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kirchhoff’s equation thermodynamics derivation in hindi किरचॉफ समीकरण की व्युत्पत्ति कीजिए

किरचॉफ समीकरण की व्युत्पत्ति कीजिए ऊष्मागतिकी क्या है kirchhoff’s equation thermodynamics derivation in hindi ?

स्थिर दाब तथा स्थिर आयतन पर अभिक्रिया ऊष्मा (Heat of Reaction at Constant Pressure and Constant Volume)

स्थिर दाब पर यदि कोई गैसीय अभिक्रिया ऊष्मा का अवशोषण करती है। (qp= H) तो उसके आयतन में वृद्धि होती है। अतः अवशोषित ऊष्मा गैसीय तंत्र की आन्तरिक ऊर्जा में वृद्धि (E) करती है तथा कुछ कार्य भी करती है। यदि स्थिर दाब पर ऊर्जा उत्सर्जित होती है तो आयतन में कमी होगी तथा गैसीय तंत्र पर कुछ कार्य किया जायेगा ।

यदि अभिक्रिया स्थिर आयतन पर की जाती है तो किसी प्रकार का कार्य नहीं होगा तथा अवशोषित ऊष्मा (qv = E) तंत्र की आन्तरिक ऊर्जा में ही वृद्धि करती है। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि स्थिर दाब पर अवशोषित ऊष्मा तथा स्थिर आयतन पर अवशोषित ऊष्मा का अंतर, गैसीय तंत्र द्वारा किया गया दाब – आयतन कार्य बराबर होगा।

जहाँ स्थिर दाब P पर आयतन में परिवर्तन V है। यदि अभिक्रिया में केवल ठोस अथवा द्रव पदार्थ ही भाग लेते हैं तो आयतन में परिवर्तन (V) उपेक्षणीय होता है। अतः ऐसी स्थिति में अभिक्रिया ऊष्मा स्थिर दाब तथा स्थिर आयतन पर समान होती है.

H = E

माना कि एक अभिक्रिया में गैसीय अभिकारकों के मोलों की संख्या nr तथा गैसीय उत्पादों के मोलों की संख्या np है। इनके आयतन क्रमशः Vr तथा Vp है। यदि अभिक्रिया स्थिर दाब P तथा ताप T पर होती है। तो-

यदि गैसीय पदार्थ आदर्श गैस समीकरण की अनुपालना करते हैं तो

यहाँ n(g) = (गैसीय उत्पाद के कुल मोल) – (गैसीय अभिकारकों के कुल मोल) ।

समीकरण (95) से PV का मान समीकरण (93) में रखने पर

यह समीकरण H तथा E में संबंध दर्शाती है इससे निम्न तीन स्थितिया प्राप्त होती है-

(i) जब n(g) धनात्मक हो तब

अर्थात् स्थिर दाब पर अभिक्रिया ऊष्मा अधिक होगी ।

(ii) जब n(g) ऋणात्मक हो तब

अर्थात् स्थिर आयतन पर अभिक्रिया ऊष्मा अधिक होगी।

(iii) जब n(g) = 0 तब

अर्थात् जिस अभिक्रिया में आयतन परिवर्तन नहीं होता है उसके लिए स्थिर दाब तथा स्थिर आयतन पर अभिक्रिया ऊष्मा समान होगी ।

ऐन्थेल्पी या अभिक्रिया ऊष्मा पर ताप का प्रभाव (किर्कहाफ समीकरण) (Effect of Temperature on enthalpy or Heat of Reaction (Kirchhoff’s equation)-

प्रत्येक भौतिक अथवा रासायनिक प्रक्रमों के H तथा E के मान ताप के फलन होते हैं। अतः इनके मान ताप पर निर्भर करते हैं । ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम द्वारा H तथा E पर ताप के प्रभाव की गणना की जा सकती है।

माना कि A→B एक काल्पनिक अभिक्रिया है जिसमें A एक या अधिक अभिकारकों तथा B एक या अधिक उत्पादों को व्यक्त करता है। यदि HA तथा HB क्रमशः अभिकारकों एवं उत्पादों की एन्थैल्पी हो तो ऐन्थेल्पी परिवर्तन (अभिक्रिया ऊष्मा)-

H = HB – HA

दाब स्थिर रखते हुये ताप के संदर्भ में अवकलन करने पर

यहाँ Cp (B) तथा Cp (A) क्रमशः उत्पादों तथा अभिकारकों की स्थिर दाब पर ऊष्मा धारिताऐं है।

