अर्धसूत्री विभाजन और समसूत्री विभाजन में अंतर क्या है , meiosis and mitosis difference in hindi table

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अर्द्धसूत्री विभाजन (Meiosis)

प्रत्येक जीव अपने समान संतति उत्पन्न करता है। निम्न श्रेणी के पादपों, जैसे- शैवाल, कवक आदि में जैसा कि सर्वविदित है, जनन (reproduction) सजीवों का मुख्य लक्षण है जिसके परिणामस्वरूप मुख्य रूप से अलैंगिक जनन (asexual reproduction) होता है जिसमें कोशिकायें समसूत्री विभाजन द्वारा विभाजित होती हैं । किन्तु उच्च श्रेणी के पादपों व जन्तुओं में मुख्य रूप से लैंगिक जनन (Sexual reproduction) होता है। इन जीवों में लैंगिक जनन के समय नर व मादा युग्मको (male & female gametes) का निर्माण होता है जिनमें निषेचन (fertilization) की क्रिया के फलस्वरूप बनने वाले युग्मनज (zygote) में गुणसूत्रों की संख्या द्विगुणित (27) हो जाती है । अत: यह आवश्यक हो जाता है। कि युग्मकों में गुणसूत्रों की संख्या अगुणित (n) हो, जिससे किसी जाति विशेष की संततियों में पीढ़ी दर पीढ़ी गुणसूत्रों की संख्या स्थिर बनी रहे । अतः द्विगुणित जनन कोशिकाओं (diploid reproductive cells) में होने वाली यह क्रियाविधि जिसके फलस्वरूप प्रत्येक लैंगिक पीढ़ी में गुणसूत्रों की द्विगुणित संख्या (2n) घटकर अगुणित (n) हो जाती है, अर्धसूत्री विभाजन या मिओसिस (Reduction divsion or meiosis) कहलाती है।

वीजमैन (Wiesmann, 1887) प्रथम कोशिका वैज्ञानिक थे जिन्होंने युग्मकों (gametes) में गुणसूत्रों की संख्या में ह्रास (reduction) बताया। बाद में फारमर तथा मूर (Farmer & Moore, 1905) ने ‘मिओसिस’ (Meiosis) शब्द का प्रयोग किया तथा बताया कि मिओसिस एक विशेष प्रकार का विभाजन है, जिसमें गुणसूत्रों की संख्या द्विगुणित (2n) से घटकर अगुणित (n) हो जाती है। मिओसिस एक लम्बी प्रक्रिया है जिसमें केन्द्रक और कोशिका द्रव्य का दो बार विभाजन होता है। प्रथम विभाजन मिओसिस प्रथम (I) अथवा ह्रास विभाजन (reduction division ) कहलाता है जिसके फलस्वरूप गुणसूत्रों की संख्या घटकर आधी हो जाती है। जबकि दूसरा विभाजन मिओसिस द्वितीय (II) साधारण समसूत्री विभाजन के समान ही होता है। अर्धसूत्री विभाजन के परिणामस्वरूप एक द्विगुणित (2n) कोशिका से चार अगुणित (n) पुत्री कोशिकाओं का निर्माण होता है ।

अर्धसूत्री विभाजन के प्रकार (Types of meiosis)

अलग-अलग जीवों के जीवन चक्र में अर्धसूत्री विभाजन का समय अलग होता है उसके आधार पर इस प्रकार के विभाजन को तीन प्रकारों में बाँटा जा सकता है-

(1) युग्मकीय अर्धसूत्रण ( gametic or terminal meiosis) – इस प्रकार का अर्धसूत्री विभाजन जन्तुओं तथा कुछ निम्न श्रेणी के पादपों में युग्मक बनने से पहले होता है ।

(2) युग्मनजीय अर्धसूत्रण (zygotic of initial meiosis ) — इस प्रकार का अर्धसूत्री विभाजन पौधों में निषेचन की क्रिया के फलस्वरूप बनने वाले युग्मनज (Zygote) में होता है ।

