मानव स्वास्थ्य एवं रोग Class 12 PDF human health and disease class 12 notes pdf download in hindi

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अध्याय-8 मानव स्वास्थ्य एवं रोग
 स्वास्थ्य (Health)
स्वास्थ्य का अर्थ ‘रोग की अनुपस्थिती‘ या ‘शारीरिक स्वस्थता‘ नही है इसे पूर्णतया शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक स्वास्थ्य के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
 विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization, WHO) ने 1904 मेें स्वास्थ्य की परिभाषा कुछ इस प्रकार दी-
‘Health is a state of complete physical, mental”s, social well being not mering on absence of disease’
 अच्छे स्वास्थ्य के लिए जागरूकता-
ऽ अच्छा स्वास्थ्य बनाये रखने के लिए संतुलित आहार लेना चाहिए।
ऽ व्यक्तिगत स्वच्छता, नियमित व्यायाम बहुत ही महत्वपूर्ण हैं।

 रोग (Disease)
जब एक या अधिक अंग या अंगोतन्त्रों के कार्याे पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े तथा जिससे शरीर में विभिन्न लक्षण उत्पन्न होता है, तब इसे रोग (Disease) कहते है।
रोग निम्न दो प्रकार का होता है-

1. जन्मजात या वंशागत रोग (Ongenital Disease)
वे रोग जो पीढ़ी दर पीढ़ी वंशागत होते रहते है और बच्चों के जन्म से ही उपस्थित होते है जन्मजात या वंशागत रोग कहलाते है।
जैसे- होमोफीलिया, वर्णान्धता, दात्र कोशिका, रक्ताल्पता आदि।

2. उपार्जित रोग (Acquired disease)
ये रोग जन्म के बाद विभिन्न कारणों से होते है। ये दो प्रकार के होते है।

i. संक्रामक रोग (Infectious Disease)-
ये रोग रोगाणुओं के कारण होते है तथा विभिन्न माध्यमों द्वारा संक्रमित मनुष्य से स्वस्थ्य मनुष्य मेें पहंुचते रहते है और वह भी रोगी हो जाता है, उदाहरण-मलेरिया, टाइफाइड, जुकाम, एड्स आदि।
ii. असंक्रामक रोग (Non-Infectious Disease)-
वे रोग जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में संचरित नही होते हैे, उदाहरण- कैंसर, डायबिटिज, चोट लगना आदि।
 रोगजनक (Pathogen)
वे जीव जो रोग उत्पन्न करते है रोगजनक कहलाते हैं।
मलेरिया  रोगजनक – प्लाज्योडियम
रोगवाहक  मादा एनाॅफिलीज
 रोगवाहक (Vector or Carrier)
वे जीव जो रोगजनक को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाते है रोगवाहक कहलाते है उदहारण-

विषाणुओं द्वारा उत्पन्न कुछ रोग

क्रं.सं. रोग रोगजनक संक्रमक विधि

1. खसरा Measles वायु द्वारा, छींकने से
2. पोलियां Poliomyelitis दूषित जल
3. रेबीज Rabies टपतने कुत्तों के काटने से
4. चेचक (smallpox) Variolr वायु द्वारा
5. ग्लसुआ (munbs) Paranyxo वायु द्वारा

जीवाणुओं द्वारा उत्पन्न रोग

क्रं.सं. रोग रोगजनक संक्रमक विधि

1. हैजा (cholera) vibreo cholera दूषित जल
2. पेचिश (dysenty) shigella दूषित जल व भोजन
3. रिटनेश clostridium tetomi त्वचा काटने से
4. ज्इण् Tuberculosix mycobectrium tuberculosis वायु द्वारा
5. मियादी बुखार (thusbhoid) salmonella जीलइीप दूषित भोजन
6. काली खांसी bordetella वायु द्वारा

 

कवक द्वारा उत्पन्न रोग

क्रं.सं. रोग रोगजनक संक्रमक विधि

1. दाद (Ringworm) Trycobhyton त्वचा सम्पर्क

प्रोटोजोआ द्वारा उत्पन्न रोग

क्रं.सं. रोग रोगजनक संक्रमक विधि

1. अमीबापेचिश Entamoeba histolitca दूषित जल व भोजन
2. मलेरिया Plasmodium मच्छर के काटने से

