( difference between meiosis and mitosis cell division in hindi) समसूत्री और अर्धसूत्री विभाजन में अंतर लिखिए ?
इंटरफेज : मियोसिस I और मियोसिस II के मध्य सामान्यतया इंटरफेज नहीं होती है। एक संक्षिप्त इंटरफेज को इंटरकाइनेसिस अथवा इंटरमियोटिक इंटरफेज कहते है। इस इंटरफेज के दौरान गुणसूत्रों का रेप्लीकेशन नहीं होता है।
सायटोकाइनेसिस I : यह या तो उपस्थित अथवा अनुपस्थित हो सकती सकती है। जब यह उपस्थित होती है तो जन्तु कोशिकाओ में कोशिका खाँच निर्माण द्वारा और पादप कोशिकाओ में कोशिका पट्ट निर्माण द्वारा होती है।
मियोसिस -I का महत्व
- इसमें समजात गुणसूत्रों का पृथक्करण होता है। जिससे गुणसूत्रों की संख्या अगुणित हो जाती है जो कि लैंगिक प्रजनन के लिए आवश्यक है।
- यह क्रोसिंग ऑवर और पैतृक और मातृक गुणसूत्रों के अनियमित अपव्यूहन द्वारा नए जीन संयोजनों के निर्माण से विभिन्नताएं उत्पन्न होती है।
- यह कोशिकाओ को लैंगिक प्रजनन के लिए गैमीट और अलैंगिक प्रजनन के लिए बीजाणु उत्पन्न करने के लिए प्रेरित करता है।
मियोसिस-II
इसे सम अर्धसूत्री अथवा समविभाजन भी कहा जाता है। क्योंकि मियोसिस-I के बाद गुणसूत्रों की संख्या समान हो जाती है। इसमें किसी भी माइटोटिक विभाजन की तुलना में कम समय लगता है। इसे भी दो भागो (कैरियोकाइनेसिस II और सायटोकाइनेसिस II ) में विभाजित किया जाता है।
कैरियोकाइनेसिस-II : इसमें प्रत्येक गुणसूत्र के दो क्रोमेटिड्स का पृथक्करण और उनका पृथक कोशिकाओ में पहुंचना सम्मिलित है। इसे चार अवस्थाओं में विभाजित किया जाता है। जैसे – प्रोफेज II , मेटाफेज II , ऐनाफेज II और टीलोफेज II
कैरियोकाइनेसिस-II के लगभग सभी परिवर्तन माइटोसिस के समान होते है , जिसमे निम्नलिखित शामिल है –
- यह टीलोफेज I की समाप्ति के तुरंत बाद प्रारंभ होती है।
- प्रत्येक पुत्री कोशिका (केन्द्रक) में माइटोटिक विभाजन होता है।
- यह माइटोसिस के बिल्कुल समान होती है।
- इस क्रिया की समाप्ति पर सायटोकाइनेसिस होती है।
- इसके पूर्ण हो जाने के पश्चात् चार पुत्री कोशिकाएँ निर्मित होती है।
- एक गुणसूत्र के सिस्टर काइनेटोकोर पृथक हो जाते है।
- चारो पुत्री कोशिकाएँ प्रत्येक टेट्रावेलेंट से एक क्रोमेटिड प्राप्त करती है।
- एनाफेज II पर सेन्ट्रोमीयर विभाजित होता है।
- प्रोफेज II पर स्पिंडल फाइबर संकुचित होते है।
सायटोकाइनेसिस- II : यह सदैव पायी जाती है।
जंतु कोशिका में यह कोशिका खाँच निर्माण द्वारा और पादप कोशिका में कोशिका पट्ट निर्माण द्वारा होती है। मियोसिस द्वारा एक द्विगुणित जनक कोशिका दो बार विभाजित होकर चार गैमीट्स अथवा लिंग कोशिकाएं निर्मित करती है। इनमे से प्रत्येक कोशिका में जनक कोशिका की तुलना में डीएनए की मात्रा आधी होती है। मियोसिस के प्रारम्भ के समय कोशिका में एक चौथाई डीएनए पाया जाता है।
मियोसिस -II का महत्व
- इस क्रिया के द्वारा अगली पीढ़ी में गुणसूत्रों की संख्या स्थिर बनी रहती है।
- मियोसिस के दौरान गुणसूत्रों की संख्या आधी हो जाती है।
- यह विभिन्नता और उत्परिवर्तन उत्पन्न करने में सहायक होता है।
- इसके द्वारा गैमीट निर्माण होता है।
- यह आनुवांशिक सूचना वाहक पदार्थ की मात्रा को नियंत्रित करता है।
- लैंगिक जनन में एक मियोसिस और संलयन शामिल है।