Cp= उत्पादों तथा अभिकारकों की ऊष्माधारिताओं का अन्तर है।

यह समीकरण किर्कहॉफ समीकरण (Kirchhoff’s Equation) कहलाती है।

इसी प्रकार का व्यंजक स्थिर आयतन पर होने वाली अभिक्रिया के लिये ज्ञात किया जा सकता है, जिसमें H के स्थान पर E तथा Cp के स्थान पर Cv का उपयोग करने पर

यह समीकरण किर्कहॉफ समीकरण का दूसरा रूप है।

इन समीकरणों की सहायता से यदि एक ताप पर H अथवा E के मान ज्ञात हो तो दूसरे ताप पर इनके मान ज्ञात किये जा सकते हैं।

माना कि दो भिन्न-भिन्न तापों T1 तथा T2 पर पूर्ण ऊष्मा परिवर्तन के मान क्रमश: H1 तथा H2 है। समीकरण (100) को इन मानों के मध्य समाकलन करने पर

यहाँ यह माना गया है कि T1 से T2 ताप के मध्य Cp का मान स्थिर रहता है।

इस प्रकार का व्यंजक स्थिर आयतन पर ऊष्मा परिवर्तन के लिये लिखा जा सकता है।

E2 = E1 + Cv (T2 – T 1 )………………(103)

समीकरण (102) व (103) भी किर्कहॉफ समीकरण कहलाती है।

CV का मान T2 से T1 ताप के मध्य स्थिर माना गया है। यदि एक ताप पर H तथा E के मान ज्ञात हो तो समीकरण (102) तथा (103) द्वारा अन्य तापों पर इनके मान ज्ञात किये जाते हैं। विशेष रूप से किसी भी अभिक्रिया की मानक अभिक्रिया ऊष्मा (H°) ज्ञात की जा सकती है, क्योंकि प्रत्येक अभिक्रिया को 25°C. या 298 K पर किया जाना संभव नहीं होता है अतः उस स्थिति में अभिक्रिया ऊष्मा उस ताप पर माप ली जाती है जिस पर वास्तव में अभिक्रिया हो रही है. और फिर उसका मान 25°C पर किर्कहॉफ समीकरण द्वारा ज्ञात कर लेते हैं।

1.32 विभिन्न प्रकार के ऐन्थेल्पी परिवर्तन (Various Types of Enthalpy Changes)

अभिक्रिया के लाक्षणिक गुणों के आधार पर अभिक्रिया ऐन्थेल्पी या अभिक्रिया ऊष्मा को विभिन्न रूपों में जाना जाता है जैसे – संभवन ऐन्थेल्पी या संभवन ऊष्मा (Enthalpy of Formation or Heat of Formation), दहन ऐन्थेल्पी (Enthalpy of Combustion), उदासीनीकरण एन्थेल्पी (Enthalpy of Neutralisation), आदि। इनके अतिरिक्त कुछ अन्य अभिक्रिया ऐन्थेल्पी (ऊष्माऐं) जैसे – वाष्पीकरण ऐन्थेल्पी (Enthalpy of Vaporisation), जलयोजन ऐन्थेल्पी (Enthalpy of Hydration), तनुकरण ऐन्येल्पी (Enthalpy of dilution), संक्रमण ऐन्थेल्पी (Enthalpy of transition) आयनन एन्थैल्पी (Enthalpy of Ionisation) आदि को भी परिभाषित किया जाता है।

(1) संभवन ऐन्थेल्पी या संभवन ऊष्मा (Enthalpy of Formation or Heat of Formation)

संभवन ऊष्मा को इस प्रकार से परिभाषित किया जाता है कि एक मोल पदार्थ को उसके अवयवी तत्वों की सहायता से बनाने में ऐन्थेल्पी परिवर्तन या पूर्ण ऊष्मा परिवर्तन ( अवशोषित या मुक्त ऊष्मा की मात्रा) उस पदार्थ की संभवन ऐन्थेल्पी कहलाती है। इसे fH से व्यक्त करते हैं। यदि अभिकारक एवं उत्पाद 298K (25° से) तथा एक वायुमण्डल दाब पर लिये जाते है तो ऐन्थेल्पी में परिवर्तन मानक संभवन ऐन्येल्पी (Standard Enthalpy of Formation) या मानक संभवन ऊष्मा कहलाती है। तथा इसे f H° या fH° से व्यक्त करते हैं। उदाहरण के लिये-

C (ग्रेफाइट) + 2H2 (g) → CH4 (g); fH°= 74.18 कि. जूल मोल – 1

अर्थात् एक मोल गैसीय मेथेन को कार्बन तथा हाइड्रोजन द्वारा बनाने में 298K ताप तथा एक वायुमण्डलीय दाब पर ऐन्थेल्पी परिवर्तन 74.18 कि. जूल होगा।