( 3 ) बीजाणुकीय अर्धसूत्रण (sporic or intermediary meiosis)—इस प्रकार का अर्धसूत्री विभाजन जीवन-चक्र (diplohaplontic) में निषेचन की क्रिया तथा युग्मकों के निर्माण के बीच बीजाणु जनन (sporogenesis) के समय होता है ।

मिओसाइट्स (Meiocytes)

वे कोशिकायें जिनमें अर्धसूत्री विभाजन होता है, मिओसाइट्स कहलाती है, जैसे- पौधों में बीजाणु मातृ कोशिकायें जिनमें लघुबीजाणुओं ( Microspores) तथा गुरुबीजाणुओं (megaspores) निर्माण होता हैं, पौधों में मिओसाइट्स की तरह कार्य करती हैं । अर्धसूत्री विभाजन का अध्ययन कुछ पादपों, जैसे- ट्रेडेस्केन्शिया, धतूरा, विसिया, जियामेज (मक्का) तथा ओनीऑन (प्याज) के तरुण परागकोषों में किया जा सकता है ।

(A)  मिओसिस प्रथम (Meiosis I or reduction division or heterotypic division )

मिओसिस प्रथम अधिक महत्त्वपूर्ण विभाजन होता है, क्योंकि इसमें गुणसूत्रों की संख्या घटकर आधी रह जाती है। यह विभाजन भी दो चरणों में पूरा होता है, जिसमें प्रथम चरण में केन्द्रक का विभाजन (Karyokinesis) तथा दूसरे में कोशिका द्रव्य का विभाजन (Cytokinesis) होता है ।

(1) केन्द्रक विभाजन (Karyokinesis ) – मिओसिस प्रथम के दौरान होने वाले केन्द्रक विभाजन में निम्नलिखित चार प्रावस्थाएँ पायी जाती हैं ( चित्र 4.6 ) –

(i) पूर्वावस्था प्रथम (Prophase I)

(ii) मध्यावस्था प्रथम ( Metaphase I ) (iii) पश्चावस्था प्रथम (Anaphase I ) (iv) अन्त्यावस्था प्रथम ( Telophase I )

चित्र 4.6 : एक जनन कोशिका में अर्धसूत्री विभाजन की विभिन्न अवस्थाएँ

  1. पूर्वावस्था प्रथम (Prophase I )

मिओसिस प्रथम की पूर्वावस्था (I) एक लम्बी, जटिल क्रिया है। इसके विस्तृत अध्ययन के लिए, इसे अग्र पाँच उप-प्रावस्थाओं में बाँटा गया है –

(A) लेप्टोटीन (Leptotene (Gr., thin + nema, thread)

यह उपावस्था विभाजनान्तराल अवस्था के बाद शुरू होती है। इस उपावस्था में मुख्य रूप से निम्नलिखित परिवर्तन होते हैं-

(1) केन्द्रक आयतन में वृद्धि के कारण उसका आकार बढ़ जाता है। (2) गुणसूत्र पतले, लम्बे सूत्रों के रूप में दिखायी देने लगते हैं जिन पर अधिक संख्या में मोती के समान संरचनाएँ दिखाई देने लगती हैं जिन्हें क्रोमोमीयर्स कहते हैं ( चित्र 4.6 A ) । सामान्यतः गुणसूत्र केन्द्रकीय क्षेत्र में समान रूप से बिखरे हुए दिखाई देते हैं । किन्तु कभी-कभी गुणसूत्र केन्द्रक के एक हिस्से में ही एकत्रित हो जाते हैं, जिससे केन्द्रक का दूसरा हिस्सा खाली दिखाई देता है। इस घटना को आपुंजन (synizesis) कहते हैं । इस उपावस्था में गुणसूत्र एक क्रोमोनिल सूत्र के रूप में (Monovalent ) दिखायी देते हैं। यद्यपि S-phase में DNA का द्विगुणन हो चुका होता है लेकिन फिर भी इस उपावस्था में गुणसूत्र में दो क्रोमेटिड्स दिखायी नहीं देते हैं। गुणसूत्रों की संख्या प्रत्येक जीव में निर्धारित होती है, जैसे- जौ में 2n = 14 अतः इसकी कोशिकाओं के केन्द्रक में 14 गुणसूत्र दिखायी देते हैं । केन्द्रिक का आकार बढ़ जाता है। कुछ कोशिकाओं में केन्द्रिक मुकुलन (budding) की क्रिया द्वारा अन्य केन्द्रिकाओं का निर्माण करती है, जिससे इस उपावस्था में RNA तथा प्रोटीन का संश्लेषण बढ़ जाता है।

