knee voltage in hindi श्नीश् वोल्टता किसे कहते हैं ? what knee voltage definition in hindi

what knee voltage definition in hindi श्नीश् वोल्टता किसे कहते हैं ? knee voltage in hindi ?

]मौखिक प्रश्न व उत्तर (Viva Voce)

प्रश्न 16. श्नीश् (Knee) वोल्टता से आप क्या समझते हैं?
उत्तर- डायोड की अग्र बायस अवस्था में अवक्षय परत के समाप्त होने के पश्चात वह अग्र वोल्टता जिस पर डायोड में प्रवाहित धारा की वृद्धि दरं बढ़ जाती है श्नीश् (Knee) वोल्टता कहलाती है।
प्रश्न 1. अर्द्ध चालक क्या होते हैं?
उत्तर- अर्द्ध चालक वे पदार्थ हैं जिनकी प्रतिरोधकता अथवा विशिष्ट प्रतिरोध चालकों तथा कुचालकों के मध्य 10-5 से 10़2 ओम-मीटर की परास की होती है।
प्रश्न 2. ऊर्जा बैण्ड क्या होते हैं?
उत्तर- ठोसों में परमाणुओं में बाहरी इलेक्ट्रॉनों में अन्योन्य क्रिया के कारण ऊर्जा स्तरों का विस्तार हो जाता है। यही ऊर्जा बैण्ड कहलाते हैं।
प्रश्न 3. टोसों में कितने प्रकार के ऊर्जा बैण्ड होते हैं ?
उत्तर- तीन, (i) संयोजकतां बैण्ड (ii) निषेध अथवा वर्जित बैण्ड (iii) चालन बैण्ड।
प्रश्न 4. निषेध अथवा वर्जित ऊर्जा बैण्ड क्या होता है?
उत्तर- ठोसों में चालन बैण्ड व संयोजी बैण्ड के मध्य अन्तराल को वर्जित ऊर्जा बैण्ड कहते हैं। इस अन्तराल में कोई अनुमत ऊर्जा स्तर नहीं होते।
प्रश्न 5. हीरे के वर्जित ऊर्जा बैण्ड का मान लगभग कितना होता है?
उत्तर- 6-7 eV , इस कारण हीरा पूर्णतया कुचालक है।
प्रश्न 6. नैज अर्द्धचालकों के लिए वर्जित ऊर्जा अन्तराल का मान लगभग कितना होता है?
उत्तर- लगभग 1 eV
प्रश्न 7. नैज अर्द्धचालकों से आप क्या समझते हैं?
उत्तर– शुद्ध अर्द्धचालक, नैज अर्द्धचालक कहलाता है।
प्रश्न 8. बाह्य अर्द्धचालक क्या हैं?
उत्तर- जब नैज अर्द्धचालक में अशुद्धि मिलायी जाती है तो यह बाह्य अर्द्धचालक कहलाता है।
प्रश्न 9. बाह्य अर्द्धचालक कितने प्रकार के होते हैं? इनके नाम बताइये
उत्तर- दो प्रकार के (1) P-प्रकार के अर्द्धचालक (2) N-प्रकार के अर्द्धचालक
प्रश्न 10. P व N अर्द्धचालकों में क्या अन्तर है?
उत्तर- P प्रकार में अर्द्धचालक में तीसरे वर्ग की अशुद्धि जैसे A1, In, B इत्यादि मिलाने पर प्राप्त होते हैं। इसमें धारा प्रवाह में मुख्य वाहक होल तथा इलेक्ट्रॉन अल्पसंख्यक धारा वाहक होते हैं। N-प्रकार के अर्द्ध चालक Vth वर्ग की अशुद्धि जैसे Sb, As, इत्यादि मिलाने पर प्राप्त होते हैं। इनमें धारा के मुख्य वाहक इलेक्ट्रॉन व होल अल्पसंख्यक धारा वाहक होते हैं।
प्रश्न 11. डोपिंग से क्या समझते हो, यह किस प्रकार किया जाता है?