हेल्मिंथ से उत्पन्न रोग

क्रं.सं. रोग रोगजनक संक्रमक विधि

1. ऐस्कैरिएसिस (Ascariasis) Ascaris दूषित भोजन
2. फाइलेरिएसिस Wuchereriya Bencrortiy मच्छर
3. टिनयासिस ज्नमदपबं सुअर के अधपके मांस खाने से

 रोग- फाइलेरिएसिस/एलिफैन्टियासिस
इस रोग के कारण मनुष्यों के पैरो में सूजन आती है जिसके कारण वे फूल जाते है जिसके कारण इसे हाथी पांव भी कहते हैं।
रोगजनक-वाउचेेरेरिया बेन्क्राप्टी (निमरोडो) (Wucherirera bancorfti)
रोगवाहक-मादा क्यूलेक्स मच्छर
यह परजीवी जीवित व मृत दोनों अवस्थाओं में सक्रंमित करता है। ये यकृत, प्लीहा, अण्डकोश आदि में प्रभाव डालते है।

 रोग- एस्कोरियासिस
ये आंत में पाया जाता है।
लक्षण- पेट दर्द, उल्टियां, भूख न लगना पेट में ऐंठन
उपचार-

 रोग- मोतीझरा (Typhoid)
रोगजनक- साल्मोनेला टायफी जीवाणु (Solmonela Typhi)
ये आंत में पाया जाता है।
लक्षण- लम्बें समय तक बुखार, सिर दर्द भूख न लगना।

 रोग- न्यूमोनिया (Pneumonia)
(नाडल- साल्यूबिलिटी टेस्ट)
रोगजनक- स्ट्रेप्पटोकोकस न्यूमोनी, हीमोफिलस इन्फयूएंजा
संचरण- व्यक्ति के खांसने से

 रोग- डेंगू बुखार – पीत ज्वार – हड्डी तोड़ बुखार
रोगजनक- आर्बोवाइरस ;विषाणुुद्ध
रोगवाहक- मादा एडीज एजिप्पाई मच्छर दिन में काटते हैं।
उद्भवन काल – विषाणु के शरीर में पहुंचकर लक्षण उत्पन्न करने के समय का उद्भवन काल।
लक्षण- सिरदर्द, भूख न लगना, लगातार बुखार

 रोग- चिकनगुनिया
रोगजनक- विषाणु – एल्फाविषाणु
रोगवाहक- मादा एडीज एजिप्टी या अन्य मच्छर टाइगर मच्छर
लक्षण- तीव्र ज्वर सिरदर्द, शरीर में छोटे-छोटे लाल चकते बन जाते है।
 स्वाइन प्लू
रोगजनक – SIV
यह मुख्य रूप से सुअर में पाया जाता है।
रोगवाहक- व्यक्ति के पास खड़ेे होने, छीेंकने से
लक्षण- भूख न लगना, सिरदर्द।

 जुकाम (Common cold)
रोगजनक- राइनो विषाणु, कोटावा विषाणु
रोगवाहक- वायु के द्वारा
इसाक्स व लिण्डरमैन ने बताया था कि कशेरूकीय प्राणियांे के शरीर में इस विषाणु के संक्रमण से सक्रंमित कोशिका एक प्रतिविषाणु प्रोटीन उत्पन्न करती है जिसे इण्टरफेरान कहते है इण्टरफेरान प्रोटीन संक्रमित कोशिका के आस-पास की कोशिकाओं को विषाणु के संक्रमण से बचाती है।

 रोग- अमीबी पेचिश
रोगजनक- एण्टएमीबा हिस्टोलिटिका
रोगवाहक- वायु के द्वारा, दूषित भोजन

 रोग- अतिसार या प्रवाहिका
रोगजनक- जिमार्डिय इन्टेस्टाइनेलिया
लक्षण- दस्त, पेट में दर्द, भूख न लगना, कमजोरी

 रोग- दाद
रोगजनक- Microsporm, Trefcolohyterm Epidermophytion
लक्षण- त्वचा नाखून पर गोल लाल चकते बनते है।

 प्रतिरक्षा (Immunity)
परपोषी की रोगजनक जीवो से लड़ने की क्षमता जो उसे प्रतिरक्षा तंत्र से प्राप्त होती है, प्रतिरक्षा कहलाती है।
ये दो प्रकार की होती है-

