आण्विक या अणु कक्षक सिद्धांत (molecular orbital theory in hindi) (MOT) : M.O.T. के अनुसार जितने परमाण्विक कक्षक अतिव्यापन में भाग लेते है उतने ही नए अणु कक्षकों का निर्माण होता है।
जब दो परमाण्वीय कक्षक अतिव्यापन करते है तो दो अणु कक्षकों का निर्माण होता है।
एक बंधी अणु कक्षक तथा दूसरा प्रतिबंधी या विपरीत बंधी अणु कक्षक कहलाता है।
बन्धी अणु कक्षकों की ऊर्जा परमाण्विक कक्षकों से कम होती है तथा ये परमाण्वीय कक्षको के योग प्रभाव से बनते है तथा विपरीत बंधी या प्रतिबंधी अणु कक्षकों की ऊर्जा परमाण्वीय कक्षकों से अधिक होती है तथा ये परमाण्वीय कक्षकों के अंतर प्रभाव से बनते है।
परमाण्वीय कक्षकों के संयोजन की आवश्यक शर्तें
1. जितने परमाण्वीय कक्षक आपस में अतिव्यापन करते है , उतने ही नए अणुकक्षकों का निर्माण होता है।
2. समान ऊर्जा के परमाण्वीय कक्षक ही अतिव्यापन में भाग लेते है।
3. अतिव्यापन जितना अधिक होता है , बंध उतना ही प्रबल बनता है।
4. वे परमाण्वीय कक्षक जो समान सममिति के होते है वे ही अणु कक्षकों का निर्माण करते है।
अणु कक्षक तीन प्रकार के होते है –
i. बंधी अणु कक्षक : इनकी परमाण्वीय कक्षकों से कम होती है , ये परमाण्वीय कक्षकों के योग प्रभाव से बनते है , इन्हें σb या πb के नाम से जाना जाता है।
जहाँ σb = सिग्मा बंधी अणु कक्षक
πb = पाई बंधी अणु कक्षक
ii. प्रतिबंधी अणु कक्षक : इनकी ऊर्जा परमाण्वीय कक्षकों से अधिक होती है , ये परमाण्वीय कक्षकों के अंतर प्रभाव से बनते है , इन्हें σ* या π* के नाम से जाना जाता है।
जहाँ σb = सिग्मा प्रतिबंधी अणु कक्षक
πb = पाई प्रतिबंधी अणु कक्षक
iii. अबंधी अणु कक्षक : इनकी ऊर्जा परमाण्वीय कक्षकों के समान होती है , ये न तो बंध बनाने में सहायक होते है और न ही बंध बनाने का विरोध करते है।
अणु कक्षकों में इलेक्ट्रॉन पाउली व हुन्ड के नियमानुसार भरे जाते है।
परमाण्वीय कक्षको के अतिव्यापन से बनने वाले अणु कक्षक निम्नलिखित है –
i. बंधी अणु कक्षक : इनकी परमाण्वीय कक्षकों से कम होती है , ये परमाण्वीय कक्षकों के योग प्रभाव से बनते है , इन्हें σb या πb के नाम से जाना जाता है।
जहाँ σb = सिग्मा बंधी अणु कक्षक
πb = पाई बंधी अणु कक्षक
ii. प्रतिबंधी अणु कक्षक : इनकी ऊर्जा परमाण्वीय कक्षकों से अधिक होती है , ये परमाण्वीय कक्षकों के अंतर प्रभाव से बनते है , इन्हें σ* या π* के नाम से जाना जाता है।
जहाँ σb = सिग्मा प्रतिबंधी अणु कक्षक
πb = पाई प्रतिबंधी अणु कक्षक
iii. अबंधी अणु कक्षक : इनकी ऊर्जा परमाण्वीय कक्षकों के समान होती है , ये न तो बंध बनाने में सहायक होते है और न ही बंध बनाने का विरोध करते है।
अणु कक्षकों में इलेक्ट्रॉन पाउली व हुन्ड के नियमानुसार भरे जाते है।
परमाण्वीय कक्षको के अतिव्यापन से बनने वाले अणु कक्षक निम्नलिखित है –
परमाण्वीय कक्षक
|
अणु कक्षक
|
1s + 1s
|
σb1s + σ*1s
|
2s + 2s
|
σb2s + σ*2s
|
2pz + 2pz
|
σb2pz + σ*2pz
|
2px + 2px
|
π b2px + π*2px
|
2py + 2py
|
π b2py + π*2py
|
बन्ध क्रम (B.O) : दो परमाणुओं के मध्य बन्धो की संख्या को बंध क्रम कहते है।
- बंध क्रम का मान शून्य होने पर अणु का प्रकृति में अस्तित्व नहीं होता है।
- बंध क्रम का मान 1 , 2 , 3 होने पर परमाणुओं के मध्य क्रमशः एकल , द्वि व त्रि बंध पाए जाते है।
- बंध क्रम का मान भिन्नात्मक (भिन्न के रूप मे) रूप में भी हो सकता है।
