(India’s Contribution to Science in hindi) विज्ञान के विकास में भारत का योगदान समझाइए : भारत ऋषि और संतो की जन्मभूमि रही है तथा यहाँ महान विद्वानों और वैज्ञानिकों ने जन्म लिया जिन्होंने बहुत समय पहले ही ऐसे सिद्धांत रख दिए थे जिन्हें बाद में खोजा गया और बहुत बड़े आविष्कार माना गया।
कई शताब्दी पूर्व ही भारत में विज्ञान और तकनिकी से सम्बन्धित प्रयोगशाला का निर्माण हो चूका था और बहुत लम्बे समय से भारत विज्ञान के क्षेत्र में काफी आगे रहा है।
जिन सिद्धांतो को भारतीयों द्वारा प्राचीन समय में दिया गया था उन्हें आधुनिक सिद्धांतो और नियमों का मूल माना जाता है।
यहाँ हम कुछ भारतीयों द्वारा विज्ञान के क्षेत्र में दिए गए योगदान को पढ़ते है जो निम्न प्रकार है –
आर्यभट्ट पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने बताया था कि पृथ्वी गोल है और पृथ्वी अपनी अक्ष पर हमेशा घुमती रहती है और अपने अक्ष पर घूर्णन के कारण ही दिन-रात बनते है , यदि पृथ्वी घूमना बंद कर दे तो दिन और रात का बनना बंद हो जायेगा , इसके अलावा उन्होंने यहाँ भी बताया था कि चन्द्रमा के पास स्वम् चमकने के लिए कुछ नहीं है , चन्द्रमा तो सूर्य के प्रकाश के कारण चमकता है। इस आधार पर हम कह सकते है कि खगोलिकी विज्ञान में हम भारतीय विज्ञान में अपना काफी योगदान दे चुके है।
ब्रह्मगुप्त नामक महान गणितज्ञ ने सबसे पहले शून्य के बारे में बताया था और इसके उपयोग के लिए विभिन्न प्रकार के नियम बनाये थे जिससे गणित काफी आसान और सुविधाजनक हो चुकी थी , शून्य की खोज के बाद ही गणित में क्रांति आई और नए नए नियम , विधियाँ आदि बनी जिससे गणितीय गणना आसान हो पायी। अत: कह सकते है कि गणितीय क्षेत्र में भी हमने काफी उन्नति की है।
भारत के महान वैज्ञानिक चन्द्रशेखर वेंकटरमन ने नयी विकिरण की खोज की थी जिसे रमन प्रभाव कहते है , ये पहले ऐसे वैज्ञानिक थे जिन्होंने सबसे पहले रमन प्रभाव के बारे में बताया था। अत: हम प्रारंभ से ही भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में भी अग्रसर रहे है।
चन्द्रशेखर वेंकटरमन के रमन प्रभाव के कारण ही प्रकाश की प्रकृति के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त कर पा रहे है कि प्रकाश का गुण एक पारदर्शी माध्यम में कैसा होता है और किसी ठोस या द्रव माध्यम में प्रकाश का स्वभाव या गुण किस प्रकार अलग अलग होता है।
इसी प्रकार हमारे देश के महान वैज्ञानिक होमी जहाँगीर भाभा ने एक नए कण की खोज की थी जिसे मेसोन कण कहते है , इनके योगदान के कारण कई परमाण्विक भट्टियो का निर्माण किया गया , इसलिए हम कह सकते है कि रसायन विज्ञान के क्षेत्र में भी हमारे वैज्ञानिको का काफी योगदान रहा है।
भारत में केमिकल उद्योग के प्रवर्तक प्रफुल्ल चन्द्र रे ने मरक्युरस नाइट्रेट नामक केमिकल की खोज की थी।
यहाँ हम 13 ऐसे योगदान की लिस्ट पढने जा रहे है जिनसे यह सिद्ध हो जायेगा कि भारत का विज्ञान और तकनिकी के क्षेत्र में काफी योगदान रहा है –
1. शून्य की खोज या विचार : आर्यभट्ट ने सबसे पहले शून्य के चिन्ह को बनाया था।
2. डेसीमल पद्धति : इस विधि का प्रारंभ भी भारत में हुआ था।
