कन्हैया लाल सेठिया की रचनाएँ | राजस्थान कन्हैया लाल सेठिया द्वारा लिखित रचना kanhaiyalal sethia in hindi

kanhaiyalal sethia in hindi कन्हैया लाल सेठिया की रचनाएँ | राजस्थान कन्हैया लाल सेठिया द्वारा लिखित रचना ?

प्रश्न: साहित्यकार एवं समाजसेवी स्व. कन्हैया लाल सेठिया
उत्तर: सुजानगढ़, चुरू में जन्में कन्हैयालाल सेठिया ने राजस्थानी काव्य को अलग पहचान दी। जिसके लिए उन्हें पदमविभूषण एवं पदमश्री से नवाजा गया। मायड़ रो हैलो, लीक लिकोड़ो एवं काको रोड रो जैसी उनकी रचनाओं को खूब सराहा गया। इन्हें राजस्थान रत्न पुरस्कार (पहला) – 2012 से नवाजा गया है।

राजस्थान की महत्वपूर्ण विभूतियां
प्रश्न: कला एवं साहित्यकार कोमल कोठारी 
उत्तर: जोधुपर के इस कलाकार ने पारम्परिक लोक नृत्य को विशेष पहचान दिलाई। उन्हें 1983 में पदमश्री एवं 1984 में पदम भूषण से सम्मनित किया। साहित्यकार विजयदेना देथा के साथ मिलकर रूपायन संस्थान की स्थापना की। इन्हें राजस्थान रत्न पुरस्कार (पहला) – 2012 से नवाजा गया है।
प्रश्न: साहित्यकार स्व.विजयदान देथा 
उत्तर: राजस्थान के प्रसिद्ध साहित्यकार देथा पदमश्री, साहित्य अकादमी पुरस्कार एवं साहित्य चडामणि पुरस्कार से नवाजे जा चुके हैं। देथा 800 से अधिक लघु कहानियां लिख चके हैं। जिनमें कई रचनाओं का अंग्रेजी अनुवाद भी हुआ। इनका रचनाओं से प्रेरित होकर फिल्म एवं नाटक बने। फिल्मों में चरणदास चोर एवं पहेली प्रमुख हैं। इन्हें राजस्थान रत्न पुरस्कार (पहला) – 2012 से नवाजा गया है।
प्रश्न: गजल गायक स्व.जगजीत सिंह
उत्तर: गजल किग के नाम से विख्यात हए जगजीत सिंह ने गजल गायकी में अलग मकाम स्थापित किया। श्रीगंगानगर में जन्म जगजीत सिंह को 2003 में पदम्भूषण से सम्मानित किया गया। अर्थ, प्रेमगीत, सरफरोस, वीरजारा, पिंजर सहित कई नामी फिल्मों में गाए उनके गीत लोगों की जुबां पर रहते हैं। उन्होंने अपनी गायकी में शास्त्रीय कविताओं का प्रयोग कर नया, आयाम स्थापित किया। इन्हें मरणोपरान्त राजस्थान रत्न पुरस्कार (पहला) – 2012 से नवाजा गया हो।
प्रश्न: मोहन वीणा वादक पंडित विश्वमोहन भट्ट
उत्तर: मोहनवीणा वादक भट्ट को उनके एलबम श्ए सीटिंग बाय द रिवर के लिए ग्रेमी अवार्ड से सम्मानित किया गया। भट्ट को 2002 में पद्मश्री से तथा 2008 में पदमभूषण से सम्मानित किया गया। मोहन वीणा पर उनकी अंगुलिया जब चलती हैं तो हर किसी को मंत्रमुग्ध कर देती हैं। इन्हें राजस्थान रत्न पुरस्कार (पहला) – 2012 से नवाजा गया है।
प्रश्न: साहित्यकार लक्ष्मीकुमारी चूड़ावत
उत्तर: देवगढ़ निवासी लक्ष्मी कुमारी चूडावत (1916 ई.) पूर्व विधायक, सांसद एवं राजस्थानी की प्रसिद्ध साहित्यकार हैं। लेखिका एवं राजनीति से जुड़ी रही लक्ष्मी कुमारी चूड़ावत कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष रह चुकी है। देवगढ़ विधानसभा क्षेत्र से 1962 से 1971 तक विधायक रहीं। 1972 से 78 तक राज्य सभा सांसद रहीं। राजस्थानी साहित्य में योगदान के लिए उन्हें पदम श्री से नवाजा गया। इन्हें 1984 में पदमश्री एवं 2012 में राजस्थान रत्न पुरस्कार (पहला) सहित अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।
