iron electron configuration in hindi , fe का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास लिखिए , लोहा , आयरन लोहे का क्या है

iron electron configuration in hindi , fe का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास लिखिए , लोहा , आयरन लोहे का क्या है ?

आयरन (Iron), Z = 26 (1s2 2s2 p6 3s2 p6 3d6 4s2)

धातुओं में सबसे अधिक मात्रा में इसका निर्माण एवं उपयोग होता है। इसका मुख्य खनिज हेमाटाइट (haematite) है। आयरन को इस ऑक्साइड अयस्क से कोक द्वारा अपचयन से वात्या (blast) भट्टी में बनाया जाता है।

शुद्ध धातु नरम होता है। यह चुम्बकीय क्षेत्र से अत्यधिक प्रभावित होता है। ऐसे धातुओं को इस आधार पर लौहचुम्बकीय (ferromagnetic) कहते हैं। इसके उच्च गलनांक व क्वथनांक होते हैं। इसके तीन ऑक्साइड FeO,Fe2 O3 तथा Fe3O4 ज्ञात हैं। गर्म करने पर आयरन हैलोजेनों से सीधे संयुक्त होत है। इसके त्रिसंयोजकीय व द्विसंयोजकीय हेलाइड (FeX3, तथा FeX2) बनाये जा चुके हैं।

प्रथम संक्रमण श्रृंखला में जब हम आयरन तक पहुंचते हैं तो इसके कुछ 3d इलेक्ट्रॉन क्रोड (Core) का भाग बन चुके होते हैं जिसके कारण सभी d इलेक्ट्रॉन बंधन में भाग नहीं लेते हैं। यही कारण है कि यह +8 ऑक्सीकरण अवस्था प्रदर्शित नहीं करता है। आयरन की +6 अधिकतम ऑक्सीकरण अवस्था है। अपने पूर्ववर्ती तत्वों (Cr व Mn) की भांति इस ऑक्सीकरण अवस्था से यह ऑक्सीऋणायन फैरेट, हुए अपचयित हो जाता है। यह चतुष्फलकीय एवं MnO4 से भी प्रबल ऑक्सीकारक है। +5 अवस्था FeO 2- बनाता है जो क्षारीय माध्यम में स्थाई है; जल तथा अम्लीय माध्यम में यह ऑक्सीजन निकालते से भी यह ऐसा ही आयन, [FeO4]3- बनाता है। आयरन की +4 अवस्था दुर्लभ है लेकिन +3 व +2 अवस्था अत्यधिक सामान्य एवं स्थाई हैं।

विलयन में III व II अवस्थाओं के आपेक्षिक स्थायित्व में काफी अन्तर पाया जाता है तथा यह लिगण्ड की प्रकृति पर निर्भर करता है। चूंकि Fe(III) का d5 तथा Fe(II) का d6 विन्यास होता है, क्रिस्टल फील्ड स्थायीकरण ऊर्जा का इनके संकुलों के स्थायित्व समझाने में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जलीय विलयन में फैरिक आयन की जलअपघटित होने की अत्यधिक प्रवृत्ति पाई जाती है। हल्का पीला [Fe(H2O6)]3+ आयन प्रबल अम्लीय माध्यम में ही पाया जाता है । अम्लीयता कम होने पर H2O अणु OH- द्वारा विस्थापित होने लगते हैं :

[Fe(H2O)6]3+ + H2O        [Fe(H2O)5OH]2+ + H3O+

[Fe(H2O5),OH]2+ + H2O     [Fe(H2O)4(OH)2]+ + H3O+

उपर्युक्त प्रकार के साम्य 2 से 3 pH तक पाये जाते हैं- अधिक pH पर सेतु संकुल (bridge complex) बनते हैं जिनकी कोलाइडी प्रवृत्ति होती है। और अधिक pH बढ़ाने पर Fe (OH)3 अवक्षेपित होते हैं जो वास्तव में जलयोजित ऑक्साइड हैं।

Fe(III) बहुत से उपसहसंयोजन यौगिक बनाता है जिनकी सामान्यतः अष्टफलकीय संरचना होती है। यह थायोसायनेट आयनों के साथ गहरे लाल रंग का संकुल बनाता है जिसकी सहायता से आयरन की बहुत कम मात्रा में उपस्थिति की जांच की जा सकती है। यह KFe[Fe(CN6) ] के साथ गहरे नीले रंग का यौगिक बनाता है जो भी विलयन में Fe3+ आयन की पहिचान में सहायक होता हैं :

Fe3+ + CNS – [FeCNS]2+

Fe3+ + K4 [Fe(CN)6]   → KFe[Fe(CN)6]

प्रशियन नील (Prussian Blue)

अधिकांश संकुल उच्च चक्रण प्रकार के होते हैं। चक्रण का युग्मन CN – इत्यादि प्रबल लिगण्डों द्वारा ही सम्भव हो पाता है। फैरस आयरन भी बहुत से संकुलों का निर्माण करता है। इसका [Fe(H2O)6]2+ आयन हरे रंग का होता है जो अम्लीय माध्यम में धीमी गति से तथा क्षारीय माध्यम में तेजी से आक्सीकृत हो जाता है। फैरस आयरन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण संकुल हीम है जो रक्त (हीमोग्लोबिन) में पाया जाता है। प्राकृतिक उत्पादों में फैरीडॉक्सिन ( ferrodoxin) है जिसमें Fe तथा S पाये जाते हैं। चक्रीय यौगिकों में फैरोसीन ( ferrocene ) का महत्वपूर्ण स्थान है । यह इस श्रेणी का पहला यौगिक बनाया गया था। यह द्विक लवण भी बनाता है। मोर लवण (Mohr’s salt) (NH4)2 SO4.FeSO4.6H2O काफी उपयोगी है क्योंकि यह शुद्ध अवस्था में प्राप्त किया जा सकता है तथा सामान्य परिस्थितियों में पूर्णतः स्थाई है। इस कारण से इसका उपयोग मात्रात्मक विश्लेषण में किया जाता है। आयरन की निम्नतर अवस्था बहुत कम यौगिकों में देखने को मिलती है जिनमें कार्बोनिल प्रमुख हैं ।