(B) ज़ाइगोटीन |(Zygotene (Gr., Zygon, adjoining)|

यह अर्धसूत्री विभाजन की महत्त्वपूर्ण उपावस्था है, इसके दौरान दो मुख्य क्रियाएँ होती हैं। पहली क्रिया में समजात गुणसूत्र (Homologous chromosomes) युग्म अथवा जोड़े बनाते हैं (चित्र 4.7)। दूसरी क्रिया के दौरान गुणसूत्र युग्मों के बीच सिनेप्टोनिमल कॉम्पलेक्स (synaptonemal complex) का निर्माण होता है ।

इस उपावस्था के मुख्य लक्षण निम्नानुसार हैं

(1) दो समान या समजात गुणसूत्र (Homologous chromosomes ) युग्म अथवा जोड़े बनाना शुरू कर देते हैं। यह युग्मन (pairing ) या सिनेप्सिस (synapsis ) कहलाता है, जिसमें एक गुणसूत्र माता से (maternal) तथा दूसरा पिता से (paternal ) प्राप्त होता है। युग्मन की क्रिया सटीक एवं अतिविशिष्ट होती है जिससे सिनेप्टोनिमल कॉम्पलेक्स का निर्माण होता है । विभिन्न वैज्ञानिकों द्वारा किये गये शोधों के आधार पर ऐसा माना जाता है कि समजातों के युग्म बनाने की क्रिया के लिए केन्द्रक द्रव में उत्पन्न होने वाला जलीय गतिज बल (Hydrodynamic force) उत्तरदायी है । यह बल गुणसूत्रों में कम्पन उत्पन्न करता है जिससे समजात गुणसूत्र धीरे-धीरे गति करते हुए पास आते हैं तथा आवश्यक रूप से सिनेप्टिक जोड़े (bivalents) बनाते हैं। समजातों में युग्मन (pairing ) जिप के समान (zip like) होता है । यह तीन प्रकार से हो सकता है-

(1) प्रोसेन्ट्रिक (Procentric ) — इस प्रकार के जोड़े बनाने की क्रिया में युग्मन सेन्ट्रोमीयर से शुरू होता है।

(2) प्रोटर्मिनल (Proterminal) — इस प्रकार के जोड़े बनने की क्रिया समजातों के अन्तस्थ सिरों शुरू होकर सेन्ट्रोमीयर की ओर होती है ।

(3) लोकेलाइज्ड (Localised) — इस प्रकार के जोड़े बनने की क्रिया समजात गुणसूत्रों से पूरी लम्बाई में कई स्थानों पर कहीं भी शुरू हो जाती है तथा तब तक चलती रहती है जब तक कि समजात पूर्ण लम्बाई में जोड़े नहीं बना लेते। युग्मन के समय दोनों समजात गुणसूत्र पूर्णरूप से नहीं जुड़ते हैं, बल्कि उनके मध्य करीब 0.15 से 0.2p चौड़ा स्थान रहता है जिसमें सिनेप्टोनिमल कॉम्पलेक्स बनता है। युग्मन केवल समजात खण्डों के बीच ही होता है, चाहे वे असमजात गुणसूत्रों पर ही स्थित क्यों न हो। इसके अलावा यह युग्मन एक क्षेत्र विशेष में केवल दो गुणसूत्रों के बीच ही होता है, जैसे-

एक स्वचतुगुणित (autotetraploid) में प्रत्येक प्रकार के चार समजात गुणसूत्र होते हैं किन्तु एक क्षेत्र विशेष में केवल दो गुणसूत्रों के बीच ही युग्मन होता है। जैसा चित्र 4.8 में प्रदर्शित किया गया है।

