somatic cell division in hindi सोमेटिक डिवीजन किसे कहते हैं , किन कोशिकाओं में होता है , खोज किसने की

जानिये somatic cell division in hindi सोमेटिक डिवीजन किसे कहते हैं , किन कोशिकाओं में होता है , खोज किसने की ?

कोशिका विभाजन (Cell Division )

स्वतः जनन जीवद्रव्य का प्रमुख लक्षण होता है । अतः पुराने जीवद्रव्य के विभाजन से नयी जीवद्रव्य इकाइयाँ उत्पन्न होती रहती हैं। एककोशिकीय जीवों में पूर्ववर्ती कोशिकाओं से नयी कोशिकाओं का निर्माण प्रजनन का मुख्य साधन होता है । किन्तु बहुकोशिकीय जीवों में शरीर की वृद्धि, मरम्मत तथा जनन के लिए कोशिका विभाजन अत्यन्त आवश्यक होता है । सामान्यतः प्रत्येक जीव अपना जीवन एक कोशिका से प्रारम्भ करता है जिसे युग्मनज (zygote = 2n) कहते हैं । इस एककोशिकीय अवस्था से पूर्ण जीव बनने के लिए यह कोशिका बारम्बार विभाजित होती रहती है । वह कोशिका विभाजन जिसमें एक कोशिका दो समान पुत्री कोशिकाओं में विभाजित हो जाती है, जिनमें गुणसूत्रों की संख्या मातृकोशिका के समान होती है उसे समसूत्री विभाजन (Mitosis) कहते हैं । किन्तु जब जीवों में अलैंगिक (asexual) तथा लैंगिक (sexual) जनन होता है तो पौधों में विशेष रूप से बीजाणुजनन (sporogenesis) तथा पौधों व जन्तुओं में युग्मकजनन ( gametogenesis) होता है। इन क्रियाओं के दौरान होने वाला विभाजन जिसमें गुणसूत्र केवल एक बार किन्तु कोशिका दो बार विभाजित हो जाती है, अर्धसूत्री विभाजन (Meiosis) कहलाता है । इस विभाजन के फलस्वरूप बनने वाली बीजाणु तथा युग्मक कोशिकाओं में गुणसूत्रों की संख्या मातृ कोशिका से आधी अथवा अगुणित (n) हो जाती है। जीवन चक्र में नर तथा मादा युग्मकों के निषेचन के फलस्वरूप गुणसूत्रों की संख्या फिर से द्विगुणी (2n) हो जाती है। इस प्रकार पीढ़ी-दर-पीढ़ी इस संख्या को निश्चित बनाये रखने हेतु अर्धसूत्री विभाजन आवश्यक होता है ।

किसी भी कोशिका में जीवद्रव्य की वृद्धि ज्यामितीय वृद्धि होती है जिसमें केन्द्रक की संहति (Mn) तथा कोशिका द्रव्य की संहति (Mc) में वृद्धि के बीच साम्यावस्था (Equilibrium) पायी जाती है जिसे न्यूक्लिओप्लाज्मिक इण्डेक्स (Nucleoplasmic Index) ( Np ) कहते हैं ।

यहाँ

Np = Vn/Vc -Vn

Vn = केन्द्रक का आयतन

तथा Vc कोशिका का आयतन है ।

कोशिका चक्र (Cell cycle)

यूकैरिओट्स में कोशिका जनन एक जटिल व चक्रीय क्रियाविधि है जिसमें मुख्य रूप से कोशिका वृद्धि, केन्द्रक विभाजन तथा कोशिका द्रव्य विभाजन क्रियाएँ होती हैं, इसे कोशिका चक्र (Cell cycle) कहते हैं । कायिक कोशिकाओं में कोशिका चक्र में निम्न चार प्रावस्थायें पायी जाती हैं (चित्र )

G1 (gap I) प्रावस्था

S-प्रावस्था (Phase of DNA synthesis)

G2 (gap II) प्रावस्था (Premitotic phase)

M-प्रावस्था (Mitotic phase)

