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विद्युतीय दोलन किसे कहते हैं , Electrical Oscillations in hindi definition meaning , परिभाषा क्या है

भौतिक विज्ञान में विद्युतीय दोलन किसे कहते हैं , Electrical Oscillations in hindi definition meaning , परिभाषा क्या है ?

विद्युतीय दोलन (Electrical Oscillations)

यदि किसी विद्युत परिपथ में प्रतिरोध R,धारिता C तथा प्रेरकत्व L जुड़े हों तो निम्न दो प्रकार के अनुनादी परिपथ प्राप्त होते हैं

  • L-C-R श्रेणी अनुनादी परिपथ (L-C-R series resonant circuit)

(ii) L-C-R समान्तर अनुनादी परिपथ (L-C-Rparallel resonant circuit)

(i)L-C-R श्रेणी परिपथ (L-C-R series circuit)

चित्र (7) में दर्शाये गए परिपथ में प्रेरकत्व (inductance)L,धारिता (capacitance)C. तथा प्रतिरोध T (resistance)R श्रेणीक्रम में प्रत्यावर्ती वि.वा. बल E = E0 . sin ωt जनित्र के साथ संयोजित हैं। इस परिपथ में प्रणोदित दोलन उत्पन्न होते हैं।

E = E0 sin ωt

धारा परिवर्ती होने के कारण प्रेरक कण्डली में कारण प्ररक कुण्डली L में प्रेरित वि.वा. बल –L dl/dt उत्पन्न हो जाता है।

परिपथ में परिणामी वि.वा. बल (E – L dl/dt) होता है। यह अन्य अवयवों C तथा R पर विभव के पतन के तुल्य होता है, अर्थात

E – L di/dt = q/c + RI

यहाँ q समय t पर सधारित्र पर आवेश का मान है।

अतः L di/dt + q/c + RI = E

धारा I = dq/dt तथा di/dt = d2q/dt2

L d2q/dt2 + q/c + R dq/dt = E0 sin ωt ………………………………(1)

या d2q/dt2 + 1/t dq/dt + ω02q = a0 sin ωt

यहाँ नियतांक R/L = 1/t. 1/LC = ω02 तथा E0/L = a0 हैं।

समीकरण (1) प्रणोदित दोलक के गति समीकरण के तुल्य है। इस समीकरण में विस्थापन x के स्थान पर आवेश q तथा वेग v के स्थान पर धारा l लेते हैं। अंतः समीकरण (1) का हल खण्ड (2.1) के समीकरण (2) के हल के समान होगा, जिसमें विस्थापन र के स्थान पर होगा।

Q = a0/[ω02 – ω2)2 + ω2/t2]1/2 sin {ωt – tan-1 ω/t (ω02 – ω2) ……………………….(2)

Q = q0 sin (ωt – φ) ……………………..(3)

Q0 = a0 /[( ω02 – ω2)2 + ω2 /t2 ]1/2 …………………………….(4)

Tan-1 ω/t /( ω02 – ω2) …………………………….(5)

समीकरण (3) से परिपथ में प्रवाहित धारा

I = dq/dt = ωq0 cos (ωt – φ)

I = I0 cos (ωt – φ) I0 sin (ωt – φ + π/2)

= I0 sin (ωt – δ)

यहाँ धारा का आयाम

I0 = ωa0 /[(ω02 – ω2)2 + ω2 / t2]1/2

तथा धारा की कला

δ = φ – π/2

उपरोक्त समीकरणों में a0 , ω0 तथा t का मान रखने पर

I0 = E0/[(1/ ωc – ωl)2 + R2]1/2 …………………………….(6)

δ = tan-1 {ωl – (1/ωc/R) ……………………………(7)

समीकरण (6) को ओम के नियम से तुलना करने पर पाते हैं कि परिपथ का अवशेष [(ωl – I/ωc)2 + R2]1/2 के बराबर आता है। यह प्रत्यावर्ती परिपथ की प्रतिबाधा (impedance) Z कहलाती है।

Z = [(ωl – 1/ωc)2 + R2 ]1/2 ……………………………………..(8)

