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श्वसन की क्रियाविधि , कार्यविधि , Mechanism of Respiration in hindi रुधिर व CO2 का परिवहन
(Mechanism of Respiration in hindi ) श्वसन की क्रियाविधि :
- फुफ्फुसीय श्वसन : फेफडो में वायु भरने एवं बाहर निकालने को संवातन कहते है , यह दो क्रियाओं द्वारा होता है –
- निश्वसन (inspiration) : यह सक्रीय प्रावस्था है , इसमें डायफ्राम चपटा व संकुचित हो जाता है जिससे वक्ष गुहा का आयतन बढ़ जाता है | साथ ही बाह्य अन्तरापर्शुक पेशियाँ संकुचित हो जाती है जिससे फेफडो व वक्षगुहा का वायुदाब वायुमंडलीय वायुदाब से कम हो जाता है जिससे वायु तेजी से वायुमार्ग से होती हुई फेफडो की कुपिकाओं में भर जाता है |
- उच्छाश्वसन (expiration) : यह निष्क्रिय प्रावस्था है इसमें डायफ्राम व अन्तरापर्शुक पेशियाँ शिथिल हो जाती है जिससे वक्ष गुहा का आयतन कम हो जाता है जिसके कारण फेफड़ो का वायुदाब , वायुमंडलीय वायुदाब से अधिक हो जाता है | परिणामस्वरूप वायु श्वसन मार्ग से होती हुई बाहर निकल जाती है |
व्यायाम एवं शारीरिक श्रम के समय उच्चश्वसन सक्रीय प्रावस्था बन जाती है |
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रुधिर द्वारा गैसों का परिवहन
- O2 का परिवहन : ग्रहण की गई ऑक्सीजन का 3% भाग प्लाज्मा से घुलित रूप में परिवहित होती है | शेष 97% ऑक्सीजन हीमोग्लोबिन के साथ संयुक्त होकर उत्तकों में परिवहित होती है | ऑक्सीजन हीमोग्लोबिन के साथ जुड़कर ऑक्सी हिमोग्लोबिन बनाती है जो एक अस्थायी यौगिक है | हिमोग्लोबिन के हिम समूह में 4-फेरस आयन होते है , प्रत्येक आयन से एक ऑक्सीजन अणु जुड़ सकता है | हिमोग्लोबिन के साथ ऑक्सीजन का जुड़ना , ताप , pH एवं डाइफास्फोग्लिस्रेट पर निर्भर करता है | उत्तकों व कोशिकाओं में o2 का दाब कम होने के कारण ऑक्सीहिमोग्लोबिन वियोजित हो जाता है तथा हिमोग्लोबिन व O2 मुक्त हो जाती है |
हिमोग्लोबिन के साथ संयुक्त होने वाली मात्रा PO2 पर निर्भर करती है | PO2 जितना अधिक होगा , हिमोग्लोबिन का ऑक्सीजन द्वारा संतृप्तिकरण उतना ही अधिक होगा , हिमोग्लोबिन संतृप्तिकरण प्रतिशतता एवं Po2 के मध्य सम्बन्ध को एक वक्र द्वारा प्रदर्शित किया जाता है जिसकी आकृति S के समान होती है इस वक्र को सिग्माइड वक्र या ऑक्सीजन हिमोग्लोबिन वियोजन वक्र कहते है | यह वक्र प्रदर्शित करता है की PO2 कम होते ही ऑक्सी-हिमोग्लोबिन का वियोजन बढ़ जाता है , इस वक्र के अनुसार जब PO2 का मान 95mm Hg होता है तो 97% हिमोग्लोबिन ऑक्सीजन से संतृप्त हो जाती है जब PCO2 में वृद्धि होती है तो ऑक्सीहिमोग्लोबिन से ऑक्सीजन मुक्त होने की क्रिया सुगम हो जाती है जिससे ऑक्सी-हिमोग्लोबिन वियोजन वक्र दायीं ओर विस्थापित हो जाता है इसे बोर प्रभाव कहते है |
CO2 का परिवहन
- भौतिक विलयन के रूप में : प्लाज्मा झिल्ली द्वारा घुलित रूप में co2 बाहर निकलती है , इस प्रक्रिया द्वारा 7% co2 का परिवहन होता है |
- हिमोग्लोबिन के द्वारा : co2 हिमोग्लोबिन के साथ संयुक्त होकर कार्बेमीनो हिमोग्लोबिन के रूप में परिवहित होती है , इस प्रक्रिया द्वारा 23% co2 का परिवहन होता है |
- बाइकार्बोनेट के रूप में : लगभग 70% co2 का परिवहन इस विधि द्वारा होता है , RBC में एंजाइम कार्बोनिक एनहाइड्रेट की उपस्थिति के कारण co2 जल से क्रिया कर कार्बोनिक अम्ल बनाती है , यह कार्बोनिक अम्ल शीघ्र ही बाइकार्बोनेट तथा हाइड्रोजन आयनों में टूट जाता है | जितने बाइकार्बोनेट आयन RBC से निकलकर प्लाज्मा में आते है उनकी पूर्ति करने के लिए उतने ही क्लोराइड्स RBC में पहुँच जाते है , इस क्रिया को हेम बर्गर या क्लोराइड शिफ्ट कहते है |
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