1. सहज प्रतिरक्षा (Innate Immunity)
सहज प्रतिरक्षा एक प्रकार की अवशिष्ट रक्षा है जो जन्म के समय से मौजूद होती है, ये आनुवंशिक होत हैं।
ऽ यह प्रतिरक्षा तंत्र हमारे शरीर में प्रवेश करने वाले बाह्य कारकों को रोकता है व उन्हें नष्ट कर देता हैं।
सहज प्रतिरक्ष में चार अवरोध होते है, ये निम्न हैः

i. शारीरिक अवरोध (Physical Barrier)
ऽ हमारे शरीर पर त्वचा मुख्य रोध है जो सूक्ष्मजीवों के प्रवेश को रोकती है।
ऽ श्वसन, जठरांत्र व जननमूत्र पथ को आस्तारित करने वाली एपीथीलिय की श्लेष्मा आलेप बाह्य कारकों को शरीर में प्रवेश से रोकती है।
ii. कायिकीय अवरोध (Physiological Barrier)
आमाशय में अम्ल, मुंह में लार, आंख में आंसू आदि में लाइसोजाइम होता हैे जो जीवाणुओ विषाणुओं को शरीर में जाने से रोकती है।
iii. कोशकीय रोध (Saleelar Barrier)
ये विशिष्ट प्रकार की कोशिकाएं है जो सूक्ष्म जीवों को शरीर में जाने पर नष्ट कर देता है जैसा श्वेताणु, मोनोसाइडस, लिम्फोसाइट्स रक्त में PMNL
iv. साइटोकाइन रोध-
विषाणु संक्रमित कोशिकाएं इंटरफेरान नामक प्रोटीन का स्रवण करती है जों असंक्रमित कोशिकाओं को और आगे विषाणुु संक्रमण से बचाती है।
 प्रवाह अवरोध-
जब त्वचा में संक्रमण होता है तो वहां लालपन, सूजन जैसी स्थानीय प्रंिक्रया होती है जिसे प्र्रदाह प्रंिक्रया कहते है इससे रक्त कोशिकाएं अधिक पारगम्य हो जाती है जिससे जवद्रव्य व भक्षी कोशिकाएं रक्त से निकलकर संक्रमण वाले स्थान पर पहुंच जाती है और संक्रमित त्वचा में उपस्थित रोगजनको को नष्ट करता है।

2. उपार्जित प्रतिरक्षा (Acquired Immunity)
ऽ उपार्जित प्रतिरक्षा जन्म के बाद उत्पन्न होने वाली प्रतिरक्षा है यह विशिष्ट होती हैं।
ऽ हमारे शरीर में जब पहली बार किसी रोगजनक से सामना होता है तो यह एक अनुक्रिया करता है जिसे निम्न तीव्रता की प्राथमिक अनुक्रिया कहते है बाद में उसी रोगजनकसे सामना होने पर बहुत ही उच्च तीव्रता की द्वितीयक या पूर्ववृत्तीय अनुक्रिया होती है अतः यह तथ्य है हमारे शरीर को प्रथम ‘मुठभेड़‘ की स्मृति हैं।
B.लिम्फोसाइडस- एण्टीबाडी-माध्यित प्रतिरक्षा तंत्र बनाती है।
T.लिम्फोसाइट्स- कोशिक-माध्यित प्रतिरक्षा तंत्र बनाती है।

 एण्टीबाडी-माध्यित प्रतिरक्षा तंत्र-
ऽ यह तंत्र शरीर में प्रवेश किये हुये हानिकारक जीवों जैसे- विषाणु, रोगाणु, जीवाणु आदि से रक्षा करता है।
ऽ जब कोई एण्टीजन B. कोशिकाओं की सतह से जुड़ता है तो ठ कोशिका सक्रिय होकर विभाजन कर दो कोशिकाएं ‘‘प्लाज्मा B कोशिका ‘‘ व स्मृति B कोशिका बनती है।
ऽ प्लाज्मा B कोशिका एण्टीबाडी बनाती है एण्टीजन एण्टीबाडी से जुड़कर एण्टीजन एण्टीबाडी जटिल का निर्माण करती है और एण्टीबाडी एण्टीजन को निष्क्रिय कर देती है।
ऽ प्रत्येक एण्टीबाडी चार पाॅलीपेप्टाइड श्रृंखला की बनी होती है जिसमें 2 बड़ी कोशिका heavy chain व 2 छोटी कोशिका सपहीज बींपद कहलाती है।
ऽ एण्टीबाडी प्रोटीन इम्यूनोग्लोब्यूलिन नामक ग्लोब्यूलर प्रोटीन होता है यह पांच प्रकार- IgA, IgD, IgE, IgM, IgG होता है।

