पुनर्जागरण के कारणों का वर्णन कीजिए , causes of renaissance in hindi , पुनर्जागरण के मुख्य कारण क्या थे

जाने पुनर्जागरण के कारणों का वर्णन कीजिए , causes of renaissance in hindi , पुनर्जागरण के मुख्य कारण क्या थे ?

प्रश्न: पुनर्जागरण के कारणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर: (1) कुस्तुनतुनिया का पतन: 1453 में मोहम्मद द्वितीय नामक उस्मानी तुर्क ने कुस्तुनतुनिया पर अधिकार कर लिया। पिछले 200 वर्ष से कुस्तुनतुनिया ग्रीको-रोमन संस्कृति का केन्द्र बन चुका था। धार्मिक कट्टरता के कारण कुस्तुनतुनिया से भागकर बहुत से विद्वान इटली जाकर रहने लगे। जैसे कार्डिनल बेसारियन (Cordinal Besarian) लगभग 800 पाण्डुलिपियां लेकर इटली पहुंचा। ग्वारनो द वेरोना 50 यूनानी व लैटिन पाण्डुलिपियां तथा गियोबेनी ओरिस्पा (Geobani Aoorispa) नामक विद्वान दर्शन, इतिहास आदि पर लगभग 25 पाण्डुलिपियां लेकर इटली पहुँचा। क्राइसोलोरस (Chysolorus) नामक कुस्तुनतुनिया का विद्वान सैनिक सहायता के लिए इटली पहुंचा। फ्लोरेंस विश्वविद्यालय में नियक्त हुआ तथा यनानी अध्ययन केन्द्र का प्रमख नियक्त हुआ। ये पाण्डलिपियां स्थानीय भाषाओं में प्रेस में प्रकाशित हुई जिससे साधारण लोगों तक पहुंची। कुस्तुनतुनिया पर तुर्को के अधिकार ने पुनर्जागरण के साथ-साथ भौगोलिक खोजों को जन्म दिया।
(2) क्रूसेड्स (Crusades): जेरूसेलम को पुनः प्राप्त करने के लिए ईसाइयों व मुसलमानों के मध्य जो धर्म युद्ध हुए उन्हें क्रूसेड्स कहते हैं। ख्जेरूसेलम ईसाइयों का प्रमुख तीर्थ था यहां ईशु को Friday, 7th April, 29 A.D. को क्रूस (सूली) पर चढ़ाया गया था (Good Friday), 1095-1270 ई. के बीच 8 क्रूसेड्स हुए। किसी भी धर्म युद्ध को क्रूसेड्स नहीं कह सकते। 1076 ।ण्क्ण् में सल्जुक तुर्कों ने जेरूसेलम पर अधिकार कर लिया। तुर्को ने धार्मिक कट्टरता की नीति अपनायी। पूर्वी रोमन साम्राज्य के शासक ने पोप से शिकायत की कि जेरूसेलम जाने वाले ईसाइयों पर अत्याचार हो रहे हैं। पोप न्तइंद प्प्दक ने 1095 ।ण्क्ण् में क्रूसेड्स (धार्मिक युद्ध) प्रारम्भ किया। 1212 के क्रूसेड (5वां) को बाल क्रूसेड कहते हैं। यह सर्वाधिक दर्दनाक (दुःखदायी) क्रूसेड़ था। स्टीफेन (Stephen) नामक फ्रेंच ने 30000 बच्चों को क्रूसेड में शामिल करने के लिए एकत्र किया। ये कभी जेरूसेलम नहीं पहुँच सके क्योंकि इन बच्चों को उत्तरी अफ्रीकन तट पर बेच दिया गया। हेमलिन की फाइव पाइपर नामक कहानी 5वें क्रूसेड पर आधारित है।
क्रूसेड के परिणामस्वरूप पश्चिम पूर्व के सम्पर्क में आया जिसके कारण पूर्व वे तर्क, दर्शन, इतिहास, वैज्ञानिक खोजों की जानकारी पूर्व से प्राप्त हुई। पोप के आशीर्वाद के बावजूद ईसाई जेरूसेलम को तुर्को से नहीं ले सके। इससे पोप की प्रतिष्ठा को आघात पहुँचा। इससे इस बात पर प्रश्नचिह्न लगा कि क्या वाकई पोप मनुष्य की आत्मा व शरीर का संरक्षक है ? इससे सोच धार्मिक मामलों में बदलने लगी। इसका दूसरा प्रभाव सामंतवाद के पतन रूप में दिखाई देता है।
