कैलाश मंदिर किसने बनवाया , एलोरा का कैलाशनाथ मंदिर किसने बनवाया था kailash temple at ellora was built by in hindi

kailash temple at ellora was built by in hindi कैलाश मंदिर किसने बनवाया , एलोरा का कैलाशनाथ मंदिर किसने बनवाया था ?

प्रश्न: एलोरा का कैलाशनाथ मंदिर –
उत्तर: एलोरा का विख्यात कैलाशनाथ मन्दिर राष्ट्रकूट शासक कृष्ण प्रथम ने बनवाया था, जो एकाश्म पत्थर से निर्मित है तथा पॉलिशदार है। सम्पूर्ण मन्दिर पहाड़ी के एक भाग को काटकर बनाया गया है जिसमें कोई जोड़ नहीं है। इस मन्दिर का प्रवेश उत्तर-दक्षिण दिशा में है। सम्पूर्ण मंदिर पौराणिक मूर्तियों एवं विभिन्न पशुओं से अंलकृत है। जो पाषाण खण्ड का अभिन्न भाग है। मंदिर के चार भाग हैं- मुख्य भाग, प्रवेश द्वार, नन्दीमण्डप तथा ढलान। मंदिर का विमान एक समानातर चतुर्भुज के आकार में बना है। यह शिव को अर्पित है।

प्रश्न: चालुक्य स्थापत्य
उत्तर: चालुक्य शासकों ने बेसर शैली को बढ़ावा दिया। एहोल को मंदिरों का नगर कहा जाता है। इसे वास्तुकला की शाला कहा जाता है। यहां हच्चिमल्लीगुड्डी मंदिर, लाढ़खां का मंदिर (सूर्य मंदिर), दुर्गा मंदिर, मेगुती का जैन मंदिर आदि नागर व द्रविड़ शैली के मिश्रित मंदिर हैं। बादामी के मंदिर चट्टान निर्मित मंदिर हैं। जिनमें मंगलेश द्वारा निर्मित शिव मंदिर व मालमिति शिव मंदिर प्रसिद्ध है। पत्तडकल के मंदिरों में नागर व द्रविड शैली का सुन्दर समन्वय हुआ है। पापनाथखां मंदिर नागर शैली का तथा विरुपाक्ष मंदिर एवं संगमेश्वर मंदिर द्रविड शैली के अच्छे नमूने हैं।

प्रश्न: वेडसा का बौद्ध गुहा स्थापत्य
उत्तर: काले के दक्षिण में 10 मील की दूरी पर वेडसा स्थित है। यहां की गुफायें अधिक सुरक्षित दशा में हैं। काष्ठशिल्प से पाषाणशिल्प में रूपान्तरण वेडसा में दर्शनीय है। चैत्य के सामने एक भव्य बरामदा है। इसके स्तम्भ 25 फीट ऊँचे हैं। ये अठकोणीय हैं तथा इनके शीर्ष
पर पशुओं की आकृतियां खुदी हुई हैं। कुछ पशुओं पर मनुष्य भी सवार हैं जिन्हें अत्यन्त कुशलता से तराशा गया है। स्तम्भों के नीचे के
भाग पूर्ण कुम्भ में टिकाये गये हैं। पशु तथा मनुष्य, दोनों की रचना में कलाकार की निपुणता प्राप्त हुई हैं। वास्तु तथा तक्षण दोनों का
अद्भुत समन्वय यहां देखने को मिलता है। गुफा के मुख ददार को वेदिका से अलंकृत किया गया है। कीर्तिमुख में भी वेदिका अलंकरण है।
समस्त मुख भाग वास्तु तथा शिल्प कला का सर्वोत्तम नमूना है। वेदिका तथा जालीदार गवाक्ष इतनी बारीकी से तराशे गये हैं कि वे किसी
स्वर्णकार की रचना लगते हैं। सौन्दर्य की दृष्टि से वेडसा चैत्यगृह के मुखपट्ट की बराबरी में केवल कार्ले गुफा का मुखपट्ट ही आता है। चैत्य में अन्दर जाने के लिये तीन प्रवेश द्वार हैं।
वेडसा चैत्यगृह के पास आयताकार विहार है। इसमें एक चैकोर मण्डप है जिसका पिछला हिस्सा वर्गाकार है। दूसरी ओर चैकोर कक्ष बने
हुए हैं।
प्रश्न कुषाण कालीन सारनाथ मूर्तिकला शैली
उत्तर: गन्धार तथा मथुरा के अतिरिक्त सारनाथ से भी कुषाणकाल की एक बोधिसत्व की विशाल मूर्ति मिली है जो खडी मार है। इसके ऊपर
कनिष्क संवत् 3 की तिथि खुदी हुई है। इससे सूचित होता है कि वाराणसी के महाक्षत्रप खरपल दान देकर भिक्षु बल द्वारा यहां बोधिसत्व
की प्रतिमा तथा छत्रयष्टि स्थापित करवाया था।
प्रश्न: कुषाण कालीन अमरावती मूर्तिकला शैली
उत्तर: इसी प्रकार आंध्र प्रदेश के अमरावती (गुन्टूर जिला) से भी बैठी तथा खड़ी मुद्रा में निर्मित कई बुद्ध मूर्तियाँ प्राप्त होती है, इनमें बुद्ध के बाल
घुघराले हैं, उनके कन्धों पर संघाटिवस्त्र है तथा वे अपने बायें हाथ से संघाटि को पकडे हाथ से संघाटि को पकड़े हुए है। अमरावती की
बुद्ध मूर्तियों का समय ईसा की दूसरी शती माना जाता है।

