insulators definition in hindi कुचालक किसे कहते हैं परिभाषा क्या है उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिये

पढ़िए insulators definition in hindi कुचालक किसे कहते हैं परिभाषा क्या है उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिये ?

अध्याय : 2
अर्ध-चालक (Semiconductors)
 प्रस्तावना (INTRODUCTION)
1948 में बैल-प्रयोगशाला (Bell laboratory) में बारदीन (Bardeen), बातें (Brattain) तथा शॉक् (Shockley) ने ट्रॉंजिस्टर (transistor) की खोज कर इलेक्ट्रॉनिकी-जगत में हलचल मचा दी। ट्रॉजिस्टर के आविष्कार से इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के लघुकरण (miniaturization) का सूत्रपात हुआ। साठ के दशक में एकीकृत परिपथों (integrated circuits) का निर्माण प्रारम्भ हुआ और इस दिशा में इतनी तीव्रता से प्रगति हुई की मात्र तीस वर्षों में असंभव को संभव कर दिखाने वाले सुपर कम्प्यूटर उपलब्ध हो गये। इन कम्प्यूट की सहायता से युद्ध में मिसाइलों का नियंत्रण, कारखानों में विभिन्न प्रक्रियाओं का नियंत्रण, मौसम की प्रागुक्ति, जटिल से जटिल समस्याओं का क्षणों में समाधान आदि संभव तथा इस प्रकार वास्तव में इलेक्ट्रॉनिक युग का प्रादुर्भाव हो गया है। इस अध्याय में आधुनिक इलेक्ट्रॉनिकी के मूल तत्त्व अर्धचालकों (semi-conductors) का संक्षिप्त विवेचन प्रस्तुत किया जायेगा।
 ठोसों में ऊर्जा बैंड ( ENERGY BANDS IN SOLIDS)
यह सर्वविदित है कि प्रत्येक पदार्थ की मूलभूत इकाई परमाणु होती है। प्रत्येक परमाणु के नाभिक में प्रोटॉन तथा न्यूट्रॉन होते हैं और इनके चारों तरफ इलेक्ट्रॉन अनुमत (allowed) ऊर्जा की कक्षाओं में गति करते हैं। परमाणुओं में इलेक्ट्रॉनों की संख्या नाभिक में प्रोटोनों की संख्या के बराबर होने के कारण वे वैद्युत रूप से उदासीन होते हैं परन्तु पदार्थ में वैद्युत गुणों की विभिन्नता इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन व न्यूट्रॉन की संख्याओं में परिवर्तन से आती है।
परमाणुओं में सभी इलेक्ट्रॉन एक ही ऊर्जा स्तर वाले कक्ष में नहीं होते हैं बल्कि विभिन्न अनुमत ऊर्जा स्तरों वाले कक्षों में वर्गीकृत (classified) होते हैं। विभिन्न कक्षों में इलेक्ट्रॉनों का वर्गीकरण पाउली के अपवर्जन नियम (Pauli exclusion principle ) के अनुसार होता है परमाणु में इलेक्ट्रॉन सबसे पहले उस कक्षा में रहते हैं जिसकी ऊर्जा सबसे कम होती है और फिर पाउली के अपवर्जन नियम का पालन करते हुए ऊर्जा वृद्धि के क्रम से उच्च ऊर्जा वाले कक्षों में इलेक्ट्रॉन रहते हैं। सबसे बाहरी कक्ष, जिसमें उपस्थित इलेक्ट्रॉनों को संयोजी इलेक्ट्रॉन (valence electron) कहते हैं संयोजकता ऊर्जा स्तर कहलाता है।
संयोजी इलेक्ट्रॉन नाभिक से सबसे अधिक दूर होने व अन्य इलेक्ट्रॉनों के आवरणी प्रभाव के कारण इन पर कूलॉम आकर्षण बल नगण्य होता है फलतः से इलेक्ट्रॉन परमाणु में शिथिलत: बद्ध (loosely bound) होते हैं और किसी अन्य परमाणु से सम्बन्ध स्थापित करने के लिए स्वतन्त्र होते हैं। यद्यपि संयोजी इलेक्ट्रॉन लगभग मुक्त इलेक्ट्रॉन होते हैं तथा परमाणुओं के जालक में किसी भी जगह आ जा सकते हैं परन्तु इनकी ऊर्जा इतनी कम होती है कि नाभिक के प्रभाव से पूर्णत: मुक्त नहीं हो पाते है |

चालकता के आधार पर ठोसों का वर्गीकरण (CLASSIFICATION OF SOLIDS ON THE BASIS OF ELECTRICAL CONDUCTIVITY)