HI (g) तथा N2O5 (g) की संभवन ऊष्माऐं क्रमशः 25.94 तथा – 15.1 कि. जूल प्रति मोल है। हाइड्रोक्लोरिक अम्ल की संभवन की ऊष्मा -184.0/2 = – 92.0 कि. जूल प्रति मोल है।

वे यौगिक जिनकी संभवन की ऊष्मा का मान ऋणात्मक होता है ऊष्माक्षेपी यौगिक (Exothermic compounds), तथा जिनकी संभवन ऊष्मा का मान धनात्मक होता है, ऊष्माशोषी यौगिक (Endother- mic compounds) कहलाते हैं।

सारणी 1.2 में विभिन्न अकार्बनिक यौगिकों की मानक संभवन ऊष्माऐं (ऐन्थेल्पी) दर्शायी गयी है।

सारणी 1.2

कुछ यौगिकों की मानक संभवन ऊष्मा (कि. जूल प्रति मोल)

(4.184 कि. जूल = 1 कि. कैलोरी)

यौगिक की ऐन्थेल्पी या पूर्ण ऊष्मा (Enthalpy or Heat content of a compound) – निश्चित ताप, दाब पर प्रत्येक यौगिक की पूर्ण ऊष्मा का एक निश्चित मान होता है परन्तु इनके निरपेक्ष मान (Absolute values) ज्ञात करना संभव नहीं होता है। पूर्ण ऊष्मा के तुलनात्मक मान ज्ञात किये जा सकते हैं।

इसके लिये 25° से. तथा एक वायुमण्डलीय दाब पर (मानक अवस्था) तत्वों की पूर्ण ऊष्मा के मान स्वेच्छा से शून्य (Zero) माने गये हैं। तथा परोक्ष रूप से यौगिक की पूर्ण ऊष्मा की गणना की जाती है।

इस गणना को निम्नलिखित उदाहरण द्वारा समझाया जा सकता है। 61 माना कि NH3(8) की पूर्ण ऊष्मा ज्ञात करनी हैं इसके लिये NH, (g) की मानक संभवन ऊष्मा का मान 46.0 कि. जूल है।

यौगिक की पूर्ण ऊष्मा यौगिक की मानक संभवन ऊष्मा …………… …..(105)

इस प्रकार निम्नलिखित तथ्यों के आधार पर अभिक्रिया ऊष्मा (Heat of Reaction) की गणना भी की जा सकती है।

(i) मानक अवस्था में तत्वों की पूर्ण ऊष्मा शून्य मानी जाती हैं।

(ii) यौगिक की मानक संभवन ऊष्मा उसकी पूर्ण ऊष्मा के बराबर होती है।

(2) दहन की ऐन्येल्पी या दहन ऊष्मा (Enathalpy of Combustion or Heat of Combustion)- किसी पदार्थ के एक मोल को पूर्णतया ऑक्सीकृत करने में हुये ऊष्मा परिवर्तन को या ऐन्येल्पी परिवर्तन (CH) उस पदार्थ की दहन ऐन्थेल्पी या दहन ऊष्मा कहते हैं। यदि अभिकारक एवं उत्पाद 25° से तथा 1 वायुमण्डल दाब हो तो पूर्ण ऊष्मा परिवर्तन मानक दहन ऊष्मा (Standard Heat of Combustion) कहलाती है, इसे CH° बैंजीन की दहन ऊष्मा निम्नलिखित अभिक्रिया द्वारा दर्शायी जा सकती है।

उपरोक्त समीकरण का अर्थ है कि एक मोल द्रव बैंजीन को 25° से तथा 1 वायुमण्डल दाब पर पूर्णतया ऑक्सीकृत करने पर 780.0 कि. कैलोरी ऊष्मा मुक्त होती है। परिभाषा के अनुसार – 780.0 कि. कैलोरी बेन्जीन की मानक दहन ऊष्मा कहलाती है।

दहन ऊष्मा का मान अभिक्रिया में भाग लेने वाले पदार्थों की भौतिक अवस्था, अपरूप (allotropic forms) आदि पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिये 100° से. पर H2 की दहन ऊष्मा – 58.48 कि. कैलोरी है, जबकि 25° से. पर इसका मान 68.3 कि. कैलोरी है। 100° से. पर प्राप्त जल गैसीय अवस्था में होता है। जबकि 25° से. पर जल द्रव अवस्था में होता है। H2 की विभिन्न दहन ऊष्मा को निम्न प्रकार से व्यक्त किया जाता है।

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