मालवेसी कुल क्या है | मालवेसी कुल किसे कहते है परिभाषा के पौधे लक्षण वर्गीकरण पुष्प सूत्र malvaceae family in hindi

(malvaceae family in hindi ) मालवेसी कुल क्या है | मालवेसी कुल किसे कहते है परिभाषा के पौधे लक्षण वर्गीकरण पुष्प सूत्र का वर्णन कीजिये ?
कुल – मालवेसी (malvaceae family) :
वर्गीकृत स्थिति – बेन्थम और हुकर के अनुसार
प्रभाग – एन्जियोस्पर्मी
उपप्रभाग – डाइकोटीलिडनी
वर्ग – पोलीपेटेली
श्रेणी – थैलेमीफ्लोरी
गण – मालवेल्स
कुल – मालवेसी

मालवेसी के विशिष्ट लक्षण (salient features of malvaceae)

  1. अधिकांश सदस्य क्षुप तथा वृक्ष शाक कम संख्या में , पादप शरीर में चिपचिपा श्लेष्मक पदार्थ पाया जाता है।
  2. पत्तियाँ अनुपर्णी , पत्तियों और तने पर ताराकार रोम उपस्थित।
  3. पुष्पक्रम एकल कक्षस्थ।
  4. पुष्प में अनुबाह्यदल पुंज उपस्थित , दलपुंज विन्यास व्यावर्तित।
  5. पुंकेसर असंख्य , एकसंघी , परागकोष एककोष्ठीय , पृष्ठलग्न बहिर्मुखी पुंकेसरी नाल उपस्थित।
  6. जायांग दो से बहुअंडपी , बीजांडन्यास स्तम्भीय।
प्राप्तिस्थान और वितरण (occurrence and distribution) : यह द्विबीजपत्री पादपों का एक महत्वपूर्ण कुल है , जिसमें लगभग 75 वंश और 1000 जातियाँ सम्मिलित की गयी है। इस कुल के सदस्य अधिकांशत: विश्व के उष्णकटिबंधीय और उपोष्ण भागों में पाए जाते है। भारत में इस कुल के 22 वंश और लगभग 100 जातियाँ मुख्यतः शुष्क क्षेत्रों में पायी जाती है।
कायिक लक्षणों का परास (range of vegetative characters) :
प्रकृति और आवास (habit and habitat) : इस कुल के अधिकांश सदस्य काष्ठीय क्षुप (जैसे – हिबिस्कस रोजा साइनेन्सिस) होते है। काइडिया कैलीसिना , थेस्पेसिया पापुलनिया और हिबिस्कस इलेटस आदि पादप वृक्ष है जबकि साइडा और माल्वेस्ट्रम आदि एक अथवा बहुवर्षीय शाक है। अधिकांश पादप म्यूसिलेज युक्त होते है और कुछ पौधों में अम्लीय रस पाया जाता है।
मूल – शाखित मूसला जड़।
स्तम्भ – उधर्व , शाखित बेलनाकार , गाँठदार , ठोस और प्राय: रोंयेदार , सामान्यतया स्तम्भ का ऊपरी भाग शाकीय और आधारीय परिपक्व भाग काष्ठीय होता है। स्तम्भ के ऊतकों में म्यूसिलेज ग्रंथियाँ बहुलता से पायी जाती है।
पर्ण – स्तम्भीय औरशाखीय सरल , एकान्तरित , अनुपर्णी सवृन्त हस्ताकार रूप से पालित , पर्णछोर दांतेदार शिराविन्यास , बहुशिरीय जालिकावत। अनुपर्ण प्राय: पाशर्वीय और आशुपाती। पत्तियों की सतह पर ताराकार रोम अत्यधिक संख्या में पाए जाते है।

पुष्पीय लक्षणों का परास (range of floral characters)