प्रश्न: खजुराहो की स्थापत्य कलाध्चन्देल स्थापत्य कला
उत्तर: चंदेल युग अपनी कला की उन्नति के लिए बहुत प्रसिद्ध है। चन्देल शासक उच्च कोटि के निर्माता थे उन्होंने बहुत से मंदिर, झीलें तथा नगरों का निर्माण करवाया। खजुराहों के मंदिर (950-1050 ई0) की मुख्य विशेषताएँ है- चबूतरे पर निर्मित, शिखर युक्त छतें। दीवारे अंलकृत, निर्माण में ग्रेनाइट व बलुआ पत्थर का प्रयोग। मंदिर के तीन भाग है – गर्भगृह, मण्डप, अर्द्धमण्डप। अधिकांश मंदिर आयताकार नागर शैली में निर्मित हैं। प्रमुख मंदिर हैं – कंदरिया महादेव मंदिर (स्थापत्य के लिए प्रसिद्ध), चतुर्भुज मंदिर (विष्णु), जगदम्बिका मंदिर (स्थापत्य के लिए प्रसिद्ध), चैसठ योगिनी मंदिर, वामन मंदिर, चित्रगुप्त मंदिर, पार्वती मंदिर, लक्ष्मण मंदिर, लाल गुंवा मंदिर, पार्श्वनाथ मंदिर, घण्टइ मंदिर, मांगतेश्वर मंदिर, वराह मंदिर, विश्वनाथ मंदिर तथा नंदी मंदिर। चन्देल युग में मूर्तिकला भी चरम पर थी। मंदिरों के प्रवेश द्वारों पर मकरवाहिनी गंगा व कूर्मवाहिनी यमुना की मूर्तियाँ हैं। देवी-देवताओं, पशु- पक्षियों, स्त्री- पुरूषों की मूर्तिया है। स्त्रियों की मूर्तियों में अलसायी नायिका, पैर से कांटा निकालती हुई नायिका, माता और पुत्र आदि प्रमुख मूर्तियाँ हैं।
प्रश्न: परमारकालीन स्थापत्य कला
उत्तर: परमारकालीन प्रमुख नगर रू मुंज परमार ने मुंजनगर, देवपाल परमार ने देवपालपुर, उदयादित्य परमार ने उदयपुर नगर बसाया। भोज परमार ने धारानगरी को नई राजधानी बनाया। भोजपुर नगर बसाया तथा भोजशाला महाविद्यालय व भोजसर तालाब की स्थापना की। । परमारकालीन प्रमुख मंदिर रू परमारों ने अनेक मंदिरों एवं अलंकृत भवनों का निर्माण करवाया। परमार युग का प्रसिद्ध मंदिर महाकालेश्वर मंदिर है। निभर में स्थित सिद्धेश्वर शैव मंदिर, उदयेश्वर शिव मंदिर, चैबारा डेरा का माद, नीलकण्ठेश्वर मंदिर। भोज परमार भारतीय इतिहास के प्रसिद्ध राजाओं में से एक था। उसने त्रिभुवन नारायण मंदिर एक भोजेश्वर मंदिर का निर्माण करवाया।
मूर्तिकला रू झाालरापाटन की नटराज की नृत्य करती मूर्ति (दस हाथ), रामगढ़ की दसभुजाधारी शिव मूर्ति, अभंगमुद्रा – वाग्देवी की मूर्ति, अभंगमुद्रा में दुर्गा की मूर्ति प्रसिद्ध मूर्तियां है।
प्रश्न: पाण्ड्य वास्तुकला
उत्तर: पाण्ड्य काल में मंदिर निर्माण शैली में अब नई प्रवृत्तियां दिखाई देती हैं। अब तक वास्तु कलाकारों ने अपने शिल्प कौशल को मंदिर विशेषतः विमान पर प्रयक्त किया किन्त पाण्डयों के काल में यह प्रथा बन्द हो गई। अब शिल्प कौशल को मंदिर के सहायक तथा बहिवर्ती भागों पर केन्द्रित किया गया। मंदिरों के प्रवेश द्वार को गोपुरम् कहा जाता था। पाण्ड्य कालीन वास्तुकला की विशेषता मंदिर नहीं है अपितु ये गोपुरम् ही हैं। गोपुरम् एक प्रकार का आयताकार भवन है। मदुरई का मीनाक्षी मंदिर, तिरुमलाई मंदिर, चिंदबरम् मंदिर, कुंबकोणम् मंदिर इस श्रेणी की कुछ प्रसिद्ध कृतियाँ हैं।

