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प्रणोदित दोलक की गतिज ऊर्जा तथा ऊर्जा अनुनाद (Kinetic Energy of a Forced Oscillator and Energy Resonance in hindi)

प्रणोदित दोलक की गतिज ऊर्जा तथा ऊर्जा अनुनाद (Kinetic Energy of a Forced Oscillator and Energy Resonance in hindi)

यदि किसी अवमन्दित सरल आवर्ती दोलक पर प्रत्यावर्ती बल F = Fo sin ωt कार्यरत है तो स्थाई अवस्था में प्रणोदित दोलक का विस्थापन खण्ड (2.1) के समीकरण (8) द्वारा प्राप्त होता है।

x = xo sin (ωt – φ) ………………………….(1)

यहाँ x0 तथा φ के मान हैं : x0 = F0/m[(ω02 – ω2)2 + 4r2ω2]1/2 ……………….(2)

तथा φ = tan-1 2rω/(ω02 – ω2)

दोलक का वेग

V = dx/dt = ωx0 cos (ωt – φ) ………………………………..(3)

अतः प्रणोदित दोलक की गतिज ऊर्जा

K = 1/2 m (dx/dt)2

K = 1/2 mx02ω2cos2 (ωt – φ) …………………………….(4)

एक दोलन के लिए दोलक की माध्य गतिज ऊर्जा

<k> = 1/2 mx02 ω2 <cos2 (ωt – φ)>

अब चूंकि

<cos2 (ωt – φ) > = 1/T +cos2 (ωt – φ ) dt = 1/2 होता है

अतः < k > = 1/4 mx02 ω2

X0 का मान समीकरण (2) से रखने पर

<K> = 1/4 mF02 ω2/m2[(ω02 – ω2)2 + 4r2 ω2

<k> = F02/4m[(ω02 – ω2/ ω)2 + 4r2 ……………………………………(5)

समीकरण (5) से स्पष्ट है कि प्रणोदित दोलक की माध्य गतिज ऊर्जा आरोपित बल का आवृत्ति ω पर निर्भर करती है। जैसे-जैसे चालक बल की आवृत्ति ω शून्य से बढ़ायी जाती है, माध्य गतिज ऊर्जा का मान बढ़ने लगता है। एक स्थिति ω = ω0 पर माध्य गतिज ऊर्जा का मान अधिकतम हो जाता है। तत्पश्चात् ω में वृद्धि करने से माध्य गतिज ऊर्जा का मान कम होता है। चित्र (5) में आवृत्ति ω के साथ दोलक की माध्य गतिज ऊर्जा के परिवर्तन को प्रदर्शित किया गया है।

माध्य गतिज ऊर्जा के अधिकतम मान के लिए समीकरण (5) के हर का मान न्यूनतम होना चाहिए।

[(ω02 – ω2/ ω)2 + 4r2 ] = न्यूनतम

d/d ω = [(ω02 – ω2/ ω)2 + 4r2 ] = 0

2(ω02/ ω – ω) (-ω02/ ω2 – 1) = 0

ω = ω0 ………………………..(6)

अतः जब दोलक की आवृत्ति ω = ω0 होती है तब प्रणोदित दोलक की माध्य गतिज ऊजो अधिकतम होती है अर्थात् प्रणोदित दोलक आरोपित बल लगाने वाले निकाय से अधिकतम ऊर्जा का अवशोषण करता है। दोलक की अधिकतम ऊर्जा की स्थिति को ऊर्जा अनुनाद कहते हैं।

समीकरण (6) को (5) में रखने पर,

दोलक की अधिकतम माध्य गतिज ऊर्जा

<K>max = F02/4m 1/ 4r2

T = 1/2r

<k>max = F02/4m t2

<k>max = F02Q2/4k ………………………………….(7)

Q = ω0t k = m ω02

प्रणोदित दोलक द्वारा शक्ति अवशोषण एवं विशेषता गुणांक (Power Absorption by Forced Oscillator and Quality Factor)

याद किसी अवमन्दित दोलक पर प्रणोदित प्रत्यावती बल F = F0 sin ωt लगाया जाता है तो स्थाई अवस्था में चालित आवृत्ति ω से दोलन करता है और दोलक एक सेकण्ड में प्रणोदित बल दार किये गये कार्य के बराबर शक्ति अवशोषित कर लेता है।

दोलक द्वारा अवशोषित शक्ति P = Fv

P = F0v sin ωt …………………………….(1)

दोलन के विस्थापन का समीकरण

x =x0 sin (ωt – φ)

यहाँ x0 = F0/m[(ω02 – ω2)2 + 4r2ω2]1/2 …………………………….(2)