3. अंक संकेतन विधि : इस विधि को भारत में लगभग 500 ई.पू. बनाया गया जिसमें शून्य से लेकर 9 तक के अंको एक विशेष चिन्ह द्वारा प्रदर्शित किया जाता है , बाद में इस संकेतन प्रणाली को पश्चमी दुनिया द्वारा ग्रहण कर लिया गया और जिसे बाद में अरबी अंक कहा गया।
4. Fibonacci नम्बर और सीरिज सबसे पहले भारत में बनायीं गयी थी।
5. बाइनरी अंक : कंप्यूटर भाषा की मूल इकाई बाइनरी नम्बर सबसे पहले भारत के वेदों में लिखी पायी गयी है।
6. चक्रवाला विधि : द्विघातीय समीकरण को हल करने के लिए एल्गोरिदम का चक्रवाला तरीका काम में लिया जाता है कई इसा पूर्व भारत में विकसित की गयी थी।
7. मापन के लिए स्केल या पैमाने का उपयोग भारत में बहुत पूर्व से ही किया जा रहा है , जिससे भारत में बहुत पहले से ही मापन की पद्धति काफी विकिसत थी।
8. परमाणु का सिद्धांत : भारत के कणाद द्वारा प्राचीन समय में ही परमाणु के बारे में सिद्धांत दे दिया गया था , जॉन डाल्टन के जन्म से बहुत समय पहले ही कणाद द्वारा अणु और छोटे कण के रूप में अस्तित्व पाया जाता है।
9. अपनी गणितीय गणनाओ के आधार पर सबसे पहले आर्यभट्ट ने यहाँ बताया था की पृथ्वी गोल है और यह धुरी पर घुमती रहती है , पृथ्वी अपने अक्ष पर घूर्णन करती हुई सूर्य के चारो ओर चक्कर लगाती रहती है जिसके कारण रात-दिन बनते है।
10. भारत में प्राचीन समय से ही स्टील आदि के मिश्र धातु के यन्त्र आदि बनाये जाते थे इसलिए भारत को धातुओं का ज्ञान बहुत पहले से ही था।
11. जिंक को गलाने के लिए भारत में प्राचीन समय में ही आसवन विधि का विकास हो चूका था।
12. भारत में छठी शताब्दी ई.पू. में ही सुश्रुत द्वारा विभिन्न प्रकार की सर्जरी का ज्ञान था जिसे किताबो में पढ़ा जा सकता है और इसलिए उन्हें आधुनिक प्लास्टिक सर्जरी का जनक या पिता कहा जाता है।
13. मोतियाबिंद ऑपरेशन या सर्जरी का ज्ञान भी भारत के मुनि सुश्रुत को था।
यहाँ हम कुछ भारतीयों द्वारा विज्ञान के क्षेत्र में दिए गए योगदान को पढ़ते है जो निम्न प्रकार है –
आर्यभट्ट पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने बताया था कि पृथ्वी गोल है और पृथ्वी अपनी अक्ष पर हमेशा घुमती रहती है और अपने अक्ष पर घूर्णन के कारण ही दिन-रात बनते है , यदि पृथ्वी घूमना बंद कर दे तो दिन और रात का बनना बंद हो जायेगा , इसके अलावा उन्होंने यहाँ भी बताया था कि चन्द्रमा के पास स्वम् चमकने के लिए कुछ नहीं है , चन्द्रमा तो सूर्य के प्रकाश के कारण चमकता है। इस आधार पर हम कह सकते है कि खगोलिकी विज्ञान में हम भारतीय विज्ञान में अपना काफी योगदान दे चुके है।
ब्रह्मगुप्त नामक महान गणितज्ञ ने सबसे पहले शून्य के बारे में बताया था और इसके उपयोग के लिए विभिन्न प्रकार के नियम बनाये थे जिससे गणित काफी आसान और सुविधाजनक हो चुकी थी , शून्य की खोज के बाद ही गणित में क्रांति आई और नए नए नियम , विधियाँ आदि बनी जिससे गणितीय गणना आसान हो पायी। अत: कह सकते है कि गणितीय क्षेत्र में भी हमने काफी उन्नति की है।