प्रश्न: विजयनगर साम्राज्य की वास्तुकला की मुख्य विशेषताएं बताइए।
उत्तर: विजयनगर कला की शैली द्रविड़ है। इस शैली के मौलिक तत्व निम्नलिखित हैं –
1. भवन निर्माण व सजावट में स्तम्भों का अधिक प्रयोग,
2. स्तम्भों का दण्ड महत्वपूर्ण है, जिनके शीर्ष पर हिप्पोग्रीफ की रचना की गयी है।
3. स्तम्भों के शीर्ष पर बोदिगई की रचना है,
4. मन्दिरों के आकार में वृद्धि की गयी, जिसमें गर्भगृह, गोपुरम के अलावा श्अम्मनश् और श्कल्याणमंडपश् जोड़े गये। जिसमें देवी-देवताओं का विवाह होता था।
5. एक ही चट्टान को काटकर बनाये गये स्तम्भ और पशु अलंकृत स्तम्भों का प्रयोग।
6. एक श्सहस्त्र स्तम्भोंश् वाले मंडप मंदिर वास्तुकला की विजय नगर शैली का आदर्श रूप था। .
कृष्ण देवराय ने श्हंपीश् में हजारा मंदिर, बिठ्ठल स्वामी का मंदिर, श्श्अम्वारसश्श् में पार्वती एवं तदापति का मंदिर, श्कांचीपुरमश् में एकम्भरनाथ का मंदिर बनवाये। इसके अलावा हजारा राम मंदिर, रामेश्वर का मंदिर, सिंघासनमंच का निर्माण करवाया।
प्रश्न: मन्दिर वास्तुकला के विकास में चोल वास्तुकला का उच्च स्थान है। विवेचना कीजिए।
उत्तर: मन्दिर स्थापत्य कला की द्रविड़ शैली को चोलों ने चरमोत्कर्ष पर पहुँचा दिया। उन्होंने पूरे तमिल-प्रदेश को उत्कृष्ट मंदिरों से आच्छादित
कर दिया। इस परम्परा का अनुकरण श्रीलंका तथा दक्षिण भारत के अन्य भागों में किया गया था। इस मन्दिर स्थापत्य के पहले वर्ग में तिरुकट्टलाई का सुन्दरेश्वर मन्दिर, नरतमालै का विजयालय मन्दिर एवं कदम्बर मलाई मन्दिर उल्लेखनीय हैं। दूसरे वर्ग का प्रारम्भ तंजावुर के बृहदीश्वर मन्दिर से होता है। चोलों ने मन्दिरों के निर्माण के लिए ईंटों के स्थान पर प्रस्ता खण्डों एवं शिलाओं का प्रयोग किया। चोल मन्दिरों के मुख्य अवयव विमान होते थे, जिनके महत्व को बाद के काल में अतिसुसज्जित गोपुरम ने और बढ़ा दिया। इन मन्दिरों के मण्डप ग्राम सभाओं के स्थान होते थे। गोपुरम मन्दिरों के द्वार होते थे जो काफी ऊँचे और अलंकृत होते थे। बृहदीश्वर (राजराजेश्वर) में प्रयुक्त उत्कृष्ट कला शैली के कारण पर्सी ब्राउन का कथन है कि श्बृहदीश्वर मन्दिर का विमान भारतीय स्थापत्य कला का निष्कर्ष है।श् उल्लेखनीय है कि इस विमान का मध्य भाग 13 तलों या बन्धों से युक्त है, जो क्रमशः पतला होता हुआ अन्त में आधार तल की चैड़ाई का एक-तिहाई ही रह जाता है।