  1. कोबाल्ट (cobalt), Z = 27, (1s2 2s2 p6 3s2 p6 d7 4s2 )

कोबाल्ट मुख्यतः आर्सेनाइड तथा सल्फाइड रूप में पाया जाता है। इसके मुख्य अयस्क स्माल्टाइट (smaltite), CoAs2, कोबाल्टाइट या कोबाल्ट ग्लान्स (cobaltite or cobalt glance), CoASS तथा लिनीआइट (linnacite), Co3S4 हैं । अयस्क के भर्जन से वाष्पशील अशुद्धियाँ तथा गैंग को स्लैग के रूप में निकाल दिया जाता है। प्राप्त ऑक्साइड से उपस्थित अशुद्धियाँ हटाने के लिए इसे H2SO4 में विलेय कर Co(OH)3 अवक्षेपित कर लेते हैं। इसे गर्म करने से ऑक्साइड प्राप्त होता है जिसके चारकोल द्वारा अपचयन से Co धातु प्राप्त कर लेते हैं ।

यह चमकदार तथा नीली आभायुक्त चांदी के समान सफेद धातु है। ऊष्मीय न्यूट्रॉनों की बमब से प्रकृति में पाये जाने वाला  59Co न्यूक्लाइड अपने रेडियोसक्रिय समनाभिक 60 Co में परिवर्तित हो जात है जो दुर्दम वृद्धि (malignant growth) के इलाज में काम में लिया जाता है। इसके गलनांक तथ क्वथनांक आयरन की तुलना कम होते हैं।

आयरन की तुलना में कोबाल्ट कम क्रियाशील है। यह वायुमण्डलीय ऑक्सीजन से अभिक्रिया करता लेकिन गर्म किये जाने पर यह Co3O4 में ऑक्सीकृत हो जाता है; 9000°C से अधिक तापक्र पर CoO बनता है। गर्म तप्त धातु पर जल भाप की अभिक्रिया से भी CoO बनता है। गर्म करने यह हैलोजेन तथा B. C. P. As तथा S आदि अधातुओं से अभिक्रिया करता है लेकिन H2 तथा N2 के अक्रिय रहता है। ट्राइहैलाइडों में केवल CoF3 ज्ञात हैं जो प्रबल ऑक्सीकारक एवं फ्लुओरीनीकारल अभिकर्मक है। तनु खनिज अम्लों में धीरे-धीरे विलेय होकर यह Co(II) लवण बनाता है।

कोबाल्ट भी यद्यपि परिवर्ती ऑक्सीकरण अवस्थायें प्रदर्शित करता हैं लेकिन क्रॉस संक्रमण श्रृंखल में पहली बार ऑक्सीकरण अवस्थाओं का क्षेत्र (range) यहां से छोटा होने लगता है। यह बढ़ते नाभिकीय आवेश के कारण 3d इलेक्ट्रॉनों पर बढ़ते हुए आकर्षण का प्रभाव है जिससे ये इलेक्ट्रॉन अक्रियता को प्राप्त होते हैं। यही करण है कि Co की अधिकतम ऑक्सीकरण अवस्था +5 है, वास्तव : इसको -4 तथा -5 अवस्था से बहुत कम यौगिक ज्ञात हैं। +2 व +3 सर्वसाधारण ऑक्सीकरण अवस्थाएं हैं। संकुल कारकों की उपस्थिति तथा अम्लीय माध्यम में Co(III) का जलीय विलयन अधिक स्थाई होत है। शेष सभी परिस्थितियों से Co(II) का स्थायित्व अधिक पाया जाता है क्योंकि जलयोजित Co(III) प्रबल ऑक्सीकारक है तथा यह जल को ऑक्सीजन में ऑक्सीकृत कर देता है।

Co(III) अत्यधिक संख्या में अष्टफलकीय उपसहसंयोजन यौगिक बनाता है। इनमें से अधिकांश यौगिक, विशेषकर वे जो N परमाणु द्वारा बंधित हैं, प्रतिचुम्बकीय हैं। [CoF6]3 प्रकार के संकुल, जिन् लिगन्ड दुर्बल फील्ड लगाते हैं, अनुचुम्बकीय होते हैं। Co(II) के संकुलों में केन्द्रीय आयन की समन्दः संख्या 6.5, तथा 4 होती हैं | [Co(H2O)6]2 . [Co(NH3)g]2- तथा ऐसे बहुत से यौगिक अष्टफलकीय हैं | [Co(CN),]3- पीले रंग का वर्गाकार पिरॅमिड पाया जाता है। चार समन्वय संख्या के भी बहुत संकुल ज्ञात हैं जिनकी दोनों प्रकार की संरचनाएँ चतुष्फलकीय एवं वर्गाकार समतलीय पाई जाती है उदारहणार्थ, [CoCl.]– चतुष्फलकीय है। कुछ कीलेटी लिगण्ड वर्गाकार ज्यामिति के संकुल बनाते हैं उदाहरण के लिए, डाइमेथिलग्लाईऑक्साइम का Co(II) संकुल वर्गाकार होता है।