चित्र 4.1 : कोशिका चक्र

इनमें से प्रथम 3 प्रावस्थाओं (G1 S & G2 phases) को विभाजनांतराल प्रावस्था (Interphase) अथवा उपापचयी प्रावस्था (Metabolic phase) कहा जाता है। यह दो कोशिका विभाजन के बीच को प्रावस्था है जिसमें कोशिका स्वयं को नये विभाजन के लिए तैयार करती है। कोशिका व केन्द्रक दोनों ही अपनी वृद्धि की चरम सीमा प्राप्त कर लेते हैं । केन्द्रिका अधिक स्पष्ट हो जाती है। गुणसूत्र क्रोमेटिन जाल के रूप में दिखाई देते हैं। कोशिका द्रव्य से रिक्तिकाएँ विलीन हो जाती हैं। इस प्रावस्था के दौरान केन्द्रक में विशिष्ट प्रकार की महत्त्वपूर्ण जैव रासायनिक क्रियाएँ होती हैं जैसे कोशिका द्रव्य की वृद्धि DNA तथा प्रोटीन का संश्लेषण जिसमें DNA का द्विगुणन (duplication) सम्भव हो पाता है। यह

कोशिका विभाजन से पूर्व की अवस्था है। इसके बिना कोई भी कोशिका, विभाजन की अन्य में प्रवेश नहीं कर सकती है। ‘प्रावस्थाओं G2 प्रावस्था के बाद M- प्रावस्था आती है जिसमें केन्द्रक व कोशिका द्रव्य विभाजित होकर दो पुत्री कोशिकाओं का निर्माण करते हैं ।

(i) G1 (gap I) प्रावस्था – कोशिका विभाजन के तुरन्त बाद यह प्रावस्था शुरू हो जाती है । इस प्रावस्था में कोशिका विभाजन चक्र में लगने वाले कुल समय का लगभग 25-40% समय लग जाता है। इस अवस्था में गुणसूत्र लम्बे (extended) व पतले (slender) होते हैं तथा ट्रांसक्रिप्शन (transcription) के लिए अधिक सक्रिय होते हैं । वे आपस में लिपटकर जाल बनाते हैं। इस प्रावस्था के दौरान कई क्रमबद्ध उपापचयी क्रियाएँ होती हैं, जो DNA के द्विगुणन को शुरू करने के लिए आवश्यक होती हैं। इस अवस्था में प्रोटीन RNA, DNA – संश्लेषण के लिए आवश्यक एन्जाइम्स तथा नाइट्रोजन क्षारों का संश्लेषण व संग्रह भी होता है । यह कोशिका चक्र की एक महत्त्वपूर्ण प्रावस्था है जिसमें कोशिका विभाजन के नियन्त्रण के लिए विशिष्ट आणविक सूचक (molecular signals) उपस्थित होते हैं । जो यह निश्चित करते हैं कि कोशिका विभाजित होगी अथवा नहीं।

(2) S—प्रावस्था (Phase of DNA synthesis) – G के बाद S – प्रावस्था आती है। जैव रासायनिक रूप से यह अधिक सक्रिय प्रावस्था है जिसमें कोशिका चक्र के कुल समय का 30 से 50% समय लगता है। इस दौरान DNA, RNA तथा हिस्टोन प्रोटीन्स का संश्लेषण होता है। DNA प्रतिकृति (replication) द्वारा DNA का द्विगुणन (doubling ) होता है, जिसके फलस्वरूप पतले लम्बे अर्धगुणसूत्र (half chromosome or monovalents) पूर्णगुणसूत्र (complete chromosome or bivalents) बन जाते हैं।

(3) G2-प्रावस्था (Gap II ) – S – प्रावस्था के पश्चात् G, प्रावस्था आती है। इसमें कोशिका चक्र के कुल समय का 10 से 25% समय लगता है । इस प्रावस्था में गुणसूत्र दो क्रोमेटिड्स के बने हुए होते हैं । गुणसूत्रों का संघनन (condensation) भी इसी प्रावस्था में शुरू होता है। उसके लिए कारक भी इसी अवस्था में पाये जाते हैं। आर. टी. जॉनसन तथा पी. एन. राव (R. T. Johanson & PN Rao. 1970. 74) के अनुसार H हिस्टोन प्रोटीन के फॉस्फोराइलेशन से गुणसूत्रों का संघनन होता है। इस प्रावस्था में विभिन्न प्रकार के RNAs तथा प्रोटीनों का संश्लेषण होना रुक जाता है किन्तु साथ ही M प्रावस्था में तर्क उपकरण (spindle apparatus ) के निर्माण के लिए ट्यूबूलिन ( tubulin) नामक प्रोटीन का संश्लेषण प्रारम्भ हो जाता है ।

