (9वीं शती): इस समय लैटिन का पुनः समुचित अध्ययन शुरु हुआ। फ्रांसिस पीटर आबेलार (1079-1142) के काल में साहित्य एवं स्थापत्य पर विशेष ध्यान दिया गया। 12वीं शेती में मानववादी विचारों का विकास पेरिस व ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की स्थापना। यूनान के धर्मशास्त्रीय एवं नैतिक ग्रंथों की पुनः खोज। सम्राट फेडरित (1212-1250) मानसिक एवं आत्मनिर्भरता का समर्थक था। सिसली में बौद्धिक एवं साहित्यिक वातावरण का सजन हुआ।
बौद्धिक चिंतन का प्रारम्भ
12वीं शताब्दी में सामंतवाद का पतन प्रारम्भ हुआ। इससे बहुत सी शिक्षण संस्थाएं स्थापित हई – ऑक्सफोर्ड और कोलोन. वियना आदि। इससे बौद्धिक विकास की रुकावट के स्थान पर बौद्धिक चिंतन प्रारम्भ हुआ। ये संस्थाएं बौदिक क्रांति का कारण बनी। इस बौद्धिक चिन्तन ने इस बात पर प्रश्न चिन्ह लगाया कि क्या चर्च मनुष्य की आत्मा व शरीर का संरक्षक है। बौद्धिक चिन्तकों ने चर्च के ऊपर बाईबिल की सर्वोच्चता स्थापित करने का प्रयास किया। अतः चर्च का वर्चस्व कम होने लगा।
सामंतवादी व्यवस्था के पतन के साथ ही मेनर व्यवस्था का प्रभाव भी कम होने लगा। अतः किसान कुछ स्वतंत्र रूप से विचरण करने लगा अर्थात् अब वे अन्य सामंत के पास अपनी मर्जी से जा सकता था। शिक्षा के प्रभाव से मनुष्य अपनी योग्यता व इच्छा के आधार पर व्यवसाय चुनने लगा। अब मानव अगले जीवन की चिंता छोड़ कर इस जीवन को उन्नत बनाने का प्रयास करने लगा।धार्मिक समस्याओं के बारे में चिंता छोड़ सामाजिक समस्याओं को सुलझाने में लग गया। मानव का मानव जीवन के प्रति दृष्टिकोण बदलने लगा। इस प्रकार मध्यकालीन यूरोपीय सामाजिक व्यवस्था के केन्द्र में सामन्तवादी व्यवस्था थी और इसका पतन संपूर्ण मध्यकालीन व्यवस्था के पतन की व्याख्या करता है जो पुनर्जागरण की पृष्ठभूमि की व्याख्या करता है।