पुष्पक्रम : इस कुल के सदस्यों में मुख्यतः ससीमाक्षी प्रकार का पुष्पक्रम पाया जाता है। यदाकदा असीमाक्षी प्रकार का पुष्पक्रम पाया जाता है। विविध प्रकार के पुष्पक्रम निम्नलिखित है –
1. एकल कक्षस्थ : हिबिस्कस रोजा साइनेन्सिस।
2. एकलपर्ण सम्मुख : गोसीपियम।
3. सरल ससीमाक्षों का असीमाक्ष : हिबिस्कस केनाबिनस।
4. यौगिक असीमाक्ष : काइडिया।
5. असीमाक्षी असीमाक्ष : एल्थिया रोजिया।
हिबिस्कस में पुष्पवृन्त पर एक जोड़ पाया जाता है , जिससे प्रतीत होता है कि वास्तव में एकल पुष्प ही सरल ससीमाक्षी से व्युत्पन्न है तथा पाशर्व शाखाएँ पुष्पविहीन हो चुकी है।
पुष्प : सवृन्त , सहपत्रिकायुक्त त्रिज्यासममित , द्विलिंगी लेकिन काइडिया में बहुलिंगी , पूर्ण , चक्रिक , पंचतयी , जायांगधर अनुबाह्यदल पुंज – सहपत्रिकाएँ बाह्यदलपुंज के चारों तरफ एक चक्र बनाती है , जिसे अनुबाह्यदलपुंज कहते है। अनुबाह्यदल प्राय: असंख्य , माल्वेस्ट्रम कोरोमंडेलिकम में 3 , गोसिपियम में 3 स्वतंत्र और पर्णील , हिबिसकस रेडीएटस में असंख्य स्वतंत्र , एल्थिया में असंख्य संयुक्त सहपत्रिकाएँ पायी जाती है। साइडा और एब्यूटिलोन में सहपत्रिकाएँ अनुपस्थित होती है।
बाह्यदलपुंज : बाह्य दल 5 , प्राय: संयुक्त बाह्यदली , विन्यास कोरस्पर्शी।
दलपुंज : दल 5 , बड़े और आकर्षक , पृथकदली लेकिन आधार पर सहजात और पुंकेसरी नाल से जुड़े होते है। दलपुंज विन्यास , व्यावर्तित।
पुमंग : पुंकेसर असंख्य , एकसंघी , पुंतन्तुओं के आधारीय भाग आपस में जुड़कर अंडाशय और वर्तिका के चारों तरफ एक पुंकेसरीनाल बनाते है। यह नाल दललग्न होती है और इसके ऊपरी सिरे पर एककोष्ठीय , वृक्काकार , पृष्ठलग्न और बहिर्मुखी परागकोष होते है। जूलोस्टाइलिस एन्गस्टफ़ोलिया में 10 पुंकेसर , साइडा ओलिगेन्ड्रा और साइडा लोमाना में 5 स्वतंत्र दलाभिमुख पुंकेसर होते है।
जायांग : पाँच से बहुअंडपी , युक्तांडपी , कोष्ठों की संख्या अंडपों के बराबर , बीजांडन्यास स्तम्भीय , वर्तिकाएँ आधारीय भाग में या पूर्णरूप से संयुक्त रहती है। वर्तिकाग्रों की संख्या अंडपों की संख्या के बराबर अथवा इनसे दोगुनी होती है , अंडाशय उधर्ववती।
फल और बीज : इस कुल में अनेक प्रकार के फल पाए जाते है जैसे – हिबिस्कस और गोसीपियम में शुष्क कोष्ठविदारक केप्सूल , साइडा , ऐबूटिलोन और मालवा में भिदुरफल और माल्विस्कस में यह माँसल सरसफल होता है। यूरिना की अनेक जातियों में फल की सतह शूकमय होती है।
बीज : वृक्काकार अथवा प्रति अण्डाकार और सामान्यतया म्यूसिलेज युक्त होते है। ये अल्प भ्रूणपोषी पाए जाते है।
परागण और प्रकीर्णन : सामान्यतया पुष्पों में कीट परागण होता है लेकिन मालवा रोटंडीफोलिया , माल्वेस्ट्रम और पेवोनिया में स्वपरागण होता है।
गोसीपियम के रोमिल बीजों का प्रकीर्णन वायु द्वारा होता है। मालवा की कुछ जातियों में प्रकीर्णन जल के द्वारा और यूरीना के शुकमय बीजों का जन्तुओं और मनुष्यों द्वारा प्रकीर्णन होता है।
पुष्पसूत्र :
1. हिबिस्कस रोजा – साइनेन्सिस :
2. मालवा पारवीफ्लोरा :
3. साइडा :