प्रश्न: मांड गायिका अल्लाह जिलाई बाई 
उत्तर: बीकानेर निवासी इस मांड गायिका का गाया श्केसरिया बालम गीत आज राजस्थान की पहचान बना हुआ है। कला एवं साहित्य में उनके योगदान के लिए 1982 में पदम श्री से सम्मानित किया। इन्हें राजस्थान रत्न पुरस्कार – 2012 से नवाजा गया है।
प्रश्न: कपिल मुनि, पुष्कर
उत्तर: कपिल मनि ब्रह्मा के पुत्र महर्षि कर्दम और मनु की पुत्री देवहुति के पुत्र थे। इनका जन्म आठवीं अथवा नवीं शताब्दी के लगभग राजस्थान के अजमेर में तीर्थराज पुष्कर के समीप एक गांव में हुआ था। कपिल द्वारा रचित ग्रन्थ ‘सांख्यशास्त्र‘ है तथा इनका दर्शन ‘सांख्य दर्शन‘ कहलाता है। कोलायत में कपिल मुनि का मंदिर है। कार्तिक माह में अवसर पर लगने वाले वार्षिक पाँच दिवसीय धार्मिक मेले मे हजारों की संख्या में तीर्थ यात्री कोलायत के पवित्र जलाशय में डुबकी लगाने और दर्शन लाभ हेतु एकत्रित होते हैं।
प्रश्न: भर्तृहरि, उज्जैन

उत्तर: उज्जैन के राजा और महान योगी भर्तृहरि ने अपने अंतिम दिनों में अलवर को ही अपनी तपस्या स्थली बनाया था। उनकी तपस्या स्थली ‘भर्तहरि‘ के नाम से विख्यात है। ये नाथ पंथ के संत थे। वे प्रेम में डूबे तो ऐसे की अपनी पत्नी पिंगला के अलावा उन्हें कुछ भी दिखाई नहीं दिया और विराग हुआ तो ऐसा कि सब कुछ छोड़कर भिखारी बन गए। प्रसिद्ध विद्वान एवं शतकत्रयी- वैराग्य शतक, नीतिशतक और श्रृंगार शतक के रचयिता भर्तृहरि जीवन के अंतिम दिनों में अलवर आये और यहाँ के प्राकृतिक वैभव को देखकर यहीं रम गये। यहाँ तपस्या करते-करते वे समाधिस्थ हो गये। वर्षा ऋतु में जब भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की सप्तमी और अष्टमी को यहाँ मेला लगता हैं तो यह स्थल एक लघु कुम्भ का रूप धारण कर लेता है। कनफड़े नाथों का तो यह तीर्थ स्थल है।
प्रश्न: ब्रह्मगुप्त, भीनमाल
उत्तर: भारत के प्रख्यात खगोलशास्त्री ब्रह्मगुप्त का जन्म वि.सं. 654 में जालौर जिले के भीनमाल कस्बे में हुआ। इनके पिता नाम विष्णु था। माना जाता है कि भारतीय गणित में शून्य के आविष्कारक ब्रह्मगुप्त ही थे। इन्होंने ‘‘ब्रह्मस्फट सिद्धांत’ तथा ‘कारणखण्ड खाद्यक‘ आदि ग्रंथों की रचना की। पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत का प्रतिपादन करने वाले वे संसार के पहले विद्वान थे।
प्रश्न: स्वामी केशवानन्द, सीकर
उत्तर:. उदासी साधु कुशलदास ने फाजिल्का में उन्हें उदासी मत में दीक्षित किया और संस्कृत की शिक्षा प्रदान की। 1908 ई. में फाजिल्का पंजाब की गद्दी मिली। अवधूत हीरानन्द ने प्रयाग कुम्भ में इनको केशवानन्द नाम प्रदान किया। इन्होंने हिन्दी में प्रचार-प्रसार के लिए फाजिल्का में 1911 ई. में पुस्तकालय-वाचनालय प्रारम्भ किये। शिक्षा संत एवं सामाजिक कार्यकर्ज के रूप में ये महान् विभूति थे। 1921 ई. से 1922 ई. में असहयोग आंदोलन में गाँधी जी के नेतृत्व में सक्रिय भाग लिया। 1925 ई. में अबोहर में श्साहित्य सदनश् की स्थापना की तथा 1935 ई. में हिन्दी मासिक ‘दीपक‘ का प्रकाशन किया। स्वामीजी ने हिंदी विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा एवं राष्ट्रभाषा हिन्दी का प्रचार किया।