उत्तर- किसी नैज अर्द्धचालक में अशुद्धि मिलाना ही डोपिंग कहलाता है। किसी नैज अर्द्ध चालक क्रिस्टल को उच्च ताप पर अशुद्धि की वाष्प में रखने पर अशुद्धि अर्द्ध चालक में विसरित हो जाती है।
प्रश्न 12. P-N संधि में अवक्षय परत क्या होती है?
उत्तर- संधि तल के समीप होल व इलेक्ट्रॉन मिलकर क्षय हो जाते हैं। इस क्षेत्र में कोई मुक्त आवेश वाहक होल अथवा इलेक्ट्रॉन नहीं होते हैं। यही मुक्त आवेश रहित क्षेत्र अवक्षय क्षेत्र कहलाता है। आवेश वाहकों की इस क्षेत्र में क्षय के कारण ही यह अवक्षय क्षेत्र कहलाता है। इसकी मोटाई 10-़6 मी. की परास का होता है।
प्रश्न 13. डायोड को अग्र बायस प्रदान करने पर धारा का प्रवाह किस प्रकार होता है?
उत्तर- डायोड को अग्र बायस प्रदान करने पर P-भाग के मुख्य धारा वाहक होल N-भाग की ओर अपवहित होते है। दसी प्रकार N-भाग के मुख्य वाहक इलेक्ट्रॉन P-भाग की ओर जाते हैं। अतः बाह्य परिपथ में धारा का मान अधिकतम होता है।
प्रश्न 14. उत्क्रम बायस में धारा किस प्रकार प्रवाहित होती है?
उत्तर- उत्कम बायस में धारा अल्पसंख्यक धारा वाहकों के अपवहन के कारण बहती है। यह धारा अल्प होती है।
प्रश्न 15. अग्र बायस अवस्था में अवक्षय परत की चैड़ाई पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर- यह कम होती है।

प्रश्न 17. उत्क्रम बायस अवस्था में परत की चैड़ाई. पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर- यह बढ़ जाती है।
प्रश्न 18. अग्र बायस अवस्था में धारा मिली एम्पियर कोटि की जबकि पश्च बायस अवस्था में यह माइक्रो एम्पियर कोटि की होती है क्यों?
उत्तर- अग्र अभिनति में अवक्षय परत की चैड़ाई कम हो जाती है तथा इलेक्ट्रॉन व होल संधि की ओर चलने लगते हैं। इस प्रकार संधि में मिली-ऐम्पियर की कोटि की धारा बहने लगती है।
उत्क्रम अभिनति में अवक्षय परत की चैड़ाई बढ़ जाती है। फलस्वरूप संधि में से होकर कोई धारा प्रवाहित नहीं होती। परन्तु तापीय उत्तेजन के कारण P-क्षेत्र में कुछ इलेक्ट्रॉन तथा N-क्षेत्र में कुछ होल उपस्थित रहते हैं, जो बैटरी के कारण संधि की ओर चलने लगते हैं। अतः उत्क्रम अभिनति में अत्यन्त अल्पधारा, जो माइक्रो-ऐम्पियर की कोटि की होती है, प्रवाहित होती है।
प्रश्न 19. क्या संधि तल डायोड को दिष्टकारी के रूप में प्रयुक्त कर सकते हैं? कैसे?
उत्तर- हाँ, क्योंकि संधि डायोड में धारा अग्र बायस में ही प्रवाहित होती है। पश्च या उत्क्रम बायस में धारा का प्रवाह नगण्य होता है। अतः प्रत्यावर्ती धारा के अर्ध चक्र में अग्र व शेष अर्ध चक्र में पश्च बायस होने के कारण यह दिष्टकारी की भांति उपयोग में लिया जाता है।
प्रश्न 20. किस बायस व्यवस्था में डायोड का प्रतिरोध अधिक होता है?
उत्तर- उत्क्रम या पश्च बायस में।
प्रश्न 21. यदि अग्र बायस में वोल्टता बहुत अधिक बढ़ा दी जाये तो क्या होगा?