(a) श्रेणी अनुनाद (Series resonance)

परिपथ में प्रवाहित धारा का मान अधिकतम होने के लिए आवश्यक है कि परिपथ की प्रतिबाधा Z का मान न्यूनतम हो, अर्थात्

Z = [(ωL – 1/ωc)2 + R2]1/2 = न्यूनतम

d/dω [(ωl – 1/ωc)2 + R2 ] = 0

2 (ωl – 1/ωc) (L + 1/ω2C) = 0

ωl – 1/ωc = 0

ω = 1/LC = ω0

ω0 = 1/LC ,L-C-R श्रेणी परिपथ की अनुनादी आवृत्ति कहलाती है। इस घटना को श्रेणी अनुनाद कहते हैं और परिपथ श्रेणी अनुनादी परिपथ (series resonant circuit) कहलाता है। इस स्थिति परिपथ में प्रवाहित धारा का मान अधिकतम होता है और यह परिपथ के प्रतिरोध पर निर्भर करता है

समीकरण (6) से

Lomax = E0/R जब ω = ω0 = 1/LC

तथा Zmin = R

यदि धारा I तथा प्रतिबाधा Z का आवत्ति ω के साथ आरेख खींचे जो श्रेणी परिपथ के लिए चित्र (8) के अनुसार वक्र प्राप्त होते हैं। ये वक्र अनुनाद वक्र कहलाते है। अनुनादी आवृत्ति पर धारा का मान अन्य आवृत्तियों पर धारा के मान से अत्यधिक होता है तथा प्रतिबाधा न्यूनतम होने के कारण अनुनादी आवृत्ति पर धारा परिपथ में सुगमता से प्रवाहित होती है। इसलिए श्रेणी परिपथ ग्राही परिपथ (allowed circuit) कहलाता है।

(b) अर्ध शक्ति बिन्दु (Half power points)

श्रेणी अनुनादी परिपथ के अभिलक्षण, जैसे वरण-क्षमता (selectivity) आदि परिपथ के विशेषता गुणांक पर निर्भर करते हैं।

किसी परिपथ में Q को निम्न अनुपात से परिभाषित करते हैं

Q = 2π/T x संग्रहित ऊर्जा /प्रति चक्र शक्ति व्यय

L-C-R परिपथ में ऊर्जा संग्रहण प्रेरकत्व L तथा धारिता C में होता है तथा ऊर्जा क्षय प्रतिरोध R द्वारा होता है। जब धारा अधिकतम होती है तब प्रेरकत्व में संग्रहित ऊर्जा अधिकतम 1/2 LI2max होती है परन्तु इस स्थिति में संधारित्र पर आवेश शून्य होता है। इसके विपरीत जब संधारित्र पर आवेश अधिकतम होता है तो उसमें संग्रहित ऊर्जा भी अधिकतम 1/2 q2max/c होती है, पर इस समय धारा शून्य होने से प्रेरक कुण्डली में संग्रहित ऊर्जा शून्य रहती है।

अधिकतम संग्रहित ऊर्जा = 1/2 L I2max = 1/2 q2max/c

L-C-R परिपथ में शक्ति व्यय केवल प्रतिरोध R में होता है।

शक्ति व्यय = RI2 = R (Imax/2)2

Q = 2π/T 1/2 LI2max/R (Imax/2)2

= 2π/T L/R

= ω0 L/R …………………………..(9)

इसी प्रकार Q = 2π/T 1/2 q2max/c /R (Imax/2)2

Q = 2π/T q2max/RCI2max = ω0/CR q02/ ω02q02

= 1/ ω0CR ……………………….(10)

समीकरण (9) व (10) से

Q2 = ω0L/R 1/ ω0CR

Q = L/CR2

विशेषता गुणांक Q को बैंड-विस्तार के रूप में भी परिभाषित करते हैं अर्थात्

Q = ω0/( ω2 – ω1) …………………………(11)

यहाँ (ω2 – ω1) अनुनादी आवृत्ति ω0 के दोनों तरफ उन आवृत्तियों का अन्तर है जिस आवृत्ति ω0 के सापेक्ष शक्ति आधी होती है।