(3) व्यापार के क्षेत्र में विकास: कहा जाता है कि क्रूसेड ने यूरोप को धनी बना दिया। क्रूसेड्स के परिणामस्वरूप् विशेषतः इटली में अनेक व्यापारिक केन्द्र स्थापित हुए। इनमें से प्रमुख स्थान थे – प्रेटो, ल्यूकाय मिलान, वेनिस, फ्लोरेन्स, विएना आदि थे। व्यापारिक केन्द्र यूरोप के सांस्कृतिक केन्द्र बने। इनमें से फ्लोरेंस रैनेसा काल का प्रमुख सांस्कृतिक केन्द्र बना।
(4) अरब-मंगोल संपर्क: कई अरबी व्यापारी यूरोप में स्थायी रूप से रहने लगे। इन्होंने स्पेन, सार्जीनिया, सिसली, फ्रांस आदि में शिक्षण संस्थाएं स्थापित की। ये संस्थाएं धर्म निरपेक्ष थी। जहां अरस्तु, प्लेटो दार्शनिकों के अध्ययन केन्द्र स्थापित किये गये। 13वीं शताब्दी में मध्य एशिया में एक मंगोल शासक कुबलाई खान हुआ। इसका उद्देश्य एशिया व यूरोप को एक सूत्र में बाँधना था। उसने अपने दरबार में कई यूरोपियन विद्वानों, राजदूतों व कलाकारों को आमंत्रित किया। इनमें मार्कोपोलो नामक वेनिस (इटैलियन) यात्री 1273-75 ई. में कुबलाई खान के दरबार में पहुँचा। इसने अपनी यात्रा के रोचक वृतांत लिखे जो मार्कोपालो की यात्राएं नाम से प्रसिद्ध हुए। आगे आने वाले यात्री इसके वृतांतों से प्रभावित हुए। इनमें सबसे महत्वपूर्ण क्रिस्टोफर कोलम्बस था। इससे भौगोलिक खोजें हुई। अरब मंगोल संपर्क के परिणामस्वरूप पश्चिम को अरबी गिनती, बीजगणित, दिशा सूचक (कुतुबनुमा), कागज, प्रेस, बारूद, आदि की जानकारी प्राप्त हुई।
(5) सामंतवाद का पतन: सामंतवाद के पतन का एक बड़ा कारण क्रूसेड्स था। सामंतवाद के पतन से मध्यकालीन रूढ़िवादी व्यवस्था ढह गई।
(6) नगरों का विकास: मेनर हाउस के स्थान पर ये नये शहर सांस्कृतिक केन्द्र बने। जिनमें फ्लोरेंस सबसे महत्वपूर्ण था।
(7) कागज व प्रेस (मुद्रण) का आविष्कार: सर्वप्रथम चीनियो ने कागज का प्रयोग किया। 51 ई. में मध्य एशिया में एक युद्ध के पश्चात अरबों ने चीनी कागज निर्माताओं को बंदी बनाया तथा अरब देश ले गये। अच्छी क्वालिटी का कागज, सर्वप्रथम इटली में प्रयुक्त हुआ। प्रिटिंग प्रेस का आविष्कार 1454 में जोहेन गुटेनबर्ग (Johannyutenbug) ने मेन्ज (Mang) (जर्मनी) में किया। सर्वप्रथम 1456 में बाईबिल को लैटिन में मुद्रित किया गया। ऐतिहासिक रूप से माना जाता है कि इंडलजेंस ऑफ निकोलस पंचम 31 पंक्तियों की एक पुस्तक 1454 में छपी। परंतु ईसाई परम्पराओं के अनुसार पहले पुस्तक बाईबिल 1456 में छपी।
1500 में 183 नगरों में लगभग 200 प्रेस स्थापित हो गयी। अधिक पुस्तके अधिक लोगों तक पहुंची, सस्ती हुई, हर ईसाई के घर में देशज भाषा में बाईबिल पहुंची। अब रहस्मयी चिन्तन का बौद्धिक चिन्तन में परिवर्तन हो गया। अब तक चर्च कहता था वही लोग मानते थे परंतु अब लोग बाईबिल स्वयं पढ़ने लगे बाईबिल का रहस्य समाप्त हुआ।