ऊर्जा बैंडों की संरचना तथा विद्युत चालन की क्षमता के आधार पर ठोसों को निम्न तीन वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है –
(i) कुचालक (ii) चालक (iii) अर्धचालक
(i) कुचालक (Insulators)—
कुचालकों में वर्जित ऊर्जा अन्तराल △Eg सामान्य ताप पर इलेक्ट्रॉनों की माध्य तापीय ऊर्जा
(thermal energy) 0.025 eV की तुलना में बहुत अधिक होता है चित्र (2.3 – 1) | जिससे इलेक्ट्रॉनों का संयोजकता बैण्ड से चालन बैण्ड में संक्रमण अत्यल्प होता है और चालन बैण्ड लगभग पूर्णतः रिक्त तथा संयोजकता बैण्ड भरा होता है। अतः सामान्य ताप पर चालन बैण्ड में इलेक्ट्रॉनों की


चित्र (2.3-1)
संख्या नगण्य होने के कारण इन पदार्थों में विद्युत चालन नगण्य होता है अर्थात् इस प्रकार के पदार्थों की चालकता (conductivity) बहुत कम (10^-12 से 10^-18 mho/m की कोटि तक) तथा प्रतिरोधकता ( resistivity) अत्यधिक (10^12 से 10^18 Ω-m की कोटि तक) होती है। अत्यधिक ताप वृद्धि करने पर इस प्रकार के पदार्थों में कुछ इलेक्ट्रॉन संयोजकता बैण्ड से चालन बैण्ड में संक्रमण कर जाते हैं जिससे इनकी चालकता में वृद्धि हो जाती है अर्थात् प्रतिरोधकता कम हो जाती है। इस अवस्था को कुचालक की भंजन अवस्था ( break down) कहते हैं। अत: कुचालकों का प्रतिरोधकता ताप गुणांक ऋणात्मक होता है। उदाहरणस्वरूप के लिए वर्जित ऊर्जा अन्तराल 7 eV होता है और प्रतिरोधकता 10^16 Ω-m के कोटि की होती है।
(ii) चालक ( Conductor)
इस प्रकार के ठोसों में संयोजकता तथा चालन ऊर्जा बैण्डों में परस्पर अतिव्यापन ( overlapping) होता है । अत: इनमें वर्जित ऊर्जा बैण्ड प्रायः नहीं पाया जाता है अर्थात् △AEg = 0, चित्र (2.3-1-ii) | तांबा चांदी आदि धातुओं के लिये यही स्थिति होती है। सोडियम में संयोजकता बैंड पूर्णत: भरा नहीं होता है। अत: यह संयोजकता बैंड ही चालन बैंड की भांति व्यवहार करता है। उपरोक्त दोनों स्थितियों में इलेक्ट्रॉन बाह्य आरोपित क्षेत्र से ऊर्जा ग्रहण करने में समर्थ होते हैं। इन इलेक्ट्रॉनों पर नाभिकीय बन्धन बहुत दुर्बल होता है जिससे ये इलेक्ट्रॉन लगभग मुक्त इलेक्ट्रॉनों की भांति व्यवहार करते हैं तथा आरोपित क्षेत्र के कारण निश्चित दिशा में प्रवाहित होते हैं। धातुओं के क्रिस्टलों में अन्तरापरमाणविक दूरी लगभग 2 × 10^-10 m (2Å) होती है तथा संयोजी इलेक्ट्रॉनों की सामान्य कक्षाओं का व्यास भी लगभग 2Å होता है अतः निकटवर्ती परमाणुओं की बाह्य कक्षाओं का अतिव्यापन होता है और उनके नाभिकों के कारण इलेक्ट्रॉनों पर बल एक दूसरे को नष्ट कर देते हैं। सामान्य कक्ष ताप पर एकल संयोजी धातुओं के सभी संयोजी इलेक्ट्रॉन (~10^29 प्रति मी. 3 ) लगभग मुक्त अवस्था में होते हैं।
चालन बैण्ड में मुक्त इलेक्ट्रॉनों की संख्या अधिक होने के कारण इस प्रकार के पदार्थों की चालकता बहुत अधिक होती है। अतः पदार्थों पर बाह्य अल्प विद्युत क्षेत्र के प्रयुक्त करते ही चालन बैण्ड के इलेक्ट्रॉन धारा वाहक के रूप में गति करने लगते हैं और अधिक मात्रा में धारा प्रवाहित होने लगती है। इस प्रकार के पदार्थ विद्युत एवं ऊष्मा  के अच्छे चालक होते हैं। सामान्य ताप पर इनकी चालकता अत्यधिक (10^6 से 10^8 mho/m के कोटि की ) प्रतिरोधकता अत्यल्प (10^-8 से 10^-6 Ω-m के कोटि की) होती है। चालकों में ताप वृद्धि करने से मुक्त इलेक्ट्रॉनों को जालक के परमाणुओं से टक्कर करने की आवृत्ति में वृद्धि होती है जिसके कारण चालकता में कमी तथा प्रतिरोधकता में वृद्धि होती है अर्थात् चालकों का प्रतिरोधकता ताप गुणांक धनात्मक होता है। चालकों में वैद्युत चालन केवल इलेक्ट्रॉनों के द्वारा होता है।
