लूप ऑफ हेनले किसे कहते हैं ? Loop of Henle diagram in hindi work लूप ऑफ़ हेनले का कार्य क्या होता है ?

लूप ऑफ़ हेनले का कार्य क्या होता है ? लूप ऑफ हेनले किसे कहते हैं ? Loop of Henle diagram in hindi work ?

लूप ऑफ़ हेनले : यह हेयर – पिन लूप जैसा नलिकाकार भाग है जो कि रीनल मेड्युला में धंसा रहता है | हेनले लूप दो समान्तर भुजाओं से बना होता है जो वक्राकर आधार से जुड़ी होती है | यहाँ तक अवरोही भुजा और एक आरोही भुजा होती है |

(i)            अवरोही भुजा – अवरोही भुजा समीपस्थ कुंडलित नलिका के नियमन (continuation)में होती है और इसके दो भाग – पतला खण्ड और मोटा खण्ड होते हैं | मोटा भाग अवरोही भुजा का लगभग 4/5 भाग बनाता है | यह कॉर्टेक्स और मेड्युला दोनों में स्थित होता है | इसकी कोशिका घनाकार होती है | इनमें माइक्रोविलाई और कुछ माइटोकोंड्रिया होते हैं | जो यह संकेत करते हैं कि सक्रीय अवशोषण और स्त्रावण अनुपस्थित होता है | पतला भाग अवरोही भुजा का संकरा भाग होता है | यह मेड्युला में स्थित होता है और चपटी एपिथिलियम कोशिकाओं द्वारा स्तरित होता है जिनमें विरल माइक्रोविलाई और माइटोकोंड्रिया पाए जाते हैं | पतला भाग वक्राकार होकर आरोही भुजा का हिस्सा बन जाता है |

(ii)           आरोही भुजा : आरोही भुजा समीपस्थ भाग में पतले खण्डों से बनी होती है और इसके बाद मोटे खण्ड होते हैं | पतले खण्ड चपटी एपिथिलियम कोशिकाओं द्वारा स्तरित होते हैं | यह कुछ विलेयों (Na+ , Cl)का निष्क्रिय विसरण होने देता है जो उनकी सान्द्रता प्रवणता पर निर्भर करते हैं | आरोही भुजा का मोटा खण्ड चौड़ा होता है और घनाकार कोशिकाओं द्वारा स्तरित होता है | जिसमें माइक्रोविलाई और माइटोकोंड्रिया होते हैं | मोटा आरोही भाग मेड्युला में NaCl के सक्रीय अवशोषण में सम्मिलित होता है |

Vasa Recta : लूप ऑफ़ हेनले अभिवाही ग्लोमेरूलर धमनिकाओं द्वारा उत्पन्न रक्त कोशिकाओं के सीढ़ीनुमा जाल द्वारा घिरा रहता है जिसे वासा रेक्टा कहते हैं | यह हेनले के लूप की आरोही भुजा से अवरोही भुजा के रूप में और अवरोही भुजा से आरोही भुजा के रूप में सम्बन्धित होता है |

दूरस्थ नेफ्रोन : यह नेफ्रोन के अंतिम भाग को प्रदर्शित करता है | दूरस्थ नेफ्रोन का मुख्य भाग दूरस्थ कुंडलित नलिका है |

दूरस्थ कुंडलित नलिका (DCT) – DCT नेफ्रोन का उच्च कुंडलित भाग है और मेल्पीघीयन केप्सूल के समीप स्थित होती है | DCT की एपिथिलियम घनाकार कोशिकाओं से बनी होती है जिसमें माइक्रोविलाई और माइटोकोंड्रिया पाए जाते हैं | ये कोशिकाएँ मेलपीघीयन केप्सूल के समीप उपस्थित होती है | जिसमें सघन घटक उपस्थित होते हैं | ये मेक्यूला डेंसा कहलाते हैं | ये कोशिका फिल्टरेट के NaCl घटक के प्रति संवेदी होती है | दूरस्थ कुंडलित नलिका पैरीट्यूबूलर रक्त कोशिकाओं द्वारा आवरित होती है | दूरस्थ नेफ्रोन का अंतिम भाग समीप से सीधा (straight)जुड़ा होता है | जिसे संग्रहित अथवा जंक्शनल नलिका कहते हैं और यह संग्रह नलिका खुलता है |

संग्रह नलिका : प्रत्येक नेफ्रोन कॉर्टेक्स के क्षेत्र में एक चौड़ी संग्रह नलिका में खुलता है | संग्रह नलिका कुछ माइक्रोविलाई युक्त विशिष्ट घनाकार एपिथिलियम द्वारा स्तरित होती है | ये चौड़ी संग्रह नलिका में खुलती है | संग्रह नलिका मेड्युला में प्रवेश करती है और बेलिनी की नलिका बनाती है | यह नलिका रीनल पिरामिड्स से होती हुई गति करती है |

मूत्र – प्रवाह का रूट :

Glomerulus à bowman’s capsule à proximal convoluted tubule à descending limb à ascending limb à distal convoluted tubule à collecting tubule à collecting duct à duct of bellini à papillary duct à minor calyx à major calyx à ureter

उत्सर्जन की कार्यिकी

इसमें यूरिया निर्माण और मूत्र निर्माण शामिल हैं

यूरिया निर्माण – केटाबोलिज्म के दौरान प्रोटीन एमिनों एसिड में टूटता है | एमिनों अम्ल कीटो – एसिड में बदल जाता है और अमोनिया मुक्त करता है | कीटों एसिड क्रेब चक्र में प्रवेश कर जाता है और ऊर्जा उत्पादन करता है | कार्बन डाइऑक्साइड डी-कार्बोक्सीलेशन के दौरान बनती है |

आर्निथीन एक अणु अमोनिया और कार्बन डाई ऑक्साइड के साथ जुड़कर सिट्रलिन और जल बनाता है | सिट्रलिन एमिनो एसिड के दूसरे अणु के साथ जुड़कर आर्जिनिन और जल बनाता है | आर्जिनिन आर्जिनेज एन्जाइम और जल की उपस्थिति में यूरिया और आर्निथीन में टूट जाता है |

यह चक्र दोहराया जाता है | इसे इसके खोजकर्ता के नाम के आधार पर यूरिया अथवा आर्निथीन या क्रेब हेन्सलेट चक्र कहा जाता है | अधिकांश यूरिया यकृत में उत्पन्न किया जाता है |