उड़िया भाषा का आधुनिक साहित्य क्या है ? उड़िया भाषा का इतिहास बताइए literature of odia language history in hindi

literature of odia language history in hindi उड़िया भाषा का आधुनिक साहित्य क्या है ? उड़िया भाषा का इतिहास बताइए ?

उड़िया भाषा का आधुनिक साहित्य
उडिया भारत की पुरानी भाषाओं में से एक है। यह भी विरासत में साहित्यिक संपन्नता लिए हए आधुनिक दौर में प्रविष्ट हुई। उड़िया भाषा का आधुनिक युग 19वीं शताब्दी में शुरू हुआ। अंग्रेजों ने 1803ई. में उड़ीसा पर विजय प्राप्त की। विपरीत उड़ीसा ने पराजय के कुछ ही वर्षों के अंदर अंग्रेजों के प्रति विद्रोह कर दिया। इस प्रकार शुरू से ही लोगों के मन में सरकार के प्रति विरोध का भाव था और सरकार ने भी जनता के कल्याण के प्रति उदासीनता का रवैया ही रखा। उड़िया गद्य लेखन को आधुनिक रूप प्रदान करने का श्रेय एक अत्यंत प्रतिभावना और बुद्धिमान व्यक्ति को है जिसने अपने समय की पुकार को समझा और आंतरिक प्रेरणा से उसका प्रतिनिधित्व किया। वह व्यक्ति था आधुनिक उड़िया गद्य के पितामह श्फकीर मोहन सेनापतिश् (1843-1918)।
फकीर मोहन ने रामायण और महाभारत का उड़िया में अनुवाद किया, भगवान बुद्ध पर एक बहुत बड़ी पुस्तक लिखी, इस भाषा की प्रथम आधुनिक लधु कहानियां लिखीं, भजनों और कविताओं का सृजन किया और अंत में आधुनिक उडिया साहित्य के उपन्यासों में सबसे पहले उच्च कोटि के उपन्यास लिखकर उन्होंने अपनी साहित्यिक गरिमा का परिचय दिया। फकीर मोहन के सबसे अच्छे सामाकि उपन्यास हैं-‘छामन आठेगुंठ‘ यानी ‘छरूएकड़ और आठ दशमलव‘, ‘मामू‘, या ‘मामाजी‘, और ‘प्रायश्चित‘। ‘लछमा‘ उनका ऐतिहासिक उपन्यास था जिसमें उन भयंकर दिनों का विवरण है जब उडीसा और बंगाल में मराठा अधिकारी लूट-खसोट करते थे। फकीर मोहन की कृतियों को मूल्य सदा बना रहेगा।
कुछ समय बाद युवा लेखकों का एक दल उभरा जो अपने आप को नवोदित लेखक (ग्रीन) कहता था। इन युवा लेखकों ने मिलकर एक उपन्यास लिखा श्वासंतीश् जिसका पाठकों पर समयोचित प्रभाव पड़ा। उनके प्रयोगों से गद्य शैली और भी सशक्त होकर उभरी। नई शैली के उत्कृष्ठ उपन्यासों में से एक था-‘माटीरा मानुष‘ यानी ‘भूमि का मनुष्य‘ यानी ‘भमि का मनुष्य‘। इसके लेखक थे कालिन्दी शरण पाणिग्रही। अन्य आधुनिक उपन्यासकारों में काहन चरण मोहन्ती और गोपीनाथ मोहन्ती ने कई अच्छे उपन्यास लिखकर अथक लेखकों के रूप में ख्याति प्राप्त की। उन्होंने मुख्यतः मनुष्य की वास्तविक जीवन परिस्थितियों की समस्याओं पर लिखा। सुरेन्द्र मोहन्ती, नित्यानन्द पहापात्र, विभूति पटनायक और कछ अन्य सक्रिय उपन्यासकार हैं, जिन्होंने उड़िया गद्य को बहुत कुछ दिया है।
कविता में आधनिक यग का प्रारंभ राधानाथ रे और मधुसूदन राय के साथ हुआ। राधानाथ (1848-1908) आधनिक उडिया कविता के लिए ही स्थान रखते हैं जो आधुनिक उड़िया गद्य में फकीर मोहन का था। उन्होंने कविता को मध्ययग के वातावरण से निकाला और उसे दृढ़ आधुनिक आधार दिया। राधानान की ‘चिलिका‘ इसी नाम की एक संदर झील के बारे में लंबी वर्णनात्मक कविता है, जो उनकी कवित्व शक्ति का एक अद्भुत नमूना है। उनका ‘काव्य महायात्रा‘ एक अतुकांत कविता है, जो उडिया साहित्य की महानतम कृतियों में से समझी जाती है। मधुसूदन ने (1853-1912) 14 पंक्ति की छोटी कविताएं (सानेट), योग गीत, लोकगाथाएं, प्रशस्ति गीत, भजन और अन्य गीत बहुत बड़ी संख्या में लिख कर आधुनिक उडिया कविता को समृद्ध बनाया। अन्य कवियों में नद किशोर बाल ने अपनी कविताओं में आंचलिक जीवन का वर्णन किया। गंगाधर मेहर की कविताएं सौंदर्यमय, रसपूर्ण और कलात्मक थीं जिन्होंने पाठकों के मन पर अपनी स्थायी छाप छोडी। उनका काव्य ‘तपस्विनी‘ एक अनोखी कृति है। 