 IgA :- यह हमारे शरीर में स्त्रावित होने वाले श्लेष्मा मां के दूध मे पाया जाता हैं। ये भोजन या सांस लेने से हमारे शरीर में जीवाणुजन आदि को नष्ट करता है।
 IgO:- यह B लिम्फोसाइटस को सक्रिय करता हैै।
लक्षण-
ऽ विशिष्टता-उपार्जित प्रतिरक्षा विशिष्ट होती है क्योकि में प्रत्येक रोगजनक को पहचान सकती है व प्रत्येक रोगजनक के लिए विशिष्ट होती है।
ऽ स्वंय एवं दूसरे के बीच विभिन्नता-
यही बाहरी सूक्ष्म जीव एवं शरीर के सूक्ष्म जीवों में विभेद कर लेती है।

उपार्जित प्रतिरक्षा तंत्र की कोशिकाओं के बारे मेें-
प्राथमिक व द्वितीयक अनुक्रियायें हमारे शरीर के रक्त में उपस्थित दो विशेेष प्रकार लिम्फोसाइट्स द्वारा होती है-
B – लिम्फोसाइडस व T .लिम्फोसाइट्स
ऽ B व T लिम्फोसाइट्स का निर्माण वंश कोशिकाओं व हिमोसाइटोस्लास्ट से भ्रूण के यकृत में व व्यस्क के अस्थि मज्जा (Bone Marrow) में बनती हैंे।
 Ige:- यह एलर्जी प्रतिक्रिया करता है। यह विषेलोे पदार्थो एवं Alexger के विरूद्ध कार्य करता है।
 IgG:- यह सबसे अधिक मात्रा 75% में पाया जाता है यह जीवाणुओं व विषाणुओं को नष्ट करता है।
 IgM:- यह सबसे कम मात्रा मेें पाया जाने वाला एण्टीबाडी होती है यह संक्रमण स्थल पर पहुंचकर IgG के वृद्धि करने में बढ़ा देता है।

 कोशिका माध्यित प्रतिरक्षा तंत्र [Cell Mediated Immune System ;CMIS),
ऽ T लिम्फोसाइट्स कोशिका माध्यित प्रतिरक्षण तंत्र का निर्माण करती है।
ऽ यह प्रतिरक्षा तंत्र शरीर में पहुंचे समस्त रोग कारकों के विरूद्ध कार्य करती है।
ऽ बाह्य कारकों के सम्पर्क मेें आते ही ज् लिम्फोसाइट्स विभाजित होकर 4 प्रकार कोशिकाएं बनाती है जो क्रियात्मक रूप से भिन्न होता हैं।

i. घातक – T लिम्फोसाइट्स (Killer -T- cell)
ऽ यह संक्रमण वाले स्थान पर पहुंचकर परफोटिन नामक पदार्थ को स्त्रावित करती है।
ऽ यह सूक्ष्म जीवों के शरीर पर छिद्र करके उन्हे नष्ट करता हैं।
ऽ घातक – T लिम्फोसाइट्स HIV व कैंसर द्वारा प्रभावित सहायक कोशिका ज् कोशिका को नष्ट करती हैं।

ii. सहायक- T लिम्फोसाइट्स (Helper -T- cell)
ऽ यह सबसे अधिक मात्रा में सहायक T लिम्फोसाइट्स पाया जाता हैं।
ऽ सहायक T- कोशिका B लिम्फोसाइट्स को एण्टीबाडी बनाने के लिए प्रेरित करती है।
ऽ ये घातक T- कोशिकाओं को भी उत्प्रेरित करती है।

iii. दबाने वाली- T लिम्फोसाइट्स (Suerssor -T- cell)
ऽ येेे T व B लिम्फोसाइट्स कोशिका को उस समय प्रभावित या दबा देती है जब शरीर में बाह्य कारको से उत्पन्न संक्रमण नियंत्रित होता है।
iv. स्मृति- T लिम्फोसाइट्स (Memory -T- cell)
ऽ यह संवेदनशील लिम्फोसाइट्स है यदि किसी रोग जनक का आक्रमण पहले कभी हो चुका है और फिर दोबारा आक्रमणकर देता है तो स्मृति T- कोशिकायें शरीर में पहले हुए अनुक्रमण को याद रखती है।