(4) M-प्रावस्था (Mitotic phase ) – G, प्रावस्था के बाद M- प्रावस्था आती है, जिसमें पुण कोशिका चक्र समय का 5-10% समय लगता है। इस प्रावस्था के दौरान कोशिका विभिन्न प्रावस्थाओं पूर्वावस्था, मध्यावस्था, पश्चावस्था व अन्त्यावस्था से गुजरती है तथा अन्त में दो पुत्रा कोशिओं का निर्माण होता है, जिनमें प्रत्येक गुणसूत्र का एक- एक क्रोमेटिड पाया जाता IM का पवावस्था के अन्त में प्रोटीन तथा RNAs का संश्लेषण पूर्णरूप से रुक जाता है। किन्तु अन्त्यावस्था में इनका संश्लेषण पुन: शुरू हो जाता है। केन्द्रिक तथा केन्द्रक भित्ति लुप्त होना शुरू हो जाती है किन्तु अन्त्यावस्था में पुन: ये संरचनाएँ बनना शुरू हो जाती हैं ।

कोशिका विभाजन के प्रकार (Types of cell divisions)

कोशिका विभाजन के प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं-

(1) असूत्री विभाजन ( Amitosis) अधिकतर प्रोकैरिओट्स, जैसे- जीवाणु, प्रोटोजोआ तथा कुछ निम्न श्रेणी के पादपों, जैसे- शैवाल, कवक आदि की कोशिकाओं में केन्द्रक लगभग मध्य भाग दबाव के कारण टूटकर दो भागों में बँट जाता है तथा साथ ही कोशिका द्रव्य भी विभाजित होकर दो अर्धांशों (halves) में बँट जाता है (चित्र 4.2 ) । इस प्रकार के विभाजन को असूत्री विभाजन कहते हैं, क्योंकि इसमें दोनों पुत्री कोशिकाओं में क्रोमेटिन पदार्थ बराबर मात्रा में नहीं बँट पाता है।

(2) समसूत्री विभाजन (Mitosis or Somatic Cell Division ) – समसूत्री विभाजन (Mitosis) अथवा •सोमेटिक डिवीजन (Somatic division ) कायिक कोशिकाओं में होने वाला वह विभाजन है

चित्र 4.2 : एमाइटोसिस

जिसके फलस्वरूप दो समान आकार व परिमाण की पुत्री कोशिकाओं का निर्माण होता है जिनमें गुणसूत्रों की संख्या मातृकोशिका में पाये जाने वाले गुणसूत्रों की संख्या के समान होती है । सर्वप्रथम ‘माइटोसिस’ (Mitosis-Mitos = Thread like) शब्द का प्रयोग डब्ल्यू. फ्लेमिंग (W. Flemming, 1882) ने किया। उन्होंने बताया कि केन्द्रक विभाजन के समय क्रमबद्ध प्रतिक्रियाएँ व प्रावस्थाएँ प्रदर्शित होती रहती हैं। इस विभाजन में केन्द्रक में पाये जाने वाले गुणसूत्र लम्बवत् रूप से दो भागों में बँट जाते हैं, तथा प्रत्येक गुणसूत्र का एक-एक क्रोमेटिड (monovalent ) संतति केन्द्रकों में चला जाता है। इस प्रकार गुणसूत्रों की संख्या में परिवर्तन नहीं आ पाता है। इस क्रिया के दौरान कांशिका द्रव्य में विशिष्ट प्रकार की संरचना स्पिन्डल उपकरण (spindle apparatus) का निर्माण होता है ।

