जेबलॉस्की आरेख , विकिरण रहित संक्रमण /उत्सर्जन , विकिरण संक्रमण , प्रतिदीप्ति , स्फुरदीप्ति

jablonski diagram with explanation in hindi जेबलॉस्की आरेख : प्रकाश रासायनिक अभिक्रिया में अभिकारक अणु द्वारा प्रकाश विकिरणों के फोटोन या क्वांटम के अवशोषण एवं उसके बाद होने वाले विभिन्न प्रकाश भौतिकी एवं प्रकाश रासायनिक प्रक्रमों को जेबलॉस्की आरेख द्वारा प्रदर्शित करते है।
अणु की मूल अवस्था (ground state) को S0 से दर्शाया जाता है।
सामान्यत: पदार्थों के अणुओं की मूल अवस्था में समस्त electron युग्मित होते है।
ऊर्जा के एक क्वांटम के अवशोषण से electron उत्तेजित अवस्था में आ जाते है , जिससे युग्मित electron का एक जोड़ा अयुग्मित हो जाता है।
इस अयुग्मित अवस्था में दोनों electron का चक्रण विपरीत (single state) अथवा समानांतर (triplet state) हो सकता है।
अत: अणुओं के उर्जा स्तर singlet व triplet अवस्था में विभक्त हो जाते है।

 

अधिकांश इलेक्ट्रोनिक संक्रमण एकक मूल अवस्था से एकक उत्तेजित अवस्थाओं में होते है।
क्वांटम यांत्रिकी के अनुसार एकक उत्तेजित अवस्था की उर्जा triplet उत्तेजित अवस्था से अधिक होती है।
जब अणु singlet या triplet उत्तेजित अवस्था में होता है तो इसे सक्रीय अणु कहते है।
सक्रीय या उत्तेजित अणु वापस अपनी मूल अवस्था में ऊर्जा उत्सर्जित करते हुए निम्न प्रक्रमों द्वारा आता है –

1. विकिरण रहित संक्रमण /उत्सर्जन (non radiative transition)

जब कोई सक्रीय अणु उत्तेजित अवस्था से प्रथम उत्तेजित अवस्था से प्रथम उत्तेजित अवस्था में आता है तो इस प्रकार के संक्रमणों में किसी विकिरण का उत्सर्जन नहीं होता है , अत: इन्हें विकिरण रहित संक्रमण कहते है।
इनमें सक्रीय अणु की ऊर्जा अणुओं की टक्कर से उष्मा के रूप में उत्सर्जित होती है।
सामान्यत: इन संक्रमण में अणु की चक्रण अवस्था समान रहती है अर्थात बहुकता समान रहती है अत: इन्हें आन्तरिक (internal conversion , IC) परिवर्तन कहते है।
ये प्रक्रम लगभग 10-11 सेकंड से भी कम समय में सम्पन्न हो जाते है।
जब अणु S2 से T2 अथवा Sसे T1 अवस्था में आता है तो इन प्रक्रमों में भी विकिरणों का उत्सर्जन नहीं होता है , अत: ये भी विकिरण रहित संक्रमण कहलाते है।
परन्तु इनमें बहुकता का मान बदल जाता है अतः इन्हे अंतर तंत्र क्रॉसिंग (inter system crossing) कहते है। इनमे भी सक्रीय अणु की ऊर्जा ऊष्मा के रूप में उत्सर्जित होती हैं।
 जेबलॉस्की आरेख में विकिरण रहित संक्रमणों को लहरदार रेखाओं से दर्शाया जाता है।

2. विकिरण संक्रमण (radiative transition)

इन प्रक्रमों में उर्जा का उत्सर्जन विकिरण के रूप में होता है।
इन संक्रमणों में निम्न दो प्रक्रियाएं होती है –
1. प्रतिदीप्ति (fluoresces) : यदि सक्रीय अणु उत्तेजित अवस्था से सीधा मूल एकक अवस्था में आता है तो विकिरण के रूप में ऊर्जा का उत्सर्जन होता है , यह प्रक्रिया प्रतिदिप्ती कहलाती है।
इस प्रकार के संक्रमण में बहुकता का मान परिवर्तित नहीं होता है।
अर्थात एकक उत्तेजित अवस्था से एकक मूल अवस्था में विकिरण का उत्सर्जन प्रतिदिप्ती कहलाती है।
यह प्रक्रिया लगभग 10-8 sec में सम्पन्न हो जाती है।
प्रतिदिप्ती के लक्षण :
यह प्रक्रिया स्वत: स्फूर्त होती है एवं प्रकाश अवशोषण के साथ प्रारम्भ हो जाती है तथा प्रकाश क्षेत्र के हटा लेने पर तुरंत बंद हो जाती है।
अत: इसका जीवन काल बहुत कम होता है।
प्रतिदीप्ति प्रक्रिया प्रकाश के दृश्य एवं पराबैंगनी क्षेत्र में अवशोषण से संपन्न होती है।
प्रतिदिप्ती को एक द्वितीयक प्रक्रम माना जा सकता है , जो पदार्थ के अणुओं या परमाणुओं के द्वारा प्रकाश विकिरणों के अवशोषण के प्राथमिक प्रक्रम के बाद सम्पन्न होता है।
2. स्फुरदीप्ति (phosphorescence ) : इसमें त्रिक उत्तेजित अवस्था से मूल एकक अवस्था में संक्रमण के समय उत्सर्जित विकिरणों को स्फूरदीप्ती कहते है।
इसका जीवन काल लगभग 10-3 sec या अधिक होता है।
चूँकि triplet से singlet में संक्रमण होने पर बहुकता बदल जाती है अत: ये संक्रमण वर्जित होते है इसलिए स्फूरदिप्ती प्रक्रिया धीरे धीरे होती है।