भारत के महान वैज्ञानिक चन्द्रशेखर वेंकटरमन ने नयी विकिरण की खोज की थी जिसे रमन प्रभाव कहते है , ये पहले ऐसे वैज्ञानिक थे जिन्होंने सबसे पहले रमन प्रभाव के बारे में बताया था। अत: हम प्रारंभ से ही भौतिक विज्ञान के क्षेत्र में भी अग्रसर रहे है।
चन्द्रशेखर वेंकटरमन के रमन प्रभाव के कारण ही प्रकाश की प्रकृति के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त कर पा रहे है कि प्रकाश का गुण एक पारदर्शी माध्यम में कैसा होता है और किसी ठोस या द्रव माध्यम में प्रकाश का स्वभाव या गुण किस प्रकार अलग अलग होता है।
इसी प्रकार हमारे देश के महान वैज्ञानिक होमी जहाँगीर भाभा ने एक नए कण की खोज की थी जिसे मेसोन कण कहते है , इनके योगदान के कारण कई परमाण्विक भट्टियो का निर्माण किया गया , इसलिए हम कह सकते है कि रसायन विज्ञान के क्षेत्र में भी हमारे वैज्ञानिको का काफी योगदान रहा है।
भारत में केमिकल उद्योग के प्रवर्तक प्रफुल्ल चन्द्र रे ने मरक्युरस नाइट्रेट नामक केमिकल की खोज की थी।
यहाँ हम 13 ऐसे योगदान की लिस्ट पढने जा रहे है जिनसे यह सिद्ध हो जायेगा कि भारत का विज्ञान और तकनिकी के क्षेत्र में काफी योगदान रहा है –
1. शून्य की खोज या विचार : आर्यभट्ट ने सबसे पहले शून्य के चिन्ह को बनाया था।
2. डेसीमल पद्धति : इस विधि का प्रारंभ भी भारत में हुआ था।
3. अंक संकेतन विधि : इस विधि को भारत में लगभग 500 ई.पू. बनाया गया जिसमें शून्य से लेकर 9 तक के अंको एक विशेष चिन्ह द्वारा प्रदर्शित किया जाता है , बाद में इस संकेतन प्रणाली को पश्चमी दुनिया द्वारा ग्रहण कर लिया गया और जिसे बाद में अरबी अंक कहा गया।
4. Fibonacci नम्बर और सीरिज सबसे पहले भारत में बनायीं गयी थी।
5. बाइनरी अंक : कंप्यूटर भाषा की मूल इकाई बाइनरी नम्बर सबसे पहले भारत के वेदों में लिखी पायी गयी है।
6. चक्रवाला विधि : द्विघातीय समीकरण को हल करने के लिए एल्गोरिदम का चक्रवाला तरीका काम में लिया जाता है कई इसा पूर्व भारत में विकसित की गयी थी।
7. मापन के लिए स्केल या पैमाने का उपयोग भारत में बहुत पूर्व से ही किया जा रहा है , जिससे भारत में बहुत पहले से ही मापन की पद्धति काफी विकिसत थी।
8. परमाणु का सिद्धांत : भारत के कणाद द्वारा प्राचीन समय में ही परमाणु के बारे में सिद्धांत दे दिया गया था , जॉन डाल्टन के जन्म से बहुत समय पहले ही कणाद द्वारा अणु और छोटे कण के रूप में अस्तित्व पाया जाता है।
9. अपनी गणितीय गणनाओ के आधार पर सबसे पहले आर्यभट्ट ने यहाँ बताया था की पृथ्वी गोल है और यह धुरी पर घुमती रहती है , पृथ्वी अपने अक्ष पर घूर्णन करती हुई सूर्य के चारो ओर चक्कर लगाती रहती है जिसके कारण रात-दिन बनते है।
10. भारत में प्राचीन समय से ही स्टील आदि के मिश्र धातु के यन्त्र आदि बनाये जाते थे इसलिए भारत को धातुओं का ज्ञान बहुत पहले से ही था।
11. जिंक को गलाने के लिए भारत में प्राचीन समय में ही आसवन विधि का विकास हो चूका था।
12. भारत में छठी शताब्दी ई.पू. में ही सुश्रुत द्वारा विभिन्न प्रकार की सर्जरी का ज्ञान था जिसे किताबो में पढ़ा जा सकता है और इसलिए उन्हें आधुनिक प्लास्टिक सर्जरी का जनक या पिता कहा जाता है।
13. मोतियाबिंद ऑपरेशन या सर्जरी का ज्ञान भी भारत के मुनि सुश्रुत को था।