kalibanga is situated in hindi is located in which state कालीबंगा सभ्यता क्या है | कालीबंगा कहां है के संस्थापक कौन है विशेषता अर्थ प्रश्न उत्तर ?
प्रश्न : कालीबंगा ?
उत्तर : घग्घर नदी (हनुमानगढ़) के किनारे अवस्थित कालीबंगा हड़प्पा सभ्यता कालीन प्रमुख पुरातात्विक स्थल है। जिसका उत्खनन कार्य अमलानन्द घोष , बी.बी. लाल आदि के निर्देशन में 1961 से 1969 ई. तक किया गया। यह स्थल प्राक हड़प्पा तथा हडप्पा कालीन अवशेषों के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ से लाल काले रेखांकित मृदभाण्ड , हवन कुण्ड , क्रास जुताई , अलंकृत फर्श , सुव्यवस्थित नगर और आवास निर्माण योजना , सैन्धव लिपि , मेसोपोटामिया की मुहर , गढ़ी आदि प्रमुख अवशेष मिले है जो कम से कम 4300 वर्ष पुराने है। यह ताम्रपाषाण और ताम्र कांस्य कालीन सभ्यता का प्रमुख स्थल है।
प्रश्न : राजस्थान की लौहयुगीन संस्कृतियों के बारे में बताइये ?
उत्तर : नोह के काले और लाल मृदुपात्रों के स्तर से लोहे की उपस्थिति के कुछ प्रमाण मिले है। यद्यपि यह साक्ष्य लोहे के छोटे छोटे टुकड़ों के रूप में है , तथापि यह भारत में लौह युग के प्रारंभ की प्राचीनतम सीमा रेखा निर्धारण का सूचक है। इस सभ्यता के पश्चात् एक नयी सभ्यता का आविर्भाव हुआ जिसे सलेटी रंग की चित्रित मृदभाण्ड संस्कृति का नाम दिया गया है। राजस्थान में इस संस्कृति का प्रतिधिनित्व करने वाले जिन टीलों का उत्खनन किया गया है। उनमें नोह (भरतपुर) , जोधपुरा (जयपुर) , विराटनगर (जयपुर) और सुनारी (झुंझुनू) प्रमुख है। वैसे उत्तरी राजस्थान में घग्गर उपत्यका में भी इस संस्कृति के टीले मिले है , जिनमें चक्र 84 (गंगानगर) और तारखानवालों का डेरा (गंगानगर) विशेष उल्लेखनीय है। इस संस्कृति को आदि आर्यों की संस्कृति के रूप में स्वीकार किया जा चुका है। यह स्मरणीय है कि ऋग्वेद के सप्तम मण्डल की रचना घग्गर उपत्यका में सरस्वती नदी के तट पर हुई थी।
इस संस्कृति के लोग साधारण मकानों में रहते थे। इन लोगों का आहार चावल , गोमांस और घोड़े का मांस होता था। इन लोगों को लोहे के प्रयोग का भली प्रकार ज्ञान था। राजस्थान में उत्खनित सलेटी रंग के चित्रित मृदपात्रों वाली सभ्यता का प्रतिनिधित्व करने वाले इन चारों स्थलों सुनारी , जोधपुरा , विराटनगर और नोह का लौह युग के विकास में भारी योगदान रहा। इन सभी स्थानों से लौह के बहुत ही सुन्दर उपकरण प्राप्त हुए है , जिनमें लौहे के तीर और भाले बहुत ही महत्वपूर्ण है। सुनारी से लोहे का एक प्याला (कटोरा) उपलब्ध हुआ है। इन स्तरों से सम्पूर्ण भारतवर्ष में यही प्याला प्राप्त हुआ है। इन सभी प्राचीन स्थलों के निकट लौह के विपुल भंडार है जिनमें टोडा , सियोर , जमालपुर और पहाड़ी मोरीजा , रामपुरा , माउंडा , डाबला , बागाबास , बनियों का बास और टाटेरी के लौह भण्डारों का लौह युगीन सभ्यताओं के विकास में पर्याप्त योगदान रहा है।
सुनारी , जोधपुरा , विराटनगर और नोह में इसके पश्चात् मौर्यकालीन सभ्यता के अवशेष मिलते है , जिनमें प्रमुख रूप से उत्तरी भारत के काली पॉलिश युक्त मृदपात्र है। विराटनगर मौर्य काल में बुद्ध धर्म का एक प्रमुख केंद्र था। यहाँ से उत्खनन द्वारा भारत के प्राचीनतम बौद्ध उपासना स्थल के अवशेष मिले है। यहाँ से अशोक कालीन शिलालेख भी खोज निकाले गए है। वह ताम्र धातु का स्त्रुवा तक्षशिला के उत्खनन से भी मिले है , जिनके आधार पर यह अनुमान लगाया जा सकता है। कि धार्मिक दृष्टि से राजस्थान का यह क्षेत्र तक्षशिला के समान महत्वपूर्ण था। विराटनगर से अशोक कालीन ब्राह्यलिपि के अक्षर युक्त ईंटें प्राप्त हुई है। विराटनगर का पहला उत्खनन रियासती समय में राय बहादुर श्री दयाराम साहनी ने कराया था। बाद में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद डॉ. एन.आर.बनर्जी ने भी यहाँ खुदाई करायी।
प्रश्न : राजस्थान में पायी जाने वाली बैराठ संस्कृति की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
उत्तर : प्राचीन मत्स्य जनपद की राजधानी विराटनगर (वर्तमान बैराठ) में “बीजक की पहाड़ी” , “भीम जी की डूंगरी” और महादेव जी की डूंगरी आदि स्थानों पर उत्खनन कार्य प्रथम बार दयाराम साहनी द्वारा 1936-37 में और पुनः 1962-63 में पुरातत्वविद नीलरत्न बनर्जी और कैलाशनाथ दीक्षित द्वारा किया गया। यहाँ सूती कपडे में बंधी मुद्राएँ और पंचमार्क सिक्के मिले है। इस क्षेत्र में पुरातात्विक सामग्री का विशाल भंडार प्राप्त हुआ है। यहाँ लौह उपकरण भी प्राप्त हुए है। 1999 में बीजक की पहाड़ी से अशोक कालीन गोल बौद्ध मंदिर और स्तूप और बौद्ध मठ के अवशेष मिले है जो हीनयान सम्प्रदाय से सम्बन्धित है ये भारत के प्राचीनतम मंदिर माने जा सकते है। 1837 में भाब्रू पहाड़ी से सम्राट अशोक के ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण दो प्रस्तर लेख भी प्राप्त हुए है जिनसे अशोक की बुद्ध , धम्म तथा संघ में अगाध निष्ठा लक्षित होती है। यहाँ एक स्वर्ण मञ्जूषा प्राप्त हुई है , जिसमें भगवान बुद्ध के अस्थि अवशेष थे। सन 634 में वनसांग विराटनगर आया था। उसने यहाँ बौद्ध मठों की संख्या 8 लिखी थी। भीमसेन की डूंगरी में एक गड्ढा है जिसमें पानी भरा रहता है। इसे भीमतला कहते है। भीम ने द्रोपदी की प्यास बुझाने के लिए इस चट्टान में लात मारकर पानी निकाला था। विराटनगर के मध्य में अकबर ने एक टकसाल खोली थी। इस टकसाल में अकबर , जहाँगीर और शाहजहाँ के काल में ताम्बे के सिक्के ढाले जाते थे। यहाँ एक मुग़ल गार्डन , ईदगाह और कुछ अन्य इमारतें भी बनवाई गयी थी।