लेंस का आवर्धन magnification of lens in hindi :-
उत्तल लेंस द्वारा प्रतिबिम्ब निर्माण (image formation by convex lens) :
- जब बिम्ब अनंत पर स्थित हो –
प्रतिबिम्ब मुख्य फोकस पर (F2) पर प्राप्त होगा।
प्रतिबिम्ब वास्तविक उल्टा व बिन्दुवत (बहुत छोटा) प्राप्त होगा।
- जब बिंदु वक्रता केंद्र से पीछे स्थित हो:
प्रतिबिम्ब द्वितीय फोकस व वक्रता केंद्र के मध्य प्राप्त होगा।
प्रतिबिम्ब वास्तविक , उल्टा व छोटा बनेगा।
- जब बिम्ब वक्रता केंद्र पर स्थित हो:
प्रतिबिम्ब वक्रता केन्द्र पर प्राप्त होता है। यह वास्तविक , उल्टा एवं समान आकार का होगा।
- जब बिम्ब वक्रता केन्द्र व प्रथम फोकस के मध्य स्थित हो:
प्रतिबिम्ब वक्रता केंद्र से आगे प्राप्त होगा।
प्रतिबिम्ब वास्तविक , उल्टा व बड़ा होगा।
- जब बिम्ब प्रथम फोकस पर स्थित हो:
प्रतिबिम्ब लेंस की दूसरी ओर अनंत पर प्राप्त होगा।
प्रतिबिम्ब वास्तविक , उल्टा व बहुत बड़ा प्राप्त होगा।
- जब बिम्ब प्रथम फोकस व प्रकाशिकी केंद्र के मध्य स्थित हो:
प्रतिबिम्ब लेंस के उसी ओर अर्थात वस्तु की ओर प्राप्त होगा।
प्रतिबिम्ब आभासी , सीधा व बड़ा प्राप्त होगा।
अवतल लेंस द्वारा प्रतिबिम्ब निर्माण :
- जब बिम्ब अनंत पर स्थित हो:
प्रतिबिम्ब वस्तु की ओर बनेगा।
उत्तल लेंस से बनने वाला आभासी प्रतिबिम्ब सदैव बड़ा होता है तथा अवतल लैंस से बनने वाला आभासी प्रतिबिम्ब सदेव छोटा होता है।
लेंस का आवर्धन (m) (magnification of lens)
किसी लेंस द्वारा बने प्रतिबिम्ब की ऊंचाई तथा बिम्ब की ऊंचाई का अनुपात लेंस का आवर्धन कहलाता है।
अर्थात लेंस का आवर्धन (m) = प्रतिबिम्ब की ऊँचाई /बिम्ब की ऊंचाई
माना एक बिम्ब AB जिसकी ऊंचाई n है , का उत्तल लेंस जिसकी फोकस दूरी f है , द्वारा बना प्रतिबिम्ब A’B’ प्राप्त होता है जिसकी ऊँचाई h’ है तो आवर्धन की गणना के लिए –
समकोण △AOB व समकोण △A’OB’ से –
∠BAO = B’A’O (समकोण)
∠AOB = A’OB’ (शीर्षाभिम्मुख कोण)
अत: समकोण △AOB = △A’OB’ समरूप त्रिभुज है।
इसलिए
A’B’/AB = OA’/OA समीकरण-1
लेंस का आवर्धन m = A’B’/AB समीकरण-2
समीकरण-1 व समीकरण-2 की तुलना करने पर –
m = A’B’/AB = OA’/OA
चिन्ह परिपाटी के अनुसार मान रखने पर –
A’B’ = -h’
AB = +h
OA = -u तथा OA’ = +v
इसलिए
m = -h’/h = +v/-u
m = h’/h = v/u
- यदि m का मान धनात्मक हो तो प्रतिबिम्ब आभासी व सीधा होगा।
- यदि m का मान ऋणात्मक हो तो प्रतिबिम्ब वास्तविक एवं उल्टा होगा।
- यदि m > 1 तो प्रतिबिम्ब बड़ा होगा।
- यदि m = 1 तो प्रतिबिम्ब समान होगा।
- यदि m < 1 तो प्रतिबिम्ब छोटा होगा।
दो पतले लेंसों के संयोजन की फोकस दूरी : माना दो पतले उत्तल लेंस L1 व L2 जिनकी फोकस दूरियाँ क्रमशः f1 व f1 है , यदि L1 लेंस से बिम्ब O की दूरी u तथा इस लेंस से बनने वाले प्रतिबिम्ब I’ की दूरी v’ है। प्रतिबिम्ब I’ दूसरे लेन्स L2 के लिए आभासी बिम्ब का कार्य करता है जिसका प्रतिबिम्ब I प्राप्त होता है , जिसकी L2 से दूरी v है तो लैंसो के संयोजन की फोकस दूरी की गणना के लिए –
लेंस सूत्र के समीकरण से –
1/-u + 1/v = 1/f समीकरण-1
उत्तल लेंस L1 के लिए –
u = u ; v = v’ तथा f = f1
-1/u + 1/v’ = 1/f1 समीकरण-2
उत्तल लेंस L2 के लिए –
u = v’ ; v = v तथा f = f2
-1/v’ + 1/v = 1/f2 समीकरण-3
समीकरण-2 + समीकरण-3 से –
-1/u + 1/v = 1/ f1 + 1/f2 समीकरण-4
समीकरण-1 व समीकरण-4 की तुलना करने पर –
संयोजन की फोकस दूरी –
1/f = 1/f1 + 1/f2
1/f = (f1 + f2)/f1f2
f = f1f2/(f1 + f2)
लेंस की क्षमता (P)
किसी लेंस द्वारा प्रकाश किरणों को मोड़ने की क्षमता को ही लेंस की क्षमता कहते है।
अथवा
जब कोई प्रकाश किरण मुख्य अक्ष से एकांक दूरी पर मुख्य अक्ष के समान्तर आपतित होती है तो उस आपतित किरण के विचलन कोण को ही लेंस की क्षमता या लेंस की शक्ति कहते है।
माना कोई प्रकाश किरण मुख्य अक्ष के समान्तर आपतित होती है जो लेंस द्वारा अपवर्तन के पश्चात् मुख्य फोकस से गुजरती है तो –
समकोण △OAF से –
tanζ = OA/OF
चूँकि tanθ = लांब/आधार
अत्यल्प कोण के लिए tanζ= ζ होगा।
ζ = OA/OF
यदि OA = 1 हो तो ζ = P (परिभाषा के अनुसार) होगा।
अत: P = 1/f
अर्थात किसी लेंस की फोकस दूरी का व्युत्क्रम ही लेंस की क्षमता कहलाता है।
उत्तल लेंस की क्षमता सदैव धनात्मक व अवतल लेंस की क्षमता सदेव ऋणात्मक होती है।
लेंस की क्षमता का मात्रक मीटर-1 या डायप्टर (D) होती है।
1/मीटर = डायप्टर
यदि लेंसों के संयोजन में लैंसो की फोकस दूरियां क्रमशः f1 , f2 , f3 ……fn हो तो संयोजन की क्षमता –
1/f = 1/f1 + 1/f2 + 1/f3 + . . . . . . . + 1/fn
P = P1 + P2 + P3 + . . . . . Pn
अर्थात लैंसो के संयोजन की क्षमता अलग अलग लैंसो की क्षमताओ के बिजगणितीय योग के बराबर होती है।