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फेफडो के आयतन एवं क्षमता , फेफडो की क्षमताएँ , श्वसन का नियमन , श्वसन में विकार
(Lung Volumes and Capacities in hindi ) फेफडो के आयतन एवं क्षमता : फेफड़ो के आयतन एवं क्षमताएँ मापने के लिए स्पाईरोमीटर उपकरण का उपयोग किया जाता है |
फेफड़ो के निम्न आयतन होते है –
- ज्वारीय आयतन (TV) : निश्वसन में ली जाने वाली वायु या उच्छ श्वसन में निकाली जाने वायु के आयतन को ज्वारीय आयतन कहते है , इसका मान 500ml होता है |
- निश्वसन आरक्षित आयतन (IRV) : निश्वसन के बाद अधिकतम निश्वसित की जा सकने वाली वायु के आयतन को निश्वसन आरक्षित आयतन कहते है , इसका मान 3000ml होता है |
- उच्छश्वसन आरक्षित आयतन (ERV) : उच्छ श्वसन के बाद अधिकतम उच्चश्वसित की जा सकने वाली वायु के आयतन को उच्चश्वसन आरक्षित आयतन कहते है | इसका मान 1100ml होता है |
- अवशिष्ट आयतन (RV) : उच्छश्वसन के बाद शेष वायु के आयतन को अवशिष्ट आयतन कहते है , इसका मान 1200ml होता है |
फेफडो की क्षमताएँ
फेफडो के आयतनो में से दो या दो से अधिक के योग को फेफड़ो की क्षमता कहा जाता है |
- निश्वसन क्षमता (IC) : ज्वारीय आयतन (TV) व निश्वसन आरक्षित आयतन (IRV) के योग को निश्वसन श्वसन कहते है |
IC = TV + IRV
IC = 500 + 3000
IC = 3500ml
- कार्यात्मक अवशिष्ट क्षमता (ERC) : उच्छश्वसन आरक्षित आयतन व अवशिष्ट आयतन के योग को कार्यात्मक अवशिष्ट क्षमता कहते है |
ERC = ERV + RV
ERC = 1100 + 1200
ERC = 2300ml
- जैव क्षमता (VC) : निश्वसन आरक्षित आयतन का ज्वारीय आयतन व उच्च श्वसन आरक्षित आयतन के योग को जैव क्षमता कहते है |
VC = IRV + TV + ERV
VC = 3000 + 500 + 1100
VC = 4600ml
- कुल फुफ्फुसीय क्षमता (TLC) : जैव क्षमता व अवशिष्ट आयतन के योग को कुल फुफ्फुसीय क्षमता कहते है |
TLC = VC + RV
TLC = 4600 + 1200
TLC = 5800 ml
श्वसन का नियमन
श्वसन का नियंत्रण मेडुलाऑबलागेटा एवं पोन्स में स्थित तंत्रिका कोशिकाओ के समूह के द्वारा होता है , ये समूह श्वसन केन्द्र कहलाते है , मनुष्य में तीन श्वसन केन्द्र होते है |
- पृष्ठ श्वसन केन्द्र (dorsal respiratory centre) : यह मेडुलाऑबलागेटा के पृष्ठ भाग में स्थित होता है , यह निश्वसन को नियन्त्रित करता है |
- न्यूमोटोक्सिक केन्द्र (neumotexic centre) : यह पोन्स में स्थित होता है , यह निश्वसन को रोकता है तथा उच्छश्वसन को उद्दीप्त करता है |
- अद्यर श्वसन केंद्र (longitudanci respiratory centre) : यह मेडुलाऑबलागेटा के अद्यर भाग में स्थित होता है , यह व्यायाम व शारीरिक श्रम के समय फेफडो के सवांतन में बढ़ी हुई आवश्यकता की पूर्ति करता है |
श्वसन में विकार
- अस्थमा या दमा : यह रोग धूल के कण , परागकण , खाद्य पदार्थ , ठण्ड या धुम्रपान के कारण होता है | यह एक एलर्जी रोग है इस रोग के दौरान श्वसन में कठिनाई तथा खाँसी आती है , इसका दौरा पड़ने पर सिटी की आवाज आती है | इस रोग से बचने के लिए एलर्जी के कारणों से दूर रहना चाहिए तथा ब्रोंकोडाइलेटर व एन्टी-बायोटिक दवाओ का उपयोग चिकित्सक की सलाह से करना चाहिए |
- ब्रोंकाइटिस : यह विकार बीडी या सिगरेट का उपयोग लम्बे समय तक करने पर उत्पन्न होता है , इस रोग के दौरान ग्रसनी की आन्तरिक सतह पर सुजन आ जाती है , रोगी की खांसी , श्लेष्मा व हरे-पीले रंग का कफ निकलता है | साथ ही श्वसन में कठिनाई होती है , इस रोग से बचने के लिए धुम्रपान से दूर रहना चाहिए |
- वातस्फित : यह विकार धुम्रपान के कारण उत्पन्न होता है , इस विकार के दौरान श्वसन मार्ग में सुजन तथा श्वसनिकाएँ सकरी हो जाती है | रोगी को कफ आता है तथा श्वसन में कठिनाई होती है , इस रोग से बचने के लिए धूम्रपान से दूर रहना चाहिए |
- न्युमोनिया : यह रोग स्ट्रेप्टोकोकस नामक जीवाणु के कारण उत्पन्न होता है , यह रोग वृद्ध व बच्चो में अधिक होता है , इस रोग के दौरान कुपिकाओं में सुजन तथा साँस लेने में कठिनाई होती है | इस रोग के उपचार हेतु ब्रोंकोडाइलेटर व एन्टी-बायोटिक दवाओं का उपयोग करना चाहिए |
- फेफडो में कैंसर : यह रोग धूम्रपान जैसे – बीडी , सिगरेट आदि के उपयोग के कारण होता है | इस रोग के दौरान श्वसनियों की उपकला में उत्तेजना उत्पन्न होती है , जिससे कोशिकाओं में अनियन्त्रित कोशिका विभाजन प्रारम्भ हो जाता है , धीरे धीरे पूरे फेफड़े में कैंसर हो जाता है | फैफडो के कैंसर से बचने के लिए धूम्रपान से दूर रहना चाहिए |
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