मलेरिया परजीवी किसे कहते है ? लक्षण जीवन चक्र का वर्णन वाहक नाम malaria parasite in hindi

malaria parasite in hindi मलेरिया परजीवी किसे कहते है ? लक्षण जीवन चक्र का वर्णन वाहक नाम ?

५. मलेरिया परजीवी
मलेरिया का उत्पादक मलेरिया एक ऐसा बुखार है जिसका कारण काफी समय तक मलेरिया का ज्ञात न था। मलेरिया एक इतालवी शब्द है जिसका अर्थ है खराब हवा । पहले ऐसा माना जाता था कि यह रोग दलदल से आनेवाली हानिकारक भाप के कारण उत्पन्न होता है। पिछली शताब्दी के अन्त में वैज्ञानिकों ने मलेरियाग्रस्त रोगियों के रक्त की माइक्रोस्कोप की सहायता से जांच की। उस समय यह ज्ञात हो चुका था कि मनुष्य के रक्त में सूक्ष्म लाल रक्तकणिकाएं होती हैं। मलेरियाग्रस्त रोगियों की लाल रक्तकणिकाओं में अमीबा जैसे एककोशिकी प्राणी पाये गये। इस प्राणी को मलेरिया परजीवी नाम दिया गया।
१ (1). लाल रक्तकणिका में प्रवेश करता हुआ परजीवी य २ (2). लाल रक्तकणिका में बढ़ता और परिवर्दि्धत होता हुआ परजीवी य ३ (3). परजीवी के विभाजन का आरम्भ य ४(4). एक से कई परजीवी उत्पन्न होते हैं, लाल रक्तकणिका नष्ट हो जाती है।
यह परजीवी लाल रक्तकणिका में प्रवेश करता है और उसी को अपना भोजन बनाता है। वह बढ़कर कणिका को व्याप्त कर लेता है और फिर अमीबा की तरह बंट जाता है – पर दो हिस्सों में नहीं, कइयों में। नये प्राणी उत्पन्न होते हैं जो रक्तकणिका से बाहर आते हैं (आकृति ७)।
उस समय परजीवी का कणिका में एकत्रित तरल उत्सर्जन रक्त में प्रवेश करता है। इससे मनुष्य का शरीर विषाक्त हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप सिरदर्द और कंपकंपी शुरू होती है और शरीर के तापमान में तीव्र वृद्धि होती है। इस तरह बुखार का दौरा आता है। कई बार तो रोगी उन्मत्त हो जाता है। लाल रक्तकणिकाओं से परजीवी हर ४८ या ७२ घंटों बाद बाहर आते हैं। मलेरिया के बुखार के दौरे भी उसी समय आते हैं।
रक्त में प्रवेश करनेवाले नवजात परजीवी नयी रक्तकणिकाओं में घुस जाते हैं और उन्हें नष्ट कर देते हैं। हर विभाजन के समय रक्त के परजीवियों की संख्या कई गना बढ़ जाती है। वे भारी संख्या में लाल रक्तकणिकाओं को नष्ट कर देते हैं। इसके परिणाम बड़े गंभीर होते हैं। मलेरिया परजीवी का वाहक परजीवियों को एक से दूसरे आदमी तक ले जाने का काम मलेरिया परजीवी मलेरिया मच्छर की मादाएं करती हैं ( ३२ देखिये)। जब मच्छर की मादा रोगी व्यक्ति का खून चूस लेती है तो परजीवी उसके शरीर में भी प्रवेश करते हैं। वहां बड़ी तेजी से उनकी संख्या बढ़ जाती है और कुछ ही दिन बाद लार में उनके झुंड दिखाई देने लगते हैं। फिर यदि यह मच्छर अपनी सूंड से किसी स्वस्थ आदमी को काट लेता है तो मलेरिया के परजीवी उक्त व्यक्ति के रक्त में घुस जाते हैं।
सोवियत संघ में मलेरिया का मुकाबिला जारशाही रूस में हजारों लोगों को मलेरिया के शिकार होना पड़ता था। कोलखीदा (काकेशिया) जैसे कुछ दक्षिणी इलाकों में तो पूरे गांव के गांव बरबाद हो चुके थे। सोवियत सरकार मलेरिया की रोक-थाम के लिए विस्तृत उपाय लागू करती आयी है। मच्छरों के डिम्भों का परिवर्द्धन पानी में होता है। अतः उक्त कोलखीदा जैसे एक समय के मलेरियाग्रस्त इलाकों में सभी दलदलयुक्त निम्न भूमियों को सुखाया गया है। गम्बूशिया (आकृति ८) और कार्प-मछली (आकृति ७६) जैसी मछलियों का संवर्द्धन भी मलेरिया की रोक-थाम में सहायक होता है क्योंकि ये मछलियां जिन जलाशयों में रहती हैं वहां के डिम्भों को खा जाती हैं।