पादपों में इस प्रकार के विभाजन का अध्ययन ट्रेडेस्केन्शिया की तरुण पत्ती तथा प्याज को जड़ों के शीर्ष भागों में किया जा सकता 1

  1. केन्द्रक विभाजन (Karyokinesis)

केन्द्रक विभाजन में लगातार चलने वाली क्रियाओं को अध्ययन की दृष्टि से निम्न प्रावस्थाओं में बाँटा जा सकता है-

(a) विभाजनान्तराल प्रावस्था ( Interphase )

(b) पूर्वावस्था (Prophase)

(c) मध्यावस्था ( Metaphase )

(d) पश्चावस्था ( Anaphase)

(e) अन्त्यावस्था (Telophase)

(a) विभाजनान्तराल प्रावस्था (Interphase) – जब कोशिका अविभाजन की अवस्था में होता है तो उस समय इसका केन्द्रक विभाजनान्तराल प्रावस्था या उपाचयी अवस्था (metabolic state) है ( चित्र 4.3A ) । इस प्रावस्था में केन्द्रक द्रव ( nuclear sap) घना, केन्द्रक भित्ति से घिरा हुआ होता है। केन्द्रक द्रव में अस्पष्ट क्रोमेटिन जाल व एक या अधिक केन्द्रिक (nucleoli) पाये जाते हैं । इस प्रावस्था के दौरान होने वाली विभिन्न उपापचयी क्रियाओं का वर्णन कोशिका चक्र के वर्णन के अन्तर्गत किया जा चुका है।

(b) पूर्वावस्था (Prophase) (चित्र 4.3 B, C, D ) — विभाजनान्तराल पावस्था के पश्चात् केन्द्रक विभाजन की प्रथम प्रावस्था (पूर्वावस्था) प्रारम्भ हो जाती है । यह M – प्रावस्था की सबसे लम्बी अवस्था है जो कुछ मिनटों या घण्टों में पूरी होती है । जैसे प्याज की जड़ में 71 मिनटों में तथा ग्रासहॉपर (grasshopper) न्यूरोब्लास्ट में 102 मिनटों में पूरी होती है। इस प्रावस्था के प्रमुख तीन लक्षण निम्न होते हैं-

(i) क्रोमेटिन जाल से गुणसूत्रों का विभेदन – इस प्रावस्था के प्रारम्भ में क्रोमेटिन से बने गुणसूत्र कुण्डलित (coiled) और पतले होते हैं । किन्तु वे बाद में मोटे (thick ) व छोटे (short) होने लगते हैं (चित्र 4.4A) । इसके लिए क्रोमेटिन जाल के सूत्रों से जल की हानि शुरू हो जाती है, जिससे वे धीरे-धीरे संघनित व मोटे (condensed & thick) हो जाते हैं। ये संरचनाएँ ही गुणसूत्र (chromosomes ) कहलाती हैं। प्रत्येक जाति विशेष में इनका आकार व संख्या निश्चित होती है तथा ये जोड़ों (Pairs) में पाये जाते हैं। S-प्रावस्था में DNA द्विगुणन (doubling) के कारण इस प्रावस्था में स्पष्ट होने वाला प्रत्येक गुणसूत्र दो क्रोमेटिड्स (bivalents) का बना दिखाई देता है । क्रोमेटिड्स छोटे व मोटे होते हैं तथा प्राथमिक संकीर्णन (Primary constriction) जिसमें सेन्ट्रोमीयर तथा काइनेटोकोर होता है स्पष्ट दिखाई देने लगते हैं। पूर्वावस्था के अन्त तक गुणसूत्र केन्द्रक झिल्ली की ओर बढ़ना शुरू कर देते हैं ।

(ii) केन्द्रक झिल्ली, केन्द्रक द्रव तथा केन्द्रिक विलुप्त हो जाते हैं तथा केन्द्रक पदार्थ कोशिका के सीधे सम्पर्क में आ जाता है ।

(iii) तर्कु उपकरण (Spindle apparatus) अथवा माइटोटिक उपकरण (mitotic apparatus) का बनना ।