(iii) अर्धचालक (Semiconductors)
वैद्युत चालन की क्षमता के आधार पर अर्ध चालक वे पदार्थ होते हैं जिनकी प्रतिरोधकता चालकों एवं कुचालकों के मध्य अर्थात् 10^-1 से 10^7  Ω-m कोटि की होती है। इन पदार्थों में चालन बैण्ड तथा संयोजकता बैण्ड के मध्य वर्जित ऊर्जा अन्तराल अवश्य होता है परन्तु वह कुचालकों की अपेक्षाकृत बहुत कम लगभग 1eV होता है। देखिये चित्र (2.3. 1-iii)। उदाहरण के लिए चतु:संयोजी तत्व जैसे जरमेनियम (Ge), सिलीकॉन (Si) तथा मिश्रधातु गेलियम आर्सनाइड (Ga As) इत्यादि अर्धचालक पदार्थ होते हैं जिनमें वर्जित ऊर्जा अन्तराल क्रमश: 0.72 eV, 1.leV तथा 1.3eV इत्यादि होता है। ये मान कुचालकों के वर्जित ऊर्जा अन्तराल – 6ev की तुलना में बहुत कम होते हैं।
परम शून्य ताप पर अर्धचालक पदार्थ के परमाणु जालक में नाभिक से शिथिलतः बंधे संयोजी इलेक्ट्रॉन परस्पर अन्तः बन्धन या सहसंयोजी आबन्ध बना लेते हैं और वे कुचालक की भांति व्यवहार करते हैं अर्थात् इनकी चालकता शून्य होती है। जब अर्धचालक के ताप में वृद्धि होती है तो तापीय ऊर्जा के कारण कुछ संयोजी इलेक्ट्रॉनों के सहसंयोजी आबन्ध टूटते हैं और इनसे इलेक्ट्रॉन मुक्त होते हैं। ये इलेक्ट्रॉन △AEg के बराबर अथवा अधिक तापीय ऊर्जा लेकर चालन बैंड में पहुँच जाते हैं और संयोजकता बैण्ड में इलेक्ट्रॉन स्थल (electron site) रिक्त हो जाता है। विद्युत क्षेत्र के प्रभाव में ये संयोजकता बैण्ड में रिक्त स्थल इलेक्ट्रॉन के विस्थापन के विपरीत दिशा में विस्थापित होते हैं अर्थात् धन आवेश वाहक की भांति व्यवहार करते हैं। इन्हें विवर, कोटर या होल (hole) कहते हैं । सामान्य ताप पर अर्धचालकों के चालन बैण्ड में इलेक्ट्रॉन तथा संयोजकता बैण्ड में कोटरों की संख्या यथेष्ट होती है इसलिए अर्धचालकों में वैद्युत चालकता इलेक्ट्रॉन एवं कोटर दोनों प्रकार के आवेश वाहकों के कारण होती है। शुद्ध अर्धचालकों में ताप-जनित आवेश वाहकों द्वारा उत्पन्न वैद्युत पालन की प्रक्रिया नैज चालन (intrinsic conduction) कहलाती है तथा अर्धचालक नेज अर्धचालक ( Intrinsic Semiconductor) कहलाता है। नैज अर्धचालकों की चालकता बहुत कम होती है। इन अर्धचालकों में उपयुक्त अशुद्धि ( अपद्रव्य) मिश्रित कर उनकी चालकता आवश्यकता अनुसार परिवर्तित की जा सकती है। अपदव्य युक्त अर्धचालक अपद्रव्यी अर्ध-चालक (Extrinsic Semiconductor) कहलाते हैं।
अर्ध-चालकों में संयोजकता बैंड से चालन बैंड में इलेक्ट्रॉनों का संक्रमण ताप पर निर्भर होता है अर्थात् आवेश वाहकों (चालन बैंड में इलेक्ट्रॉन व संयोजकता बैंड में होल) की संख्या ताप बढ़ने से बढ़ती है। परिणामस्वरूप ताप में वृद्धि से अर्धचालकों की चालकता बढ़ती है और प्रतिरोधकता घटती है। आवेश वाहकों की संख्या में वृद्धि से चालकता में वृद्धि यद्दच्छ संघट्टों के कारण चालकता में कमी से अधिक होती है जिससे अर्ध-चालकों का प्रतिरोधकता ताप गुणांक ऋणात्मक होता है। चालकों में आवेश वाहकों की संख्या लगभग नियत रहती है केवल यद्दच्छ संघट्टों का प्रभाव ही प्रभावी होता है जिससे चालकों में प्रतिरोधकता ताप गुणांक धनात्मक होता है।