मेन्टल कोर सिद्धान्त (mantle core theory in hindi) व फ्रांसीसी विचारधारा (french school concept in hindi)

फ्रांसीसी विचारधारा (french school concept in hindi) तथा मेन्टल कोर सिद्धान्त (mantle core theory in hindi) क्या होता है ?

मेन्टल कोर सिद्धान्त (mantle core theory) : यह विचारधारा पोफाम और चान के द्वारा प्रस्तुत की गयी थी। इसके अनुसार प्ररोह शीर्ष पर विभाज्योतकी कोशिकाएँ दो परतों में विभेदित होती है। बाहरी क्षेत्र की कोशिकाएं एक गुम्बदाकार आकृति के रूप में व्यवस्थित होती है और इस क्षेत्र को मेंटल कहते है।

केन्द्रीय भाग की विभाज्योतकी कोशिकाओं के समूह को पिण्ड (कोर) कहा जाता है। वस्तुतः यह विचारधारा ट्यूनिका कार्पस सिद्धांत का ही एक संशोधित प्रारूप कहा जा सकता है।
मेंटल क्षेत्र की कोशिकाएं सदैव अपनत रूप से विभाजित होती है और सामान्यतया यह एक पंक्ति में व्यवस्थित होती है जबकि कोर को तीन उपक्षेत्रों में विभेदित किया गया है –
(i) उपशीर्षस्थ विभाज्योतकी कोशिकाएँ (subapical meristem) : नियमानुसार इस क्षेत्र की कोशिकाओं को प्ररोह की वृद्धि में सक्रीय भूमिका निभानी चाहिए लेकिन वनस्पतिशास्त्रियों के अनुसार यह कोर क्षेत्र का बाहरी स्तर है जिसकी कोशिकाओं में धीमी गति से विभाजन होते है।
(ii) परिधीय विभाज्योतक (peripheral meristem) : यह कोशिकाएं अन्दर की ओर स्थित होती है और जब यह सक्रीय होती है तो इनकी सक्रियता के कारण वल्कुट और प्राकएधा का निर्माण होता है।
(iii) केन्द्रीय विभाज्योतक (central meristem) : कोर क्षेत्र की यह सबसे भीतरी कोशिकाएँ है और इनकी सक्रियता के कारण मज्जा का निर्माण होता है।
अधिकांश वनस्पतिशास्त्री इस सिद्धान्त से असहमत है क्योंकि कोर क्षेत्र की विभाज्योतकी कोशिकाओं के विभेदन स्पष्ट नहीं होते है।

फ्रांसीसी विचारधारा (french school concept in hindi)

प्ररोह की विभाज्योतकी कोशिकाओं की कार्य प्रणाली को समझने के लिए यह सिद्धान्त अनेक फ़्रांसीसी वनस्पति शास्त्रियों जैसे – प्लेंटीफ़ॉल , बुवेट और केमेफोर्ट के द्वारा प्रस्तुत किया गया था। इस सिद्धांत के अनुसार तने के विभाज्योतक तीन क्षेत्रों में विभेदित होते है।
यह है :
(i) परिधीय क्षेत्र (anneau initial) : इस क्षेत्र की विभाज्योतकी कोशिकाएँ तने के बाहरी अथवा परिधीय क्षेत्रों जैसे बाह्यत्वचा और वल्कुट की बाहरी परतों और अन्त:त्वचा का निर्माण करती है।
(ii) प्रतीक्षारत विभाज्योतक (meristem d’attente or waiting meristem) : जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है , इस क्षेत्र की कोशिकाएं प्राय: सक्रीय नहीं होती और पुष्पन के समय ही आवश्यकता पड़ने पर सक्रीय होकर पुष्पक्रम और पुष्पों का निर्माण करती है। यह विभाज्योतकी कोशिकाएँ बाहरी परत के ठीक नीचे स्थित होती है।
(iii) मज्जा विभाज्योतक (meristem medullaire) : यह विभाज्योतकी कोशिकाएँ प्ररोह शीर्ष के केन्द्रीय भाग में अवस्थित होती है और इनकी सक्रियता से संवहन ऊतकों और मज्जा का निर्माण होता है।
उपरोक्त परिकल्पना के अनुसार प्ररोह शीर्ष के दूरस्थ छोर पर स्थित प्रतीक्षात्मक विभाज्योतक कोशिकाओं को निष्क्रिय माना गया है जबकि अन्य सभी सिद्धान्तों के अनुसार प्ररोह शीर्ष पर उपस्थित सभी विभाज्योतक सक्रीय और कार्य क्षम होते है।

न्यूमेन का मत (newman’s concept)