शिनिएडर (Schiniader) ने सन् 1935 में सर्वप्रथम समसूत्री विभाजन के दौरान तर्क उपकरण को देखा व उसका वर्णन किया । जन्तु कोशिका में माइटोटिक उपकरण निम्न तीन भागों से मिलकर बनता है-

(a) तारा केन्द्रक (Centrioles) (b) एस्टर्स (aster) एवम् तर्क तन्तु (Spindle fibres) । तर्क उपकरण में सेन्ट्रिओल्स ध्रुवों पर स्थित होते हैं एवम् प्रत्येक सेन्ट्रियोल एस्ट्रल तन्तुओं द्वारा घिरा रहता है। दोनों सेन्ट्रियोल्स के मध्य सूक्ष्म नलिकाओं द्वारा निर्मित तर्कु तन्तु पाये जाते हैं। तर्क तन्तु चार प्रकार के होते हैं-

(i) गुणसूत्रीय तन्तु : (ट्रेक्टाइल सूत्र ) – वे तन्तु जो तर्क उपकरण के मध्य भाग से ध्रुवों क जाते हैं तथा जिन पर गुणसूत्र अपने सेन्ट्रोमीयर द्वारा जुड़ा रहता हैं, गुणसूत्रीय तन्तु कहलाते हैं ।

(ii) निरन्तर तन्तु अथवा सहारा देने वाला तन्तु (Continuous or supporting fibres)— दोनों ध्रुवों से जुड़े हुए तन्तु जिनकी लम्बाई सबसे अधिक होती है, सहारा देने वाले तन्तु कहलाते हैं । (iii) अन्तर क्षेत्रीय तन्तु (Interzonal fibres ) – पृथक् हो रहे दो क्रोमेटिड्स के सेन्ट्रोमीयर मध्य उपस्थित तन्तु अन्तर क्षेत्रीय तन्तु कहलाते हैं । इन्हें एनाफेज व टीलोफेज प्रावस्थाओं में देखा जा सकता है।

(iv) एस्ट्रल तन्तु-सेन्ट्रियोल के चारों ओर फैले तन्तु एस्ट्रल तन्तु कहलाते हैं । पादप कोशिकाओं में तर्क उपकरण में सेन्ट्रियोल्स एस्ट्रल तन्तु अनुपस्थित होते हैं। दोनों ध्रुवों के मध्य ट्यूबूलिन ( tubulin) प्रोटीन द्वारा निर्मित सूत्र पाये जाते हैं जिन्हें तर्क तन्तु कहते हैं। एस्ट्रल तन्तुओं को छोड़कर शेष तीनों प्रकार के तन्तु तर्क उपकरण बनाते हैं।

तर्क तन्तुओं को बनाने वाली प्रोटीन की शृंखलाएँ डाइसल्फाइड (S-S) व सल्फाहाइड्रिल (- SH) बन्धों द्वारा जुड़ी रहती हैं। इनका निर्माण कोशिका द्रव्य में होता है । इनका मुख्य कार्य कोशिका विभाजन के समय गुणसूत्रों को गति प्रदान कर ध्रुवों तक पहुँचाना है।

(c) मध्यावस्था (Metaphase ) — गुणसूत्रों का मध्य पट्टिका ( equatorial plate) पर व्यवस्थित होना – मध्यावस्था के प्रारम्भ (Prometaphase) होते ही केन्द्रक झिल्ली का पूर्णरूपेण विलय हो जाता है, लेकिन साथ ही स्पिन्डल सूत्र दिखाई देना शुरू हो जाते हैं (चित्र 4.3E ) । इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप में स्पिन्डल सूत्र ट्यूबूलिन द्वारा निर्मित माइक्रोट्यूबूल्स (microtubules) से बने हुए दिखाई देते हैं। इनसे स्पिन्डल उपकरण का निर्माण होता है । गुणसूत्र स्पिन्डल की मध्य रेखा ( equatorial plane) पर पहुँचना शुरू कर देते हैं । प्रोमेटाफेज अल्प अवधि अवस्था होती है । मध्यावस्था में गुणसूत्र अपने-अपने काइनेटोकोर (centromere) द्वारा स्पिन्डल उपकरण के ट्रेक्टाइल सूत्रों से जुड़ जाते हैं। सभी गुणसूत्र स्वतन्त्र रूप से अपने आपको स्पिन्डल की मध्य रेखा ( equatorial plane) पर व्यवस्थित कर लेते हैं तथा मध्य पट्टिका (equatorial plate) बनाते हैं। इस अवस्था में गुणसूत्र और अधिक कुण्डलित होकर बहुत छोटे व मोटे हो जाते हैं किन्तु इनके क्रोमेटिड्स आपस में कभी भी कुण्डलित नहीं होते हैं। मध्यावस्था के अन्त में प्रत्येक गुणसूत्र लम्बाई में दो अर्धांशों विभक्त हो जाता है । इस प्रकार क्रोमेटिड्स का काइनेटोकोर भाग, जिसमें पुत्री सेन्ट्रोमीयर होता है अलग हो जाता है तथा क्रोमेटिड्स (monovalent) एक-दूसरे से पृथक् हो जाते हैं ।