L-C-R परिपथ के लिए समीकरण (11) को निम्न विधि द्वारा व्युत्पन्न किया जा सकता है।

किसी आवृत्ति ω पर परिपथ में प्रवाहित धारा का आयाम

I0 = E0/(1/ ωc – ωl)2 + R2 ]1/2

तथा अनुनादी आवृत्ति ω0 पर प्रवाहित धारा का आयाम

lo max = E0/R

चूँकि अर्ध शक्ति बिन्दुओं पर धारा का मान होता है:

I0 = I0 max/2

E0/[(1/ ωc – ωl)2 + R2 ]1/2 = 1/2 E0/R

(1/ ωc – ωl)2 + R2 = 2R2

1/ Ωc – ωl = R ………………………(12)

माना अर्ध शक्ति बिन्दुओं पर आवृत्तियाँ ω1, तथा ω2, है तो समीकरण (12) से

1/ ω1C – ω1L = + R …………………………..(13)

1/ ω2C – ω2L = – R …………………………….(14)

समीकरण (13) तथा (14) को जोड़ने पर,

ω1 + ω2 / ω1 ω2 C – (ω1 + ω2) L = 0

ω1 ω2 = 1/LC = ω02 …………………………….(15)

अतः अनुनादी आवृत्ति ω0 अर्ध शक्ति बिन्दुओं पर आवृत्तियों के गुणोंत्तर माध्य के बराबर होती है। अब समीकरण (13) से (14) को घटाने पर

ω2 – ω1 / ω1 ω2C – (ω2 – ω1) L = 2R

समीकरण (15) से ω1 ω2 = ω02 रखने पर

2(ω2 – ω1) L = 2R

या (ω2 – ω1) = R/L

बैंड विस्तार (ω2 – ω1) = R/L …………………….(16)

समीकरण (9) से

विशेषता गुणांक Q = ω0L/R = ω0/( ω2 – ω1) ………………………..(17)

उपरोक्त समीकरणों से यह स्पष्ट होता है कि L-C-R परिपथ में प्रतिरोध का मान जितना अधिक होता है बैंड विस्तार भी उतना ही अधिक होता है और अनुनाद भी उतना ही सपाट होता है। परिपथ का प्रतिरोध जितना कम होता है, बैंड विस्तार भी उतनी ही कम होता है और इस स्थिति में अनुनाद भी उतना ही तीक्ष्ण होता है। यह चित्र (9) में प्रदर्शित किया गया है।

उपरोक्त विवेचन में प्रतिरोध R पूर्ण परिपथ का प्रतिरोध निरूपित करता है, अर्थात् यह बाह्य परिपथ के प्रतिरोध Re.व जनित्र के प्रतिरोध Rg, के योग के तुल्य होता है। बाह्य प्रतिरोध Re. का मान परिवर्तित कर बैण्ड विस्तार तथा गुणांक Q को नियंत्रित किया जा सकता है। Re. के परिवर्तन में इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि जनित्र से अधिकतम ऊर्जा संग्रहण के लिए अधिकतम शक्ति संचरण प्रमेय (Maximum power transfer theorem) के अनुसार Re का मान Re के तुल्य होना चाहिए। यदि बाह्य परिपथ के लिए विशेषता गुणांक Q. ω0L/Re हो तो अधिकतम शक्ति संचरण की अवस्था (सुमेलन अवस्था ) में,

बैंड विस्तार = Re + Rg = 2Re/L = 2ω0 /Qe

(c) वोल्टता प्रवर्धन (Voltage amplification) अनुनादी अवस्था में परिपथ में प्रवाहित धारा का आयाम अधिकतम होता है।

Ior = lomax = E0/R

प्रेरक कुण्डली पर विभवान्तर का आयाम

ELr = ωLI0r = ω0L/ R E0 –QE0

इस प्रकार प्रेरक कुण्डली पर विभवान्तर आरोपित विभवान्तर का Q गुना होता है अर्थात् गुणता गुणांक प्रेरक कुण्डली पर विभवान्तर के प्रवर्धन (amplification) के तुल्य होता है।