चित्र 4.7 : मिओसिस प्रथम के समय क्रोमोसोम्स में होने वाले परिवर्तन का चित्रीय निरूपण ।

(2) सिनेप्टोनिमल कॉम्पलेक्स को समजातों के युग्मन का भौतिक आधार माना जाता है इसका अध्ययन सर्वप्रथम एम.जे. ए. मोसेज (M.J. Moses, 1958) ने किया । इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी द्वारा यह संरचना दो समजातों के मध्य प्रोटीन द्वारा निर्मित तीन समानान्तर रेखीय धागों के जटिल के रूप में दिखायी देती है (चित्र 4.9) जिसमें एक घना केन्द्रीय धागा केन्द्रीय तत्व (central element) कहलाता है। केन्द्रीय तत्व दोनों तरफ दो पार्श्व धागों या तत्वों (lateral elements) द्वारा घिरा रहता है जिन्हें पार्श्व तत्व कहते हैं। विभिन्न जातियों में सामान्यतः सिनेप्टोनिमल कॉम्पलेक्स की कुल चौड़ाई लगभग 160 से 240 nm के बीच सीमित रहती है । किन्तु इसको बनाने वाले घटकों की चौड़ाई अलग-अलग जातियों में कम या ज्यादा हो सकती है। इस जटिल में पार्श्व तत्व का व्यास 30 से 65 nm, केन्द्रीय तत्व का चित्र 4.8 : केवल दो गुणसूत्रों के बीच युग्मन

व्यास 12 से 50 nm तथा केन्द्रीय तत्व व पार्श्व तत्वों के मध्य पाया जाने वाला स्थान 65 से 120m तक हो सकता है। केन्द्रीय तत्व पार्श्व तत्वों से अनुप्रस्थ तन्तुओं द्वारा जुड़ा रहता है जिन्हें L. C. तन्तु कहते हैं । ये दोनों समजातों को पार्श्व तत्वों से जोड़े रहते हैं, स्थिरता प्रदान करते हैं तथा उनके बीच आवश्यक दूरी बनाये रखते हैं । अनुप्रस्थ तन्तु पतले, सीधे व निश्चित लम्बाई के अवलित प्रोटीन पदार्थों से मिलकर केन्द्रीय तत्व बनाते हैं । ऐसा माना जाता है कि सिनेप्टोनिमल कॉम्पलेक्स एक संरचनात्मक ढाँचा होता है जिस पर क्रोमेटिन आकर व्यवस्थित होते हैं। इस क्रोमेटिन का केवल कुछ भाग ही खींचकर पार्श्व तत्वों को भेदता हुआ केन्द्रीय स्थान में प्रवेश करता है, जहाँ पर आणविक युग्मन (molecular pairing) तथा आनुवंशिक पदार्थ का आदान-प्रदान होता है डिप्लोटीन उपावस्था में सिनेप्टोनिमल कॉम्पलेक्स बिखर जाता है ।

चित्र 4.9 : सिनेप्टोनिमल कॉम्प्लेक्स

(3) इस उपावस्था में बहुत कम मात्रा में (0.3%) DNA तथा हिस्टोन प्रोटीन का संश्लेषण भी होता है। इस प्रकार का संश्लेषण समसूत्री विभाजन की पूर्वावस्था में नहीं होता है। ऐसा माना जाता है कि यही DNA युग्मन (pairing) को नियन्त्रित करता है ।

(4) युग्मन के पश्चात् गुणसूत्र और अधिक कुण्डलित होकर छोटे व मोटे हो जाते हैं।

(C) पैकीटीन [ Pachytene, (Gr., Pachus, thick)]

यह उपावस्था समजातों के युग्मन पूर्ण होने के पश्चात् शुरू होती है। इसमें क्रॉसिंग आवर (crossing over ) होता है तथा समजात क्रोमेटिड्स के बीच पुनर्योजन (recombination) होता है । इस उपावस्था में होने वाली मुख्य घटनाएँ निम्नानुसार हैं-