 सक्रिय प्रतिरक्षा तंत्र (Active immune system)
ऽ जब परपोषी (Host) प्रतिजनों का सामना करता है तो उसके शरीर मेें एण्टीबाडीे बनती है प्रतिजन जीवित या मृत रोगाणु या अन्य पदार्थ हो सकते है इस प्रकार के प्रतिरक्षा तंत्र को सक्रिय प्रतिरक्षा तंत्र कहते है।
 निष्क्रिय प्रतिरक्षा तंत्र (Inactive immune)
जब शरीर की रक्षा के लिए बनाये एण्टीबाडी सीधे ही शरीर को दिये जाते तो यह निष्क्रिय प्रतिरक्षा तंत्र कहलाती है।
प्रतिरक्षीकरण या टीकाकरण (Immunçatior or Vaccination)
टीकाकरण में रोगजनक निष्क्रिय या दुर्बलीकृत अवस्था में शरीर में प्रवेश कराये जाते है इन प्रतिजनों के विरूद्ध शरीर में उत्पन्न एण्टीबाडी वास्तविक संक्रमण के दौरान रोगजनक कारको को निष्क्रिय बना देती है।
ऽ टीका स्मृति T कोशिका व B कोशिका भी बनाती है जो परिवर्तन प्रभावन होने पर रोगजनक को जल्दी से पहचान लेती है और एण्टीबाडी की भारी मात्रा उत्पन्न करके हमलावर को नष्ट कर देती है।

 एड्स (AIDS)
(Acquired immeno deficeroy Syndomme)
(उपार्जित प्रतिरक्षा न्यूवता संलक्षण)
ऽ एड्स एक विषाणु जनित रोग है, जो मानव में प्रतिरक्षा न्यूनता विषाणु (HIV) के कारण होता है।
HIV विषाणु पश्च विषाणु (Retrovirus) समूह का विषाणु है जिसका न्यूक्लिक RNA अम्ल होता है।

ऽ संक्रमण विधि
ऽ संक्रमित व्यक्ति से यौन सम्पर्क द्वारा।
ऽ संदूषित रक्त या रूधिर उत्पादों के आधान द्वारा।
ऽ संक्रमित सुइयों के साइना प्रयोग द्वारा।
ऽ संक्रमित मां के अपरा से उसके बच्चें मेें।

ऽ संक्रमण काल- संक्रमण होने व रोग के लक्षण उत्पन्न होने तक के बीच के अन्तराल को संक्रमण काल कहते है।
ऽ व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करने के बाद HIV विषाणु वृहदभक्षकाणु में पहंुचता है जहां उसका RNA जीनोम रिर्वस ट्रान्संिक्रपटेज एंजाइम की उपस्थिती में D.N.A. का निर्माण करती है।
यह विषाकुवीय D.N.A. परपोषी के D.N.A. के साथ जुड़कर HIV कोशिका बनने का निर्देश देता है।
HIV के अधिक होने के बाद ये सहायक T लिम्फोसाइट्स को प्रभावित करती है जिससे हमारा प्रतिरक्षा तंत्र न्यूनतम HIV या जीवाणु विषाणुओं के संक्रमण का शिकार हो जाता है।
ऽ इसके परिक्षण के ELISA टेस्ट कराते हंै।
(Eæyme linked immune sorbent essay)
एड्स रोग सचेतन व्यवहार के कारण होते है न की मलेरिया टाइफाइड के अनजाने में।

 कैंसर (Cancer)
इस रोग मेें कोशिकाएं अपनी नियंत्रित विभाजन की क्षमता भूल जाती है। और वे अनियंत्रित रूप से विभाजित होने लगती है जिनके कारण कोशिका समूह बना लेती है जिसे ट्यूमर कहते है।