(8) भौगोलिक खोजें: भोगौलिक खोजों में दो राष्ट्रों पुर्तगाल व स्पेन की महत्वपूर्ण भूमिका रही। इसके अंतर्गत प्रिंस हेनरी, कै. डिआज, वास्को डि गामा, क्रिस्टोफर कोलम्बस आदि प्रमुख थे। भौगोलिक खोजों के परिणामस्वरूप पश्चिम की सभ्यता व संस्कृति का पूर्व की सभ्यता व संस्कृति के साथ समन्वय हुआ।
(9) स्कालैस्टिक (Schlolastic) विचारधारा: 12वीं व 13वीं शताब्दी के अंत में एक नई विचारधारा का प्रसार हुआ जिसे विद्वानों ने स्कालैस्टिक विचारधारा नाम दिया। इसके अंतर्गत अरस्तु के तर्क और सेन्ट ऑगस्टाइन के धर्मशास्त्र का समन्वय हुआ। इस प्रकार धर्म व तर्क का समन्वय हुआ। पीटर एब्लार्ड (1110-1140 ई.) एक प्रमुख स्कालौस्टक विद्वान था। रोजर बेकन 13वीं शताब्दी का ब्रिटिश स्टालेस्टिक विद्वान था। इसने चर्च की मान्यताओं का खण्डन कर विरोध किया। चर्च के अपने दार्शिक न्यायालय होते थे जिन्हें क्यूरिया (Curia) कहते थे। यह पत्तियों के समाज मनुष्य के आकाश में उड़ने की कल्पना करता था। बेकन को भी ब्नतपं द्वारा जेल भेजा गया। इसकी मृत्यु को बौद्धिक दुःखांत (Intelectual Tragety) कहा गया।
(10) राष्ट्रीयता की भावना का उदय: धर्म, पोप और भाग्य पर अवलंबित रहने वाले यूरोप के सामंती शासकों ने नवीन प्रगति पथ को अपनाने में ही अपना हित समझना शुरू किया। अतः यूरोप के देशों में स्वराष्ट्र, स्वभाषा, स्वधर्म की भावना जागृत हुई, जिसने राष्ट्रीयता की भावना को जन्म दिया। अपने देश की प्रगति हेतु व्यापार क्षेत्र में होड़ ने स्पेन, पुर्तगाल, फ्रांस और इंग्लैण्ड सभी को राष्ट्रीयता की व्यापक भावना ने पुनर्जागरण की नवीन विचारधारा को अपनाने हेतु प्रेरित किया। यूरोप में राष्ट्रीय राज्यों की स्थापना होने लगी, जिसका आधार स्वसंस्कृति का विकास बना। अज्ञान का अंधकार हटने लगा और पुनर्जागरण की ज्योति सर्वत्र जलने लगी।
प्रश्न: पुनर्जागरण की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर: पुनर्जागरण की निम्नलिखित विशेषताएं थी-
(1) स्वतंत्र चिन्तन का विकास: पहली महत्वपूर्ण विशेषता थी मानव (मनुष्य) द्वारा मध्यकालीन चर्च की परम्परागत विचारधारा से ऊपर उठ कर अपनी बुद्धि (विवेक) का प्रयोग करना।
(2) मानववाद: यह शब्द लैटिन के शब्द श्भ्नउंदपजपमेश् से बना है जिसका अर्थ है उच्च ज्ञान। मानव की मानव जीवन में रूचि मानववाद है। मानववादी विचारधारा में पोप व चर्च के स्थान पर व्यक्ति एवं समाज महत्वपूर्ण हो गया। यह मानववाद धर्म, चित्रकला, स्थापत्य कला, भौगोलिक खोजों आदि में दिखाई देता है।
(3) देशज भाषा का विकास: मध्ययुग में केवल ग्रीक व लैटिन भाषाओं का साहित्य में प्रयोग किया जाता था। परंतु रैनेसा काल में देशज भाषा की प्रतिष्ठा स्थापित हुई। उसे गरिसा के साथ सम्मान प्राप्त हुआ। ग्रीक व लैटिन के साथ-साथ अंग्रेजी, इटालियन, फ्रांसीसी, डच, स्पेनिश आदि में साहित्य की रचना की जाने लगी।