(1) बाइवैलेन्ट (bivalent) आपस में लिपट जाते हैं तथा लम्बाई में और अधिक संकुचित होकर छोटे व मोटे हो जाते हैं। (2) इस उपावस्था के मध्य समय में केन्द्रक में गुणसूत्रों की संख्या आधी दिखायी देती है, क्योंकि प्रत्येक गुणसूत्र इकाई जिसे बाइवैलेन्ट कहते हैं, दो समजात गुणसूत्रों के मिलने से बनती है, जिसमें चार क्रोमोटिड्स होते हैं, जिनकी अपनी सेन्ट्रोमीयर होती हैं । (3) इस उपावस्था प्रत्येक बाइवैलेन्ट का एक सदस्य विभाजित होकर दो क्रोमेटिड्स बनाता है जो सेन्ट्रोमियर पर जुड़े रहते हैं। अत: प्रत्येक बाइवैलेन्ट अब टेट्रावैलेन्ट (tetravelent) दिखाई देने लगता है (चित्र 4.7)। (4) इसके पश्चात् समजातों की दो क्रोमोटिड्स (non-sister) के बीच क्रॉसिंग ओवर (crossing over ) होता है जिसके दौरान एक क्रोमेटिडस के खण्डों के टूटने तथा पुनः दूसरे क्रोमेटिडस से जुड़ने के समय क्रॉस रूपी आकार बनते हैं, जिन्हें क्याज्मेटा (chiasmata) कहते हैं । क्याज्मेटा की संख्या गुणसूत्रों की लम्बाई पर निर्भर करती है । (5) केन्द्रिक अभी भी उपस्थित रहता है (चित्र 4.6 ) ।

(D) डिप्लोटीन (Diplotene)

इस उपावस्था में (1) टेट्रावैलेन्ट और अधिक स्पष्ट हो जाते हैं । (2) टेट्रावैलेन्ट के दोनों गुणसूत्रों के बीच प्रतिकर्षण उत्पन्न हो जाता है तथा वे सिर्फ क्याज्मेटा वाले स्थानों पर एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं जहाँ क्रॉसिंग ओवर की क्रिया पूर्ण हो रही होती है । प्रतिकर्षण बल बढ़ने के कारण चारों क्रोमेटिड्स और अधिक स्पष्ट दिखायी देने लगते हैं । (3) प्रत्येक गुणसूत्र पर मैट्रिक्स चढ़ जाता हैं यद्यपि उनमें प्रतिकर्षण काफी होता है किन्तु मैट्रिक्स से घिरे होने के कारण वे अलग नहीं हो पाते (चित्र 4.6, 4.7)। (4) इस उपावस्था के अन्त में टर्मिनेलाइजेशन (terminalization) द्वारा क्याज्मेटा समाप्त हो जाते हैं । (E) डायकाइनेसिस | Diakinesis, (Gr., dia, across)]

इस उपावस्था में-(1) क्याज्मेटा पूर्णरूप से अदृश्य हो जाते हैं। (2) धीरे-धीरे केन्द्रक झिल्ली तथा केन्द्रिक अदृश्य हो जाते हैं । (3) स्पिण्डल उपकरण (Spindle apparatus) बनना शुरू हो जाता है। (4) टेट्रावैलेन्ट्स मध्य रेखा ( equator) पर जाना शुरू कर देते हैं । (5) गुणसूत्र और अधिक संघनित होकर छोटे व मोटे दिखाई देते हैं (चित्र 4.6E)।