प्ररोह शीर्ष में विभाज्योतकी कोशिकाओं के संगठन को समझाने के लिए न्यूमेन के द्वारा सर्वथा नवीन विचारधारा प्रस्तुत की गयी। उसके अनुसार संवहनी पौधों के विभिन्न समूहों में पाए जाने वाले प्ररोह शीर्ष संगठन को किसी एक सिद्धांत के आधार पर समझाना अत्यंत कठिन कार्य है। न्यूमेन के अनुसार प्ररोह शीर्ष में पाए जाने वाली विभाज्योतकी कोशिकाओं को सतत विभाज्योतकी अवशिष्ठकोशिकाएँ कहा जा सकता है। इसके साथ ही उसने यह भी बताया कि विभिन्न पादप समूहों में तीन प्रकार के प्ररोह शीर्ष पाए जाते है , यह है –
(i) मोनोप्लेक्स प्रकार (monoplex type) : इस प्रकार का प्ररोह शीर्ष संगठन निम्न वर्गीय संवहनी पौधों जैसे – फर्न्स आदि में पाया जाता है। यहाँ विभाज्योतकी कोशिकाएं एकल परत के रूप में और भीतर की तरफ उन्मुख होती है और एक ही तल पर विभाजित होकर फर्न्स के प्ररोह की लम्बाई में वृद्धि करती है।
(ii) सिमप्लेक्स प्रकार (simplex type) : इस प्रकार का प्ररोह शीर्ष प्राय: जिम्नोस्पर्म्स में पाया जाता है और इसकी कोशिकाएँ एक अथवा एक से अधिक स्तरों में व्यवस्थित होती है और यह अपनतिक और परिनतिक रूप से विभाजित हो सकती है।
(iii) ड्यूप्लेक्स प्रकार (duplex type) : प्राय: आवृतबीजी पौधों में इस प्रकार का प्ररोह शीर्ष पाया जाता है और इसकी कोशिकाएँ दो से अधिक तलों में विभाजित होने की क्षमता रखती है और एक से अधिक पंक्तियों में व्यवस्थित होती है। विभाज्योतकी कोशिकाओं की बाहरी परत को सतही स्तर कहते है और यह केवल अपनत रूप से विभाजित होती है। जबकि आंतरिक परतें सभी तलों में विभाजित होती है।
उपर्युक्त सभी विचारधाराओं के अध्ययन से यह प्रतीत होता है कि स्तम्भ शीर्ष संगठन को समझाने के लिए इनमें से कोई भी विचारधारा पूरी तरह खरी नहीं उतरती , लेकिन फिर भी ट्यूनिकाकार्पस सिद्धान्त उपर्युक्त सभी अवधारणाओं में सर्वाधिक ग्राहा और सुगम परिकल्पना कही जा सकती है।

संवहनी पौधों में पर्व का निर्माण (formation of internodes in vascular plants)