आर्थिक महत्व

इस कुल के पादप सब्जियों , रेशों , तेल और औषधियों के प्रमुख स्रोत है। अनेक जातियाँ सुन्दर पुष्पों के लिए उगाई जाती है।
I. सब्जियाँ :
1. ऐबेलमोस्कस एस्कुलेंटस – भिंडी।
2. हिबिस्कस केनाबिनस की पत्तियों की चटनी बनाई जाती है।
3. हिबिस्कस सीरिऐकस की पुष्प कलिकाएँ खाने के लिए प्रयुक्त होती है।
4. हिबिस्कस सबदरीफ पटवा का माँसल अनुबाह्यदलपुंज चटनी बनाने के लिए काम में आता है।
II. रेशे : इस कुल के प्रमुख रेशा स्रोत पादप निम्नलिखित है –
1. गोसीपियम के बीज लम्बे और घने रोमों से ढके रहते है , जो कपास का मुख्य स्रोत है। गोसिपियम बारबेडेंस और गोसिपियम हिरसुटम और गोसिपियम आरबोरियम आदि प्रमुख कपास उत्पादक जातियाँ है।
2. हिबिस्कस केनाबिनस से पटसन प्राप्त होता है , जिसका उपयोग रस्सी के बोरे बनाने में किया जाता है।
3. साइडा , यूरिना और थेस्पेसिया की विभिन्न जातियों से घटिया किस्म का रेशा प्राप्त होता है।
III. शोभाकारी पादप (ornamentals plants) :
1. हिबिस्कस रोजा – साइनेन्सिस – गुड़हल।
2. एल्थिया रोजिया – होलीहोक , गुलखैरा।
3. थेस्पेसिया पापुल्निया – पारस पीपल।
4. मालविस्कस कोन्जेटाई – जासूल।
5. हिबिस्कस म्यूटाबिलिस – गुलअजायब।
IV. तेल :
1. गोसीपियम (कपास) के बीजों (बिनौला) से प्राप्त तेल विभिन्न प्रकार से उपयोगी होता है , इनसे वनस्पति घी भी बनता है।
V. काष्ठ :
1. थेस्पेसिया पोपुलनिया – इसकी हल्की काष्ठ नाव बनाने के काम आती है।
2. हिबिस्कस इलेटस – इसकी काष्ठ रेल्वे स्लीपर और फर्नीचर बनाने के काम आती है।
VI. औषधिक महत्व :
1. यूरीना लोबेटा की जड़ और छाल हाइड्रोफोबिया के उपचार में।
2. मालवा वर्टिसिलेटा की जड़ काली खाँसी के इलाज में।
3. मालवा सिलवेस्ट्रिस की जड़ और बीज बुखार के उपचार में।
4. एल्थिया रोजिया की जड़ें दस्त के उपचार में।

मालवेसी कुल के महत्वपूर्ण पादपों का वानस्पतिक विवरण (botanical description of important plants of family malvaceae)

1. हिबिस्कस रोजा साइनेन्सिस लिन (hibiscus rosa sinensis linn.) :
स्थानीय नाम : गुड़हल।
स्वभाव और आवास : शोभाकारी , बहुवर्षीय , क्षुप।
मूल : मूसला मूल शाखित।
स्तम्भ : उधर्व काष्ठीय , शाखित , बेलनाकार , चिकना और ठोस।
पर्ण : स्तम्भिक और शाखीय , सरल , सवृन्त , अनुपर्णी , अंडाशय , अरोमिल , पर्णछोर – दांतेदार , बहुशिरीय जालिकावत शिराविन्यास।
पुष्पक्रम : ससीमाक्षी , एकल कक्षस्थ।
पुष्प : सवृंत , सहपत्री , सहपत्रिकायुक्त , पूर्ण , बड़ा और आकर्षक , चक्रिक , नियमित , त्रिज्यासममित , द्विलिंगी , पंचतयी , जायांगी।
अनुबाह्यदलपुंज : अनुबाह्यदल प्राय: 3 से 7 , संयुक्त।
बाह्यदलपुंज : बाह्यदल 5 , संयुक्तबाह्यदली , चिरलग्न विन्यास , कोरस्पर्शी।
दलपुंज : दल 5 , पृथकदली , विन्यास व्यावर्तित , दल आधार पर पुंकेसरीनाल से जुड़े हुए।
पुमंग : पुंकेसर असंख्य , एकसंघी पुंतन्तु मिलकर वर्तिका के चारों तरफ एक पुंकेसरी नाल बनाते है , दललग्न , परागकोष एककोष्ठी , वृक्काकार।
जायांग : पंचअंडपी , युक्तांडपी , पंचकोष्ठीय , बीजाण्डन्यास अक्षीय , वर्तिका लम्बी और पुंकेसरी नाल में आवृत , वर्तिकाग्र 5 और समुंड , अंडाशय उधर्ववर्ती।
फल : सम्पुटिका।
पुष्पसूत्र :