(2) मध्यावस्था प्रथम (Metaphase 1 ) –— इस प्रावस्था में – ( 1 ) इस प्रावस्था तक पहुँचने पर केन्द्रक झिल्ली पूर्णरूप से अदृश्य हो जाती है । (2) स्पिण्डल उपकरण पूर्णरूप से बन जाता है। (3) टेट्रावैलेन्ट्स (tetravalents) मध्य रेखा पर व्यवस्थित होकर मेटाफेज प्लेट बनाते हैं । (4) टेट्रावैलेन्ट्स (tetravalents) के दोनों गुणसूत्रों की सेन्ट्रोमीयर्स ट्रैक्टाइल सूत्रों (tractile fibers) से जुड़ जाती है, उनके बीच प्रतिकर्षण बढ़ने लगता है (चित्र 4.6F) । (5) मध्य रेखा पर इनकी व्यवस्था इस प्रकार रहती हैं कि इनकी सेन्ट्रोमीयर ध्रुव की ओर तथा भुजाएँ मव्य रेखा की ओर रहती हैं।

(3) पश्चावस्था प्रथम (Anaphase I) – इस पश्चावस्था में – (1) प्रतिकर्षण और अधिक बढ़ने से बाइवैलेन्ट्स के दोनों समजातों के सेन्ट्रॉमीर अलग-अलग हो जाते हैं तथा ट्रेक्टाइल सूत्रों के संकुचन से दोनों समजात गुणसूत्र एक-दूसरे से दूर, दो विपरीत ध्रुवों की ओर गमन करना शुरू कर देते हैं। इस प्रावस्था में प्रत्येक समजात की सेन्ट्रोमीयर अविभाजित रहती है, अतः प्रत्येक बाइवैलेन्ट का एक- बाल एक समजात अलग-अलग ध्रुवों पर पहुँच जाता है। (2) इस प्रकार प्रत्येक ध्रुव पर गुणसूत्रों की द्विगुणित संख्या (2n) घटकर आधी [ अगुणित संख्या (17)) रह जाती है। (3) पश्चावस्था प्रथम के अन्त में स्पिण्डल बीच में से दब जाता है जिससे ध्रुवों की दूरी और अधिक बढ़ जाती है। (चित्र 4.6G) ।

(4) अन्त्यावस्था प्रथम (telophase I ) —— जब गुणसूत्र ध्रुव पर पहुंच चुके होते हैं तो अन्त्यावस्था कुछ शुरू होती है। इसमें – (1) प्रत्येक ध्रुव पर गुणसूत्र अकुण्डलित होकर पतले लम्बे हो जाते हैं। (2) उनके चारों ओर मैट्रिक्स शीथ घिर जाती है। (3) केन्द्रक झिल्ली एवं केन्द्रिका पुनः दिखाई देने लगते हैं। इस प्रकार दोनों ध्रुवों के स्थान पर दो केन्द्रक बन जाते हैं जिनमें गुणसूत्रों की संख्या आधी होती है। कोशिकाओं में कोशिका द्रव्य का विभाजन हो जाता है किन्तु जिनमें कोशिका द्रव्य का विभाजन नहीं प्रथम के परिणामस्वरूप बनने वाले दोनों केन्द्रक अथवा कोशिकाएँ एक साथ ही विभाजित होते हैं। यह होता है केन्द्रक सीधे ही मिओसिस द्वितीय (homotypic divsion) में प्रवेश कर जाते हैं। मिओसिस विभाजन समसूत्री विभाजन की तरह ही होता है, जिसके परिणामस्वरूप बनने वाले केन्द्रकों में गुणसूत्रों की संख्या समान रहती है (n) ( चित्र 4.6H)।

(B) मिओसिस द्वितीय (Homotypic Division or equational Division)

इसमें भी केन्द्रक चार प्रावस्थाओं से गुजरता है –

(1) पूर्वावस्था द्वितीय (Prophase II) – इस प्रावस्था में (1) केन्द्रक धीरे-धीरे गायब होने लगते। हैं । (2) गुणसूत्रों के दोनों क्रोमेटिड्स अलग स्पष्ट दिखायी देते हैं, दिखायी देते केवल सेन्ट्रोमीयर पर ही जुड़े हुए

। इस प्रावस्था के अन्त में गुणसूत्र और अधिक मोटे व छोटे हो जाते हैं। इनके सेन्ट्रोमीयर अविभाजित रहते हैं । (3) दोनों केन्द्रकों के स्थान पर स्पिण्डल बन जाता है जो कि पहले स्पिण्डल के साथ 90° का कोण बनाता है ( चित्र 4.61)।