(4) व्यक्तित्व का स्वतंत्र विकास: पुनर्जागरण की एक अन्य विशेषता मनुष्य को अंधविश्वास, रूढ़ियों तथा चर्च के बंधनों से मुक्त कराकर उसके व्यक्तित्व का स्वतंत्र रूप से विकास करना था।
(5) यथार्थ सौन्दर्य की अनुभूति: चित्रकला के क्षेत्र में पुनर्जागरण की विशेषता थी – यथार्थ का चित्रण अर्थात सहज सौंदर्य एवं मानवीय भावनाओं का सटीक अंकन। काल्पनिक दिव्य-स्वरूपों के स्थान पर मानवीय स्वरूप का चित्रण। लिओनार्दो लिखता हैं, ‘‘अच्छे चित्रकार को दो प्रमुख चीजों का चित्रण करना होता है – मनुष्य और उसके मन की भावनाएं।‘‘
(6) वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास: पुनर्जागरण की एक अन्य विशेषता थी – अनुभव एवं प्रयोग के द्वारा सत्य की पहचान करना। किसी भी प्रकार के ज्ञान को वैज्ञानिक खोज पद्धति के द्वारा प्रमाणित करना। इसके मख्य सत्र थे – निरीक्षण, अन्वेषण, जाँच और परीक्षण।
(7) कला के क्षेत्र में विकास: मध्ययुग की कला काल्पनिक एवं धर्म पर आधारित थी। परन्त इस काल की कला यथार्थ थी तथा प्राकृतिक सौन्दर्य पर आधारित थी।
(8) साहित्य का विकास: इस काल का साहित्य 13वीं शताब्दी में दांते के साहित्य से प्रारंभ हुआ तथा 16वीं शताब्दी तक शेक्सपीयर के साहित्य से अपनी चरम सीमा पर पहुँच गया। (संस्था की दृष्टि से जितने साहित्यकार इस काल में हुए अन्य किसी भी काल में आज तक इतने साहित्यकार नहीं हुए)
(9) विज्ञान के क्षेत्र में विकास: रैनेसा काल का विज्ञान निरीक्षण, अनुसंधान एवं परीक्षण (जांच) पर आधारित था। अतः यह धर्म पर आधारित नहीं था।
(10) भौगोलिक खोजें: इस युग में प्रिंस. हेनरी, कैप्टेन डिआज (Diaz), क्रिस्टोफर कोलम्बस, वास्कोडिगामा आदि ने भौगोलिक खोजों में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
(11) पुष्टि के लिए प्रयोग का महत्व स्थापित होना। इस भावना का संकेत एक अंग्रेज रोजर बेकन (1214-1294 ई.) की रचना ‘आपस मेयस‘ के उद्धरण से मिलता है, ‘‘हम ज्ञान दो प्रकार से प्राप्त करते हैं – वाद-विवाद तथा प्रयोग द्वारा। वाद-विवाद से प्रश्न का अन्त हो जाता है और हम भी उस पर सोचना बंद कर देते हैं किन्तु इसमें प्रमाण नहीं होते हैं। इससे न तो संदेह समाप्त होता है और न ही मस्तिष्क को शांति प्राप्त होती है। यह बात तब तक नहीं होती, जब तक कि अनुभव एवं प्रयोग द्वारा सत्य की प्राप्ति नहीं हो पाती।‘‘ वस्तुतः रोजर बेकन प्रयोगात्मक खोज प्रणाली का अग्रदूत था।
(12) तर्क एवं मानव की जिज्ञासु प्रवृत्ति का उदय: इस युग के प्रारंभ में अरस्तू के तर्क शास्त्र का गहरा प्रभाव पड़ा।
(13) परम्पराओं व मान्यताओं को तर्क की कसौटी पर कसना।
(14) मध्यकालीन विषयों का प्रभाव।
(15) शिक्षा एवं भौतिक मूल्यों के प्रति आकर्षण।
प्रश्न: पुनर्जागरण कालीन साहित्य की विशेषताओं एवं प्रमुख साहित्यकारों के बारे में बताइए।
