एम. मैरियोट कौन है | McKim Marriott in hindi village name मैकिम मैरियट हिंदी में गाँव का नाम भारत में

मैकिम मैरियट हिंदी में गाँव का नाम भारत में McKim Marriott in hindi village name m. एम. मैरियोट कौन है

एम. मैरियोट
मैरियोट वर्ण क्रम-परंपरा का विश्लेषण स्थानीय संदर्भ की रोशनी में करते हैं। उन्होंने आनुष्ठानिक-व्यवहार में जाति श्रेणीकरण की व्यवस्था का अध्ययन किया। इस अध्ययन से मैरियोट भी इसी निष्कर्ष पर पहुंचे कि आनुष्ठानिक क्रम-परंपरा का आर्थिक और राजनीतिक क्रम-परंपराओं से चोली-दामन का साथ है। आम तौर पर आर्थिक और राजनीतिक श्रेणियां सम्पाती होती हैं। इसे दूसरे शब्दों में कहें तो आनुष्ठानिक और गैर-आनुष्ठानिक क्रम-परंपराएं दोनों ही जाति-गण में श्रेणीकरण को प्रभावित करती हैं, हालांकि इसमें आनुष्ठानिक क्रम-परंपराएं बड़ी भूमिका अदा करती हैं। इस तरीके से जाति श्रेणीकरण को लेकर विभिन्न जातियों में एक तरह की आम सहमति सी बन जाती है जिसे सामूहिक रूप से उचित मान लिया जाता है और कायम रखा जाता है। यहां एक बात बताना जरूरी है कि यह प्रक्रिया उतनी स्पष्ट नहीं है जितनी कि पहली बार देखने में नजर आती है। इसकी वजह यह है कि समाजशास्त्री तब अध्ययन-क्षेत्र में उतरता है जब यह प्रक्रिया अपने पूर्ण रूप में विकसित हो चुकी होती है। इसकी ऐतिहासिक प्रक्रिया पर उसकी दृष्टि नहीं पड़ती और उसे अपने अध्ययन से जो भी जानकारी, आंकड़े इत्यादि मिलते हैं उन्हीं के आधार पर वह इसके निष्कर्ष निकालता है।

मैरियोट ने 1952 में उत्तर-प्रदेश के अलीगढ़ जिले के किशनगढ़ी और राम नागला नामक दो गांवों का अध्ययन किया। मैरियोट के अध्ययन से पता चलता है कि इन गांवों में जाति श्रेणीकरण को लेकर आम-सहमति थी। यह निष्कर्ष उन्होंने गांव में अनुष्ठान या आनुष्ठानिक-व्यवहार को देखकर निकाला।

मैरियोट ने जिन दो गांवों का अध्ययन किया था, उनमें हम श्रेणी के निम्न महत्वपूर्ण सूचक पाते हैंः
1) भोजन दिया जाना और स्वीकार किया जाना
2) सम्मानसूचक संकेतों (नमस्कार इत्यादि) का आदान-प्रदान और प्रथाएं
3) ब्राह्मणों को सबसे ऊंचा स्थान हासिल है, क्योंकि वे बड़े महत्वपूर्ण या विशिष्ट कर्मकांडों को अंजाम देने का काम करते हैं। इसके साथ वे अन्य जातियों से सभी तरह की सेवाएं भी लेते हैं। ब्राह्मण लोग अन्य ऊंची जातियों से सिर्फ ‘पक्का‘ भोजन ही स्वीकार करते हैं। इस तरह किसी जाति को तब ऊंचा माना जाता है जब ब्राह्मण उससे ‘पक्का‘ भोजन स्वीकार करे। अगर ब्राह्मण उससे ‘कच्चा‘ भोजन स्वीकार नहीं करे तो वह जाति निम्न समझी जाती है। किशन गढ़ी में इस तरह की दस और राम नागला में चार ऐसी ऊंची जातियां पाई गईं। सबसे छोटी जाति को किसी अन्य जाति से कोई सेवा नहीं मिलती। बल्कि वह सभी जातियों को अपनी सेवाएं देती है और उनसे ‘कच्चा‘ भोजन भी स्वीकार करती है।

अभ्यास 2
मेयर और मैरियोट ने जाति श्रेणी के जो महत्वपूर्ण सूचक बताएं हैं, उन पर अपने मित्रों और सहपाठियों से चर्चा करें। उससे आपको जो भी जानकारी मिलती है उसे अपनी नोटबुक में लिखें।

इस प्रकार भोजन और सेवाएं कैसे दी जाती हैं और स्वीकार की जाती हैं, ये सब जाति श्रेणीकरण के महत्वपूर्ण सूचक हैं। मगर मैरियोट ने इनके अलावा भी निम्न मामलों में भी ऐसे नियम देखेंः
1) साथ-साथ बीड़ी-सिगरेट या हुक्का पीना,
2) घरों का विन्यास और दिशा
3) नियुक्तियां और शारीरिक संपर्क
4) सहभोज और भोजन परोसे जाने का क्रम

किशन गढ़ी में राजनीतिक और आर्थिक प्रभुत्व आनुष्ठानिक क्रम-परंपरा के बराबर ही था। आइए अब देखें कि आनुष्ठानिक प्रस्थिति और आर्थिक शक्ति (भूमि स्वामित्व) किस तरह से अतिव्यापान करते हैंः किशनगढ़ी में जाति श्रेणी और भू-स्वामित्व
ब्राह्मण
ऊंची जाति
निम्न जाति
सबसे छोटी जाति

जातियों में अमूमन अपनी राजनीतिक और आर्थिक प्रस्थिति को अनुष्ठानिक प्रस्थिति में बदलने की प्रवृत्ति हावी रहती है। मगर वहीं जाति क्रम-परंपरा के ढांचे में कुछ असंगतियां भी रहती हैं, जिससे सामाजिक गतिशीलता की संभावना बनती है। हालांकि यह बात सही है जातिगत पहचानः विशेषताबोधक और कि आपसी-व्यवहार स्थानीय जाति श्रेणी का निर्धारण करने के लिए महत्वपूर्ण है लेकिन अन्योन्य-क्रियात्मक सिद्धांत इसमें दूसरे गांवों का संदर्भ भी सहायक हो सकता है। आनुष्ठानिक क्रम-परंपरा मोटे तौर पर राजनीतिक और आर्थिक श्रेणी के संगत नजर आती है। परस्पर-व्यवहार एक प्रदत्त श्रेणी-गण को कायम रखता है, जिसे हम ऊपर बताए गए विभिन्न तथ्यों में देख सकते हैं।

बोध प्रश्नों के उत्तर

बोध प्रश्न 2
2) श्रीनिवास जाति को एक सखंड व्यवस्था के रूप में देखते हैं। उनके अनुसार सभी जातियां उप-जातियों में बंटी हैं जो प) सगोत्र विवाह करती हैं, पप) एक पेशा करती हैं, पपप) एक सामाजिक और आनुष्ठानिक जीवन की इकाई होती हैं, अ) एक ही संस्कृति को मानती हैं और अप) ग्राम सभा या पंचायत द्वारा शासित रहती हैं। श्रीनिवास ने क्रम-परंपरा, जातिगत व्यवसाय, सहभोजिता और वर्जनाओं के कारकों, दूषण के सिद्धांत और जाति पंचायतों को भी अपने अध्ययन में लिया है। श्रीनिवास ने संस्कृतीकर की जो धारणा प्रस्तुत की है, उसके अनुसार छोटी जाति श्रेणीकरण की प्रणाली में उच्च स्थान प्राप्त करने के लिए ऊंची जाति के गुणों को अपनाती हैं।