तने का वह भाग जिसके द्वारा एक अथवा एक से अधिक पत्तियों का विकास होता है , उसे पर्वसन्धि कहते है। दो पर्वसन्धियों के मध्य उपस्थित क्षेत्र को पर्व कहा जाता है। इसलिए तने अथवा शाखा की लम्बाई में वृद्धि का प्रमुख कारण इसके पर्व क्षेत्र में सुदीर्घीकरण की प्रक्रिया का संपन्न होना है। विभिन्न आवृतबीजी पौधों के तनों में पर्व की लम्बाई भी अलग अलग हो सकती है।
संवहनी पौधों विशेषकर आवृतबीजी पौधों के प्ररोह में लम्बाई में वृद्धि तो अग्रस्थ विभाज्योतकों के द्वारा होती है लेकिन इसके अंतर्गत प्ररोह अक्ष अथवा तने का सुदीर्घीकरण अर्थात पर्व का विकास इसमें उपस्थित विभाज्योतकी कोशिकाओं की एक समान सक्रियता के कारण संभव हो पाता है। पर्व का विकास अथवा लम्बाई में वृद्धि की यह प्रक्रिया अग्राभिसारी दिशा में पर्व के आधारीय भाग से ऊपरी सिरे की ओर क्रमिक रूप से अग्रसर होती है। इस तथ्य की पुष्टि गेरिसन और फिशर फ्रेंच द्वारा क्रमशः सूरजमुखी में और अन्य पौधों के प्ररोह शीर्ष में किये गए अध्ययन के आधार पर की गयी थी। फिशर फ्रेंच के अनुसार विभिन्न एकबीजपत्री कुलों के पौधों में प्ररोह की लम्बाई में वृद्धि के लिए विकासशील पर्व में उपस्थित दो प्रकार की विभाज्योतक कोशिकाएं उत्तरदायी होती है –
(i) अव्यवधानिक विभाज्योतक (uninterrupted meristems)
(ii) अन्तर्वेशी विभाज्योतक (intercalary meristem)
अव्यवधानिक प्रकार की विभाज्योतक कोशिकाएँ केवल पर्व के उपरी भाग में ही उपस्थित रहती है और तने के उपशीर्षस्थ विभाज्योतक क्षेत्र के पास पायी जाती है।
पर्व में उपस्थित अन्तर्वेशी विभाज्योतक वस्तुतः विच्छिन्न विभाज्योतकी क्षेत्रों को निरुपित करते है जो किसी कारणवश अग्रस्थ अथवा उपअग्रस्थ विभाज्योतकी क्षेत्रों से पृथक हो गए है। ये अंतर्वेशी विभाज्योतक पर्व के आधारीय भाग में उपस्थित होते है और इनके परिवर्धन का क्रम तलाभिसारी दिशा में संचालित होता है। अधिकांश पौधों में अन्तर्वेशी विभाज्योतकी कोशिकाओं में न्यूनतम विभेदन पाया जाता है। सामान्यतया इस प्रकार की विभाज्योतकी कोशिकाएं पर्व के आधारीय भाग में पायी जाती है परन्तु कभी कभी पर्व के ऊपरी भाग में भी इनकी उपस्थिति देखी जा सकती है। अधिक परिपक्व अवस्था में पर्व की अन्तर्वेशी विभाज्योतकी कोशिकाएँ बीच बीच में उपस्थित पूर्णतया विभेदित स्थायी ऊतक कोशिकाओं के कारण एक दुसरे से पृथक हो जाती है। अन्ततोगत्वा पर्व की ये अंतर्वेशी विभाज्योतकी कोशिकाएँ पर्व की लम्बाई में उल्लेखनीय वृद्धि कर स्थायी ऊतकों के रूप में विभेदित हो जाती है। वयस्क पर्व में इनका अस्तित्व पूरी तरह समाप्त हो जाता है और ये विलोपित हो जाती है।
अनेक घासों में पर्व का सुदीर्घीकरण प्राय: अन्तर्वेशी विभाज्योतकों की सक्रियता से होता है। ये विभाज्योतकी कोशिकाएं विभाजित होकर संतति कोशिकाओं की अनेक समानान्तर श्रेणियों का निर्माण करती है , इन कोशिकाओं को रिब मेरीस्टेम कहा जाता है। इस प्रकार की विभाज्योतकी कोशिकाएं प्ररोह शीर्ष पर पायी जाने वाली इसी नाम की कोशिकाओं से पूर्णतया भिन्न होती है।
इन कोशिकाओं से व्युत्पन्न संतति कोशिकाओं के सुदीर्घीकरण के द्वारा पर्व की लम्बाई में भी वृद्धि होती है। (काफमेन 1959 के अनुसार)
मिल्टेनिल के अनुसार घासों के पर्वों में पायी जाने वाली अन्तर्वेशी विभाज्योतकी कोशिकाएँ किसी निश्चित बिंदु या स्थान पर अवस्थित नहीं होती अपितु पर्व की लम्बाई में वृद्धि होने के साथ साथ ही इनकी स्थिति में बदलाव आता है। प्रारम्भिक अवस्थाओं में तो अन्तर्वेशी विभाज्योतकी कोशिकाओं की सक्रियता सम्पूर्ण पर्वों में दृष्टिगोचर होती है लेकिन आगे चलकर पर्ण चिन्ह के निर्माण के बाद इनकी सक्रियता पर्वसंधि पट्टिका के ऊपर और आस पास परिधीय भरण ऊतक के क्षेत्र में ही सिमित रह जाती है।

प्रश्न और उत्तर

प्रश्न 1 : अग्रस्थ कोशिका सिद्धांत के प्रणेता थे –
(अ) नजेली
(ब) हेन्सटीन
(स) श्मिट
(द) बुवेट
उत्तर : (अ) नजेली
प्रश्न 2 : पट्टिका विभाज्योतक से विकास होता है –
(अ) भरण ऊतक
(ब) पर्णफलक
(स) तान्तुकी संरचना
(द) बीजाणु का
उत्तर : (ब) पर्णफलक
प्रश्न 3 : मेंटल और कोर सिद्धान्त के प्रस्तुतकर्ता थे –
(अ) हेन्सटीन
(ब) पर्णफलक
(स) पोफाम और चान
(द) फास्टर
उत्तर : (स) पोफाम और चान
प्रश्न 4 : ट्यूनिका कार्पस सिद्धांत प्रस्तुत किया था –
(अ) फास्टर
(ब) बुवेटस
(स) हेंसटीन
(द) श्मिट ने
उत्तर : (द) श्मिट ने
प्रश्न 5 : ऊतकजन सिद्धांत किसने प्रतिपादित किया –
(अ) हेन्सटीन
(ब) श्मिट
(स) डर्मन
(द) नेगेली
उत्तर : (अ) हेन्सटीन