उत्तर: पुनर्जागरण कालीन साहित्य की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित थी।
ऽ बोलचाल की/देशज भाषा में साहित्य की रचना।
ऽ साहित्य की विषय-वस्तु में परिवर्तन – धार्मिक विषयों के स्थान पर मनुष्य के जीवन व उसके कार्यकलाप को महत्व को भी दिया गया।
ऽ साहित्य की शैली में परिवर्तन – व्यंग्यात्मक, गद्य-पद्य, कविताएं, नाटक आदि शैलियों में लेखन।
ऽ साहित्य का मानवता प्रधान, आलोचनावादी, व्यक्तिवादी होना।
पुनर्जागरणकालीन प्रमुख साहित्यकार इतावली साहित्यकार: पुनर्जागरण की शुरूआत इटली से हुई और इतावली साहित्य में ही पुनर्जागरण की सर्वप्रथम अभिव्यक्ति हुई। इटली के मुख्य साहित्यकार एवं उनकी रचनाएं निम्नलिखित थी-
(1) दाँते: फ्लोरेंस निवासी दाँते को ‘पुनर्जागरण का अग्रदूत या पिता‘ कहा जाता है। इनकी प्रसिद्ध कृति ‘डिवाइन कॉमेडी‘ है। अन्य कृति ‘द मोनार्किया‘ ‘द वल्गरी इलोकोसिया‘ ‘‘बीलानोआ‘‘ आदि हैं।
(2) पैट्रार्क: फ्लोरेंस निवासी पैट्राक्र को प्रथम मानववादी मानववाद का पिता कहा जाता है। यह एक महान गीतकार एवं जीवनीकार था। जिसमें लोरो के गीत, फेमेलियर लेटर्स अत्यधिक लोकप्रिय हुए।
(3) बुकासियो: फ्लोरेंस निवासी बुकासियो इटालियन गद्यकार था। इनकी प्रसिद्ध ‘कृति डेकोमेरोन‘ तथा ‘जीनीयोलोजी ऑफ गॉडस‘ थी। डेकोमेरोन बुकासियों ने बड़ी चतुराई से मानव स्वभाव के वीभत्स रूप और गंदे रोमांच का वर्णन किया है। अन्य कृतियों में एरिआस्ट्रो है।
फ्रांसिसी साहित्यकार: फ्रांस में फ्रायसर्ट, बिलो, रेबेलास, मान्टेन, मोंते बड़े प्रसिद्ध साहित्यकार रहे। फ्रायसर्ट ने फ्रेंच भाषा में काव्य तथा गद्य में कृतियाँ लिखी। बिलो एक लोकप्रिय कवि हुआ। रेबेलास ने नया संदेश ‘पाताग्नुएल‘ गार्गेन्तुआ आदि ग्रंथ लिखे। मान्टेन को प्रथम आधुनिक व्यक्ति की उपाधि दी गयी है। यह मानववादी और निबंधकार था।
अंग्रेजी साहित्यकार: इस समय अंग्रेजी साहित्य का विशेष विकास हुआ, जिनमे प्रसिद्ध साहित्यकार थे – ‘‘चैसर‘‘ जिसे अंग्रेजी काव्य का पिता कहा जाता है इनकी प्रसिद्ध कृति ‘कैन्टनबरी टेल्स‘ है। ‘टॉमस मूर‘ ने यूटोपिया (कल्पित लोक) लिखा। फ्रांसिस बेकन ने ‘शुद्ध मस्तिष्क और ज्ञान की प्रगति‘, ‘द एडवान्समेंट ऑफ लर्निंग‘,‘द न्यू एटलाटिंस‘ की रचना की। विलियम शेक्सपीयर अपने युग का महान कवि और नाटकार था इसने दुखांत व सुखांत नाटक लिखें। दुखांत नाटकों में ऑथेलियों, मैकबेथ, हेमलेट, हेनरी चतुर्थ, रिचर्ड आदि थे तथा सुखांत नाटकों में द मेरी, वाइवस ऑफ विन्डसर, ट्वेल्व नाइट, द टेम्पेसेट आदि थे। अन्य प्रसिद्ध कृतियाँ – रोमियो जूलियट, जूलियस सीजर, मर्चेट ऑफ वेनिस थी।
अन्य प्रसिद्ध साहित्यकार: पुनर्जागरण कालीन हॉलैण्ड निवासी इरैस्मस अपने युग का प्रमुख मानववादी एवं साहित्यकार था। इनकी कृतियां ‘इन द प्रेज ऑफ फॉली‘ (मूर्खत्व की प्रशंसा) तथा ‘पॉकॅट डेगर‘, ‘न्यू टेस्टामेंट‘, ‘ट्रांसलेट ऑफ बाइबिल‘ आदि हैं। सर्वेन्टीज स्पेन का महान लेखक था इनकी कृति ‘डान क्विक्जोट‘ है। कैमोस पुर्तगाली साहित्यकार था इनकी कृति ल्यूसिचार्ड है।