उत्तर- धारा का मान तेजी से बढ़ जायेगा।
प्रश्न 22. यदि उत्क्रम बायस बहुत अधिक बढ़ा दिया जाये तो क्या होगा?
उत्तर- अधिक उत्क्रम बायस पर सह संयोजी बन्ध टूटने के कारण, धारा का मान एक साथ बहुत अधिक बढ़ जायेगा। यही स्थिति ऐवलांश भंजन कहलाती हैं।
प्रश्न 23. जीनर भंजन क्या होता है?
उत्तर- जब अपद्रव्य की मात्रा अधिक होने के कारण अवक्षय परत पतली होती है तब अपेक्षाकत कम उत्क्रम विभव पर ही संधि पर उपस्थित विद्युत क्षेत्र अत्यधिक हो जाता है जो कि संधि तल के निकट स्थित सहसंयोजी बंधों के इलेक्टॉनों पर प्रबल बल आरोपित करता है जिससे सहसंयोजी बंध टूटते हैं तथा धारा का मान अचानक बढ़ जाता है। यही प्रक्रिया जीनर भंजन कहलाती है।
प्रश्न 24. ऐवलांशे भंजन क्या है?
उत्तर- जब डायोड पर अधिक उत्क्रम विभव आरोपित हो तो संधि से पार जाने वाले अल्पसंख्यक आवेश वाहक अत्यधिक गतिज ऊर्जा के होते हैं तथा ये सहसंयोजी बंधों को तोड़ने लगते है जिससे इलेक्ट्रॉन-होल युग्म का उत्पादन होता है तथा धारा का मान अचानक बढ़ जाता है। यही प्रक्रिया ऐवलाशें भंजन कहलाती है।
प्रश्न 25. जीनर विभव क्या है?
उत्तर- वह नियत विभव जिस पर ऐवलांश या जीनर भंजन प्रारम्भ होता है अर्थात् पश्च बायस में धारा का मान बहुत अधिक बढ़ जाता है जीनर विभव कहलाता है।
प्रश्न 26. जीनर विभव से अधिक विमव अर्द्ध चालक डायोड पर नहीं लगना चाहिये क्यों?
उत्तर- क्योंकि डायोड नष्ट हो जाते हैं।
प्रश्न 27. अर्द्धचालक डायोड में धारा बायस वोल्टता के साथ किस प्रकार परिवर्तित होती है?
उत्तर- अग्र बायस वोल्टता में धारा चरघातांकी (मगचवदमदजपंस) रूप से परिवर्तित होती है व पश्च बायस में धारा वोल्टता के साथ लगभग नियत रहती है।
प्रश्न 28. अर्द्धचालकों में दाता होता है?
उत्तर- द-प्रकार का अर्द्धचालक।
प्रश्न 29. एक शुद्ध अर्द्धचालक की 0ज्ञ पर चालकता कितनी होती है?
उत्तर- शून्य।
प्रश्न 30. ताप बढ़ाने पर अर्द्धचालक की प्रतिरोधकता पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर- चालकता बढ़ जाती है, प्रतिरोधकता कम हो जाती है।
प्रश्न 31. शुद्ध अर्द्ध चालक की चालकता किन-किन बातों पर निर्भर करती है?
उत्तर- बैण्ड अन्तराल, मुक्त धारावाहक की संख्या व ताप पर निर्भर करती है।
प्रश्न 32. सम्पर्क विभव क्या है?
उत्तर- अर्द्ध चालक में संधि तल पर उत्पन्न विभवान्तर सम्पर्क विभव कहलाता है।
प्रश्न 33. सम्पर्क विभव का धारा वाहकों पर क्या प्रभाव होता है?
उत्तर- यह धारा वाहकों के विसरण का विरोध करता है। इस कारण यह संधि का विभव भी कहलाता है।
प्रश्न 34. ऐसे दो पदार्थों के नाम बताओ जिनकी प्रतिरोधकता ताप बढ़ाने पर घटती है?
उत्तर- जरमेनियम व सिलिकन।