प्रश्न: दौलतसिंह कोठारी, उदयपुर ख्त्।ै डंपदश्े 2003,
उत्तर: इस प्रतिभाशाली वैज्ञानिक का जन्म 1906 ई. में उदयपुर में हुआ। ये डॉ. मेघनाद साहा के प्रिय शिष्यों में से थे। दिल्ली विश्वविद्यालय में भौतिक विज्ञान के प्रोफेसर रहे। पं. नेहरू ने उन्हें रक्षा मंत्रालय का सलाहकार बनाया। 1964 ई. से 1966 ई. तक शिक्षा आयोग के अध्यक्ष रहे। भारतीय विज्ञान कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। भारत सरकार ने उन्हें 1962 में ‘पद्म भूषण‘ तथा 1973 में श्पद्म विभूषणश् से अलंकृत किया। ई. 1993 में उनका निधन हो गया।
प्रश्न: नारायणसिंह माणकलाव, मण्डोर
उत्तर: जोधपुर जिले की मण्डोर पंचायत समिति के माणकलाव गांव में 17 सितम्बर, 1942 ई. को जन्में नारायण सिंह को राजस्थान में अफीम मुक्ति आन्दोलन के प्रणेता के रूप में जाना जाता है। ‘जोधपुर की चैपासनी शिक्षण समिति‘ के संगठन सचिव और मगध विश्वविद्यालय में प्राध्यापक रहने के बाद वे ग्रामीण जन-जीवन की सेवा में जुट गये।
प्रश्न: डॉ प्रमोदकरण सेठी, वाराणसी
उत्तर: अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त अस्थि रोग विशेषज्ञ डा. पी. के. सेठी का जन्म 23 नवम्बर, 1927 को वाराणसी में डा. एन. के. सेठी के यहाँ हुआ। जो पूर्व में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में भौतिक विज्ञान के प्राध्यापक थे। 1954 ई. में डॉ. सेठी ने शल्य चिकित्सक के रूप में सवाई मानसिंह चिकित्सालय की सेवा में प्रवेश किया। अपने द्वारा आविष्कृत ‘जयपुर पैर‘ (जयपुर फुट) को भी विश्व मानचित्र में स्थान दिलवाया। 1981 में इन्हें ‘रेमन मैग्सेसे पुरस्कार‘ से सम्मानित किया गया। इन्हें पद्म श्री अलंकरण सहित अनेक राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
प्रश्न: हनुमान प्रसाद पोद्दार
उत्तर: हनुमान प्रसाद पोद्दार का जन्म चूरू के रतनगढ़ शहर में हुआ था। उनके पिता भीमराज पोद्दार कलकत्ता में जाकर व्यापार करने लगे। हनुमान प्रसाद ‘भाईजी‘ के नाम से प्रसिद्ध रहे। ये एक लेखक और स्वतंत्रता सेनानी के साथ बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। ये गीता प्रेस गोरखपुर के संस्थापकों में से एक थे। उन्होंने महान् हिन्दू ग्रंथों रामायण, महाभारत, पुराण एवं उपनिषदों को उचित मूल्य में लोगों तक पहुंचाने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। सन् 1927 में उन्होंने प्रसिद्ध हिन्दू मैगजीन ‘कल्याण‘ का सम्पादन एवं प्रकाशन शुरू किया जिसे ‘हिन्दू धर्म का विश्वकोष‘ कहते हैं। इसके वर्तमान में 2.5 लाख नियमित पाठक हैं। उन्होंने 1934 ई. में ‘कल्याण-कल्पतरू‘ का अंग्रेजी में प्रकाशन शुरू किया। उन्होंन अध्यात्म एवं मूल्य आधारित अनेक पुस्तकें लिखी जिनमें ‘मातृभूमि की पूजा‘, ‘पुत्र पुष्य‘, ‘रामचरित मानस‘, ‘चीन दमन की साधना और सिद्धी‘ जैसे 600 ग्रंथ लिखे।