वयस्क मच्छरों को नष्ट करना बहुत महत्त्वपूर्ण है। ये मच्छर जाड़ों के अधिकांश दिन तहखानों में बिताते हैं। उनके विनाश का काम उक्त स्थानों में ‘डी० डी० टी०‘ जैसे विषैले पाउडरों के छिड़काव द्वारा किया जाता है। ये पाउडर कीटों के ऊपरी आवरणों के जरिये अपना असर डालकर उन्हें मार डालते हैं।
डिम्भों के नाश और वयस्क मच्छरों के शीतकालीन आश्रयस्थानों में पाउडरों के छिड़काव के फलस्वरूप कई जगहों में मलेरिया का नामोनिशान तक नहीं रहा।
मलेरिया के रोगियों से ही मच्छरों को परजीवियों की प्राप्ति होती है। अतः ऐसे रोगियों के इलाज पर विशेप ध्यान दिया जाता है। पहले मलेरिया के विरुद्ध एक ही मुख्य दवा कुनैन का प्रयोग किया जाता था। यह दवा रोगी के खून में प्रवेश कर परजीवियों को मार डालती है। चूंकि कुनैन का पेड़ सोवियत संघ में उगता नहीं इसलिए सोवियत सरकार ने वैज्ञानिकों को मलेरिया परजीवियों को नष्ट करनेवाले किसी और साधन की खोज करने का काम सौंप दिया। शीघ्र ही एक्रिकाइन नामक द्रव्य प्राप्त हुआ जो कुनैन जितना ही अच्छा है। इसका बड़े पैमाने पर उत्पादन प्रारम्भ हुआ।
इस प्रकार मलेरिया विरोधी लड़ाई दो मोर्चों पर लड़ी जा रही है – रोग के वाहक मच्छरों को समाप्त करके और खुद परजीवियों को नष्ट करके।
आज सोवियत संघ में बड़े पैमाने की बीमारी के रूप में मलेरिया का अस्तित्व नहीं है। जिन देशों में बड़े पैमाने पर मलेरिया विरोधी कार्रवाइयां नहीं की जाती वहां लोग बड़ी संख्या में इस रोग से ग्रस्त हो जाते हैं और मर जाते हैं। तुर्की , ईरान और इंडोनेशिया विशेष रूप से मलेरियाग्रस्त हैं।
अभी हाल ही में, जब भारत एक उपनिवेश था, वहां बड़े सख्त उष्णकटिबन्धीय मलेरिया ने लगभग १०,००,००,००० लोगों को घेर लिया जिनमें से करीब १० लाख लोगों को मौत का शिकार होना पड़ा। स्थानीय जनता के स्वास्थ्य का स्तर ऊंचा उठाने में उपनिवेशवादियों की कभी कोई रुचि नहीं थी। पर उनसे स्वाधीनता प्राप्त कर लेने के बाद स्वास्थ्य-सेवा और चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में काफी तरक्की की गयी। नवोदित भारतीय गणराज्य ने मलेरिया विरोधी संघर्ष में काफी सफलताएं प्राप्त कर ली हैं।
प्रोटोजोआ समूह अपनी संरचनाओं की भिन्नता के बावजूद अमीबा, पैरामीशियम और मलेरिया परजीवी में एक समान विशेषता है – वह यह कि इन सभी प्राणियों के शरीर एककोशिकीय होते हैं। सभी एककोशिकीय प्राणियों को प्रोटोजोबा नामक समह में एकत्रित किया जाता है।
प्रोटोजोआ की सरल संरचना ही इस प्राणि-समूह की अतिप्राचीनता की साक्षी है। वैज्ञानिकों की मान्यता है कि धरती पर प्रोटोजोआ का जन्म लगभग डेढ़ अरब वर्ष पहले हुआ।
प्रश्न – १. मलेरिया के दौरे क्यों होते हैं? २. आदमी कैसे मलेरियाग्रस्त हो जाता है ? ३. मलेरिया विरोधी लड़ाई कैसे लड़ी जाती है ? ४. प्रोटोजोआ के विशेष लक्षण क्या हैं?