- बंध क्रम का मान बढने पर अणु का स्थायित्व भी बढ़ता है।
- बन्ध क्रम बढ़ने पर बंध लम्बाई कम होती है।
- यदि अणु कक्षकों में सभी इलेक्ट्रॉन युग्मित हो , तो अणु की प्रकृति प्रतिचुम्बकीय होती है तथा यदि अणु कक्षकों में एक भी इलेक्ट्रॉन अयुग्मित हो तो अणु की प्रकृति अनुचुम्बकीय होती है।
बंध क्रम = ( बंधी इलेक्ट्रॉन की संख्या + प्रतिबंधी इलेक्ट्रॉन की संख्या )/2
या
B.O. = (B.E + A.B.E)/2
1. H2 अणु का अणु कक्षक चित्र :
1H = 1s1
1H = 1s1
इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = (σb1s)2
B.O. = (B.E + A.B.E)/2
B.O. = (2 – 0)/2 = 1
प्रकृति = प्रतिचुम्बकीय
2. H2+ आयन का अणु कक्षक चित्र :
1H = 1s1
1H+ = 1s0
इलेक्ट्रॉनिक विन्यास = (σb1s)1
B.O. = (B.E + A.B.E)/2
B.O. = (1 – 0)/2 = 0.5
प्रकृति = अनुचुम्बकीय
अणु | बंध क्रम |
B2 | 1 |
C2 | 2 |
N2 | 3 |
N2+ | 2.5 |
N2– | 2.5 |
O2 | 2.0 |
O2+ | 2.5 |
O2– | 1.5 |
O22- | 1.0 |
F2 | 1.0 |
Ne2 | 0.0 |
ट्रिक : बंध क्रम ज्ञात करने की ट्रिक
10/1.0 , 11/1.5 , 12/2.0 , 13/2.5 , 14/3.0 , 15/2.5 , 16/2.0 , 17/1.5 , 18/1.0 , 19/0.5 , 20/0.0
उदाहरण : O2 का बंध क्रम = ऑक्सीजन का परमाणु क्रमांक x 2
O2 का बंध क्रम = 8 x 2
16/2.0 ;
अत: O2 का बंध क्रम = 2 होगा।
कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
आवर्त में बाएं से दायें जाने पर प्रभावी नाभिकीय आवेश बढ़ता है अत: परमाणु का आकार छोटा होता जाता है।
अपवाद 1 : अक्रिय गैसों की परमाण्वीय त्रिज्याएँ अपेक्षाकृत कुछ अधिक छोटी होती है क्योंकि इनके अंतिम कोश में 8 इलेक्ट्रॉन होते है अत: ये सहसंयोजक या धात्विक बंध का निर्माण नहीं करते है अत: इनकी वांडरवाल त्रिज्या ज्ञात की जाती है इसलिए इनकी परमाण्वीय त्रिज्या अधिक होती है।
अपवाद 2 : संक्रमण तत्वों की श्रेणी में बाए से दाए जाने पर परमाणु के आकार में कोई विशेष कमी नही होती है क्योंकि संक्रमण तत्वों की श्रेणी में बाएं से दायें जाने पर निम्न दो कारक परमाणु के आकार को प्रभावित करते है।
प्रभावी नाभिकीय आवेश
बायें से दायें जाने पर नाभिक में प्रोटोनो की संख्या लगातार बढती है जिससे प्रभावी नाभिकीय आवेश बढ़ता है व परमाणु का आकार छोटा होता है।
परिरक्षण प्रभाव
आंतरिक कोश के इलेक्ट्रॉनों द्वारा बाहरी कोशों के इलेक्ट्रॉन के प्रतिकर्षण करने वाला प्रभाव परिरक्षण प्रभाव कहलाता है।
परमाण्वीय त्रिज्या व आवर्तिता में टिपण्णी
वर्ग में ऊपर से नीचे जाने पर कोशों की संख्या बढती जाती है अत: परमाणु का आकार बढ़ता जाता है।
अपवाद 1 : संक्रमण तत्वों की श्रेणी में 3d श्रेणी से 4d श्रेणी में जाने पर परमाणु के आकार में वृद्धि होती है लेकिन 4d श्रेणी से 5d श्रेणी में जाने पर परमाणु के आकार लगभग समान रहते है।
लैंथेनाइड संकुचन के कारण।
उदाहरण : निकल (Ni) से पैलेडियम (Pd) की ओर जाने पर 18 प्रोटोन की वृद्धि होती है , प्रोटोनो की यह वृद्धि बढ़ते हुए कारको को संतुलित कर देती है अत: पैलेडियम व प्लेटिनम के आकार के लगभग समान होते है जबकि प्लेडियम से प्लेटिनम की ओर जाने पर 32 प्रोटोन की वृद्धि होती है।
अपवाद : बोरोन (B) से एल्युमिनियम (Al) तक जाने पर आकार बढ़ता है जबकि Al से Ga (गैलियम) तक जाने पर परमाणु के आकार में कमी आती है क्योंकि प्रोटोनो की संख्या में वृद्धि होती है।