ऽ अर्बुद (Tumour) दो प्रकार का होता है-
1. सुदम अर्बुद (Benigin Tumour) –
सामान्यतः अपने मूल स्थान तक सीमित रहता है और इससे मामूली क्षति होती हें
2. दुर्दम अर्बुद (Malign Tumour) –
ये बहुत तेजी से बढ़कर उतको को प्रभावित करते रहते है ऐसे अर्बुदो से उल्टी कोशिकाएं रक्त द्वारा शरीर के विभिन्न भागांे मे पहुंचकर प्रभावित करते है इसे मैयस्टेसिस कहते है।

 कारण-
सामान्य कोशिकाओं को कैंसर कोशिकाओं मेें रूपान्तिरण को प्रेरित करने वाले कारक भौतिक, रासायनिक एवं जैविक कारक हो सकते हैे इन्हे कैंसर जन कहते है।

X-rays, Y rays जैसी आयनकारी विकिरण (ionçed radiation) तथा अनआयनकारी विकिरण U.V. rays D.N.A. के जीने में उत्परिवर्तन करके कैंसर कौशिकाएं उत्पन्न करते है।
तम्बाकू, ध्रुमपान आदि मौजूद रासयानिक कैंसर जन के लगातार उपयोग से मुख फेफड़े में कैंसर हो सकता है।
 ओन्कोजनिक विषाणु (Oncogenicvirus)
वे विषाणु जो कैंसर उत्पन्न करते है ओन्कोजनिक विषाणु कहलाते है।

कैंसर का निदान-
आन्तरिक अंगो में कैंसर का पता लगाने के लिए विकिरण चित्रण (Radisotion Image), X-rays, Yrays, अभिकालिक टोमोग्राफी (CT Scan) o MRI (Magentic Regones Image) आदि के द्वारा पता लगाया जाता हैं।

उपचार-
इसोचिक्तसीय विधि द्वारा कैंसर कोशिकाओं को नष्ट किया जा सकता है।

 स्टेम कोशिका (Stem Cell)
बहु कोशिकीय जीवों की ऐसी कोशिकाएं जिनमें कोशिका विभाजन द्वारा उसी प्रकार असंख्य कोशिकाएं उत्पन्न कर सके इन कोशिकाओं के विभाजन से अनेक कोशिका उत्पन्न कर सके, स्टेम कोशिका कहलाती है-
स्टेम कोशिका प्रत्येक प्रकार की कोशिका व उतक बनाने की क्षमता होती है।

स्टेम कोशिका के प्रकार-
बहुकोशिकीय जीवों की ऐसी कोशिकाएं जिनमें कोशिका विभाजन द्वारा उसी प्रकार असंख्य कोशिकाएं उत्पन्न कर सके इन कोशिकाएं के विभाजन से अनेक कोशिका उत्पन्न कर सके, स्टेम कोशिका कहलाती है-
स्टेम कोशिका प्रत्येक प्रकार की कोशिका व उतक बनाने की क्षमता होती है।
स्टेम कोशिका के प्रकार-
(i) Totipotent Cell –
ऐसी स्टेम कोशिका जो शरीर की प्रत्येक कोशिका को बना सकें ज्वजपचवजमदज ब्मसस कहलाती है। जैसे- ्रलहवजमए इसनेजवतपे
(ii) Pluripotent Cell-
ऐसी कोशिकाएं लगभग सभी प्रकार की कोशिकाएं बनाने में सक्षम होती है।
जैसे- Inter cell of blasopent
(iii) Multipotent Cell –
ऐसी स्टेम कोशिकाएं जो अनेक प्रकार की कोशिकाएं को बनाने में सक्षम होती है। जैसे- लाल अस्थिमज्जा कोशिका
(iv) Unipotent Cell –
ऐसी स्टेम कोशिका जो सिर्फ एक प्रकार की कोशिका बनाती है। जैसे- लिम्फोसाइट््स कोशिका।