- इससे निर्मित चार पुत्री कोशिकाओं में विभिन्न प्रकार के क्रोमेटिक होंगे।
मियोसिस के प्रकार
- गैमीटिक अथवा टर्मिनल मियोसिस: अनेक प्रोटोजोअन्स , सभी जन्तुओं और कुछ शैवालो में मियोसिस निषेचन से पहले गैमिट्स के निर्माण के दौरान होती है। इस प्रकार की मियोसिस का वर्णन गैमिटिक अथवा टर्मिनल मियोसिस के रूप में किया जाता है।
- जायगोटिक अथवा इनिशियल माइटोसिस: कवक , अनेक प्रोटोजोआ समूहों और कुछ शैवाल में जायगोट में मियोसिस के तुरंत बाद निषेचन होता है। जिसके परिणामस्वरूप वयस्क जीव अगुणित होते है। वास्तव में इस प्रकार की मियोसिस को जायगोटिक अथवा इनिशियल मियोसिस कहते है। इस प्रकार का जीवन चक्र जो अगुणित वयस्क और जायगोटिक मियोसिस युक्त होता है , उसे हैप्लोन्टिक चक्र कहते है।
- स्पोरोजेनेटिक मियोसिस:
- द्विगुणित स्पोरोसाइट्स अथवा स्पोरोफिटिक पौधे की बीजाणु मातृ कोशिकाएँ मियोसिस के द्वारा स्पोरेंजिया में अगुणित स्पोर्स का निर्माण करती है।
- अगुणित स्पोर अंकुरित होकर अगुणित गेमिटोफाइट पौधे का निर्माण करते है। जो कि माइटोसिस के द्वारा अगुणित गैमिट्स उत्पन्न करते है।
- अगुणित गैमिट्स आपस में संयुक्त होकर द्विगुणित जायगोट का निर्माण करते है। जो कि माइटोटिक विभाजन द्वारा द्विगुणित स्पोरोफाइट में विकसित हो जाता है। उदाहरण – उच्च श्रेणी के पौधों
जैसे – टेरीडोफाइट्स , जिम्नोस्पर्म , एन्जियोस्पर्म आदि में।
सारणी : अर्धसूत्री विभाजन पौधों के किस भाग में होता है |
पौधों के नाम | अर्द्धसूत्री विभाजन का स्थान |
1. क्लेमाइडोमोनास (शैवाल) | जाइगोट में |
2. यूलोथ्रिक्स (शैवाल) | जाइगोस्पोर में |
3. स्पायरोगायरा (शैवाल) | जाइगोस्पोर में |
4. राइजोपस अथवा ब्रेड माउल्ट (कवक) | जाइगोस्पोर में |
5. सैकेरोमाइसीज अथवा यीस्ट (कवक) | ऐस्कस अथवा ऐस्कस मातृ कोशिका में ऐस्कोस्पोर के निर्माण के दौरान |
6. रिक्सिया , मोर्केशिया , फ्यूनेरिया आदि (ब्रायोफाइट्स) | स्पोरोफाइट के कैप्सूल के अन्दर स्पोर मातृ कोशिका में | |
7. फर्न (टेरिडोफाइट्स) | स्पोरएन्जियम के अन्दर स्पोर मातृ कोशिका में |
8. जिम्नोस्पर्म (उदाहरण साइकस , पाइनस) | माइक्रोस्पोर मातृ कोशिका और मेगास्पोर मातृ कोशिका के अन्दर
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9. एंजियोस्पर्म (गेहूं , मटर आदि) | मेगास्पोर और माइक्रोस्पोर (पराग) के निर्माण के दौरान मेगास्पोरएजिया और माइक्रोस्पोरएन्जिया में |
सारणी : समसूत्री और अर्धसूत्री विभाजन में अंतर
समसूत्री | अर्द्धसूत्री |
सामान्य :
यह विभाजन कोशिका के सभी प्रकारों में पाया जाता है और जीवन पर्यन्त चलता रहता है | विभाजन चक्र पूर्ण होने पर केन्द्रक में एकल विभाजन होता है | समसूत्री के अंत में दो पुत्री कोशिकाओ का निर्माण होता है | जनक कोशिकाओ के समान पुत्री कोशिकाओं में क्रोमोसोम की संख्या स्थिर बनी रहती है अर्थात पुत्री कोशिकाएं आनुवांशिक रूप से जनक कोशिकाओ के समान होती है | समसूत्री अत्यधिक छोटी होती है | समसूत्री , द्विगुणित अथवा अगुणित कोशिका में होती है | |
यह सामान्यतया पौधों के जीवन चक्र में स्पोर अथवा गैमीट्स के निर्माण से जरा पहले जनन कोशिकाओं में पाया जाता है |