(d) पश्चावस्था (Anaphase ) — क्रोमेटिड्स अथवा पुत्री गुणसूत्रों की ध्रुवों की ओर गति-यह प्रावस्था कोशिका चक्र की M- प्रावस्था की सबसे अल्पकालिक प्रावस्था है। इसमें क्रोमेटिड्स सक्रिय होकर विपरीत ध्रुवों की ओर जाना प्रारम्भ कर देते हैं। क्रोमेटिड्स की गति के लिए सेन्ट्रोमीयर व माइक्रोट्यूबूल्स की आपसी क्रिया आवश्यक होती है, जिससे धीरे-धीरे ट्रेक्टाइल सूत्र सिकुड़ना शुरू कर देते हैं। इनसे जुड़े हुए मोनोवेलेन्ट्स विपरीत ध्रुवों की ओर खिसकते रहते हैं, जब तक कि वे ध्रुवों पर नहीं पहुँच जाते। इसी समय कुछ सपोर्टिंग सूत्र (continuous fibres ) के माइक्रोट्यूबूल्स लम्बाई में बढ़ कर फैल जाते हैं । ये सूत्र Interzonal fibres कहलाते हैं । इनके फैलने की वजह से गुणसूत्र अपने-अपने ध्रुवों की ओर खिंच जाते हैं । प्रत्येक ध्रुव पर इनकी संख्या उतनी ही होती है जितनी कि पूर्वावस्था में थी (चित्र 4.3 F, G तथा 4.4 B) ।

(e) अन्त्यावस्था (Telophase ) — यह लम्बी अवधि वाली आखिरी प्रावस्था है जिसमें निम्न परिवर्तनों के बाद दो पुत्री कोशिकाएँ बनती हैं।

दोनों ध्रुवों पर पाये जाने वाले गुणसूत्र जल अवशोषित करके अकुण्डलित होकर लम्बे हो जाते हैं तथा धीरे-धीरे अदृश्य हो जाते हैं । इनके स्थान पर पतले, लम्बे सूत्र क्रोमेटिन जाल बनाते हैं जो कि शुरू में केन्द्रक झिल्ली के खण्डों से घिर जाता है किन्तु बाद में ये खण्ड आपस में जुड़कर पुत्री केन्द्रकों के चारों ओर पूर्ण केन्द्रक आवरण बनाते हैं । इस प्रावस्था के अन्त में केन्द्रिक फिर से दिखाई देना शुरू कर देते हैं । इस प्रकार ध्रुव के स्थान पर संतति केन्द्रक दिखाई देते हैं । अत: एक ही जनक कोशिका में दो केन्द्रक स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगते हैं (चित्र 4.3 H ) । इस प्रकार केन्द्रक विभाजन (Karyokinesis) के पश्चात् कोशिका द्रव्य विभाजन प्रारम्भ हो जाता है।