 अंग प्रत्यारोपण-
जब किसी व्यक्ति के शरीर में स्वस्थ क्रियाशील अंग निकालकर किसी दूसरे व्यक्ति के क्षतिग्रस्त या विफल अंग के स्थापन पर प्रत्यारोपित करना ही अंग प्रत्यारोपण कहलाता है।
 अंग प्राप्तकर्ता तथा अंगदाता (Donor) की प्रकृति के आधार पर अंग प्रत्यारोपण भिन्न प्रकार होता है।
i. स्वप्रत्यारोपण- जब किसी व्यक्ति का अंग उसी के शरीर में प्रत्यारोपित करना स्वप्रत्यारोपण कहलाता है जैसे- त्वचा का प्रत्यारोपण
ii. अपराप्रत्यारोपण (Allogratt) – जब अंगदाता के अंग को किसी अंगप्राप्तकर्ता के शरीर में प्रत्यारोपित कर दिया जाता तब यह अपराप्रत्यारोपण कहते है।
जैसे- गुर्दे का प्रत्यारोपण, आंख का प्रत्यारोपण।
iii. परप्रत्यारोपण (Xenogratt) -जब किसी जाति के जीव जैसे बन्दर या अन्य जीव का अंग मानव में प्रत्यारोपित कर दिया जाता हैे तब इसे पर प्रत्यारोपण कहलाता है।
उदाहरण- फेफड़े का प्रत्यारोपण
iv. सम प्रत्यारोपण (Isogratt) – जब यमज के बीच अंग का प्रत्यारोपण, समप्रत्यारोपण कहलाता है।

ड्रग एवं एल्कोहल कुप्रयोग

i. ओपिआॅइडस (opiods)
ऐसे ड्रग्स हमारे शरीर में केन्द्रिय तंत्रिका तंत्र (CNC) व जठतंत्र पथ में विशिष्ठ ओपिआइडस ग्राहियों से बंध जाते है।
ऽ ओपिआइड्स का प्रयोग हल्के दर्द निवारक के रूप में किया जाता है।
ऽ इसके अन्तर्गत अफीम व इसके व्युत्पन्न जैसे- मार्कीन, हिरोइन आदि आते है।

अफीम – (opium)
स्त्रोत-पोस्त के पौधे से
ऽ पोस्त के पौधे के हरे कच्चे फल के लैटेक्स से प्राप्त किया जाता है।
मार्फीन- यह अफीम का एल्केलाॅयाड है।
ऽ इसका प्रयोग दर्द निवारक, निद्रा काल्क मन शान्त करने वाले दवाओं को बनाने किया जाता है।
हेेरोइन- स्मैक या ब्राउन सुगर
ऽ यह एक डाइएसिरिल मार्फीन हैे
ऽ हेरोेइन माॅस्फीन के एसरिलीकरण से प्राप्त किया जाता है।
ऽ यह सफेद, गंधहीन व तीखा यौगिक है।
कोडीन (Codine) – यह मेथिल मार्फीन होता है।
ऽ इसका प्रयोग cough surmp बनाने में किया जाता है।
ii. कैनाबिनाइड्स
स्त्रोत Cannabis sativa भांग पुष्प क्रक से प्राप्त किया जाता है।
भांग के पौधे से चप्स हरीश, गांजा मैरीजुआना बनाये जाते है।
iii. कोका एल्केयाइड (कोकीन)
स्त्रोत- एरिथ्रोजाइलम कोका के पौधे से बनाया जाता है।
ऽ यह न्यूरोड्रान्समीटर डोपेमीन के परिवहन में बाधा डालता है।
ऽ इसके अधिक मात्रा में सेवन से विभ्रम की स्थिती उत्पन्न हो जाती है।

बेलाडोना – स्त्रोत – एड्रोफा बैलाडोना
इससे एट्रोपीन एल्केलाइड प्राप्त किया जाता है।
धतुरा- स्त्रोत धतूरा स्टे्रमोनियम विभ्रमकारी।
 L.S.D (Legsergic Acid Diethylamide)
स्त्रोत – कवक निदहप
क्लेविसेप्स परप्यूयिया
ऽ LSD इसके अधिप्र्रयोग से विभ्रम एवं डरावने सपने आते है।
उत्तेजक- उत्तेजक वे पदार्थ है जो अस्थायी रूप से तंत्रिका उतक को सक्रिय करके अधिक सक्रियता व उर्जावान का आभास करते है।
प्रमुख उत्तेजक- काफी चाय (थीन कैफीन पाया गया है) सुपारी आदि।
तम्बाकू – (i) Tobbacuum nicohina
(ii) Tobbacuum Restia
निकोटीन- अधिवृक्क ग्रन्थि (Adrenul Gland)
दो हार्मोन- एड्रीनील व नारएड्रीनील का स्त्रावण करती हैं।

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