प्रश्न: पुनर्जागरण का विज्ञान के क्षेत्र में क्या प्रभाव पड़ा? पुनर्जागरणकालीन प्रमुख वैज्ञानिक विचारधाराए कौन-कौनसी उपजी? विवेचना कीजिए।
उत्तर: पुनर्जागरण काल में विज्ञान का अभूतपूर्व विकास हुआ जिसके कारण थे-
ऽ धार्मिक आवरण को हुआकर सोचने की प्रवृत्ति।
ऽ माननववाद से बौद्धिक विकास।
ऽ वैज्ञानिकवाद को प्रोत्साहन।
ऽ तर्कवाद की स्थापना
रोजर बेकन को प्रायोगिक विज्ञान का जन्मदाता माना जाता है। उसके इस कथन ने ‘‘ज्ञान की प्राप्ति प्रेक्षण और प्रयोग करने से ही हो सकती है‘‘ ने विज्ञान को जन्म दिया।
मुख्य वैज्ञानिक विचारधाराएं
सूर्य केन्द्रित सिद्धान्त: टॉलेमी ने भूकेन्द्रित सिद्धांत स्थापित किया था। जिसे पुनर्जागरण काल में पोलैण्ड के वैज्ञानिक कॉपरनिकस ने अमान्य करके सूर्यकेन्द्रित सिद्धांत प्रतिपादित किया। कॉपरनिकस ने ‘कन्सरनिंग द रिवोल्यूशन ऑफ हेवनली बॉडिज तथा ‘ऑन द रिवोल्यूशन ऑफ द सेलेस्टियल बॉडीज‘ नामक पुस्तक लिखी। जर्मन खगोलशास्त्री केपलर ने कॉपरनिकस के सिद्धांत की गणितीय प्रमाणों से पुष्टि की। उसने बताया कि ग्रह सूर्य के चक्कर लगाते समय उनका पथ वर्तुलाकार न होकर दीर्घवृत्तीय होता है। इटालियन वैज्ञानिक गैलीलियो ने भी कॉपरनिक्स के सिद्धांत को स्वीकार किया। जिसने एक दूरबीन बनाकर ग्रहों की गति को देखा। गैलिलियों ने यह सिद्ध कर दिया कि गिरते हुए पिण्डों की गति उनके भार पर निर्भर नहीं करती बल्कि दूरी पर निर्भर करती है, जिससे अरस्तू का सिद्धांत गलत साबित हो गया। ब्रिटिश वैज्ञानिक सर आईजैक न्यूटन ने यह सिद्ध कर दिया कि ये समस्त ग्रह (आकाशीय पिण्ड) आपस में एक-दूसरे से गुरूत्वाकर्षण की वजह से बंधे हुए हैं। उन्होंने पलायन वेग का सिद्धांत भी स्थापित किया। उन्होंने अपनी पुस्तक ‘‘प्रिंसीपिया मेथेमेटिसिया‘‘ में इस सिद्धांत को स्थापित करके यह स्पष्ट कर दिया कि प्रकृति सुव्यवस्थित नियमों के अनुसार चल रही है। इंग्लैण्ड के वैज्ञानिक विलियम गिलबर्ट ने चुम्बक की खोज की तो हॉलैण्डवासी जॉनसन ने माइक्रोस्कोप बनाया। चिकित्सा विज्ञान में इंग्लैण्ड के विलियम हॉर्वे ने रक्त परिसंचरण का सिद्धांत प्रतिपादित किया। नीदरलैण्ड के वैज्ञानिक बेसीलियस ने औषधि एवं शल्य प्रणाली का गहन अध्ययन किया और अपनी पुस्तक ‘कन्सर्निग द स्ट्रेक्चर ऑफ ह्यूमन बॉडीज‘ में इनके सिद्धांत स्थापित किये। इसी प्रकार वॉन हैलमोट ने ब्व्2 गैस का निर्माण किया तो कोडेस ने ईथर का। रॉबर्ट बाइल ने गैसों के विस्तार के क्षेत्र में नये सिद्धांत प्रतिपादित किये।
निष्कर्ष यह निकला कि विश्व कोई देवयोग या आकस्मिक घटना नहीं है अपितु एक ऐसी वस्तु है जो प्रकृति के सुव्यवस्थित नियमों के अनुसार चल रही है।