  1. कोशिका द्रव्य विभाजन (Cytokinesis ) — केन्द्रक के बाहर होने वाले जीवद्रव्य विभाजन को कोशिका द्रव्य विभाजन कहते हैं । पादपों में सामान्यतः इस विभाजन के लिए स्पिन्डल वाले क्षेत्र के लगभग मध्य में एक कोशिका पट्टिका (cell plate) का निर्माण होता है । इस पट्टिका के निर्माण हेतु केल्शियम तथा मैग्नीशियम पेक्टेट्स के कण स्पिण्डल के मध्य में एकत्रित हो जाते हैं तथा मध्य पटलिका (middle lamella) बनाते हैं । वह परिधि की ओर बढ़कर पूरी हो जाती है । बाद में इस पर सेल्यूलोज तथा अन्य भित्ति पदार्थों के जमाव के कारण प्राथमिक, द्वितीयक एवम् तृतीयक भित्ति का निर्माण हो जाता है तथा इस प्रकार जनक कोशिका दो संतति कोशिकाओं में बँट जाती है । पुत्री कोशिकायें गुणात्मक (qualitatively) तथा मात्रात्मक (quantitatively) रूप से आपस में तथा जनक कोशिका से समानता रखती हैं ( चित्र 4.5)। इस अवस्था के पूर्ण होने पर समसूत्री विभाजन समाप्त हो जाता है । जन्तु कोशिकाओं में कोशिका द्रव्य विभाजन विदलन (cleavage) द्वारा खाँच बनने से होता है। C-माइटोसिस (Abnormal Spindle formation

बैच्ट (Brachet, 1957) ने बताया कि विभाजित होने वाली कोशिका में कोल्चिसिन (colchicine) के प्रेरण (Induction) से समसूत्री विभाजन रुक जाता है। कोल्चिसिन स्पिन्डल उपकरण निर्माण में असंगति (abnormality) उत्पन्न कर देता है। इसके परिणामस्वरूप बहुगुणित कोशिकाओं का निर्माण होता है तथा गुणसूत्रों में बहुगुणन हो जाता है। इसे C-माइटोसिस कहते हैं। इसके अलावा कई बार समसूत्री विभाजन के दौरान केन्द्रक विकृत होकर एक गोलाकार संहति (spheroid compact mass) बनाता है, जिसे पिकनोसिस (Pycnosis) कहते हैं ।

समसूत्री विभाजन का महत्त्व (Significance of Mitosis)

(1) समसूत्री विभाजन जीवों में वृद्धि, पुनर्जनन (regeneration) तथा घाव भरने व ऊतकों की मरम्मत हेतु अति आवश्यक विभाजन है। इस विभाजन द्वारा पुरानी, विकृत, मृत कोशिकाएँ विस्थापित कर दी जाती हैं।

(2).. इस विभाजन द्वारा ही बहुकोशिकीय जीव अपना जीवन एक कोशिका युग्मनज से शुरू कर सम्पूर्ण बहुकोशिकीय संरचना को प्राप्त करता है । •

(3) इस विभाजन के परिणामस्वरूप दो संतति कोशिकाओं का निर्माण होता है जो संरचना व आनुवंशिक गुणों में जनक कोशिकाओं से समानता रखती हैं।

(4) क्योंकि इस विभाजन के दौरान आनुवंशिक पदार्थ का पुनर्योजन नहीं होता है एवम् पुत्री कोशिकाओं में गुणसूत्रों की संख्या जनक कोशिकाओं के समान बनी रहती हैं, अत: यह विभाजन जाति विशेष के आनुवंशिक गुणों की निश्चितता बनाये रखता है।

(5) इस विभाजन के द्वारा साइटोप्लाज्म व इसके अंगकों की मात्रा समान रूप से वितरित हो जाती है तथा कैरियाकाइनेसिस द्वारा दो पुत्री केन्द्रक संतति कोशिकाओं में प्रवेश कर जाते हैं । अत: यह विभाजन केन्द्रक की आनुवंशिक निरन्तरता के साथ-साथ साइटोप्लाज्म की निरन्तरता बनाये रखता है।

(5) यह विभाजन जीवों में अलैंगिक जनन की प्रक्रिया है ।

(7) पुरानी कोशिकाओं में जैविक क्रियाओं की गति शिथिल हो जाती है। अतः समसूत्री विभाजन द्वारा बनी नयी कोशिकाओं में जैविक क्रियाएँ तीव्र गति से होती हैं ।