तथा φ = tan-1 2rω /( ω02 – ω2) ……………………………..(3)

दोलक का वेग

V = dx/dt = ωx0 cos (ωt – φ) …………………………(4)

समीकरण (4) को (1) में रखने पर

P = ωx0F0 sin. ωt cos (ωt – φ)

= ωx0F0 [sin ωt cos ωt cos φ + sin2 ωt sin φ]

. माध्य शक्ति अवशोषण

<P> = ωx0F0 [cos φ <sin ωt cos ωt> + sin φ <sin2 ωt>]

चूंकि एक दोलन के लिए माध्य

<sin2 ωt> = 1/2 तथा <sin ωt cos ωt> = 0 है।

<P> = 1/2 ωx0F0 sin φ …………………….(5)

समीकरण (3) से.

Sin φ = tan φ/ 1 + tan2 φ = 2rω/[(ω02 – ω2)2 + 4r2ω2]1/2 ………………………….(6)

समीकरण (2) तथा (6) को (5) में रखने पर

<P> = 1/2 (2r) m ω2x02

<P> = 1/2 F02/m 2rω2/[(ω02 – ω2)2 + 4r2ω2] ……………………………….(7)

<P> = F02/m r/[(ω0/ω – ω)2 + 4r2

समीकरण (7) से <P> का मान अधिकतम होगा जब हर न्यूनतम होगा अर्थात

[(ω02/ω – ω)2 + 4r2 ] = न्यूनतम

d/dω [(ω02 /ω – ω)2 + 4r2 ] = 0

2 (ω02/ ω – ω) (ω02/ ω – 1) = 0

ω = ω0

अर्थात् जब चालक बल की आवृत्ति ω, दोलक की स्वाभाविक आवृत्ति ω0 के बराबर होती है तो अधिकतम शक्ति का हस्तान्तरण होता है।

अतः इस स्थिति में हस्तान्तरित अधिकतम शक्ति

<P>max = F02/m 1/4r

1/2r = t रखने पर

<P>max = F02/ 2m t ………………………………….(8)

चित्र (6) उपरोक्त चित्र (6) में चालक आवृत्ति के साथ दोलक द्वारा शक्ति अवशोषण के परिवर्तन को प्रदर्शित किया गया है। यह वक्र अनुनाद वक्र (resonancecurve) कहलाता है और यह अनुनादी आवृत्ति के दोनों तरफ सममित (symmetrical) होता है। इस वक्र पर दो बिन्दु A तथा B होते हैं जहाँ पर माध्य शक्ति <P> अधिकतम अवशोषित शक्ति <P>max की आधी होती है। इन बिन्दुओं को अर्ध शक्ति बिन्दु (half power point) कहते हैं।

अर्ध शक्ति बिन्दुओं पर <P> = 1/2 <P>max

समीकरण (7) तथा (8) रखने पर

Fo2/m r/[( ω02/ ω – ω)2 + 4r2 ] = 1/2 F02/m 1/4r

[(ω02/ ω – ω)2 + 4r2 ] = 8r2

ω02 / ω – ω = 2r

0 – ω) (ω0 + ω) = 2rω

यदि अर्ध शक्ति बिन्दुओं की आवृत्तियाँ ω0 के निकट हैं तो ω0 + ω = 2ω माना जा सकता है

ω0 – ω = r ……………………………..(9)

अर्ध शक्ति बिन्दुओं पर आवृत्तियाँ

ω1 = ω0 – r तथा ω2 = ω0 + r …………………………(10)

अर्ध शक्ति बिन्दुओं पर आवृत्तियों का अन्तर

2 – ω1) = 2r …………………………..(11)

इन अर्ध शक्ति बिन्दुओं पर आवृत्तियों के अन्तराल को बैंड-विस्तार (band width) भी कहते हैं।

दोलक का विशेषता गुणांक Q = ω0t = ω0/2r

समीकरण (11) से 2r = | ω2,- ω1 समीकरण (10) में रखने पर,

Q = ω0/| ω2 – ω1| = f0/|f2 – f1| ………………………………(12)

यहाँ आवृत्ति

F0 = ω0/2π दोलन/से.

विशेषता गुणांक Q = स्वाभाविक आवृत्ति / बैंड-विस्तार …………………….(13)

अतः बैंड-विस्तार या |f2 – f1 |का मान जितना कम होता है, Q का मान उतना ही अधिक होता है तथा अनुनाद भी उतना ही अधिक तीक्ष्ण होता है। इसलिए अनुनाद की तीक्ष्णता Q का मापन बैंड-विस्तार से भी कर सकते हैं।