2. एल्थिया रोजिया (लिन.). केव. (althea rosea (linn.) cav.)

स्थानीय नाम : होली होक , गुलखैरा।
प्रकृति और आवास : एकवर्षीय उपक्षुप।
जड़ : मूसला , शाखित।
स्तम्भ : उधर्व , वायवीय , प्राय: अशाखित , बेलनाकार , हरा।
पर्ण : सरल , सवृंत , एकान्तरित , ताराकार रोमिल , अनुपर्णी , अनुपर्ण स्वतंत्र पाशर्वीय , बहुशिरीय जालिकावत शिराविन्यास , पर्णफलक हस्ताकार पालित , चिपचिपी और खुरदरी।
पुष्पक्रम : असीमाक्षी असीमाक्ष।
पुष्प : सवृंत , सहपत्री , सहपत्रिका युक्त , द्विलिंगी , चक्रिक , नियमित , त्रिज्यासममित , बड़ा और आकर्षक , पूर्ण , जायांगधर , पंचतयी।
अनुबाह्यदलपुंज : अनुबाह्यदल प्राय: 6 से 8 , संयुक्त।
बाह्यदलपुंज : बाह्यदल 5 , संयुक्त , चिरलग्न , घंटाकार , विन्यास कोरस्पर्शी।
दलपुंज : दल 5 , पृथकदलीय , आधारीय भाग में पुंकेसरीनाल से जुड़े , दलपुंज विन्यास व्यावर्तित।
पुमंग : पुंकेसर असंख्य , एकसंघी , पुंतन्तु जुड़कर पुंकेसरी नाल बनाते है जो दललग्न होती है , परागकोष एककोष्ठीय , वृक्काकार , पृष्ठलग्न , बहिर्मुखी।
जायांग : बहुअंडपी , युक्तांडपी , बहुकोष्ठीय , बीजांडन्यास स्तम्भीय , वर्तिकाओं की संख्या अंडपों के बराबर , वर्तिकाग्र स्वतंत्र , अंडाशय उधर्ववर्ती।
फल : कारसेरुलस।
पुष्पसूत्र :

प्रश्न और उत्तर

प्रश्न 1 : मालवेसी कुल की विशेषता है –
(अ) एकसंघी पुंकेसर
(ब) बहुसंघी पुंकेसर
(स) चतुर्दिर्घी पुंकेसर
(द) उपरोक्त कोई नहीं
उत्तर : (अ) एकसंघी पुंकेसर
प्रश्न 2 : एककोष्ठकी पराग कोष पाए जाते है –
(अ) मालवेसी में
(ब) रेननकुलेसी में
(स) कैरियोफिलेसी में
(द) ग्रेगिनी में
उत्तर : (अ) मालवेसी में
प्रश्न 3 : असंख्य पुंकेसर , पुंकेसरी नाल और एकोष्ठी परागकोष पाए जाते है –
(अ) ऐस्ट्रेसी में
(ब) मालवेसी में
(स) रुवियेसी में
(द) पैपेवरेसी में
उत्तर : (ब) मालवेसी में
प्रश्न 4 : मालवेसी के जायांग का लक्षण है –
(अ) बहुअंडपी , कक्षीय
(ब) द्विअंडपी , आधारी बीजाण्डसन
(स) त्रिअंडपी भित्तिय बीजाण्डसन
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर :  (अ) बहुअंडपी , कक्षीय