(2) मध्यावस्था द्वितीय (Metaphase II) – इस प्रावस्था में – (1) गुणसूत्र अपने सेन्ट्रोमीयर द्वारा स्पिण्डल के ट्रेक्टाइल सूत्रों से जुड़ जाते हैं । गुणसूत्र स्पिण्डल की मध्य रेखा पर व्यवस्थित होकर मेटाफेज प्लेट बनाते हैं। (2) प्रत्येक गुणसूत्र की दोनों क्रोमेटिड्स के बीच प्रतिकर्षण उत्पन्न हो जा है । (3) प्रत्येक गुणसूत्र के सेन्ट्रोमीयर लम्बवत् विभाजित हो जाते हैं (चित्र 4.6J ) ।

(3) पश्चावस्था द्वितीय (Anaphase II) – इस प्रावस्था में – (1) शुरू में दोनों क्रोमोटिड्स के सेन्ट्रोमीयर के बीच प्रतिकर्षण और अधिक बढ़ जाता है । (2) प्रत्येक क्रोमेटिड्स विपरीत ध्रुवों की ओर जाना शुरू कर देते हैं । (3) प्रत्येक गुणसूत्र की दोनों क्रोमेटिड्स के बीच प्रतिकर्षण उत्पन्न हो जाता है । इस प्रावस्था के अन्त में प्रत्येक गुणसूत्र का एक-एक क्रोमेटिड विपरीत ध्रुवों पर पहुँच जाता है। ( चित्र 4.6K ) ।

(4) अन्त्यावस्था द्वितीय ( Telophase II ) — इस प्रावस्था में – ( 1 ) विपरीत ध्रुवों पर उपस्थित पुत्री गुणसूत्र (daughter chromosomes ) अथवा क्रोमेटिड्स पतले लम्बे, धागे जैसे दिखायी देते हैं । वे आपस में उलझकर क्रोमेटिन जाल बनाते हैं । (2) जिसके चारों ओर केन्द्रक झिल्ली का निर्माण हो जाता है । (3) केन्द्रिक दोबारा दिखायी देने लगती है। (4) स्पिण्डल धीरे-धीरे गायब होने लगता है। (5) प्रत्येक ध्रुव पर एक-एक केन्द्रक बन जाता है (चित्र 4.6L)।

कोशिका द्रव्य का विभाजन (Cytokinesis)

अन्त्यावस्था द्वितीय पूर्ण होने के बाद कोशिका पट्टिका (cell plate) विधि से कोशिका द्रव्य का विभाजन हो जाता है यदि मिओसिस प्रथम के बाद कोशिका द्रव्य का विभाजन नहीं होता है तो चारों केन्द्रकों को अलग-अलग करती हुई भित्तियों का निर्माण होता है जिसके फलस्वरूप चार संतति कोशिकाएँ बन जाती हैं ।

अर्धसूत्री विभाजन का महत्त्व (Significance of Meiosis)

  1. इस विभाजन द्वारा जीवों की संततियों में पीढ़ी दर पीढ़ी गुणसूत्रों की संख्या निश्चित बनी रहती है।
  2. इस विभाजन की पैकीटीन तथा डिप्लोटीन अवस्था में होने वाले जीन विनिमय (Exchange of genetic material) के कारण संततियों नयी जातियों के विकास का आधार हैं। नई व अधिक विकसित जातियों की उत्पत्ति सम्भव आनुवंशिक विविधताएँ पायी जाती हैं जो कि होती है।
  3. यह विभाजन लैंगिक जनन करने वाले जीवों में लैंगिक चक्र को पूर्ण करने के लिए अति आवश्यक है क्योंकि इस विभाजन के द्वारा ही युग्मक बनते हैं ।
  4. इस विभाजन के नहीं होने से कोशिकाओं में बहुगुणिता (polyploidy) उत्पन्न होती है। अर्धसूत्री विभाजन व समसूत्री विभाजन में अन्तर (Differences between Meiosis and Mitosis)