20वीं शताब्दी के प्रारंभिक दशकों में जब उड़ीसा में राष्ट्रवाद की भावना की लहर आई तो कुछ अग्रणी देशभक्तों ने शैक्षणिक, बौद्धिक और राष्ट्रीय क्षेत्रों में उड़ीसा के पुनर्जागरण क लिए कार्य किया। यह सत्यवादी विचारधारा वाले दल के नाम से प्रसिद्ध हुए। इस दल ने उड़िया साहित्य में भी अपना योगदान किया। इसके नेता गोपबंधु दास की ‘कारा कविता‘ अर्थात ‘एक बंडी के गीत‘ मातृभूमि के लिए संघर्ष की भावनाओं की जागृत करने वाली महान कविता थी जिसका देशभक्तिपूर्ण साहित्य में कोई मुकाबला नहीं है। पंडित नीलकंठ का काव्य ‘कोणार्क‘ कविता में कला का अद्भुत नमूना था। इसमें कोणार्क के सूर्य मंदिर (जो अपने आप में हिंदू वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना है) को देखने के बाद उपजने वाले विचारों को वर्णन है। पंडित गोदावरीश ने अपनी मर्मस्पर्शी कविताओं और लोक गाथाओं में प्राकृतिक सौंदर्य और जीवन की परिस्थितियों का सामंजस्य किया उनकी ‘अलेखिका‘ एक महान योगदान है। इसी शैली के कवि कपासिंधु मिश्र ने भी उड़िया साहित्य में बड़ा योग दिया है। इसी तरह नवोदित लेखकों (ग्रीन्स) ने भी कविता में अपना योग दिया। इनमें उल्लेखनीय थे बैकुंठनाथ पटनायक और अन्नदा शंकर रे। वे विचारों, विषय और शैली में नवीनता लाए। समयांतर में प्रगतिवाद उड़िया साहित्य की एक विशेषता बन गया। जनकवियों में अग्रणी थे शनि रौवेय जिन्होंने रूढ़िवादी समाज की बुराइयों को उघाड़ा, नई सामाजिक वास्तविकताओं की ओर इंगित किया और देशभक्ति की भावनाएं जगाई। उनकी मुख्य कतियों में शामिल है। ‘बाजी राउत‘ और ‘पांडुलिपि‘। अन्य प्रगतिवादियों में मनमोहन ऋषि के के गीतों और अनंत पटनायक की कविताओं ने जनमानस पर गहरा प्रभाव छोड़ा। महान उडिया कवियों में से एक मायाधर मानसिंह की कलम से अत्यंत अलौकिक कविता को प्रादुर्भाव हुआ। उन्होंने कविता कवेल कविता के लिए लिखी। उनकी मुख्य कृतियों में हैं प्रणयगीत ‘धू‘ और आध्यात्मिक कविता ‘कृष‘, ‘हेमाशाश्य‘ और ‘हेम पुष्प‘। राधामोहन गरनायक एक और उत्कृष्ट प्रतिभाबन कवि थे। उनके गेय गीतों और लोकगाथाओं में शामिल है ‘काव्य नायिका‘ और ‘धूसर भूमिका‘।
आधुनिक उड़िया लेखकों ने नाटक में बहुत प्रगति की। एक प्रतिभावान कवि ‘वैष्णव पाणी‘ ने परंपरागत यात्राओं को आधुनिक उड़ीसा के गांवों में एक नया रूप दिया। रमाशंकर राय, कालीचरण पटनायक और अन्य लेखकों ने नाटकों की विविध विषयवस्तुओं के साथ प्रयोग किए और रंगमंच को एक आकर्षक संस्था बनाया। इस अभियान के प्रणेता कालीचरण पटनायक थे। उनके नाटक ‘जसदेव‘ ने प्रत्येक उड़िया मन में सहानुभूति का संचार किया। उनके एक और नाटक ‘भाटा‘ में भूखे मर रहे लोगो की सच्ची तस्वीर पेश की गई।
उडिया में आलोचनात्मक गद्य ने ऐतिहासिक लेखन, निबंधों और समीक्षाओं के रूप में अच्छी प्रगति की। इस क्षेत्र के उल्लेखनीय लेखक थे, पंडित गोपबंधुदास और शशिभूषएण राय, जिन्होंने विचारोत्पादक निबंध लिखे, पंडित नीलकंठक दास, जिन्होंने लिखा-‘उड़िसा साहित्य या क्रम परिणाम‘ अर्थात ‘उड़िया साहित्य का क्रमिक विकास‘; पंडित विनायक मिश्र और पंडित सूर्यनारायण दास ने उड़िया साहित्य का इतिहास लिखा, ‘उडीसा इतिहास‘ के लेखक थे हरेकृष्ण मेहताब। गोपाल चन्द्र प्रहराज ने रोचक व्यंग्य, गोदायरीश महापात्र ने व्यंगय कविताएं और कहानियां लिखीं और तिवल्लभ मोहन्तो ने पुरानी उड़िया कृतियों का संपादन किया।
आधुनिक उड़ीसा में कई कहानी लेखक हैं, इस कला के अधिकांश आधुनिक पहलओं पर विषयवस्तु और शैली की दृष्टि से लिख डाला है। उनमें राजकिशोर राय, सुरेन्द्र मोहन्ती, मनोज दास, अखिल मोहन पटनायक, किशोरी चरण दास, भामाचरण मित्र, राजकिशोर पटनायक, हरप्रसाद दास और कृष्णप्रसाद मिश्र उल्लेखनीय हैं।