केन्द्रक में दो बार विभाजन होते है : प्रथम न्युनकारी जबकि द्वितीयक मध्यरेखीय , विभाजन चक्र के पूर्ण होने पर , जबकि क्रोमोसोम का विभाजन एनाफेज II में एक बार होता है | अंत में चार पुत्री कोशिकाएं बनती है | जनक कोशिका की तुलना में पुत्री कोशिकाओ में क्रोमोसोम की संख्या आधी रह जाती है अर्थात पुत्री कोशिकाएँ आनुवांशिक रूप से जनक कोशिका से भिन्न होती है | अर्धसूत्री अधिक लम्बी होती है | अर्धसूत्री सदैव द्विगुणित कोशिका (मियोसाइट) में होती है | |
प्रोफेज :
प्रोफेज छोटी और बिना उप अवस्थाओ के होती है | समजात क्रोमोसोम में युग्मन (सिनेप्सिस) नहीं होता है | इसलिए क्रोसिंग ओवर और किएज्मा का निर्माण नहीं होता है | क्रोमोसोम के मध्य सिनेप्टोनीमिल कॉम्पलेक्स का निर्माण नही होता है | पूर्व प्रोफेज के दौरान क्रोमोसोम लम्बवत रूप से दो सिस्टर क्रोमेटिड्स में टूटते है अर्थात प्रोफेज क्रोमोसोम शुरुआत में ही डबल दिखाई देते है | क्रोमोसोम खुलते नहीं है और प्रोफेज में ट्रांसक्रिप्शन और प्रोटीन संश्लेषण नहीं होता है | |
प्रोफेज लम्बी और 5 भिन्न उप अवस्थाओ में विभाजित होती है , लेप्टोटिन , जाइगोटीन , पेकाईटिन , डिप्लोटिन और डाईकाइनेसिस |
प्रोफेज-I के जाइगोटिन उप अवस्था के दौरान समजात क्रोमोसोम में युग्मन होता है | क्रोसिंग ओवर और किएज्मा का निर्माण होता है | युग्मन समजात क्रोमोसोम के मध्य सिनेप्टोनीमिल कॉम्पलेक्स (ट्राईपरटाईट प्रोटीन फ्रेमवर्क) निर्माण होता है | क्रोमोसोम लम्बवत टूटते नहीं है बल्कि एकल धागे के समान दिखाई देते है अर्थात प्रोफेज-I क्रोमोसोम शुरुआत में डबल दिखाई नहीं देते है | क्रोमोसोम खुलते है और प्रोफेज-I की डिप्लोटीन उप अवस्था के दौरान ट्रांसक्रिप्शन और प्रोटीन संश्लेषण होता है | |
मेटाफेज :
सभी क्रोमोसोम मेटाफेज में एकल प्लेट का निर्माण करते है | मध्य रेखीय प्लेट पर क्रोमोसोम दो धागे के समान दिखाई देते है | |
क्रोमोसोम मेटाफेज-I में , 2 समान्तर प्लेट्स और मेटाफेज-II में एक प्लेट का निर्माण करते है |
मध्य रेखीय प्लेट पर , मेटाफेज-I में क्रोमोसोम चार धागों के समान दिखाई देता है , जबकि मेटाफेज-II , समसूत्री के मेटाफेज के समान होती है | |
एनाफेज :
क्रोमोसोम की सेंट्रोमियर में विभाजन होता है और प्रत्येक क्रोमोसोम के 2 क्रोमेटिड्स का पृथक्करण एनाफेज में होता है | |
एनाफेज-I में सेंट्रोमियर का विभाजन नहीं होता है और एनाफेज-I में समजात क्रोमोसोम का पृथक्करण होता है | एनाफेज-II में , सेन्ट्रोमियर का विभाजन होता है इसलिए क्रोमोटिड्स का पृथककरण होता है | |
टीलोफेज :
टिलोफेज सभी अवस्थाओ में होती है | पुत्री कोशिकाओं में क्रोमोसोम की संख्या जनक कोशिकाओं के समान होती है | |
कुछ अवस्थाओं में टीलोफेज नहीं होती है |
टीलोफेज-I के अंत में क्रोमोसोम की संख्य आधी रह जाती है | |
साइटोकाइनेसीस :
केरियोकाइनेसिस (केन्द्रक का विभाजन) सामान्यतया साइटोकाइनेसिस (भित्ति निर्माण) के बाद होती है | समसूत्री वृद्धि , मरम्मत और घाव भरने के लिए उत्तरदायी होता है | |
कभी कभी साइटोकाइनेसिस टिलोफेज-I और मियोसिस-I के बाद नहीं होती है | लेकिन मियोसिस-II और टिलोफेज-II और टीलोफेज-II के बाद सदैव होती है , 4 कोशिकाओं का निर्माण साथ साथ होता है |
अर्द्धसूत्री , क्रोमोसोम की संख्या पीढ़ी में स्थिर रखने के लिए , गैमिट्स अथवा स्पोर के निर्माण और क्रोसिंग ओवर के द्वारा उत्पन्न विभिन्नताओं के लिए उत्तरदायी है | |